अध्याय 21
यह अध्याय
आरम्भ होता है मार्गारीटा की बिदाई से – उसके आलीशान भवन से, उसकी पुरानी ज़िन्दगी
से; और समाप्त होता है - उसके वापस मॉस्को में, अनजान विदेशी के घर में आगमन से.
पिछले अध्याय में हम देख चुके हैं कि
मार्गारीटा चुडैल बन चुकी है. ऊर्जा और उत्सुकता से भरपूर...वह अपने रास्ते की
किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है.
वह अभी तक विदेशी के घर में नहीं पहुँची है,
मगर उसके आगमन की सारी औपचारिकताएँ, जैसे कि समारोह पूर्वक स्नान करवाना, चुड़ैलों
द्वारा किया गया शानदार स्वागत-नृत्य, शानदार ऑर्केस्ट्रा पर बजाय गया संगीत आदि
पूरी कर ली गई हैं. अब वह शारीरिक और मानसिक रूप से एक नये जीवन में प्रवेश करने
के लिए तैयार है!
अभी शुक्रवार की रात ही चल रही है. ऐसा लगता
है, मानो हम समय की गिनती ही भूल गए हों...इतने थोड़े समय में इतनी सारी घटनाएँ हो
रही हैं....प्रकृति के रहस्य मार्गारीटा के सामने खुलते जाते हैं...
ब्रश पर सवार मार्गारीटा नदी की ओर प्रस्थान
करते हुए कुछ स्थानों पर रुकती है. लातून्स्की के फ्लैट में घुसकर वह उसकी हर चीज़ नष्ट
कर देती है. वह अदृश्य रूप से जो उड़ रही है...वह लेखकों और नाटककारों की इमारत के
कई फ्लैट्स में घुसती है...उसका गुस्सा धीरे धीरे कम हो रहा है...ड्रामलिट की
इमारत को पूरी तरह तहस-नहस करने के बाद उसे कुछ सुकून मिलता है...आख़िर
उसने मास्टर
को पीड़ा पहुँचाने वालों को दण्डित जो कर दिया था.
नदी की ओर जाते हुए रास्ते में उसकी मुलाक़ात
नताशा से भी होती है, जो मार्गारीटा की ही तरह चुडैल बन चुकी है. वह एक सुअर पर
सवार है, यह सुअर कोई और नहीं बल्कि निकोलाय इवानोविच था. निकोलाय इवानोविच
मारारीटा की कमीज़ लौटाने ऊपर गया था, जो मार्गारीटा ने अपने फ्लैट से उड़ते हुए
उसके मुँह पर फेंकी थी.
मार्गारीटा के शयन कक्ष में प्रवेश करते ही उसे
विवस्त्र नताशा नज़र आई जो कमरे में उड़ रही थी. नताशा ने बची हुई क्रीम अपने बदन पर
मल ली थी. निकोलाय इवानोविच उसे ‘वीनस’ कह कर संबोधित करता है, अपने प्यार का
इज़हार करता है और शादी का प्रस्ताव रखता है. नताशा ने निकोलाय इवानोविच के गंजे
सिर पर भी थोड़ी सी क्रीम मल दी थी. क्रीम मलते ही वह सुअर के रूप में परिवर्तित हो
जाता है. नताशा उसकी पीठ पर सवार होकर उड़ चली. निकोलाय इवानोविच ने अपने मुँह में
ब्रीफकेस पकड़ रखी है जिसमें उसके महत्त्वपूर्ण कागज़ात हैं...
मार्गारीटा नदी के किनारे पर पहुँचती है...उसका
बड़े शानदार तरीक़े से स्वागत किया जाता है...और उसे एक कार में बैठाकर विदेशी के
पास ले जाया जाता है!
बुल्गाकोव बड़ी ख़ूबसूरती से मार्गारीटा की
मनोदशा के विभिन्न पहलुओं का चित्रण करते
हैं...मार्गारीटा की उड़ान का वर्णन
पाठकों को पूरी तरह सम्मोहित कर देता है...उसके साथ-साथ चलता हुआ पूनम का तनहा,
पूरा चाँद... जादुई नदियाँ जो आसमान से देखने पर म्यान में रखी तलवारों की तरह
प्रतीत होती हैं...मैपल वृक्षों के मदहोश करते जंगल....नदी का निस्तब्ध, ख़ामोश
किनारा...इस पवित्र, शांत वातावरण को चीरती की नताशा की खिलखिलाह्ट और उसका तीखा
जवाब कि उसे भी अपनी मालकिन की तरह उड़ने का हक है, इसीलिए उसने अपने शरीर पर क्रीम
मल ली थी. मुस्कुराता, ख़ुशमिजाज़ , नग्न मोटा जो एनिसेई से आया था मार्गारीटा को रानी मार्गो कहकर
सम्बोधित करता है. उसीसे पाठकों को यह पता चलता है कि मार्गारीटा को ये सारी
चुडैलें और एक दूसरी दुनिया के बाशिन्दे ‘महारानी मार्गो’ के रूप में जानते हैं.
उसका बर्ताव भी गरिमामय और शाही हो जाता है.
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