मास्टर और मार्गारीटा – 06.2
“मॉसोलित के सचिव बेर्लिओज़ को पत्रियार्शी के पास आज शाम को ट्रामगाड़ी ने कुचल दिया.”
“अगर तुम जानते नहीं हो, तो झूठ मत बोलो,” इवान र्यूखिन पर गरजा, “वहाँ तुम नहीं, बल्कि मैं था. उसने ज़बर्दस्ती ट्राम के नीचे उसका इंतज़ाम कर दिया.”
“धक्का दिया?”
“धक्का कैसा?” इस बेसिर पैर के प्रश्न से इवान फिर क्रोधित हो गया, “उस जैसे को तो धक्का देने की भी ज़रूरत नहीं है! वह ऐसे-ऐसे कारनामे कर सकता है, कि बस देखते ही रहो! वह पहले ही जानता था कि बेर्लिओज़ ट्राम के नीचे आने वाला है!”
आपके अलावा इस सलाहकार को किसी और ने भी देखा है?”
“यही तो मुसीबत है, सिर्फ मैंने और बेर्लिओज़ ने ही उसे देखा था.”
“अच्छा उस खूनी को पकड़ने के लिए आपने क्या उपाय किए?” डॉक्टर ने मुड़कर सफ़ेद एप्रन पहनी नर्स की ओर देखा जो एक कोने में मेज़ के पीछे बैठी थी. नर्स ने फॉर्म निकाला और वह ख़ाली स्थानों पर लिखने लगी.
“मैंने ये उपाय किए: रसोईघर से मोमबत्ती उठाई...”
“यह?” डॉक्टर ने टूटी हुई मोमबत्ती की ओर इशारा करते हुए पूछा, जो नर्स के सामने मेज़ पर ईसा की तस्वीर की बगल में पड़ी थी.
“यही, और...”
“और यह तस्वीर किसलिए?”
“अरे हाँ, ईसा की तस्वीर...” इवान का चेहरा लाल हो गया, “इस तस्वीर ने ही तो सबसे ज़्यादा डरा दिया,” उसने फिर र्यूखिन की ओर इशारा करते हुए कहा, “बात यह है, कि वह, सलाहकार, वह, मैं साफ-साफ कहूँगा...किन्हीं दुष्ट शक्तियों को जानता है...और उसे पकड़ा नहीं जा सकता.”
स्वास्थ्य परिचारक न जाने क्यों हाथ लटकाए खड़े थे और इवान पर से नज़र नहीं हटा रहे थे.
“हाँ...” इवान ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “ज़रूर जानता है! यह एक अटूट सत्य है, वह खुद पोंती पिलात से बातें कर चुका है. हाँ, मेरी ओर इस तरह देखने की कोई ज़रूरत नहीं है! मैं सत्य ही कह रहा हूँ! सब देख चुका है – बरामदा और चीड़ के पेड़...संक्षेप में यह कि वह पोंती पिलात के पास था, इस बात को मैं शपथपूर्वक कह सकता हूँ.”
“और, और कहिए...”
“तो, मैंने ईसा की तस्वीर को सीने से लगाया और भागने लगा...”
इसी समय घड़ी ने दो बार घंटे बजाए.
“एहे-हें!” इवान चहक कर बोला और सोफे पर से उठ खड़ा हुआ, “दो बज गए और मैं आपके साथ समय नष्ट कर रहा हूँ. मैं माफी चाहता हूँ, टेलिफोन कहाँ है?”
“टेलिफोन दिखाओ.” डॉक्टर ने परिचारकों को आज्ञा दी.
इवान ने टेलिफोन का रिसीवर उठाया और महिला परिचारिका ने हौले से र्यूखिन से पूछा, “क्या यह शादी-शुदा है?”
“कुँवारा!” र्यूखिन ने घबराकर उत्तर दिया.
“प्रोफसयूज़ (व्यावसायिक संघ) का सदस्य?
“हाँ, है.”
“पुलिस?” इवान टेलिफोन पर चिल्ला रहा था, “पुलिस? ड्यूटी वाले साथी, फौरन पाँच मोटर साइकिल सवारों को मशीनगनों के साथ विदेशी सलाहकार को पकड़ने के लिए भेजिए...क्या? मेरे साथ आइए, मैं ख़ुद आपके साथ आऊँगा...मैं कवि बेज़्दोम्नी, पागलखाने से बोल रहा हूँ...आपका पता क्या है?” रिसीवर पर हाथ रखकर इवान ने डॉक्टर से फुसफुसाकर पूछा, “हैलो, आप सुन रहे हैं? बकवास!” अचानक इवान फूट पड़ा और उसने रिसीवर दीवार पर दे मारा. फिर वह डॉक्टर की ओर मुड़ा, उसकी तरफ हाथ बढ़ाकर रुखाई से “फिर मिलेंगे” कहा, और चलने को तैयार हुआ.
“क्षमा करें, आप जाएँगे कहाँ?” डॉक्टर ने इवान की आँखों में देखते हुए पूछा, “घनी अँधेरी रात में, कच्छा पहनकर! आपकी तबीयत ठीक नहीं है, यहीं रुक जाइए!”
“जाने दो ना,” इवान ने परिचारकों से कहा जो दरवाज़ा रोके खड़े थे, “छोड़ोगे या नहीं?” डरावनी आवाज़ में कवि चिल्लाया.
र्यूखिन काँप उठा और महिला परिचारिका ने मेज़ पर लगा एक बटन दबाया, जिसके साथ ही मेज़ की सतह पर एक चमदार डिब्बा और कीटाणुरहित इंजेक्शन की शीशी आ गई.
“अच्छा तो ये बात है!” इवान ने जंगली और आहत स्वर में कहा, “ठीक है! अलबिदा...” और सिर उठाए वह खिड़की के परदे की ओर लपका. एक धमाका-सा हुआ, मगर परदे के पीछे लगे न टूटने वाले काँच ने उसे रोक लिया, अगले ही क्षण इवान परिचारकों के हाथों में पड़ा था. उसके गले से भर्राहट की आवाज़ आ रही थी. वह काटना चाह रहा था और चिल्ला रहा था :
”कैसे-कैसे शीशे तुम लोगों ने लगा रखे हैं!...छोड़ो! छोड़ो, कहता हूँ!”
डॉक्टर के हाथ में सुई चमकी. नर्स ने झटके से पुराने ढीले-ढाले कुरते की बाँह फाड़ दी और नरमी से इवान का हाथ पकड़ लिया. ईथर की गंध फैल गई. इवान चार आदमियों के हाथों में ढीला पड-अ गया. चपलता से डॉक्टर ने इस क्षण का फायदा उठाकर इवान के हाथ में सुई घोंप दी. इवान को वे कुछ क्षण और थामे रहे और फिर उसे सोफे पर डाल दिया.
“डाकू!” इवान चिल्लाया और सोफे से उछला, मगर उसे फिर सोफे पर धकेल दिया गया. जैसे ही उसे फिर छोड़ा गया वह फिर उछलने को तत्पर हुआ, मगर फिर अपने आप ही वहीं बैठ गया. वह चुप हो गया. जंगलीपन से इधर-उधर देखता रहा, फिर उसने अचानक एक जम्हाई ली, फिर विकटतापूर्वक हँसा.
“पकड़ ही लिया, आख़िर में,” – एक और जम्हाई लेकर वह बोला. अचानक लेट गया, सिर तकिए पर रखकर मुट्ठी बच्चों के समान, गाल के नीचे रखकर उनींदे स्वर में बड़बड़ाने लगा, बिना किसी कड़वाहट के, “बहुत अच्छा है...खुद ही इसकी कीमत चुकाओगे. मैंने आगाह कर दिया, अब जो चाहे कर लो! मुझे अब सबसे ज़्यादा फिक्र पोंती पिलात की है...पिलात...” और उसने आँखें बन्द कर लीं.
“स्नान, एक सौ सत्रह नम्बर का स्वतंत्र कमरा और साथ में चौकीदार,” डॉक्टर ने चश्मा पहनते हुए आदेश दिया. र्यूखिन फिर एक बार काँप गया : सफ़ेद दरवाज़े बिना आवाज़ किए खुल गए. उनके पीछे गलियारा धुँधला-सा प्रकाशित हो रहा था. गलियारे से रबड़ के चक्कों वाला स्ट्रेचर आया, जिस पर शांत पड़े इवान को डाला गया. वह वापस गलियारे में चला गया, उसके पीछे दरवाज़े बन्द हो गए.
क्रमशः
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