मास्टर और मार्गारीटा – 06.1
छह
उन्माद, यही बताया गया
जब मॉस्को के बाहर, नदी के किनारे स्थित हाल ही में बनाए गए प्रख्यात मानसिक रुग्णालय के अतिथि-कक्ष में सफ़ेद कोट पहने तीखी दाढ़ी वाला एक व्यक्ति दाख़िल हुआ, तब रात का डेढ़ बज रहा था. तीन स्वास्थ्य कर्मचारी सोफ़े पर बैठे हुए इवान निकोलायेविच पर से दृष्टि नहीं हटा रहे थे. वहीं, बहुत परेशान कवि र्यूखिन भी था. जिन तौलियों से इवान निकोलायेविच को बाँधा गया था, वे अब उसी सोफ़े पर एक ढेर में पड़े थे. इवान निकोलायेविच के हाथ और पैर अब मुक्त थे.
अन्दर आने वाले व्यक्ति को देखते ही र्यूखिन का चेहरा पीला पड़ गया. वह खाँसा और नम्रता से बोला, “नमस्ते डॉक्टर!”
डॉक्टर ने झुककर र्यूखिन के अभिवादन का उत्तर दिया, मगर झुकते समय वह उसकी ओर न देखकर इवान निकोलायेविच की तरफ़ देख रहा था.
वह बिना हिले-डुले बैठा था, बुरा-सा मुँह बनाए, भौंहे ताने. डॉक्टर के आने पर भी ज़रा हिला तक नहीं.
“डॉक्टर, यह...न जाने क्यों...” भयभीत दृष्टि से इवान निकोलायेविच की ओर देखकर रहस्यमय ढंग से र्यूखिन फुसफुसाया, “प्रसिद्ध कवि इवान बेज़्दोम्नी...आप देख रहे हैं न...हमें डर है कि कहीं सफ़ेद बुखार न हो!”
“क्या बहुत पी ली?” डॉक्टर ने दाँतों को बिना हिलाए पूछा.
“नहीं, पी है, मगर इतनी नहीं कि एकदम...”
“कहीं तिलचट्टे, चूहे, शैतान, भागे हुए कुत्ते तो नहीं पकड़ रहे थे?”
“नहीं,” काँपते हुए र्यूखिन ने जवाब दिया, “मैंने इन्हें कल देखा था और आज सुबह. बिल्कुल स्वस्थ थे...”
“फिर कच्छे में क्यों हैं? क्या सीधे बिस्तर से उठाकर लाए हैं?”
“डॉक्टर, वह रेस्तराँ में इसी वेष में पहुँचे थे.”
“अहा, अहा!” बड़े संतुष्ट भाव से डॉक्टर बोला, “यह चोट के निशान क्यों हैं? क्या किसी से झगड़ पड़े थे?”
“वह जाली फाँदते हुए गिर पड़े, फिर रेस्तराँ में एक व्यक्ति को मारा भी...और भी किसी को...”
“अच्छा, अच्छा, अच्छा,” डॉक्टर ने कहा और मुड़कर इवान की ओर देखकर आगे बोला, “नमस्ते!”
“स्वस्थ रहो, शत्रु!” क्रोध से इवान ज़ोर से बोला.
र्यूखिन घबरा गया. उसने आँखें उठाकर सज्जन डॉक्टर की ओर देखने की हिम्मत नहीं की. मगर डॉक्टर ने ज़रा भी बुरा नहीं माना, बल्कि आदत के अनुसार सहज भाव से चष्मा उतारा, उसे अपने कोट के अगले पल्ले को उठाकर पैंट की पिछली जेब में खोंसा और फिर इवान से पूछा, “आपकी उम्र क्या है?”
“तुम सब मुझसे दूर हटो, जहन्नुम में जाओ, सचमुच जहन्नुम में जाओ!” इवान रूखेपन से चिल्लाया और उसने मुँह फेर लिया.
“आप गुस्सा क्यों होते हैं? क्या मैंने आपसे कोई अप्रिय बात कह दी?”
“मेरी उम्र तेईस वर्ष है,” तैश में आकर इवान बोला, “और मैं आप सबकी शिकायत करूँगा, और जूँ के अण्डे, तुम्हें तो मैं अच्छी तरह देख लूँगा!” उसने र्यूखिन से अलग से कहा.
“आप किस बात की शिकायत करेंगे?”
“यही कि आप सब, मुझको, एक स्वस्थ आदमी को ज़बर्दस्ती पागलखाने ले आए है!” इवान ने क्रोधित होकर कहा.
अब र्यूखिन ने इवान को ग़ौर से देखा. उसके हाथ-पैर ठण्डे पड़ गए : सचमुच, उसकी आँखों में पागलपन के कोई लक्षण नहीं थे. अब वे धुँधली के स्थान पर, जैसी कि ग्रिबोयेदव में थीं, पूर्ववत स्पष्ट पारदर्शी दिखाई देने लगी थीं.
‘बाप रे!’ घबराहट से र्यूखिन ने सोचा, ‘हाँ, यह तो बिल्कुल सामान्य है? ओह, क्या गड़बड़ हो गई! हम उसे, सचमुच, यहाँ क्यों घसीट लाए हैं? सामान्य है, एकदम सामान्य, सिर्फ कुछ खरोंचें हैं...’
“आप इस समय...” चमचमाते हुए स्टूल पर बैठते हुए डॉक्टर ने शांतिपूर्वक कहा, “पागलखाने में नहीं, बल्कि चिकित्सालय में हैं, जहाँ आवश्यकता न होने पर कोई भी आपको ज़बर्दस्ती रोककर नहीं रख सकता.”
इवान निकोलायेविच ने अविश्वास से उसे देखा, मगर फिर भी बड़बड़ाता रहा.
“भगवान उनका भला करें. बेवकूफ़ों की भीड़ में एक सामान्य व्यक्ति तो मिला, उन बेवकूफ़ों में से पहला है मूढ़ और प्रतिभाशून्य साश्का!”
“यह साश्का प्रतिभाशून कौन है?” डॉक्टर ने जानना चाहा.
“यही र्यूखिन!” इवान ने अपनी गन्दी उँगली से र्यूखिन की ओर इशारा करते हुए कहा.
वह अपमान से फट पड़ा.
‘यह इनाम है मेरा, धन्यवाद के स्थान पर!’ उसने कड़वाहट से सोचा, ‘इसलिए कि मैंने इस सबमें हिस्सा लिया! यह सब वास्तव में उलझन वाली स्थिति है!’
“इसकी मानसिकता एकदम कुलाकों जैसी है,” इवान निकोलायेविच ने आगे कहा, जिसे र्यूखिन का भंडाफोड़ करने की धुन सवार थी, “ऐसा कुलाक, जिसने सर्वहारा वर्ग का नक़ाब पहन रखा है. इसके मरियल जिस्म को देखिए और उसे इसकी खनखनाती कविता से मिलाइए जो इसने पहली मई के उपलक्ष्य में लिखी थी : हा...हा...हा... ‘ऊँचे उठो!’ और ‘बिखर जाओ!’...और आप इसकी अंतरात्मा में झाँककर देखिए, वह क्या सोच रहा है...और आप चौंक पड़ेंगे!” इवान निकोलायेविच भयंकर हँसी हँसा.
र्यूखिन गहरी साँसें ले रहा था. उसका चेहरा लाल हो गया था. वह सिर्फ एक ही बात सोच रहा था – उसने आप ही नाग को अपने सीने पर बुला लिया है, कि उसने उस व्यक्ति के मामले में टाँग अड़ाई है जो उसका कट्टर शत्रु साबित हुआ है. रोना तो इस बात का था कि अब कुछ किया भी नहीं जा सकता था : पागल के ऊपर कौन गुस्सा कर सकता है?
“सिर्फ आप ही को यहाँ, हमारे पास, क्यों लाया गया?” डॉक्टर ने बेज़्दोम्नी के आरोप ध्यान से सुनने के बाद पूछा.
“भाड में जाएँ वे मूर्ख! मुझे दबोच लिया, किन्हीं चिन्धियों से बाँध दिया और ट्रक में पटक दिया!”
“कृपया यह बताइए कि आप सिर्फ कच्छा पहनकर रेस्तराँ क्यों गए थे?”
“इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है,” इवान ने उत्तर दिया, “मैं मस्क्वा नदी में तैरने के लिए कूदा, और किसी ने मेरे कपड़े चुरा लिए, सिर्फ यही कच्छा छोड़ दिया. अब मैं मॉस्को में निर्वस्त्र तो नहीं ना घूम सकता? जो था, वही पहन लिया, क्योंकि मुझे ग्रिबोयेदव के रेस्तराँ में पहुँचने की जल्दी थी.”
डॉक्टर ने प्रश्नार्थक दृष्टि से र्यूखिन की ओर देखा. उसने नाक-भौंह चढ़ाकर उत्तर दिया, “रेस्तराँ का नाम यही है.”
“अहा,” डॉक्टर बोला, “और आपको इतनी जल्दी किस बात की थी? कोई ज़रूरी मीटिंग थी?”
“मैं उस सलाहकार को पकड़ रहा हूँ,” इवान निकोलायेविच ने उत्तर देकर बेचैनी से इधर-उधर देखा.
“किस सलाहकार को?”
“आप बेर्लिओज़ को जानते हैं?” इवान ने अर्थपूर्ण दृष्टि से पूछा.
“वह...संगीतज्ञ?”
इवान को गुस्सा आ गया.
“कहाँ का संगीतज्ञ? ओह, हाँ, हाँ, नहीं. संगीतज्ञ मीशा बेर्लिओज़ का हमनाम है.
र्यूखिन कुछ भी बोलना नहीं चाह रहा था, मगर उसे डॉक्टर को समझाना ही पड़ा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.