अध्याय 19
इस अध्याय से उपन्यास
का दूसरा भाग प्रारम्भ होता है. पहले भाग में वोलान्द और उसके साथियों का मॉस्को
में आगमन होता है. थियेटर जगत और हाउसिंग सोसाइटी से जुड़े लोगों को वे किस प्रकार
दण्डित करते हैं यह दिखाया गया है; साहित्य जगत की एक घिनौनी तस्वीर प्रदर्शित की गई
है. दूसरा भाग मास्टर और मार्गारीटा के भाग्य के बारे में है.
ह्म इस अध्याय के
केवल कुछ प्रमुख बिन्दुओं पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे.
अध्याय का आरम्भ बुल्गाकोव
इस बात पर ज़ोर देते हुए करते हैं कि ‘सच्चा प्यार’ वाक़ई में होता है और वह पाठकों
को इस प्यार के दर्शन करवाने वाले हैं.
अधिकांश साहित्यिक
रचनाओं की तरह बुल्गाकोव अपने नायक को उपन्यास के आरंभ में ही नहीं दिखाते हैं ;
मास्टर से पाठकों का परिचय तेरहवें अध्याय से ही होता है, वह भी तब, जब मास्टर का
जीवन लगभग समाप्त हो चुका है (उसकी अपनी राय में)! मास्टर की कहानी से हमें उसकी
प्रियतमा के बारे में जानकारी होती है. मास्टर, जो उसे पागलपन की हद तक प्यार करता
था, उसका नाम ज़ाहिर नहीं करता; हमें मास्टर की प्रियतमा का नाम बस उन्नीसवें अध्याय
में ही ज्ञात होता है.
उसका नाम था मार्गारीटा
निकोलायेव्ना. वह बेहद ख़ूबसूरत और अक्लमन्द थी; उसका पति काफ़ी असरदार, जाना माना विशेषज्ञ
था, वह उसकी पूजा करता था; उसने शासकीय महत्व की एक ज़बर्दस्त खोज की थी.
मार्गारीटा साझे के फ्लैट में रहने की झंझटों से नावाक़िफ़ थी, उसने कभी स्टोव को
हाथ तक नहीं लगाया था. वह बेहद अमीर थी. उसकी आयु तीस वर्ष की थी. बुल्गाकोव पूछते
हैं, ‘क्या वह ख़ुश थी?’ और स्वयँ ही जवाब भी दे देते हैं, “नहीं, एक मिनट के लिए
भी नहीं! कभी नहीं. जब से, वह उन्नीस वर्ष की आयु में शादी के बाद इस घर में आई,
सुख क्या है, यह उसने जाना ही नहीं.”
आइए, हम कुछ देर रुककर
इस जानकारी पर गौर करते हैं.
मार्गारीटा की आयु
कितनी थी? तीस वर्ष. उपन्यास, उसकी कथा वस्तु का आरम्भ हुआ था सन् 1928 में.
अध्याय 13 में हम देखते हैं कि मास्टर की आयु बुल्गाकोव की उस समय की आयु जितनी ही
थी. मार्गारीटा तीस वर्ष की है, मगर इस बात पर गौर कीजिए कि वह इस आलीशान भवन में
रहने के लिए जब आई, तब उसकी आयु थी 19 वर्ष, अर्थात् वह यहाँ आई थी सन् 1917 में; शायद
हम ये कह सकते हैं कि मार्गारीटा क्रांति के साथ उत्पन्न हुई; एक अत्यंत प्रभावशाली
सर्वहारा वर्ग के इंजीनियर के साथ रहती है और एक बुद्धिजीवी से प्यार करती है. बाद
के एक अध्याय में यह दिखाया गया है कि मार्गारीटा की रगों में शाही खून है. यह एक दिलचस्प
संयोग बन जाता है: शाही वर्ग, सर्वहारा वर्ग और बुद्धिजीवी वर्ग का आपसी सम्बन्ध!
इसीसे हमें इस बात का जवाब मिलता है कि वह खुश क्यों नहीं थी और वह अपनी खुशी को कहाँ
ढूँढ रही थी.
चलिए, वापस इस अध्याय
की ओर लौटते हैं. इस अध्याय की घटनाएँ शुक्रवार को होती हैं, जब मॉस्को में हर तरह
की अकल्पित घटनाएँ हो रही हैं.
मार्गारीटा, जो मास्टर
के अचानक गायब होने के बाद काफ़ी दुख उठा चुकी है, अपने आलीशान भवन में सुबह बहुत देर
से उठी.
उसने अपने आप को बहुत कोसा था कि उसने उस रात मास्टर
को अकेला छोड़ा ही क्यों था. मगर बुल्गाकोव पाठकों को फ़ौरन यह भी बता देते हैं कि
यदि वह उस रात मास्टर के पास रुक भी जाती तो भी कुछ बदलने वाला नहीं था...क्योंकि आधी
रात वाली खटखटाहट केवल दुर्भाग्य ही लेकर आती है, और इस दुर्भाग्य को कोई भी टाल
नहीं सकता था.
मार्गारीटा के पास
मास्टर की पासबुक थी, पोंती पिलात वाले उपन्यास का वह हिस्सा था जो जलने से बच गया
था, और एक सूखा हुआ गुलाब था. मास्टर की एक तस्वीर भी थी. उसने इन चीज़ों को बहुत
सम्भालकर रखा था.
शुक्रवार को भी
उसने कुछ समय इन चीज़ों के साथ बिताया. उसकी नौकरानी नताशा ने उसे कल शाम को वेरायटी
थियेटर में हुए अजीबोगरीब जादू के ‘शो’ के बारे में बताया; इसके बाद मार्गारीटा
घूमने के लिए निकल पड़ी.
ट्रॉलीबस से अलेक्सान्द्र पार्क की ओर
जाते हुए उसने कुछ लोगों की बातें सुनीं, वे किसी अंतिम यात्रा के बारे में बातें
कर रहे थे, और यह जानकर हैरान थे कि ताबूत में से मृतक का सिर चोरी हो गया है.
मार्गारीटा ने उनकी बातों की ओर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया.
आज वह कुछ उत्तेजित अवस्था में थी. रात को
उसे एक अजीब सपना आया था. किस बारे में था यह सपना? शायद, आपने पढ़ा ही होगा, मगर
चलिए, उसके बारे में फिर से बता देते हैं:
इस रात मार्गारीटा ने जो सपना देखा था, वह
अद्भुत था. बात यह थी कि अपनी पीड़ा भरे सर्दी के दिनों में उसने मास्टर को कभी भी
सपने में नहीं देखा. रात में वह उसे छोड़ देता और वह सिर्फ दिन में ही घुलती रहती.
और अब सपने में भी आ गया.
मार्गारीटा ने सपने में एक अनजान जगह देखी – उजाड़, निराश, आरम्भिक बसंत के धुँधले
आकाश तले. देखा वह टुकड़ों वाला, उड़ता आकाश और उसके नीचे चिड़ियों का ख़ामोश झुण्ड.
एक ऊबड़-खाबड़ पुल, जिसके नीचे छोटी-सी मटमैली बसंती नदी; उदास, दयनीय, अधनंगे पेड़;
इकलौता मैपल का वृक्ष –
वृक्षों के बीच, किसी बाड़ के पीछे, लकड़ी का मकान, शायद – रसोईघर था, या शायद स्नानगृह, शैतान
ही जाने क्या था वह! आसपास सब उनींदा-सा, बेजान-सा, इतना उदास कि पुल के पास वाले
उस मैपल के वृक्ष से लटक जाने को जी चाहे. न हवा की हलचल, न बादल की सरसराहट, न ही
जीवन का कोई निशान. यह तो नरक जैसी जगह है ज़िन्दा आदमी के लिए!
और सोचिए, उस लकड़ी वाले घर का दरवाज़ा खुलता है
और उसमें से निकला, वह. काफ़ी दूर है, मगर वही था. साफ़ दिख रहा था. कपड़े इतने फटे
हैं कि पहचाना नहीं जा सकता कि उसने क्या पहन रखा है. बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी
हुई. आँखें बीमार, उत्तेजित. हाथ के इशारे से उसे बुला रहा था. उस ठहरी हुई हवा
में छटपटाती मार्गारीटा ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर उसकी ओर भागी, और तभी उसकी आँख खुल गई.
“इस सपने का दो में से एक ही मतलब हो
सकता है,” मार्गारीटा निकोलायेव्ना अपने आपसे
तर्क करती रही, “अगर वह मर चुका है, और मुझे बुला रहा
है, तो इसका मतलब यह हुआ कि वह मेरे लिए आया है, और मैं शीघ्र ही मर जाऊँगी. यह
बहुत अच्छा होगा, क्योंकि तब मेरी पीड़ा का अंत हो जाएगा. यदि वह जीवित है, तो इस
सपने का केवल एक ही मतलब है, वह मुझे अपने बारे में याद दिला रहा है. वह कहना
चाहता है कि हम फिर मिलेंगे. हाँ, हम मिलेंगे, बहुत जल्दी.”
सपनों में देखे गए रसोईघर या स्नानघर अक्सर
नर्क की ओर इंगित करते हैं (‘डेमोनोलोजी’ के अनुसार). इससे मार्गारीटा को मास्टर
की परिस्थिति के बारे में कुछ अन्दाज़ तो ज़रूर हुआ, मगर वह तय नहीं कर पाई कि वह
जीवित है अथवा नहीं.
पार्क में उसकी मुलाक़ात अज़ाज़ेलो से होती है जो
उसके लिए एक विदेशी का निमंत्रण लाया है.
किसी भी सोवियत नागरिक की ही भाँति मार्गारीटा
भी विदेशियों के प्रति असहज है, मगर अज़ाज़ेलो उसे यक़ीन दिलाता है कि वह इस मौक़े का
फ़ायदा ही उठाएगी. वह तैयार हो जाती है, यह कहते हुए कि वह केवल अपने प्यार की
ख़ातिर जोखिम उठाने जा रही है.
अज़ाज़ेलो उसे खरे सोने से बनी हुई क्रीम की एक
डिबिया देता है और कहता है रात को साढ़े नौ बजे उसे अपने पूरी शरीर पर मल ले और
उसके निर्देशों का इंतज़ार करे.
अब मार्गारीटा के साथ कई अविश्वसनीय घटनाएँ
होने जा रही हैं...
हमें मार्गारीटा के साथ ही रहना है जब शुक्रवार की रात को अज़ाज़ेलो उसे फोन पर बतलाने वाला है कि आगे क्या करना होगा!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.