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रविवार, 10 फ़रवरी 2013

Discussion on Master&Margarita(Hindi)-Chapter 29



अध्याय 29
मास्टर और मार्गारीटा के भाग्य का निर्णय

पिछले अध्याय में हमने देखा कि मार्गारीटा की इच्छा के अनुसार मास्टर और मार्गारीटा को अर्बात वाले घर के तहख़ाने में भेज तो दिया गया; मगर वोलान्द ने उनके बारे में कुछ और ही सोच रखा था.
अब हम देखेंगे कि उनके भाग्य में क्या है.
इस अध्याय में येरूशलम वाले अध्याय से काफ़ी कुछ बातें झाँक-झाँक जाती हैं. ऐसा लगता है मानो दोनों युग एक दूसरे में मिल गए हों. चलिए, देखें कि यह कैसे होता है:
फ्लैट नं. 50 से निकलने के बाद वोलान्द और अज़ाज़ेल मॉस्को की एक ऊँची बिल्डिंग की छत पर आते हैं. यहाँ से वे पूरे शहर को देख सकते हैं, मगर लोगों को वे दिखाई नहीं देते.
 वोलान्द वहाँ एक फोल्डिंग स्टूल पर अपनी काली पोशाक पहने बैठा था. उसकी लम्बी और चौड़ी तलवार छत की एक-दूसरे को छेदती हुई दो पट्टियों के मध्य खड़ी रखी थी, जिससे सूर्य-घड़ी का आकार बन गया था. तलवार की परछाईं धीरे-धीरे लम्बी होती जा रही थी और शैतानों के पैरों में पड़े काले जूतों की ओर रेंग रही थी.” वे देखते हैं कि ग्रिबोयेदोव जल रहा है और अन्दाज़ लगाते हैं कि कोरोव्येव और बेगेमोत अवश्य ही वहाँ गए होंगे.
समय सूर्यास्त का है और टुकड़ों में बँटे सूरज का वर्णन हमें उस दृश्य की याद दिलाता है जब उपन्यास के आरम्भ में पत्रियार्शी तालाब वाले पार्क में वोलान्द का आगमन होता है:
“...छत पर मौजूद दोनों ने देखा कि विशाल भवनों की पश्चिम की ओर खुलती खिड़कियों में, ऊपरी मंज़िलों पर टूटा हुआ, चकाचौंध करने वाला सूरज जल उठा. वोलान्द की आँख भी उसी तरह जल रही थी, हालाँकि उसकी पीठ सूरज की ओर थी.”
अचानक वहाँ लेवी मैथ्यू प्रकट होता है. वह येशुआ–हा-नोस्त्री का  संदेश लाया है. यहाँ वोलान्द और लेवी मैथ्यू के बीच अच्छाई और बुराई, प्रकाश और छाया पर बहस होती है:
“ब्बा!” आगंतुक पर मुस्कुराते हुए नज़र डालकर वोलान्द चहका, “तुम्हारे यहाँ आने की मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी! तुम क्या कोई शिकायत लेकर आये हो, बिन–बुलाए, मगर अपेक्षित मेहमान?”
 “मैं तुम्हारे पास आया हूँ, बुराइयों की आत्मा और परछाइयों के शासक,” आने वाले ने कनखियों से वोलान्द की ओर अमैत्रीपूर्ण ढंग से देखते हुए कहा.
 “अगर तुम मेरे पास आए थे, तो मेरा अभिवादन कों नहीं किया, भूतपूर्व टैक्स-संग्राहक?” वोलान्द ने गम्भीरता से पूछा.
 “क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम चिरंजीवी रहो,” आगंतुक ने तीखा जवाब दिया.
 “मगर तुम्हें इससे समझौता करना ही पड़ेगा,” वोलान्द ने आपत्ति करते हुए कहा और कटु मुस्कुराहट उसके मुख पर छा गई, “छत पर आए देर हुई नहीं कि लगे बेहूदगी करने. मैं तुम्हें बता दूँ, यह बेहूदगी है – तुम्हारे उच्चारण में, लहजे में. तुम अपने शब्दों का उच्चारण इस तरह करते हो, मानो तुम छायाओं को, बुराई को नहीं मानते. क्या तुम इस सवाल पर गौर करोगे : तुम्हारी अच्छाई को अच्छाई कौन कहता, अगर बुराई का अस्तित्व न होता? धरती कैसी दिखाई देगी, अगर उस पर से सभी परछाइयाँ लुप्त हो जाएँ? परछाइयाँ तो बनती हैं पदार्थों से, व्यक्तियों से. यह रही मेरी तलवार की परछाईं. परछाइयाँ वृक्षों की भी होती हैं और अन्य सजीव प्राणियों की भी. क्या पृथ्वी पर से सभी पेड़ एवम् सभी सजीव प्राणी हटाकर तुम पृथ्वी को एकदम नंगी कर देना चाहते हो, सिर्फ नंगी रोशनी का लुत्फ उठाने की अपनी कल्पना की खातिर? तुम बेवकूफ हो!”

“मैं तुमसे बहस नहीं करना चाहता, बूढ़े दार्शनिक,” लेवी मैथ्यू ने जवाब दिया.
 “तुम मुझसे बहस कर भी नहीं सकते, इसलिए कि तुम बेवकूफ़ हो,” वोलान्द ने जवाब देकर पूछा, “संक्षेप में बताओ, मुझे हैरान करते हुए तुम आए क्यों हो?”
 “उसने मुझे भेजा है.”
 “उसने तुम्हें कौन-सा संदेश देकर भेजा है, दास?”
 “मैं दास नहीं हूँ,” बुरा मानते हुए लेवी मैथ्यू ने जवाब दिया, “मैं उसका शिष्य हूँ.”
 “हम हमेशा की तरह आपस में भिन्न भाषाओं में बात कर रहे हैं. मगर इससे वे चीज़ें तो बदल नहीं जातीं, जिनके बारे में हम बातें कर रहे हैं. तो...” वोलान्द अपनी बहस पूरी किए बिना चुप हो गया.
 “उसने मास्टर का उपन्यास पढ़ा है,” लेवी मैथ्यू ने कहा, “वह तुमसे प्रार्थना करता है कि तुम मास्टर को अब अपने साथ ले जाओ और पुरस्कार स्वरूप उसे शांति दो. क्या यह तुम्हारे लिए मुश्किल है, बुराइयों की आत्मा?”
 “मेरे लिए कुछ भी करना मुश्किल नहीं है, यह बात तुम भी अच्छी तरह जानते हो.” कुछ देर चुप रहकर वोलान्द ने आगे कहा, “तुम उसे अपने साथ प्रकाश में क्यों नहीं ले जाते?”
 “वह प्रकाश के लायक नहीं है, उसे शांति की ज़रूरत है,” लेवी ने दुःखी होकर कहा.
 “कह देना कि काम हो जाएगा,” वोलान्द ने जवाब देकर आगे कहा, “तुम यहाँ से फौरन दफ़ा हो जाओ,” उसकी आँख में किनगारियाँ चमकने लगीं.
 “वह प्रार्थना करता है कि जिसने उसे प्यार किया और दुःख झेले, वह भी आपकी शरण पाए,” लेवी ने पहली बार वोलान्द से प्रार्थना के स्वर में बात की.
 “तुम्हारे बिना तो हम शायद यह बात समझ ही न पाते. अब जाओ!”
इसके बाद लेवी मैथ्यू गायब हो गया.
वोलान्द ने अज़ाज़ेलो को निकट बुलाकर आज्ञा दी, “उनके पास उड़कर जाओ और सब ठीक-ठाक करके आओ.”
अज़ाज़ेलो छत से चला गया और वोलान्द अकेला रह गया.
तो, हम देखते हैं कि बुल्गाकोव मास्टर के लिए शांति की कामना करता है न कि प्रकाश की, प्रसिद्धी की,  मान्यता की. शायद बुल्गाकोव जैसी योग्यता वाले लेखक के लिए यही उचित था; स्वयँ उसे भी केवल शांति की ज़रूरत थी.                             
फिर वहाँ प्रकट होते हैं कोरोव्येव और बेगेमोत... ग्रिबोयेदोव भवन के विनाश का ज़िक्र होता है और वोलान्द हुक्म देता है कि लेखकों के लिए, कला एवम् संस्कृति के निर्माताओं के लिए एक नई इमारत का निर्माण लिया जाए जो पहले वाली, एक ढर्रे वाली इमारत से बेहतर हो. उसे यक़ीन दिलाया जाता है कि ऐसा ही होगा.
 “वह बन जाएगी, मालिक,” कोरोव्येव बोल पड़ा, “मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ.”
 “ठीक है, तो फिर मैं कामना करता हूँ कि वह पहले वाली से अधिक बेहतर होगी,” वोलान्द ने कहा.
 “ऐसा ही होगा, मालिक!” कोरोव्येव बोला.
बिल्ला बोला, “आप मुझ पर भरोसा कीजिए, मैं सचमुच का पैगम्बर हूँ.”
 “ख़ैर, हम आ गए हैं, मालिक,” कोरोव्येव बोला, “और आपके हुक्म का इंतज़ार कर रहे हैं.”
वोलान्द अपने स्टूल से उठकर जँगले तक गया और काफी देर चुपचाप, अपनी मण्डली की ओर पीठ किए, दूर कहीं देखता रहा. फिर वह जँगले से हटा, वापस अपने स्टूल पर बैठ गया और बोला, “कोई भी हुक्म नहीं है – तुम लोगों ने वह सब किया, जो कर सकते थे और फिलहाल तुम्हारे सेवाओं की कुझे ज़रूरत नहीं है. तुम लोग आराम कर सकते हो. तूफान आने वाला है; आख़िरी तूफ़ान; वह सब काम पूरा कर देगा; और फिर हम चल पड़ेंगे.”
 “बहुत अच्छा मालिक,” दोनों जोकरों ने जवाब दिया और वे छत के बीचों-बीच बने गोल मध्यवर्ती गुम्बज के पीछे कहीं छिप गए.
 तूफ़ान, जिसके बारे में वोलान्द ने कहा था, क्षितिज पर उठने लगा था. पश्चिम की ओर से एक काला बादल उठा, जिसने सूरज को आधा काट दिया. फिर उसने उसे पूरी तरह ढाँक लिया. छत पर सुहावना लगने लगा. कुछ और देर के बाद अँधेरा छाने लगा.
पश्चिम की ओर से आए इस अँधेरे ने उस पूरे शहर को ढाँक लिया. पुल और महल गायब हो गए. सब कुछ अदृश्य हो गया, मानो दुनिया में उसका कभी अस्तित्व ही न रहा हो. पूरे आकाश में आग की एक लकीर दौड़ रही थी. फिर शहर पर कड़कड़ाते हुए बिजली गिरी. दुबारा बिजली की कड़क के बाद मूसलाधार बारिश शुरू हो गई, उस अँधेरे में वोलान्द अदृश्य हो गया.
पश्चिम की ओर से उठने वाले तूफ़ान से तात्पर्य शायद पश्चिमी ताक़तों के सैनिक हस्तक्षेप से है, जिसका ज़िक्र “लाल द्वीप” में भी है. यह तूफ़ान सूरज (!) को आधा काट देने वाला है.
आपको याद होगा कि अध्याय 16 में येरूशलम भी इसी प्रकार लुप्त हो गया था. इस वर्णन के माध्यम से दोनों युगों को आपस में मिला दिया गया है.
शायद बुल्गाकोव सोवियत संघ में वोलान्द जैसी किसी महान शक्ति की सहायता से किसी सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन की भविष्यवाणी कर रहे हों!

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