मास्टर और मार्गारीटा -05.4
वह नंगे पैर था, फटे हुए सफ़ेद ढीले-ढाले कुरते में, जिस पर सामने की ओर अंग्रेज़ी सेफ्टीपिन से कागज़ की एक अज्ञात संत की तस्वीर लगाई गई थी, उसने धारियों वाला सफेद कच्छा पहन रखा था. इवान निकोलायेविच ने हाथ में जलती हुई मोमबत्ती पकड़ रखी थी. इवान निकोलायेविच के दाहिने गाल पर ताज़ा खरोंच का निशान था. बरामदे में छा गई चुप्पी इतनी गहरी थी कि उसको नापना कठिन हो गया था. एक बेयरे के हाथ के प्याले से बियर फेन के साथ बह-बहकर फर्श पर गिर रही थी.
कवि ने मोमबत्ती को सिर पर ऊँचा उठाया और ज़ोर से बोला, “कैसे हो, दोस्तों?” इसके बाद निकट की मेज़ पर दृष्टि दौड़ाकर विषादपूर्ण स्वर में बोला, “नहीं, वह यहाँ नहीं है!”
दो आवाज़ें सुनाई दीं, एक भारी आवाज़ बेरहमी से बोली, “काम तमाम! सफ़ेद बुखार!”
और दूसरी, डरी हुई स्त्री की आवाज़ बोली, “पुलिस वालों ने इसे इस हालत में रास्ते पर कैसे चलने दिया?”
इवान निकोलायेविच ने यह सुन लिया और इसका जवाब भी दिया, “दो बार पकड़ने की कोशिश की, स्कातेर्त्नी में और यहीं ब्रोन्नाया पर, मगर मैं जाली फाँदकर आ गया, देखो गाल पर खरोंच!”
इवान निकोलायेविच ने मोमबत्ती ऊपर उठा ली और चिल्लाया, “साहित्यिक बंधुओं!” (उसकी भर्राई हुई आवाज़ और मज़बूत तथा जोशीली हो गई), सब मेरी बात सुनो! वह प्रकट हो चुका है! जल्दी से उसे पकड़ लो, वर्ना वह वर्णनातीत संकटों को न्यौता दे देगा!”
“क्या? क्या? उसने क्या कहा? कौन प्रकट हो गया?” सभी दिशाओं से आवाज़ें आने लगीं.
“सलाहकार!” इवान ने उत्तर दिया, “और इस सलाहकार ने अभी-अभी पत्रियार्शी पर मीशा बेर्लिओज़ को मार डाला.”
यह सुनते ही अन्दर के हॉल से बरामदे में लोग निकलने लगे. इवान की मोमबत्ती के चारों ओर भीड़ जमा होने लगी.
“माफ़ कीजिए, माफ़ कीजिए, सही-सही बताइए...” इवान निकोलायेविच के कान के समीप एक शांत और नम्र स्वर सुनाई दिया, “बताइए, कैसे मार डाला? किसने मार डाला?”
“विदेशी सलाहकार, प्रोफेसर और जासूस ने!” चारों ओर देखते हुए इवान बोला.
“और उसका नाम क्या है?” हौले से कान के निकट पूछा गया.
“ओह, ओह, नाम!” नैराश्य के भाव से इवान चिल्लाया, “काश मैं, उसका नाम जानता होता! मैंने उसके विज़िटिंग कार्ड पर लिखा नाम ही तो नहीं पढ़ा...केवल पहला अक्षर याद है “व”...नाम “व” से शुरू होता है! “व” से शुरू होने वाला नाम भला क्या था?”
सोचने के आविर्भाव में माथे के निकट हाथ लाकर, इवान ने अपने आप से पूछा और फिर एकदम बड़बड़ाया, “वे,वे,वे! वा...वो...वाग्नेर? वाग्नेर? वायनेर? वेग्नेर? विन्तेर?” तनाव के कारण इवान के सिर के बाल खड़े होने लगे.
“वुल्फ?” करुणा भरे स्वर में कोई महिला चिल्लाई. इवान को गुस्सा आ गया.
“बेवकूफ़!” चिल्लाने वाली महिला को नज़रों से तलाशते हुए इवान चिल्लाया, “यहाँ वुल्फ का क्या काम है? वुल्फ का कोई दोष नहीं है! वो...वो...नहीं! याद नहीं आएगा! ख़ैर, नागरिकों, इसी समय पुलिस को फोन कीजिए, कि मोटर साइकिल वाले पाँच बन्दूकधारी भेजे जाएँ, जिससे कि प्रोफेसर पकड़ा जा सके. यह भी ज़रूर बताइए कि उसके साथ दो और भी हैं : एक लम्बू, चौख़ाने वाला...चश्मा टूटा हुआ...और एक काला बिल्ला, चमकदार; तब तक मैं ग्रिबोयेदव में उसे ढूँढ़ता हूँ...मुझे लग रहा है कि वह यहीं है!”
इवान फिर परेशानी के आलम में खो गया, आसपास के लोगों को धक्के मारते हुए, मोमबत्ती इधर-उधर घुमाने लगा; अपने आप पर मोम छलकाते हुए, मेज़ों के नीचे देखने लगा. तभी एक शब्द सुनाई दिया : “डॉक्टर को!” और किसी का भरा-भरा पुचकारता हुआ चेहरा, चिकना, खाया-पिया सा, सींगों वाला चश्मा लगाए इवान को दिखाई दिया.
“साथी बेज़्दोम्नी,” वह चेहरा समारोह-पूर्वक स्वर में बोला, “शांत हो जाइए! आप हम सबके प्रिय मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच की, नहीं – सिर्फ मीशा बेर्लिओज़ की मृत्यु से बहुत परेशान हैं...हम सब यह बात अच्छी तरह समझते हैं. आपको विश्राम की आवश्यकता है. अभी साथी आपको बिस्तर में ले जाएँगे, और आप सब कुछ भूल जाएँगे...”
“तुम,...” दाँत भींचते हुए इवान ने बीच में कहा, “समझ रहे हो, कि प्रोफेसर को पकड़ना ज़रूरी है? और तुम अपनी बेवकूफ़ी भरी बातों से मेरा दिमाग चाट रहे हो! मूर्ख!”
“साथी बेज़्दोम्नी, क्षमा कीजिए,” चेहरा लाल पड़ते हुए, पछताते हुए बोला कि मैं क्यों इस उलझन में पड़ गया.
“नहीं, और किसी को कर सकता हूँ, मगर तुम्हें तो मैं माफ नहीं करूँगा!” शांत घृणा से इवान निकोलायेविच बोला.
ऐंठन ने उसके चेहरे को विकृत कर दिया. उसने जल्दी से मोमबत्ती दाहिने हाथ से बाएँ हाथ में ले ली. झटके से हाथ उठाया और इस सहानुभूतिपूर्ण चेहरे के कान के पास जड़ दिया.
तभी सबने इवान के ऊपर झपटने की सोची और झपट पड़े. मोमबत्ती बुझ गई, और चेहरे से नीचे खिसक पड़ा चश्मा, पैरों द्वारा कुचल दिया गया. इवान ने भयानक चीख निकाली, जो सड़क तक सुनाई पड़ी, और संरक्षणात्मक रुख अपना लिया. मेज़ों से नीचे गिरती हुई तश्तरियाँ झनझनाने लगीं, औरतें चीखने लगीं.
जब तक कर्मचारियों ने तौलियों से कवि को बाँधा, नीचे कोट रखने की जगह पर चौकीदार और कमाण्डर के बीच इस तरह की बातचीत हुई :
“तुमने देखा कि वह सिर्फ कच्छे में है?” ठण्डी आवाज़ में उसने पूछा.
“हाँ, आर्चिबाल्द आर्चिबाल्दोविच!” संकोच से सिकुड़ते हुए चौकीदार ने उत्तर दिया, “मगर मैं उन्हें अन्दर जाने से कैसे रोक सकता था, अगर वे मॉसोलित के सदस्य हैं?”
“तुमने देखा कि वह कच्छे में था?” कमाण्डर ने फिर दोहराया.
“क्षमा करें आर्चिबाल्द आर्चिबाल्दोविच,” लाल पड़ते हुए चौकीदार बोला, “मैं क्या कर सकता था? मैं ख़ुद भी समझता हूँ कि बरामदे में महिलाएँ बैठी हैं...”
“महिलाओं का यहाँ कोई काम नहीं, महिलाओं को इससे कुछ फरक नहीं पड़ता,” कमाण्डर चौकीदार को आँखों से भस्म करते हुए बोला, “मगर पुलिस को इससे फरक पड़ता है! कच्छा पहना आदमी मॉस्को की सड़कों पर तभी घूम सकता है, जब उसे पुलिस पकड़कर ले जा रही हो, और वह भी जब उसे पुलिस थाने ले जाया जा रहा हो! और तुम्हें, अगर चौकीदार हो, तो यह मालूम होना चाहिए कि ऐसे आदमी को देखने के बाद, एक क्षण की भी देरी किए बिना, सीटी फूँकना शुरू कर देना चाहिर. तुम सुन रहे हो?”
आधे पागल-से हो गए चौकीदार ने अन्दर बरामदे से ऊई...ऊई...की आवाज़ें, प्लेटों के फेंके जाने की और औरतों के चीखने की आवाज़ें सुनीं.
“तो, इसके लिए तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए?” कमाण्डर ने पूछा.
चौकीदार के चेहरे का रंग टाइफाइड के मरीज़ के रंग जैसा हो गया. आँखें मृतप्राय हो गईं. उसे महसूस हुआ कि काले, ढंग से कंघी किए बाल, आग से घिर गए हैं. कोट गायब हो गया. कमर से बंधे बेल्ट से पिस्तौल का हत्था प्रकट हो गया है. चौकीदार ने अनुभव किया कि वह फाँसी के फन्दे पर लटका है. अपनी आँखों से उसने अपनी जीभ बाहर को निकली देखी. अपना प्राणहीन सिर कन्धे पर लटका देखा. उसे लहरों की आवाज़ भी सुनाई दी. चौकीदार के घुटने काँपने लगे. मगर तभी कमाण्डर ने उस पर दया दिखाई और अपनी जलती आँखों को बुझा लिया.
“देखो, निकोलाय! यह आख़िरी बार कह रहा हूँ, हमें तुम जैसे चौकीदारों की ज़रा-सी भी ज़रूरत नहीं है. तुम चर्च के चौकीदार बन जाओ!” इतना कह कर कमाण्डर ने शीघ्र, स्पष्ट, ठीक-ठीक आज्ञा दी, “जलपान गृह से पन्तेलेय को बुलाया जाए. पुलिस रिपोर्ट. गाड़ी – पागलखाने ले जाया जाए,” और आगे बोला, “सीटी बजाओ!”
लगभग पन्द्रह मिनट बाद अतिआश्चर्यचकित लोगों ने, न केवल रेस्तराँ से, बल्कि रास्ते से और रेस्तराँ के बगीचे में खुलती हुई खिड़कियों से देखा कि किस तरह ग्रिबोयेदव के दरवाज़े से पन्तेलेय, चौकीदार, पुलिसवाले, रेस्तराँ का बेयरा और कवि र्यूखिन गुड़िया की तरह लिपटे एक नौजवान को बाहर ले जा रहे थे. नौजवान आँसू बहाते हुए चिल्लाता जा रहा था, र्यूखिन पर झपट पड़ने को तैयार था, और वह रोते-रोते बोला, “जंगली!”
बाहर खड़े ट्रक ड्राइवर ने दुष्टता का भाव चेहरे पर लाते हुए इंजिन शुरू किया. पास ही खड़े निर्भीक गाड़ीवान ने अपने घोड़े को चाबुक मारकर कहा, “चलो! मैं पागलखाने सवारियाँ ले जा चुका हूँ!”
भीड़ शोर मचा रही थी. इस अप्रत्याशित घटना पर बहस हो रही थी. संक्षेप में, बहुत ही भद्दा, फुसलानेवाला, सूअरपनवाला, कलंकित दृश्य था, जो तभी समाप्त हुआ जब वह ट्रक अभागे इवान निकोलायेविच को, पुलिस वाले को, पन्तेलेय को और र्यूखिन को भरकर ग्रिबोयेदव के द्वार के बाहर ले गया.
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