अध्याय
26
अन्तिम
संस्कार
यह अध्याय बेहद
दिलचस्प है. कथानक इस तरह आगे बढ़ता है मानो कोई जासूसी उपन्यास ,
कोई आपराधिक कथा पढ़ रहे हों; पाठकों की उत्सुकता हर पल बढ़ती जाती है.
अध्याय को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है:
अफ्रानी जूडा की हत्या की पृष्ठभूमि तैयार करता
है;
जूडा की हत्या से पहले और बाद में पिलात की मनोदशा;
जूडा
की हत्या किस प्रकार की जाती है;
जूडा
की मृत्यु से संबंधित स्पष्टीकरण;
येशुआ
का अंतिम संस्कार;
पिलात
की लेवी मैथ्यू से मुलाक़ात.
अध्याय
आरम्भ होता है पिलात की बेचैनी से. वह परेशान है, वह डर हुआ है...
“शायद इस धुँधलके के ही कारण न्यायाधीश
का बाह्य रूप परिवर्तित हो गया. मानो वह देखते ही देखते बूढ़ा हो गया, उसकी कमर झुक गई. इसके साथ ही वह चिड़चिड़ा और
उद्विग्न हो गया. एक बार उसने नज़र इधर-उधर दौड़ाई और न जाने क्यों उस खाली कुर्सी
पर नज़र डालकर, जिसकी पीठ पर उसका कोट पड़ा था, वह सिहर उठा. त्यौहार की रात निकट आ रही थी, संध्या-छायाएँ
अपना खेल खेल रही थीं, और शायद थके हुए न्यायाधीश को यह आभास
हुआ कि कोई उस खाली कुर्सी पर बैठा है. डरते-डरते कोट को झटककर न्यायाधीश ने उसे
वापस वहीं डाल दिया और बाल्कनी पर दौड़ने लगा; कभी वह हाथ
मलता, कभी जाम हाथ में लेता, कभी वह
रुक जाता और बेमतलब फर्श के संगमरमर को देखने लगता, मानो
उसमें कोई लिखावट पढ़ना चाहता हो.
आज दिन
में दूसरी बार उसे निराशा का दौरा पड़ा था. अपनी कनपटी को सहलाते हुए, जिसमें सुबह की यमयातना की भोंथरी-सी, दर्द भरी याद थी, न्यायाधीश यह समझने की कोशिश कर
रहा था कि इस निराशा का कारण क्या है. वह शीघ्र ही समझ गया, मगर
अपने आपको धोखा देता रहा. उसे समझ में आ गया था कि आज दिन में वह कुछ ऐसी चीज़ खो
चुका है, जिसे वापस नहीं पाया जा सकता और अब वह इस गलती को
कुछ ओछी, छोटी, विलम्बित हरकतों से कुछ
हद तक सुधारना चाहता था. न्यायाधीश अपने आपको यह समझाते हुए धोखे में रख रहा था कि
शाम की उसकी ये हरकतें उतनी ही महत्त्वपूर्ण हैं, जितनी कि
सुबह के मृत्युदण्ड की घोषणा. मगर वह इसमें सफल नहीं हो रहा था....”
बुल्गाकोव
बार बार इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पिलात को इस बात का एहसास है कि येशुआ को
मृत्युदण्ड देकर उसने महान भूल कर दी है और इस भूल को सुधारने के लिए ही वह जूडा
की हत्या करने का हुक्म दे रहा है...
उसने
सोने की कोशिश की मगर सपने में देखा कि वह चाँद वाले रास्ते पर येशुआ के साथ चल
रहा है. वह येशुआ को इस बात का यक़ीन दिलाने की कोशिश कर रहा है कि वह कायर नहीं
है...
“ ...जब देव घाटी
में मदमस्त जर्मनों ने विशालकाय क्रिसोबोय को लगभग टुकड़े-टुकड़े कर दिया था, तब जूडिया के
वर्तमान न्यायाधीश और घुड़सवार टुकड़ी के भूतपूर्व प्रमुख ने कायरता नहीं दिखाई थी.
मगर, मुझ पर दया करो, दार्शनिक! क्या
तुम, अपनी बुद्धिमत्ता
से यह नहीं समझ सकते, कि सम्राट के विरुद्ध
अपराध करने वाले व्यक्ति के कारण, जूडिया का न्यायाधीश अपनी
नौकरी चौपट कर देता?
“हाँ – हाँ,” नींद में ही पिलात
कराहते और सिसकियाँ लेते हुए बोला. ज़ाहिर है, चौपट कर देता. दिन में
शायद वह यह करता नहीं, मगर अब रात में, सब कुछ छोड़छाड़ कर, वह नौकरी चौपट
करने की बात पर उतारू था, वह सब कुछ करने को तैयार
था, जिससे इस सम्पूर्ण
निरपराध व्यक्ति को, इस सिरफिरे
दार्शनिक और चिकित्सक को मृत्यु से बचा सके.
“अब
हम हमेशा साथ-साथ रहेंगे,” सपने में उस घुमक्कड़
दार्शनिक ने उससे कहा. न जाने कैसे वह सुनहरे भाले वाले घुड़सवार के रास्ते में खड़ा
था. “यदि
एक है तो इसका मतलब है कि दूसरा भी वहीं है! मुझे याद करेंगे तो फ़ौरन तुम्हें भी
याद करेंगे. मुझे लावारिस के, अनजान माता-पिता की संतान
के रूप में, और तुम्हें – भविष्यवेत्ता राजा और
चक्की वाले की पुत्री, सुन्दरी पिला के पुत्र के
रूप में.”
....................
चलिए,
देखते हैं कि पिलात के पास से जाने के बाद अफ्रानी ने क्या क्या किया:
बुल्गाकोव
अफ्रानी की गतिविधियों का बड़ा स्पष्ट विवरण देते हैं. जैसे कोई कॉमेंट्री हो, कोई
संवाद नहीं, कोई अनावश्यक शब्द नहीं...
इस समय
न्यायाधीश का मेहमान काफी व्यस्त था. बाल्कनी के सामने वाले उद्यान की ऊपरी मंज़िल
से नीचे उतरकर वह एक और छत पर आया,
दाईं ओर मुड़कर उन छावनियों की ओर मुड़ गया जो महल की सीमा के अन्दर
थीं. इन्हीं छावनियों में वे दो टुकड़ियाँ थीं, जो न्यायाधीश
के साथ त्यौहार के अवसर पर येरूशलम आई थीं; और थी न्यायाधीश
की वह गुप्त टुकड़ी जिसका प्रमुख यह अतिथि था. अतिथि ने छावनी में दस मिनट से कुछ
कम समय बिताया. इन दस मिनटों के पश्चात् महल की छावनियों से तीन गाड़ियाँ निकलीं,
जिन पर खाइयाँ खोदने के औज़ार और पानी की मशकें रखी हुई थीं. इन
गाड़ियों के साथ भूरे रंग के ओवरकोट पहने पन्द्रह व्यक्ति घोड़ों पर चल रहे थे. उनकी
निगरानी में ये गाड़ियाँ महल के पिछले द्वार से निकलीं और पश्चिम की ओर चल पड़ीं.
शहर के परकोटे की दीवार में बने द्वार से बाहर निकलकर पगडंडी पर होती हुई पहले
बेथलेहेम जाने वाले रास्ते पर कुछ देर चलीं और फिर उत्तर की ओर मुड़ गईं. फिर
खेव्रोन्स्की चौराहे तक आकर याफा वाले रास्ते पर मुड़ गईं, जिस
पर दिन में अभियुक्तों के साथ जुलूस जा रहा था. इस समय तक अँधेरा हो चुका था और
आसमान में चाँद निकल आया था.
गाड़ियों
के प्रस्थान करने के कुछ देर बाद ही महल की सीमा से घोड़े पर सवार होकर न्यायाधीश
का मेहमान भी निकला. उसने अब काला पुराना चोगा पहन रखा था. मेहमान शहर से बाहर न
जाकर शहर के अन्दर गया. कुछ देर बाद उसे अन्तोनियो की मीनार के निकट देखा गया, जो उत्तर की ओर, मन्दिर
के काफी निकट थी. इस मीनार में भी मेहमान कुछ ही देर रुका, फिर
उसके पदचिह्न शहर के निचले भाग की तंग, टेढ़ी-मेढ़ी, भूलभुलैया गलियों में दिखाई दिए. यहाँ तक मेहमान टट्टू पर सवार होकर आया.
शहर से
भली-भाँति परिचित मेहमान ने उस गली को ढूँढ़ निकाला जिसकी उसे ज़रूरत थी. उसका नाम ‘ग्रीक गली’ था, क्योंकि यहाँ
कुछ ग्रीक लोगों की दुकानें थीं, जिनमें एक दुकान वह भी थी,
जहाँ कालीन बेचे जाते थे. इसी दुकान के सामने उसने टट्टू रोका,
उतरकर उसे सामने के दरवाज़े की एक गोल कड़ी से बाँध दिया. दुकान बन्द
हो चुकी थी. मेहमान उस दरवाज़े में आ गया, जो दुकान के प्रवेश
द्वार की बगल में था और एक छोटे-से चौरस आँगन में आ गया, जिसमें
एक सराय थी. आँगन के कोने में मुड़कर, मेहमान एक मकान की
पत्थर से बनी छत पर आ गया, जिस पर सदाबहार की बेल चढ़ी थी.
उसने इधर-उधर देखा. घर और सराय में अँधेरा था. अभी तक रोशनी नहीं की गई थी. मेहमान
ने हौले से पुकारा, “नीज़ा!”
इस
पुकार के जवाब में दरवाज़ा चरमराया और शाम के धुँधलके में एक बेपरदा तरुणी छत पर
आई. वह छत की मुँडॆर पर झुककर उत्सुकतावश देखने लगी कि कौन आया है. आगंतुक को
पहचानकर वह उसके स्वागत में मुस्कुराई. सिर झुकाकर और हाथ हिलाकर उसने उसका
अभिवादन किया.
“तुम अकेली हो?” अफ्रानी ने धीरे से ग्रीक में पूछा.
“अकेली हूँ,” छत पर खड़ी औरत फुसफुसाई, “पति सुबह केसारिया चला गया.” तरुणी ने दरवाज़े की ओर नज़र दौड़ाते हुए,
फुसफुसाहट से आगे कहा, “मगर नौकरानी है घर पर...” उसने इशारा किया, जिसका
मतलब था – ‘अन्दर आओ’.
अफ्रानी
इधर-उधर देखकर पत्थर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा. इसके बाद वह उस तरुणी के साथ घर के
अन्दर छिप गया.
इस
तरुणी के पास अफ्रानी कुछ ही देर को रुका – पाँच मिनट से भी कम. इसके बाद उसने छत से
उतरकर टोपी आँखों पर और नीचे सरका ली और सड़क पर निकल आया. इस समय तक घरों में
रोशनियाँ जल उठी थीं. त्यौहार के लिए आई भीड़ अभी भी थी और आने-जाने वालों और घोड़ों
पर सवार लोगों की रेलमपेल में अफ्रानी अपने टट्टू पर बैठा खो गया. आगे वह कहाँ गया,
किसी को पता नहीं.”
नीज़ा
वस्त्र बदलती है और बुरक़ा पहनकर भीड़ भाड़ वाली सड़क पर आती है. फिर वह चल पड़ती है.
इसी समय आड़ी-तिरछी होते हुए तालाब की ओर जाने
वाली एक और गली के एक भद्दे-से मकान के दरावाज़े से एक नौजवान निकला. मकान का
पिछवाड़ा इस गली में खुलता था और खिड़कियाँ खुलती थीं आँगन में. नौजवान की दाढ़ी
करीने से कटी थी. कन्धों तक आती सफेद टोपी,
नया नीला, कौड़ियाँ टँका चोगा और नए चरमराते
जूते पहन रखे थे उसने. तोते जैसी नाक वाला यह खूबसूरत नौजवान त्यौहार की खुशी में
तैयार हुआ था. वह आगे जाने वालों को पीछे छोड़ते हुए जल्दी-जल्दी बेधड़क जा रहा था,
जो त्यौहार के लिए घर लौटने की जल्दी में थे. वह देखता हुआ चल रहा
था कि कैसे एक के बाद एक खिड़कियों में रोशनी होती जा रही है. नौजवान बाज़ार से
धर्मगुरु कैफ के महल को जाने वाले रास्ते पर चल रहा था जो मन्दिर वाले टीले के
नीचे था.
कुछ ही
देर बाद वह कैफ के महल के आँगन में प्रवेश करता देखा गया. कुछ और देर बाद उसे देखा
गया इस आँगन से बाहर आते.
उस महल
से आने के बाद, जिसमें
झाड़फानूस, आकाशदीप जल रहे थे, और
त्यौहार की गहमागहमी चल रही थी, यह नौजवान और भी बेधड़क,
निडर और खुशी-खुशी वापस निचले शहर को लौट रहा था. उस कोने पर जहाँ
यह सड़क बाज़ार के चौक से मिलती थी, बुर्का पहनी, फुदकती चाल से चलती एक औरत ने, उस रेलपेल के बीच उसे
पीछे छोड़ दिया. इस खूबसूरत नौजवान के निकट से गुज़रते हुए उसने अपने बुर्के का नकाब
क्षण भर के लिए ऊपर उठाकर इस नौजवान को आँखों से इशारा किया, मगर अपनी चाल धीमी नहीं की, बल्कि और तेज़ कर दी,
मानो उससे भागकर छिप जाना चाहती हो, जिसे उसने
पीछे छोड़ दिया था.
नौजवान
ने इस औरत को न सिर्फ देखा, बल्कि पहचान भी लिया, और पहचान कर वह काँपते हुए रुक
गया और बदहवास होकर उसे जाते देखता रहा. मगर तभी वह सँभलकर उसे पकड़ने दौड़ा. हाथों
में सुराही लेकर जाते हुए एक राही से वह टकराया लेकिन फौरन ही लपककर वह उस महिला
के निकट पहुँच गया और हाँफते हुए गहरी साँसें लेते परेशान स्वर में उसने पुकारा, “नीज़ा!”
नीज़ा
एक शादी शुदा औरत है जिससे जूडा प्यार करता है. वे उसके पति से छुप छुपके मिला
करते हैं.
नीज़ा
जूडा से कहती है कि वह तेलियों वाले मोहल्ले में आए:
“तेलियों वाले मोहल्ले में चलो,” नीज़ा ने नकाब चेहरे पर डालते हुए और किसी
आदमी से बचने के लिए मुड़ते हुए कहा, जो बाल्टी लेकर वहाँ आया
था, “केद्रोन के पीछे, गेफसिमान में. समझ गए?”
“हाँ, हाँ, हाँ.”
“मैं आगे चलती हूँ,” नीज़ा आगे बोली, “मगर तुम मेरे पीछे-पीछे मत आओ, मुझसे दूर रहो. मैं आगे जाऊँगी... जब झरना पार
करोगे...तुम्हें मालूम है गुफा कहाँ है?”
“मालूम है, मालूम है...”
“तेलियों के कोल्हू की बगल से ऊपर की ओर जाकर गुफा की ओर मुड़
जाना. मैं वहीं रहूँगी. मगर इस समय मेरे पीछे मत आना, थोड़ा धीरज रखो, यहाँ कुछ
देर रुको.” इतना कहकर नीज़ा उस गली से निकलकर यूँ चली
गई जैसे उसने जूडा से बात ही न की हो.
और
अब जूडा क्या करेगा:
जूडा कुछ देर अकेला खड़ा रहा, अपने भागते हुए विचारों को तरतीब में लाने की
कोशिश करने लगा. इन विचारों में एक यह भी था कि उत्सव की दावत के समय अपनी
अनुपस्थिति के बारे में वह अपने रिश्तेदारों को क्या कैफ़ियत देगा. जूडा खड़े-खड़े
कोई बहाना सोचने लगा. मगर जैसा कि हमेशा होता है, परेशानी
में वह कुछ सोच न पाया और उसके पैर उसे अपने आप गली से दूर ले चले.
अब उसने अपना रास्ता बदल दिया. वह निचले शहर में जाने के बजाय वापस कैफ के
महल की ओर चल पड़ा. जूडा को अब आसपास की चीज़ें देखने में कठिनाई हो रही थी. उत्सव
शहर के अन्दर आ गया था. जूडा के चारों ओर हर घर में अब न केवल रोशनी जल चुकी थी,
बल्कि प्रार्थना भी सुनाई देने लगी थी.
देरी से
घर जाने वाले अपने-अपने गधों को चाबुक मारकर चिल्लाते हुए आगे धकेल रहे थे. जूडा
के पैर उसे लिये जा रहे थे, उसे पता ही नहीं चला कि कैसे उसके सामने से अन्तोनियो की काई लगी, ख़ौफ़नाक मीनारें तैरती चली गईं. उसने किले में तुरही की आवाज़ नहीं सुनी.
रोम की मशाल वाली घुड़सवार टुकड़ी पर उसका ध्यान नहीं गया, जिसकी
उत्तेजक रोशनी में रास्ता नहा गया था. मीनार के पास से गुज़रते हुए जूडा ने
मुड़कर देखा कि मन्दिर की डरावनी ऊँचाई पर दो पंचकोणीय दीप जल उठे हैं. मगर जूडा को
वे भी धुँधले ही नज़र आए. उसे यूँ लगा जैसे येरूशलम के ऊपर दस अतिविशाल दीप जल उठे
थे, जो येरूशलम पर सबसे ऊपर चमकते दीप – चाँद से प्रतिस्पर्धा कर रहे थे.
अब जूडा
को किसी से कोई मतलब नहीं था. वह गेफसिमान की ओर बढ़ा जा रहा था. शहर को जल्द से
जल्द पीछे छोड़ना चाहता था. कभी-कभी उसे ऐसा महसूस होता, जैसे उसके आगे जाने वालों की पीठों और चेहरों
के बीच फुदकती आकृति चली जा रही है, जो उसे अपनी ओर खींच रही
है. मगर यह सिर्फ धोखा था. जूडा समझ रहा था, नीज़ा ने
जानबूझकर उसे पीछे छोड़ा है. जूडा सूद वाली दुकानों के सामने से होकर भाग रहा था.
आख़िर में वह गेफसिमान तक पहुँच ही गया. बेचैन होते हुए भी प्रवेश-द्वार पर उसे
इंतज़ार करना ही पड़ा. शहर में ऊँटों का काफिला प्रवेश कर रहा था जिसके पीछे-पीछे था
सीरियाई फौजी गश्ती-दल जिसे मन ही मन जूडा ने गाली दी...
मगर हर
चीज़ का अन्त होता ही है. अशांत और बेचैन जूडा अब शहर की दीवार के बाहर था. दाईं ओर
उसने एक छोटा-सा कब्रिस्तान देखा,
उसके निकट कुछ भक्तजनों के धारियों वाले तम्बू थे. चाँद की रोशनी से
नहाए धूल भरे रास्ते को पार करके जूडा केद्रोन झरने की ओर बढ़ा, ताकि उसे पार कर सके. जूडा के पैरों के नीचे पानी कलकल करता धीमे से बह
रहा था. एक पत्थर से दूसरे पत्थर पर उछलते वह आखिर में गेफसिमान के दूसरे किनारे
पर पहुँच गया. उसे यह देखकर खुशी हुई कि यहाँ बगीचों के ऊपर वाला रास्ता एकदम
सुनसान है. दूर तेलियों के मुहल्ले के ध्वस्त द्वार दिखाई दे रहे थे.
शहर के
दमघोंटू वातावरण के बाद बसंती रात की महक जूडा को पागल बना दे रही थी. बगीचे से
अकासिया और अन्य फूलों की महक आ रही थी.
प्रवेश-द्वार
पर कोई पहरेदार नहीं था, वहाँ कोई था ही नहीं; कुछ क्षणों बाद ज़ैतून के वृक्षों
की विशाल रहस्यमय छाया के नीचे जूडा दौड़ने लगा. रास्ता पहाड़ तक जाता था. तेज़-तेज़
साँस लेते हुए जूडा अँधेरे से उजाले में चाँद की रोशनी से बने कालीनों पर चलता ऊपर
चढ़ने लगा, जो उसे नीज़ा के ईर्ष्यालु पति की दुकान में देखे
कालीनों की याद दिला रहे थे. कुछ देर बाद जूडा के बाईं ओर मैदान में तेलियों का
कोल्हू दिखाई दिया. वहाँ था पत्थर का अजस्त्र पहिया. कुछ बोरे भी रखे थे.
सूर्यास्त तक सारे काम समाप्त हो चुके थे. उद्यान में कोई भी प्राणी नहीं था और
जूडा के सिर के ऊपर पंछियों की चहचहाहट गूँज रही थी.
जूडा का
लक्ष्य निकट ही था. उसे मालूम था कि दाईं ओर अँधेरे में अभी उसे गुफा में बहते
पानी की फुसफुसाहट सुनाई देगी. वैसा ही हुआ,
उसने वह आवाज़ सुनी. ठण्डक महसूस हो रही थी.
तब उसने
अपनी चाल धीमी करते हुए हौले से आवाज़ दी, “नीज़ा!”
मगर
नीज़ा के स्थान पर ज़ैतून के वृक्ष के मोटे तने से अलग होते हुए एक शक्तिशाली आदमी
की आकृति प्रकट हुई. उसके हाथों में कुछ चमका और तत्क्षण बुझ गया.
जूड़ा पीछे की ओर
लड़खड़ाया और क्षीण आवाज़ में बोला, “आह!”
दूसरे आदमी ने
उसका रास्ता रोका.
पहले वाले ने, जो सामने था, जूडा से पूछा, “अभी कितना मिला है? बोलो, अगर जान बचाना
चाहते हो!”
जूडा के दिल में
आशा जाग उठी और वह बदहवासी से किल्लाया, “तीस टेट्राडाख्मा!
तीस टेट्राडाख्मा! जो कुछ भी पाया, सब यही है. ये रही
मुद्राएँ! ले लीजिए, मगर मेरी जान बख़्श
दीजिए.”
सामने वाले आदमी
ने जूडा के हाथ से झटके से थैली छीन ली. उसी क्षण जूडा की पीठ के पीछे बिजली की
गति से चाकू चमका जिसने उस प्रेमी की पसलियों पर वार किया. जूडा आगे की ओर लड़खड़ाया, और अपनी टेढ़ी-मेढ़ी
उँगलियों वाले हाथ उसने ऊपर उठा दिए. सामने वाले व्यक्ति के चाकू ने जूडा को थाम
लिया और उसकी मूठ जूडा के दिल में उतर गई.
“नी...
ज़ा...,” अपनी ऊँची, साफ़, जवान आवाज़ के बदले
जूडा के मुँह से इतने ही शब्द एक नीची, डरी, उलाहने भरी आवाज़
में निकले और आगे वह कुछ न बोल सका. उसका शरीर पृथ्वी पर इतनी शक्ति से गिरा, कि वह गूँज उठी.
अब रास्ते पर एक
तीसरी आकृति दिखाई दी. यह तीसरा कोट और टोपी पहने था.
“आलस
मत करो,” तीसरे ने आज्ञा
दी. हत्यारों ने फ़ौरन थैली के साथ वह कागज़ बाँध दिया, जो उन्हें तीसरे
आदमी ने दिया था. वह सब एक चमड़े के टुकड़े में रखकर उस पर डोरी बाँध दी. दूसरे ने
यह पैकेट अपनी कमीज़ में रख लिया. इसके बाद दोनों हत्यारे रास्ते से दूर हटकर चले
गए और ज़ैतून के वृक्षों के बीच अँधेरा उन्हें खा गया. तीसरा, मृतक के पास उकडूँ
बैठकर उसके चेहरे को देखता रहा. अँधेरे में वह चेहरा चूने की तरह सफ़ेद नज़र आ रहा
था और बहुत सुन्दर लग रहा था. कुछ क्षणों पश्चात् रास्ते पर कोई भी जीवित व्यक्ति
नहीं रहा. निर्जीव शरीर हाथ पसारे पड़ा रहा. बायाँ पैर चाँद की रोशनी में था, जिससे उसकी चप्पल
का रहबन्द साफ़ दिखाई दे रहा था.
इस समय पूरा
गेफ़सिमान उद्यान पंछियों के गीतों से गूँज उठा.
जूडा को मारने
वाले दोनों हत्यारे कहाँ लुप्त हो गए, किसी को नहीं मालूम. मगर
तीसरे, टोपी वाले के
मार्ग के बारे में हम जानते हैं रास्ता छोड़कर वह ज़ैतून के वृक्षों के झुरमुट से
होता हुआ दक्षिण की ओर बढ़ा. प्रमुख द्वार से कुछ पहले वह उद्यान की दीवार फाँद गया; उसके दक्षिणी कोने
में, जहाँ बड़े-बड़े
पत्थर पड़े थे. शीघ्र ही वह केद्रोन के किनारे पहुँचा. फिर पानी में उतरकर कुछ देर
तक चलता रहा, जब तक कि उसे दो
घोड़ों के साथ एक आदमी नहीं दिखाई दिया. घोड़े भी प्रवाह में ही खड़े थे. पानी उनके
पैर धोते हुए बह रहा था. साईस एक घोड़े पर बैठा और टोपी वाला उछलकर दूसरे पर बैठ
गया और वे धीरे-धीरे प्रवाह में ही चलते रहे. घोड़ों के खुरों के नीचे पत्थरों के
चरमराने की आवाज़ आ रही थी. फिर घुड़सवार पानी से बाहर आए, येरूशलम के किनारे
पर आए और शहर की दीवार के साथ-साथ चलते रहे. यहाँ साईस अलग हो गया और घोड़े को एड़
लगाकर आँखों से ओझल हो गया. टोपी वाला घोड़ा रोककर नीचे उतरा और उस निर्जन रास्ते पर
उसने अपना कोट उतारा और उसे उलट दिया; कोट के नीचे से उसने एक
चपटा, बिना परों वाला
शिरस्त्राण निकाल कर पहन लिया. अब घोड़े पर उछल कर सवार हुआ, फौजी वेष में, कमर में तलवार
लटकाए एक सैनिक. उसने रास खींची और फ़ौजी टुकड़ी का जोशीला घोड़ा तीर की तरह सवार को
चिपकाए भागा. अब रास्ता थोड़ा सा ही था – घुड़सवार येरूशलम
के दक्षिणी द्वार की ओर बढ़ रहा था.
प्रवेश द्वार की
कमान पर मशालों की परेशान रोशनी नाच रही थी. बिजली की गति वाली दूसरी अंगरक्षक
टुकड़ी के सिपाही पत्थर की बेंचों पर बैठे चौपड़ खेल रहे थे. तीर की तरह आते फ़ौजी को
देखते ही वे अपनी-अपनी जगहों से उछल पड़े, फ़ौजी ने उनकी ओर हाथ
हिलाया और शहर में घुस गया.
शहर त्यौहार की
चकाचौंध में डूबा था. सभी खिड़कियों में रोशनी खेल रही थी. चारों ओर से प्रार्थनाएँ
गूँज रही थीं. बाहर खुलती खिड़कियों में देखते हुए घुड़सवार कभी-कभी लोगों को पकवानों से सजी खाने की मेज़ पर देख
सकता था. पकवानों में था बकरी का माँस, शराब के प्याले और
कड़वी घास वाली कुछ और चीज़ें. सीटी पर कोई शांत गीत गुनगुनाते हुए घुड़सवार धीमी चाल
से निचले शहर की खाली सड़कों पर चलते-चलते अंतोनियो की मीनार की ओर बढ़ा, कभी मन्दिर के ऊपर
के उन पंचकोणी दीपों की ओर देखते हुए, जैसे दुनिया में और कहीं
नहीं थे; या फिर चाँद को
देखते हुए, जो इन पंचकोणी
दीपों के ऊपर लटक रहा था.
पिलात बड़ी उत्सुकता से जूडा की हत्या के विवरण
का इंतज़ार कर रहा है. जब अफ्रानी उसे सूचित करता है कि वह जूडा को बचा नहीं सका और
जूडा को मार डाला गया है. पिलात जानना चाहता है कि जूडा को कितने पैसे दिए गए थे;
और यह भी कि क्या वह पैसा कैफ़ को वापस लौटा दिया गया है. उसे यह बताया जाता है कि जूडा
को तीस टेट्राडाख्मा मिले थे, यह भी बताया जाता है कि उसे कहाँ पर मारा गया होगा:
अफ्रानी ने हौले से
कहा, “मैं
यह बात सोच भी नहीं सकता कि जूडा शहर की सीमा में, चहल-पहल में किसी सन्देहास्पद
व्यक्तियों के हाथों में पड़ेगा. सड़क पर छिपकर मारना सम्भव नहीं है. इसका मतलब है, उसे फुसलाकर किसी तहख़ाने में ले जाया
गया. मगर मेरे सैनिकों ने उसे निचले शहर में ढूँढ़ा, और ढूँढ़ ही लिया होता. मगर वह शहर में
नहीं है, इस बात की मैं हामी देता हूँ. अगर उसे शहर से दूर मारा जाता तो
पैसों वाली यह थैली इतनी जल्दी धर्मगुरू के घर नहीं फेंकी जाती. वह शहर के नज़दीक
ही मारा गया है. उसे शहर से बाहर ले जाने में वे कामयाब हो गए.”
“मैं समझ नहीं पा रहा, यह कैसे हुआ होगा.”
“हाँ, न्यायाधीश, पूरी घटना में यही सबसे कठिन प्रश्न
है और मैं नहीं जानता कि मैं उसे सुलझा सकूँगा या नहीं.”
“सचमुच, पहेली ही है! त्यौहार की रात को, एक ईश्वर में विश्वास रखने वाला
प्रार्थना और दावत को छोड़कर न जाने क्यों शहर से बाहर जाता है, और वहाँ ख़त्म हो जाता है. उसे कौन, कैसे फुसला सका? कहीं यह किसी औरत का काम तो नहीं है?” न्यायाधीश ने अचानक जोश से पूछ लिया.
अफ्रानी ने शांति से ज़ोर देते हुए कहा,
“किसी हालत में नहीं, न्यायाधीश. यह सम्भावना तो है ही नहीं.
ज़रा तर्कसंगत ढँग से देखिए. जूडा को मारने में किसे दिलचस्पी थी? कोई आवारा स्वप्नदर्शी ही हो सकता है, कोई ऐसा समूह, जिसमें कोई औरत थी ही नहीं शादी करने
के न्यायाधीश, चाहिए; मानव को पृथ्वी पर लाने के लिए उनकी
ज़रूरत है; मगर एक औरत की सहायता से किसी आदमी की करने के लिएतो बहुत सारे
धन की आवश्यकता होती है, और किसी भी घुमक्कड़ के पास इतना धन
नहीं है. इस काम में औरत थी ही नहीं, न्यायाधीश, मैं तो यह भी कहूँगा कि इस दिशा में
सोचने से मैं दिशा में चलकर भूलभुलैया में पड़ जाऊँगा.”
“मैं देख रहा हूँ कि आप एकदम सही हैं, अफ्रानी,” पिलात ने कहा,
“मैं तो सिर्फ मन की बात कह रहा था.”
“मगर, अफ़सोस, यह बात गलत है, न्यायाधीश.”
“तो फिर, तो फिर क्या...?” न्यायाधीश उत्सुकतावश अफ्रानी के चेहरे की
ओर देखते हुए चहका.
“मैं समझता हूँ कि वही धन ही इसका कारण
है.”
“बहुत अच्छा ख़याल है! मगर शहर के बाहर
रात को उसे किसने पैसे देने की बात कही होगी?”
“ओह नहीं, न्यायाधीश, ऐसा नहीं है. मेरा सिर्फ एक ही
निष्कर्ष है और यदि वह गलत है तो और कोई निष्कर्ष मैं नहीं निकाल सकता,” न्यायाधीश के निकट झुककर फुसफुसाया,
“जूडा अपने धन को किसी सुनसान जगह पर
छिपाना चाहता था, जिससे सिर्फ वही परिचित था.”
“बहुत बारीकी से समझा रहे हैं. शायद
ऐसा ही हुआ होगा. अब समझ रहा हूँ: उसे लोगों ने नहीं, अपने ही ख़यालों ने फुसलाया. हाँ, ऐसा ही है.”
..................
“हाँ,
मैं पूछना भूल गया...”न्यायाधीश ने माथा
पोंछते हुए कहा, “उन्होंने कैफ का पैसा वापस कैसे फेंका?”
“देखिए, न्यायाधीश...यह
इतना कठिन नहीं है. बदला लेने वाले कैफ के महल के पिछवाड़े गए, जहाँ से एक गली निकलती है. वहीं उन्होंने चारदीवारी के ऊपर से थैली फेंक
दी.”
“चिट्ठी के साथ?”
“हाँ, ठीक वैसा ही जैसा आपने कहा था, न्यायाधीश. हाँ, देखिए,” अफ्रानी
ने थैली पर लगी मुहर तोड़कर उसके अन्दर की चीज़ें पिलात को दिखाईं.
................
मेरे इस
प्रश्न के जवाब में कि कैफ के महल से किसी को पैसा तो नहीं दिया गया, उन्होंने दृढ़ता से कहा कि ऐसा नहीं हुआ."
“ओह, यह बात है? हो सकता है,
जब कह रहे हैं कि नहीं दिया, तो शायद नहीं
दिया होगा. तब तो हत्यारों को ढूँढ़ना और भी मुश्किल हो जाएगा.”
“बिल्कुल ठीक कहते हैं, न्यायाधीश.”
“हाँ, अफ्रानी, अचानक मुझे ख़याल
आया कि कहीं उसने आत्महत्या तो नहीं की?”
“ओह, नहीं, न्यायाधीश!” विस्मय से कुर्सी की पीठ से टिकते हुए अफ्रानी ने जवाब दिया, “माफ कीजिए, मगर यह बिल्कुल असम्भव है!”
“आह, इस शहर में सब सम्भव है! मैं बहस करने के लिए
तैयार हूँ कि कुछ देर बाद यह अफ़वाह पूरे शहर में फैल जाएगी.”
अब
अफ्रानी ने अपनी विशिष्ट नज़र से न्यायाधीश की ओर देखा और सोच कर बोला, “यह तो हो सकता है, न्यायाधीश.”
अफ्रानी समझ गया था कि जूडा की मृत्यु के
कारण का कैसा प्रचार करना चाहिए.
और इस तरह बुल्गाकोव पाठकों को जूडा की मृत्यु
के पवित्र बाइबल में दिए गए वर्णन पर ले आते हैं.
इसके
बाद अफ्रानी तीनों अभियुक्तों को दफ़नाने का विवरण देता है. वह कहता है कि लेवी
मैथ्यू येशुआ के शरीर को उठाकर एक गुफ़ा में ले गया था और उसे छोड़ने को तैयार ही
नहीं था. उसे यक़ीन दिलाया गया कि येशुआ को विधिपूर्वक दफ़नाया जाएगा, तब जाकर अंतिम
संस्कार पूरा हुआ.
पिलात
लेवी मैथ्यू से मिलता है और उनके बीच यह बातचीत होती है:
“क्या बात है?” पिलात ने उससे पूछा.
“कुछ नहीं,” लेवी मैथ्यू ने जवाब दिया और ऐसी मुद्रा
बना ली मानो कुछ निगल रहा हो. उसकी कमज़ोर, नंगी, गन्दी गर्दन कुछ फूलकर फिर सामान्य हो गई.
“तुम्हें हुआ क्या है, जवाब दो,” पिलात ने दुहराया. “मैं थक गया हूँ,” लेवी ने जवाब दिया और निराशा असे फर्श की ओर देखने लगा.
“बैठो,” पिलात ने उसे विनती के भाव से देखकर कुर्सी
की ओर इशारा कर दिया.
लेवी ने
अविश्वास से पिलात की ओर देखा, वह कुर्सी की तरफ बढ़ा. डरते-डरते उसने सुनहरे हत्थों को छुआ और फिर
कुर्सी के बजाय उसके निकट ही फर्श पर बैठ गया.
“बताओ, तुम कुर्सी पर क्यों नहीं बैठे?” पिलात ने पूछा.
“मैं गन्दा हूँ, मेरे बैठने से कुर्सी गन्दी हो
जाएगी.” लेवी ने ज़मीन की ओर देखते हुए जवाब दिया.
“अभी तुम्हें कुछ खाने को देंगे.”
“मैं खाना नहीं चाहता,” लेवी ने जवाब दिया.
“झूठ क्यों बोलते हो?” पिलात ने शांतिपूर्वक पूछा,
“तुमने पूरे दिन कुछ नहीं खाया है, शायद और भी
ज़्यादा. ठीक है, मत खाओ. मैंने तुम्हें इसलिए बुलाया कि
तुम्हारा चाकू देख सकूँ.”
“जब मुझे यहाँ ला रहे थे तो सिपाहियों ने उसे छीन लिया.” लेवी ने जवाब देकर निराशापूर्वक कहा, “आप मुझे वह
वापस दे दीजिए. मुझे उसे उसके मालिक को लौटाना है. मैंने उसे चुराया था.”
“किसलिए?”
“ताकि रस्सियाँ काट सकूँ,” लेवी ने जवाब दिया.
“मार्क!” न्यायाधीश चीखा, और
सेनाध्यक्ष स्तम्भों के नीचे प्रकट हुआ, “इसका चाकू मुझे दो.”
सेनाध्यक्ष
ने कमर में बँधी दो म्यानों में से एक से गन्दा ब्रेड काटने वाला चाकू निकाला और
न्यायाधीश को दे दिया, और स्वयँ दूर हट गया.
“चाकू लिया कहाँ से था?”
“खेव्रोन्स्की दरवाज़े के पास वाली ब्रेड की दुकान से, जैसे ही शहर में दाखिल होते हैं...दाहिनी
ओर...”
पिलात
ने चौड़े फल की ओर देखा. उँगली से उसकी धार आज़माई, न जाने क्यों, और कहा,
“चाकू की फिक्र मत करो, वह दुकान में लौटा
दिया जाएगा. अब मुझे दूसरी बात बताओ: मुझे तुम वह बस्ता दिखाओ जिसे तुम साथ लिए
घूमते हो, और जिस पर येशू के शब्द लिखे हैं!”
लेवी ने
घृणा से पिलात की ओर देखा और इतनी कड़वाहट से मुस्कुराया कि उसका चेहरा विकृत हो
गया.
“सब कुछ छीन लोगे? उसकी आख़िरी निशानी भी, जो मेरे पास है?” उसने पूछा.
“मैंने तुमसे यह नहीं कहा कि ‘दो!’, पिलात ने उत्तर दिया, “मैंने कहा, ‘दिखाओ!’”
लेवी ने
अपने झोले में हाथ डाला और ताड़पत्र का एक टुकड़ा निकाला. पिलात ने उसे लिया, खोला, लौ के सामने रखा
और आँखें सिकोड़कर आड़े-तिरछे स्याही के निशानों को समझने की कोशिश करने लगा. इन
बल खाती रेखाओं को समझना कठिन था, और पिलात आँखें सिकोड़े
ताड़पत्र पर झुककर रेखाओं पर उँगली फिराने लगा. आख़िरकार वह समझ गया कि ताड़पत्र
किन्हीं विचारों की, कहावतों की, किन्हीं
तिथियों की, कुछ निष्कर्षों की, कविताओं
की असम्बद्ध लड़ी है. कुछेक पिलात पढ़ पाया: ‘मृत्यु
नहीं...कल हमने मीठे बसंती खजूर खाए...’तनाव से चेहरा विकृत
बनाते हुए पिलात ने आँखें सिकोड़कर आगे पढ़ा: ‘हम जीवन की
स्वच्छ नदी देखेंगे...मानवता पारदर्शी काँच से सूरज देखेगी...’
यहाँ
पिलात काँप गया. ताड़पत्र की अंतिम पंक्तियों में उसने पढ़ा: ‘...महान पाप...कायरता.’पिलात
ने ताड़पत्र लपेट दिया और झटके से लेवी की ओर बढ़ा दिया.
“लो,” उसने कहा और कुछ देर चुप रहकर आगे बोला,
“जैसा कि मैं देख रहा हूँ, तुम पढ़े-लिखे
मालूम होते हो. तुम्हें बिना घर के, फटे चीथड़ों में घूमने
की कोई ज़रूरत नहीं है. केसारिया में मेरा एक बहुत बड़ा वाचनालय है, मैं बहुत अमीर हूँ, और तुम्हारी सेवाएँ लेना चाहता
हूँ. तुम पुराने लेखों को पढ़ोगे, समझाओगे और सम्भालकर
रखोगे. खाने-पहनने की कमी न होगी.”
लेवी
उठकर खड़ा हो गया और बोला, “नहीं, मैं नहीं जाना चाहता.”
“क्यों?” न्यायाधीश ने पूछा. उसका चेहरा स्याह पड़
गया था, “तुम मुझसे नफ़रत करते हो? मुझसे
डरते हो?”
वही
कड़वी हँसी लेवी के मुख पर छा गई. वह बोला,
“नहीं, क्योंकि तुम मुझसे डरते रहोगे. उसे मार
डालने के बाद मेरी ओर देखना तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा.”
“चुप रहो,” पिलात ने कहा, “पैसे
ले लो.”
लेवी ने
इनकार करते हुए सिर हिलाया.
न्यायाधीश
ने फिर कहा, “मैं
जानता हूँ, तुम अपने आपको येशू का शिष्य समझते हो. मगर मैं
तुमसे कहता हूँ, कि उसकी शिक्षा को तुम ज़रा भी नहीं समझ
पाए. अगर ऐसा होता तो तुम मुझसे ज़रूर कुछ न कुछ ले लेते. याद करो, मरने से पहले उसने क्या कहा था – कि वह किसी पर भी
दोष नहीं लगा रहा है,” पिलात ने अर्थपूर्ण ढंग से उँगली ऊपर
उठाई, उसका चेहरा थरथराने लगा, “और वह
स्वयँ भी कुछ न कुछ ज़रूर ले लेता. तुम बहुत कठोर हो, मगर वह
कठोर नहीं था. तुम जाओगे कहाँ?”
लेवी
अचानक मेज़ के नज़दीक आ गया. उस पर दोनों हाथ जमाकर खड़ा हो गया और जलती हुई आँखों
से न्यायाधीश की ओर देखकर फुसफुसाया,
“न्यायाधीश, तुम जान लो कि मैं येरूशलम में एक
आदमी की हत्या करने वाला हूँ. मैं तुम्हें यह इसलिए बता रहा हूँ, ताकि तुम जान लो कि खून की नदियाँ अभी और बहेंगी.”
“मुझे भी मालूम है, कि बहेंगी,” पिलात ने जवाब दिया, “तुमने अपनी बात से मुझे ज़रा
भी विस्मित नहीं किया. बेशक तुम मुझे ही मारना चाहते हो?”
“तुम्हें मारना मेरे लिए सम्भव न होगा,” लेवी ने जवाब
दिया. दाँत पीसकर मुस्कुराते हुए वह आगे बोला, “मैं इतना
बेवकूफ नहीं हूँ कि मैं यह भी अपने मन में लाऊँ, मगर मैं
किरियाफ के जूडा के टुकड़े कर दूँगा, मेरा शेष जीवन इसी
कार्य को समर्पित होगा.”
न्यायाधीश
की आँखों में संतोषभरी चमक दिखाई दी,
और उसने उँगली के इशारे से लेवी मैथ्यू को अपने और नज़दीक बुलाते
हुए कहा, “यह तुम नहीं कर पाओगे, तुम
इसके लिए परेशान भी न होना. जूडा को आज ही रात को मार डाला गया है.”
लेवी
उछल पड़ा. वहशीपन से देखते हुए वह चीख पड़ा,
“किसने किया है यह?”
“जलो मत, “दाँत दिखाते हुए पिलात ने जवाब दिया और
उसने अपने हाथ मले, “मुझे डर है, कि
तुम्हारे अलावा भी उसके कई और प्रशंसक थे.”
“यह किसने किया है?” लेवी ने फुसफुसाकर अपना सवाल
दुहराया.पिलात ने उसे जवाब दिया, “यह मैंने किया है.”
लेवी का
मुँह खुला रह गया. उसने वहशीपन से न्यायाधीश की ओर देखा. पिलात ने कहा, “यह जो कुछ भी मैंने किया, बहुत कम है, मगर किया है यह मैंने...” और आगे बोला, “तो, अब कुछ लोगे
या नहीं?”
लेवी ने
कुछ सोचकर नरम पड़ते हुए कहा, “मुझे कुछ कोरे ताड़पत्र दो.” एक घण्टा बीता. लेवी
महल में नहीं था. अब उषःकालीन स्तब्धता को केवल पहरेदार के कदमों की आवाज़ ही भंग
कर रही थी. चाँद शीघ्रता से बेरंग होता जा रहा था, आकाश के
दूसरे छोर पर सुबह का तारा चमक रहा था. दीप कभी के बुझ चुके थे. बिस्तर पर लेटा
न्यायाधीश एक हाथ गाल के नीचे रखकर गहरी नींद सोया था, बेआवाज़
साँसें ले रहा था. उसके निकट सोया था बांगा.
इस तरह
निसान माह की पन्द्रहवीं तिथि की सुबह का स्वागत किया जूडिया के पाँचवें न्यायाधीश
पोंती पिलात ने.
...................
उस
स्थान के वर्णन पर गौर कीजिए जहाँ जूडा और अफ्रानी को घूमते हुए दिखाया गया है, इससे हमारी पहेली हल हो जाएगी:
मीनार
के पास से गुज़रते हुए जूडा ने मुड़कर देखा कि मन्दिर की डरावनी ऊँचाई पर दो
पंचकोणीय दीप जल उठे हैं. मगर जूडा को वे भी धुँधले ही नज़र आए. उसे यूँ लगा जैसे
येरूशलम के ऊपर दस अतिविशाल दीप जल उठे थे,
जो येरूशलम पर सबसे ऊपर चमकते दीप – चाँद से प्रतिस्पर्धा कर रहे थे.
........
....चलते-चलते
अंतोनियो की मीनार की ओर बढ़ा, कभी मन्दिर के ऊपर के उन पंचकोणी
दीपों की ओर देखते हुए, जैसे दुनिया में और कहीं
नहीं थे; या फिर चाँद को देखते हुए, जो इन पंचकोणी दीपों के ऊपर लटक रहा था.
अंतोनियो की पंचकोणी दीपों वाली मीनार कुछ और नहीं बल्कि क्रेमलिन की
पंचकोणी सितारों वाली मीनारें हैं. मतलब यह हुआ कि कथानक येरूशलम में नहीं
अपितु मॉस्को में घटित हो रहा है; येरूशलम मन्दिर की मीनार पर सात मोमबत्तियाँ
हैं, न कि पाँच.
मतलब, येशुआ
वास्तविक येशू नहीं बल्कि एक सामान्य विचारक है रूस की बीसवीं सदी के तीसरे दशक
में, और जूडा, कोई भी बेईमान व्यक्ति, जो बुद्धिजीवियों की झूठी चुगलियाँ करता है
पैसे की ख़ातिर, अपने लाभ की ख़ातिर.
पिलात कौन है?
बुल्गाकोव उसका वर्णन करते हैं भविष्यवेत्ता सम्राट (सम्राट – रूसी में ‘कोरोल’;
जर्मन में ‘कार्ल’ – कार्ल मार्क्स?) और मिलवाले की सुन्दरी पुत्री पिला (रूसी
शब्द पिला – आरी- एक मज़दूर का द्योतक). के पुत्र के रूप में. अर्थात पिलात समन्वय
है कम्युनिज़्म और सर्वहारा वर्ग का – डिक्टेटरशिप ऑफ प्रोलेटेरिएट. कैफ़ को
कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रतिनिधि माना जा सकता है.
अर्थात् ये जो संघर्ष चल रहा था वह था बुद्धिजीवी वर्ग, सामान्य आदमी; सर्वहारा वर्ग की डिक्टेटरशिप और कम्युनिस्ट
विचारधारा के बीच, जो एक दूसरे को पसन्द
नहीं करते, हर कोई अपना अपना श्रेष्ठत्व सिद्ध करना चाह्ता है. सीज़र दर्शाता है स्टालिन को जो इन सबके ऊपर है.
तो,
येशुआ – पोंती पिलात का प्रसंग इन तीनों के बीच के तत्कालीन संघर्ष
को प्रदर्शित करता है. बुल्गाकोव खुल्लम खुल्ला इस बारे में लिख नहीं सकते थे
इसलिए उन्हें बाइबल के कथानक का सहारा लेना पड़ा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.