मास्टर और मार्गारीटा – 07.1
बुरा मकान
अगर अगली सुबह स्त्योपा लिखोदेयेव से कोई कहता कि, “स्त्योपा! अगर तुम इसी वक़्त नहीं उठे तो तुम्हें गोली मार दी जाएगी!” तो स्त्योपा अपनी भारी, मुश्किल से सुनाई पड़ने वाली आवाज़ में कहता, “मार दो, मेरे साथ जो जी में आए कर लो, मगर मैं उठूँगा नहीं!”
बात यह नहीं कि वह उठना नहीं चाहता था - उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि वह आँखें ही नहीं खोल सकता, क्योंकि जैसे ही वह ऐसा करेगा, एक बिजली सी टूट पड़ेगी जो उसके सिर के टुकड़े-टुकड़े कर देगी. इस मस्तक में भारी-भारी घण्टे बज रहे थे. आँखों की पुतलियों और बन्द पलकों के बीच सुनहरी हरी किनारी वाले कत्थई शोले तैर रहे थे. उसका जी मिचला रहा था, मगर यह भी समझ में आ रहा था कि इस मिचली का सम्बन्ध एक भद्दे, बेसुरे ग्रामोफोन से आती हुई आवाज़ से था.
स्त्योपा ने कुछ याद करने की कोशिश की, मगर उसे सिर्फ एक ही बात याद आई कि शायद कल, न जाने कहाँ, वह हाथ में रुमाल पकड़े खड़ा था और किसी स्त्री का चुम्बन लेने की कोशिश कर रहा था, जिसके बाद उसने उस महिला से वादा किया कि अगले दिन ठीक दोपहर को वह उसके घर आएगा. महिला ने इनकार करते हुए कहा : “नहीं, नहीं, मैं घर पर नहीं रहूँगी!” मगर स्त्योपा अपनी ही ज़िद पर अड़ा रहा : “कुछ भी कहो, मगर मैं तो आऊँगा ही!”
वह महिला कौन थी? इस वक़्त कितने बजे हैं? कौन सी तारीख है? कौन सा महीना है? स्त्योपा निश्चयपूर्वक नहीं जानता था और सबसे बुरी बात यह थी कि वह यह भी नहीं समझ पा रहा था कि इस वक़्त वह कहाँ है! उसने कम से कम आख़िरी गुत्थी को सुलझाने की दृष्टि से बाईं आँख की चिपकी हुई पलक को खोलने की कोशिश की. धुँधलके में कोई चीज़ मद्धिम रोशनी में चमक रही थी. आख़िरकार स्त्योपा ने आईने को पहचान लिया और वह समझ गया कि वह अपने पलंग पर, यानी कि भूतपूर्व जौहरी के पलंग पर पड़ा है. पलक खोलते ही सिर पर मानो हथौड़े पड़ने लगे, और उसने कराह कर जल्दी से आँख बन्द कर ली.
चलिए, हम समझा देते हैं: स्त्योपा लिखोदेयेव, वेराइटी थियेटर का डाइरेक्टर सुबह अपने उसी क्वार्टर में उठा, जिसमें वह मृतक बेर्लिओज़ के साथ रहता था. यह क्वार्टर सादोवाया रास्ते पर छहमंज़िली U आकार की इमारत में था.
यहाँ यह बताना उचित होगा कि यह क्वार्टर, 50 नम्बर वाला, बदनाम तो नहीं, मगर फिर भी विचित्र रूप से चर्चित था. दो वर्ष पहले तक इसकी मालकिन जौहरी दे फुझेर की विधवा थी. पचास वर्षीय अन्ना फ्रांत्सेव्ना दे फुझेर ने, जो बड़ी फुर्तीली और आदरणीय महिला थी, पाँच में से तीन कमरे किराए पर दे दिए थे. एक ऐसे व्यक्ति को जिसका कुलनाम, शायद, बेलामुत था; और एक अन्य व्यक्ति को जिसका कुलनाम खो गया था.
और पिछले दो सालों से इस घर में अजीब-अजीब घटनाएँ होनी शुरू हो गईं. इस घर से लोग बिना कोई सुराग छोड़े गायब होने लगे.
एक बार किसी छुट्टी के दिन घर में एक पुलिसवाला आया. उसने दूसरे किराएदार को (जिसका कुलनाम खो चुका था) बाहर ड्योढ़ीं पर बुलाया और कहा कि उसे एक मिनट के लिए किसी कागज़ पर दस्तखत करने के लिए पुलिस थाने बुलाया गया है. किराएदार ने अन्ना फ्रांत्सेव्ना की वफादार नौकरानी अनफीसा से कहा कि वह दस मिनट में लौट आएगा. इतना कहकर वह सफ़ेद दस्ताने पहने चुस्त-दुरुस्त पुलिसवाले के साथ चला गया. मगर वह न केवल दस मिनट बाद नहीं लौटा, बल्कि कभी भी नहीं लौटा. इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह हुई कि उसके साथ-साथ वह पुलिसवाला भी सदा के लिए लुप्त हो गया.
ईश्वर में विश्वास करने वाली, और स्पष्ट कहा जाए तो अंधविश्वासी, अनफीसा ने बेहद परेशान अन्ना फ्रांत्सेव्ना से साफ-साफ कहा, कि यह काला जादू है और वह अच्छी तरह जानती है कि किराएदार और पुलिसवाले को कौन घसीट कर ले गया है, मगर रात में उसका नाम नहीं लेना चाहती. मगर काला जादू यदि एक बार शुरू हो जाए तो फिर उसे किसी भी तरह रोका नहीं जा सकता. दूसरा, बिना कुलनाम का किराएदार, जहाँ तक याद पड़ता है, सोमवार को ग़ायब हुआ था, और बुधवार को बेलामुत को माने ज़मीन गड़प कर गई, मगर भिन्न परिस्थितियों में. सुबह आम दिनों की तरह उसे काम पर ले जाने वाली कार आई और ले गई, मगर न उसे और दिनों की तरह वापस लाई और न ही फिर कभी इस तरफ दिखाई दी.
बेलामुत की पत्नी का दु:ख और भय अवर्णनीय है. मगर, अफ़सोस, दोनों ही अधिक दिनों तक नहीं रहे. उसी शाम अनफीसा के साथ दाचा (शहर से बाहर बनाई गई समर क़ॉटेज) से, जहाँ कि अन्ना फ्रांत्सेव्ना जल्दबाजी में चली गई थी, लौटने पर उन्हें बेलामुत की पत्नी भी घर में नज़र नहीं आई. यह भी कम है : बेलामुत के दोनों कमरों के दरवाज़े भी सीलबन्द पाए गए.
किसी तरह दो दिन गुज़रे. तीसरे दिन अनिद्रा से ग्रस्त अन्ना फ्रांत्सेव्ना फिर से जल्दबाजी में दाचा चली गई...यह बताना पड़ेगा कि वह वापस नहीं लौटी.
अकेली रह गई अनफीसा. जी भर कर रो लेने के बाद रात को दो बजे सोई. उसके साथ आगे क्या हुआ, मालूम नहीं, लेकिन दूसरे क्वार्टरों में रहने वालों ने बताया कि क्वार्टर नं. 50 में जैसे सुबह तक बिजली जलती रही और खटखटाहट की आवाज़ें आती रहीं. सुबह पता चला कि अनफीसा भी नहीं है.
ग़ायब हुए लोगों के बारे में और इस शापित घर के बारे में इमारत के लोग कई तरह के किस्से कहते रहे, जैसे कि दुबली-पतली, ईश्वर भीरु अनफीसा एक थैले में अन्ना फ्रांत्सेव्ना के पच्चीस कीमती हीरे ले गई; कि दाचा के लकड़ियाँ रखने के कमरे में उसी तरह के कई हीरे और सोने की कई मुहरें पाई गईं, और भी इसी तरह के कई किस्से; मगर जो बात हमें मालूम नहीं, उसे दावे के साथ नहीं कहेंगे.
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