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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

Discussion on Master&Margarita(Hindi)-Chapter 32


अध्याय 32
क्षमा और चिरंतन आश्रय स्थान
यह अध्याय निराशजनक टिप्पणी के साथ आरम्भ होता है. बुल्गाकोव उनके दु:खों को रेखांकित करते हुए साथ ही यह भी बता रहे हैं कि धरती से दूर जाते हुए उन्हें ज़रा भी अफ़सोस नहीं हो रहा है:

“ हे भगवान! हे मेरे भगवान! शाम की धरती कितनी उदास होती है! पोखरों पर छाया कोहरा कितना रहस्यमय होता है! यह वही जान सकता है, जो इन कोहरों में खो गया हो, जिसने मृत्युपूर्व असीम यातनाएँ झेली हों, जो इस पृथ्वी पर उड़ा हो, जिसने अपने मन पर भारी बोझ उठाया हो. यह एक थका हारा व्यक्ति ही समझ सकता है. तब वह इस कोहरे के जाल को बगैर किसी दुःख के छोड़कर जा सकता है, पृथ्वी के पोखरों और नदियों से बगैर किसी मोह के मुँह मोड़ सकता है, हल्के मन से अपने आप को मृत्यु के हाथों में सौंप सकता है, यह जानते हुए कि सिर्फ वही उसे ‘शांति’ दे सकती है.”

धरती  छोड़कर जाते हुए वे सभी ख़ामोश थे; जैसे ही पूरा, लाल-लाल चाँद उनका स्वागत करने आसमान में प्रकट हुआ, वे अपने-अपने असली रूप में आ गए. बुल्गाकोव अपने वर्णन से पाठकों को मंत्रमुग्ध कर  देते हैं; उनके  शब्दों में जादू है, सम्मोहन है:

रात अपने काले आँचल से जंगलों और चरागाहों को ढाँकती जा रही थी, दूर कहीं नीचे टिमटिमटिमाते दिए जलाती जा रही थी; जिनमें अब न तो मार्गारीटा को और न ही मास्टर को कोई दिलचस्पी थी और न ही थी उनकी कोई ज़रूरत – पराए दीए. घुड़सवारों का पीछा करती रात उनकी राह में उदास आसमान में तारे बिखेरती जा रही थी…
रात गहरी होती गई; साथ-साथ उड़ते हुए घुड़सवारों को वह बीच-बीच में दबोच लेती, कन्धों से उनके कोट खींचकर सभी धोखों, छलावों को उजागर करती जा रही थी. जब ठण्डी हवा के थपेड़े सहती मार्गारीटा ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा कि अपने लक्ष्य की ओर उड़ते सभी साथियों का रंग-रूप परिवर्तित होता जा रहा है. जब उनके स्वागत के लिए जंगल के पीछे से लाल-लाल, पूरा चाँद निकलने लगा, तो सभी छलावे पोखर में गिर पड़े, जादूभरी पोशाकें कोहरे में विलीन होने लगीं.
कोरोव्येव-फागोत को पहचानना असम्भव था, वही जो अपने आपको उस रहस्यमय और किन्हीं भी अनुवादों का मोहताज न होने वाले सलाहकार का अनुवादक कहता था, और जो इस समय वोलान्द के साथ-साथ , मास्टर की प्रियतमा के दाहिनी ओर उड़ रहा था. कोरोव्येव-फागोत के नाम से जो व्यक्ति सर्कस के जोकर वाली पोशाक पहने वोरोब्योव पहाड़ों पर से उड़ा था, उसके स्थान पर घोड़े पर सवार था हौले से झनझनाती सुनहरी लगाम पकड़े बैंगनी काले रंग का सामंत, उसका चेहरा अत्यंत उदास था, शायद वह कभी भी मुस्कुराता तक नहीं था. उसने अपनी ठोढ़ी सीने में छिपा ली थी, वह चाँद की तरफ नहीं देख रहा था, अपने नीचे की पीछे छूटती धरती में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह वोलान्द की बगल में उड़ते हुए अपने ही खयालों में मगन था.
 “वह इतना क्यों बदल गया है?” हवा की सनसनाहट के बीच मार्गारीटा ने वोलान्द से पूछा.
 “इस सामंत ने कभी गलत मज़ाक किया था,” वोलान्द ने अपनी अंगारे जैसी आँख वाला चेहरा मार्गारीटा की ओर मोड़कर कहा, “अँधेरे, उजाले के बारे में बनाया गया उसका शब्दों का खेल बिल्कुल अच्छा नहीं था. इसीलिए इस सामंत को उसके बाद काफी लम्बे समय तक और अधिक मज़ाक करना पड़ा, उसकी कल्पना से भी बढ़कर. मगर आज वह रात है, जब कर्मों का लेखा-जोखा देखा जाता है. सामंत ने अपना हिसाब चुका दिया है और उसका खाता बन्द हो गया है!”
रात ने बेगेमोत की रोएँदार पूँछ को भी निगल डाला, उसके बदन से बालों वाली खाल खींचकर , उसके टुकड़े-टुकड़े करके पोखरों में बिखेर दिए. वह जो बिल्ला था, रात के राजकुमार का दिल बहलाता था, अब बन गया था एक दुबला-पतला नौजवान, शैतान दूत, बेहतरीन मज़ाक करने वाला, जो किसी समय दुनिया में रहता था. अब वह भी मौन हो गया था और चुपचाप उड़ रहा था, अपना जवान चेहरा चाँद से झरझर झरते प्रकाश की ओर किए. 
 सबसे किनारे पर उड़ रहा था अज़ाज़ेलो, चमकती स्टील की पोशाक में. चाँद ने उसका भी चेहरा बदल दिया था. उसका बाहर निकला भद्दा दाँत गायब हो गया था, आँख का टेढ़ापन भी झूठा ही निकला. अज़ाज़ेलो की दोनों आँखें एक-सी थीं, काली और खाली, और चेहरा सफेद और सर्द. अब अज़ाज़ेलो अपने असली रूप में उड़ रहा था, रेगिस्तान के शैतान के रूप में, शैतान-हत्यारे के रूप में.
वे एक खुली जगह पर आते हैं जहाँ वोलान्द अपने घोड़े से उतरता है और उन्हें एक आदमी दिखाता है:
इस तरह खामोशी में काफी देर तक उड़ते रहे, जब तक कि नीचे की जगह बदलने न लगी. उदास, निराश जंगल अँधेरी धरती में डूब गए और अपने साथ टिमटिमाती नदियों की धाराओं को भी ले डूबे. नीचे पर्वतों की चोटियाँ और खाइयाँ नज़र आने लगीं, जिनमें चाँद की रोशनी नहीं पहुँच रही थी.

वोलान्द ने अपने घोड़े को पत्थर की एक वीरान समतल ऊँचाई पर रोका और तब घोड़ों के खुरों के नीचे चरमराते पत्थरों और ठूँठों की आवाज़ सुनते घुड़सवार पैदल चल पड़े. चाँद इस जगह पर अपनी पूरी, हरी रोशनी बिखेर रहा था और शीघ्र ही मार्गारीटा ने इस सुनसान जगह पर देखी कुर्सी और उसमें बैठे आदमी की श्वेत आकृति. सम्भव है, यह व्यक्ति या तो एकदम बहरा था या अपने ख़यालों में खोया हुआ था. उसने पथरीली ज़मीन के कम्पनों को नहीं सुना, जो घोड़ों के वज़न से कसमसा रही थी, और घुड़सवार भी उसे परेशान किए बिना उसके निकट गए.
चाँद ने मार्गारीटा की मदद की; वह सबसे अच्छे बिजली के लैम्प से भी ज़्यादा अच्छा चमक रहा था. इस रोशनी में मार्गारीटा ने देखा कि बैठा हुआ आदमी, जिसकी आँखें अन्धी लग रही थीं, अपने हाथ मल रहा था और इन्हीं बेजान आँखों को चाँद पर लगाए था. अब मार्गारीटा ने यह भी देखा कि उस भारी पाषाण की कुर्सी के निकट, जिस पर चाँद की रोशनी से कुछ चिनगारियाँ चमक रही हैं, एक काला, भव्य, तीखे कानों वाला कुत्ता लेटा है, जो अपने मालिक की ही भाँति व्याकुलता से चाँद की ओर द्ख रहा है.
बैठे हुए व्यक्ति के पैरों के पास टूटी हुई सुराही के टुकड़े बिखरे पड़े हैं और बिना सूखे काले-लाल द्रव का नन्हा-सा तालाब बन गया है.

घुड़सवारों ने अपने-अपने घोड़ों को रोका.
 “आपका उपन्यास पढ़ लिया गया है,” वोलान्द ने मास्टर की ओर मुड़कर कहना शुरू किया, “और उसके बारे में सिर्फ इतना कहा गया है कि वह अधूरा है. इसलिए मैं आपको आपके नायक को दिखाना चाहता था. करीब दो हज़ार सालों से वह यहाँ बैठा है और सोता रहता है, मगर जब पूर्णमासी की रात आती है, तो, आप देख रहे हैं कि कैसे उसे अनिद्रा घेर लेती है. यह चाँद न केवल उसे, बल्कि उसके वफादार चौकीदार कुत्ते को भी व्याकुल करता है. अगर यह सही है कि ‘कायरता – सबसे अधिक अक्षम्य अपराध है ’, तो कुत्ते का तो इसमें कोई दोष नहीं है. यह बहादुर कुत्ता सिर्फ जिस चीज़ से डरा वह है – तूफान! ख़ैर, जो प्यार करता है, उसे प्रियतम के भाग्य को बाँटना ही पड़ता है.”
 “यह क्या कह रहा है?” मार्गारीटा ने पूछा और उसके शांत चेहरे पर सहानुभूति की घटा छा गई.
“वह कह रहा है...” वोलान्द की आवाज़ गूँजी, “बस एक ही बात, वह ये कि चाँद की रोशनी में भी उसे चैन नहीं है और उसका कर्तव्य ही इतना बुरा है. ऐसा वह हमेशा कहता है जब सोता नहीं है, और जब सोता है तो सिर्फ एक ही दृश्य देखता है – चाँद का रास्ता, जिस पर चलकर वह जाना चाहता है कैदी हा-नोस्त्री के पास और उससे बातें करना चाहता है, क्योंकि उसे यकीन है कि तब, बसंत के निस्सान माह की चौदहवीं तारीख को वह उससे पूरी बात नहीं कर पाया था. मगर, हाय, वह इस रास्ते पर जा नहीं सकता; न ही कोई उसके पास आ सकता है. तो फिर क्या किया जाए, बस अपने आप से ही बातें करता रहता है. लेकिन कोई परिवर्तन तो होना ही चाहिए. अतः चाँद के बारे में अपनी बातों में वह कभी-कभी यह भी जोड़ देता है कि उसे सबसे अधिक अपनी अमरता से घृणा है, और अपनी अभूतपूर्व प्रसिद्धि से भी. वह दावे के साथ कहता है कि वह अपने भाग्य को खुशी-खुशी लेवी मैथ्यू के भाग्य के साथ बदल लेता.”
 “कभीSS...एक चाँद के सामने की गई भूल के बदले बारह हज़ार चाँद! क्या यह बहुत ज़्यादा नहीं है?” मार्गारीटा ने पूछ लिया.

“क्या फ्रीडा वाली कहानी दुहराई जा रही है?” वोलान्द ने कहा, “मगर, मार्गारीटा, यहाँ आप परेशान न होइए. सब कुछ ठीक हो जाएगा, दुनिया इसी पर बनी है.”
 “उसे छोड़ दीजिए,” मार्गारीटा अचानक चीखी, वैसे जैसे तब चीखी थी जब चुडैल थी और इस चीख से एक पत्थर लुढ़ककर नीचे अनंत में विलीन हो गया, पहाड़ गरज उठे. मगर मार्गारीटा यह नहीं कह पाई कि यह गरज पत्थर के गिरने की थी, या शैतान की हँसी की. जो कुछ भी रहा हो, वोलान्द मार्गारीटा की ओर देखकर हँस रहा था, वह बोला, “पहाड़ पर चिल्लाने की ज़रूरत नहीं है, उसे इन चट्टानों के गिरने की आदत हो गई है, और वह इससे उत्तेजित नहीं होता. आपको उसकी पैरवी करने की आवश्यकता नहीं है, मार्गारीटा, क्योंकि उसके लिए प्रार्थना की है उसने, जिससे वह बातें करना चाहता है,” अब वह मास्टर की ओर मुड़कर बोला, “तो, फिर, अब आप उपन्यास सिर्फ एक वाक्य से पूरा कर सकते हैं!”
बुत बनकर खड़े, और बैठे हुए न्यायाधीश को देख रहे मास्टर को शायद इसी का इंतज़ार था. वह हाथों को मुँह के पास रखकर ऐसे चिल्लाया कि उसकी आवाज़ सुनसान, वीरान पहाड़ों पर उछलने लगी, “आज़ाद हो! आज़ाद हो! वह तुम्हारी राह देख रहा है!”
पर्वतों ने मास्टर की आवाज़ को कड़क में बदल दिया और इसी कड़कड़ाहट ने उन्हें छिन्न-भिन्न कर दिया. शापित प्रस्तर भित्तियाँ गिर पड़ीं. वहाँ बची सिर्फ वह – चौकोर धरती, पाषाण की कुर्सी के साथ. उस अन्धेरे अनंत के ऊपर, जिसमें ये दीवारें लुप्त हो गई थीं, धू-धू कर जलने लगा वह विशाल नगर अपनी चमचमाती प्रतिमाओं के साथ, जो हज़ारों पूर्णिमाओं की अवधि में फलते-फूलते उद्यान के ऊपर स्थित थीं. सीधे इसी उद्यान तक बिछ गया न्यायाधीश का वह चिर प्रतीक्षित चाँद का रास्ता, और सबसे पहले उस ओर दौड़ा तीखे कानों वाला श्वान. रक्तवर्णीय किनारी वाला सफेद अंगरखा पहना आदमी अपने आसन से उठा और अपनी भर्राई, टूटी-फूटी आवाज़ में कुछ चिल्लाया. यह समझना मुश्किल था कि वह रो रहा है या हँस रहा है, और वह क्या चिल्ला रहा है? सिर्फ इतना ही दिखाई दिया कि अपने वफ़ादार रक्षक के पीछे-पीछे वह भी चाँद के रास्ते पर भागा.
      
 “मुझे वहाँ जाना है, उसके पास?” मास्टर ने व्याकुल होकर पूछा और घोड़े की रास खींची.
वोलान्द ने जवाब दिया, “नहीं, जो काम पूरा हो चुका, उसके पीछे क्यों भागा जाए?”
 “तो, इसका मतलब है, वहाँ...?” मास्टर ने पूछा और पीछे मुड़कर उस ओर देखा जहाँ खिलौने जैसी मीनारों और टूटे सूरज की खिड़कियों वाला शहर पीछे छूट गया था, जिसे वह अभी-अभी छोड़कर आया था.

 “वहाँ भी नहीं,” वोलान्द ने जवाब दिया. उसकी आवाज़ गहराते हुए शिलाओं पर बहने लगी, “सपने देखने वाले, छायावादी मास्टर! वह, जो तुम्हारे द्वारा निर्मित नायक को मिलने के लिए तडप रहा है - जिसे तुमने अभी-अभी आज़ाद किया है – तुम्हारा उपन्यास पढ़ चुका है.” अब वोलान्द ने मार्गारीटा की ओर मुड़कर कहा, “मार्गारीटा निकोलायेव्ना! इस बात पर अविश्वास करना असम्भव है कि आपने मास्टर के लिए सर्वोत्तम भविष्य चुनने का प्रयत्न किया; मगर यह भी सच है कि अब जो मैं आपको बताने जा रहा हूँ; जिसके बारे में येशू ने विनती की थी, वह आपके लिए, आप दोनों के लिए, और भी अच्छा है. उन दोनों को अकेला छोड़ दो,” वोलान्द ने अपनी ज़ीन से मास्टर की ज़ीन की ओर झुककर दूर जा चुके न्यायाधीश के पदचिह्नों की ओर इशारा करते हुए कहा, “उन्हें परेशान नहीं करेंगे. शायद वे आपस में बात करके किसी निर्णय पर पहुँचें,” अब वोलान्द ने येरूशलम की ओर देखते हुए अपना हाथ हिलाया और वह बुझ गया.
 “और वहाँ भी...” वोलान्द ने पृष्ठभूमि की ओर इशारा करते हुए कहा, “उस तहखाने में क्या करेंगे?” अब खिड़की में टूटा हुआ सूरज बुझ गया. “किसलिए?” वोलान्द दृढ़तापूर्वक मगर प्यार से कहता रहा, “ओह, त्रिवार रोमांटिक मास्टर, क्या तुम दिन में अपनी प्रिया के साथ चेरी के पेड़ों तले टहलना नहीं चाहते, उन पेड़ों तले जिन पर बहार आने ही वाली है? और शाम को शूबर्ट का संगीत नहीं सुनना चाहते? क्या तुम्हें मोमबत्ती की रोशनी में हंस के पंख वाली कलम से लिखना नहीं भाएगा? क्या तुम नहीं चाहते कि फाउस्ट की तरह, प्रयोगशाला में रेटॉर्ट के निकट बैठकर नए होमुनकुलस के निर्माण की आशा करो? वहाँ, वहाँ...वहाँ इंतज़ार कर रहा है तुम्हारा घर, बूढ़े सेवक के साथ, मोमबत्तियाँ जल रही हैं, और वह शीघ्र ही बुझ जाएँगी, क्योंकि शीघ्र ही तुम्हारा स्वागत करेगा सबेरा. इस राह पर, मास्टर, इस राह पर! अलबिदा! मेरे जाने का वक्त हो गया है!”
...”अलबिदा!” मास्टर और मार्गारीटा ने एक साथ चिल्लाकर वोलान्द को जवाब दिया. तब काला वोलान्द, बिना किसी रास्ते को तलाशे, खाई में कूद गया, और उसके पीछे-पीछे शोर मचाती उसकी मण्डली भी कूद गई. न पाषाण शिलाएँ, न समतल छोटा चौराहा, न चाँद वाला रास्ता, न येरूशलम, कुछ भी शेष नहीं बचा. काले घोड़े भी दृष्टि से ओझल हो गए. मास्टर और मार्गारीटा ने देखी उषःकालीन लालिमा, जिसका वादा उनसे किया गया था. वह वहीं आरम्भ हो गई थी, आधी रात के रहते ही. मास्टर अपनी प्रियतमा के साथ, सुबह की पहली किरणों की चमक में, पत्थर के बने छोटे-से पुल पर चल पड़ा. उसने पुल पार कर लिया. झरना इन सच्चे प्रेमियों के पीछे रह गया और वे रेत वाले रास्ते पर चल पड़े.
 “सुनो, स्तब्धता को,” मार्गारीटा ने मास्टर से कहा और उसके नंगे पैरों के नीचे रेत कसमसाने लगी, “सुनो, और उस सबका आनन्द लो, जो जीवन में तुम्हें नहीं मिला – ख़ामोशी का. देखो, सामने; यह रहा तुम्हारा घर – शाश्वत, चिरंतन घर जो तुम्हें पुरस्कार स्वरूप मिला है. मुझे वेनेशियन खिड़की और अंगूर की लटकती बेल अभी से दिख रही है, वह छत तक ऊँची हो गई है. यह तुम्हारा घर है, तुम्हारा घर...शाश्वत. मैं जानती हूँ कि शाम को तुम्हारे पास वे आएँगे जिन्हें तुम प्यार करते हो, जिनमें तुम्हें दिलचस्पी है और जो तुम्हें परेशान नहीं करते. वे तुम्हारे लिए साज़ बजाएँगे, वे तुम्हारे लिए गाएँगे; तुम देखोगे, कमरे में कैसा अद्भुत प्रकाश होगा, जब मोमबत्तियाँ जल उठेंगी. तुम अपनी धब्बे वाली, सदाबहार टोपी पहने सो जाओगे, तुम होठों पर मुस्कान लिए सो जाओगे. गहरी नींद तुम्हें शक्ति देगी, तुम गहराई से विश्लेषण कर सकोगे. और मुझे तो तुम अब भगा ही नहीं सकते. तुम्हारी नींद की रक्षा करूँगी मैं.”
मास्टर के साथ अपने शाश्वत घर की ओर जाते-जाते ऐसी बातें करती रही मार्गारीटा और मास्टर को अनुभव होता रहा कि मार्गारीटा के शब्द उसी तरह झंकृत हो रहे हैं जैसे अभी-अभी पीछे छूटा झरना झनझना रहा था, फुसफुसा रहा था. मास्टर की स्मरण-शक्ति, व्याकुल वेदना की सुइयों से छलनी हो चुकी स्मरण-शक्ति धीरे-धीरे सम्भलने लगी. किसी ने मास्टर को आज़ाद कर दिया, ठीक वैसे ही जैसे उसने अपने नायक को अभी-अभी आज़ाद किया था. यह नायक खो गया अनंत में, खो गया कभी वापस न आने के लिए; भविष्यवेत्ता सम्राट का पुत्र, इतवार की पूर्व बेला में वह माफी पा गया, जूडिया का पाँचवाँ क्रूर न्यायाधीश अश्वारोही पोंती पिलात.
तो, वोलान्द की सहायता से मास्टर और मार्गारीटा को चिरंतन सुख और शांति प्राप्त हो गई.
अब मार्गारीटा के 12,000 चाँद वाली टिप्पणी पर ग़ौर करें... हालाँकि वोलान्द कहता है कि पोंती पिलात यहाँ पिछले 2000 सालों से बैठा है. एक अनुवादक ने इसे 24,000 चाँद कर दिया है, मगर पेवियार ने बुल्गाकोव के ही विवरण को यथावत् रहने दिया हि; मैंने भी अपने अनुवाद में यही किया है.
मुझे पूरा विश्वास है कि बुल्गाकोव किसी बात की ओर इशारा करना चाहते हैं.
जहाँ तक वास्तविक येशू और येरूशलम का सवाल है, 2000 वर्षों का समय सही है, जब से A.D. का  प्रारम्भ हुआ था. मगर यहाँ तो यह पवित्र बाइबल की ओर इशारा नहीं करता है. चलिए, देखें कि  बुल्गाकोव हमें कहाँ ले जा रहे हैं.
12,000 चाँद (12,000 पूर्णिमाएँ) 1000 नहीं बल्कि 966 सालों में होती हैं.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बुल्गाकोव अपने वर्णन में अचूक हैं....तो, अगर हम पीछे जाकर देखें कि 966 वर्ष पहले क्या हुआ था तो हम दसवीं शताब्दी पहुँचते हैं : बुल्गाकोव ने जितने समय में उपन्यास की रचना की (1928 – 1940) , दसवीं शताब्दी में उसका समकक्ष समयखण्ड है (962 – 974) . यह वह समय था जब राजकुमार कीए द्वारा कीएव की स्थापना की गई थी....यह कालखण्ड है र्‍यूरिक राजवंश के आरम्भ का जिसे महान योद्धाओं ओलेग, महारानी ओल्गा, ईगोर, स्व्यातोस्लाव, व्लादीमिर के कारण जाना जाता है. दिलचस्प बात यह है कि ओल्गा पहली महारानी थी जिसने ईसाई धर्म स्वीकार किया था, बाद में व्लादीमिर ने रूस को ईसाई  धर्मीय घोषित किया. तात्पर्य यह कि (962 -974) का कालखण्ड कीएव-रूस में ईसाई धर्म के आगमन की ओर इशारा करता है. इसलिए, हम देखते हैं कि बुल्गाकोव अपने पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि उनके उपन्यास की जड़ें रूस में ही हैं, इसका पवित्र बाइबल के कथानक से कोई लेना देना नहीं है.

तो, मास्टर और मार्गारीटा को अपने नए और चिरंतन घर में खुश और महफ़ूज़ छोड़कर हम चलते हैं वापस मॉस्को यह देखने के लिए कि वोलान्द की टीम के शिकार व्यक्तियों का आगे क्या हुआ....उपसंहार की ओर!

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