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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

Zoya's Flat(Hindi) - 1.1.3


ज़ोया का फ्लैट – 1.1.3
ज़ोया – ये हुई न बात.. अल्लीलूया. इनाम के तौर पर मुझे इस रफ़ू वाली जगह पर चूम सकते हैं (पैर की ओर इशारा करती है) आँखें बन्द कर लीजिए और सोचिए कि यह मान्यूश्का का पैर है.
अल्लीलूया – एख़, ज़ोया देनिसोव्ना, ...एख़...कैसी हैं आप!
ज़ोया – क्या हुआ?
अल्लीलूया – कितनी प्यारी...
ज़ोया – बस, बस, मार खाओगे. बाज़ू हटो. मेरे प्यारे, अलबिदा. अलबिदा. मुझे तैयार होना है. मार्च! लेफ्ट, राइट!
(कहीं दूर, पियानो ज़ोर शोर से लीस्त के लोक संगीत की दूसरी धुन बजाता है.)
अल्लीलूया – अलबिदा. आज आप सिर्फ यह तय कर लीजिए कि अपने फ्लैट में किसे रहने देंगी. मैं फिर आऊँगा. (दरवाज़े की ओर जाता है.)
ज़ोया – ठीक है.
(पियानो अचानक रुक जाता है और एक हल्का सा रोमान्स छेड़ देता है. एक नाज़ुक आवाज़ गाती है:
न गा, प्रिये, मेरे सामने
 दर्दीले जॉर्जिया के गीत... 
अल्लीलूया (दरवाज़े के निकट रुक कर बड़बड़ाता है) – यह क्या बात है? हो सकता है, गूस डॉलर्स के नम्बर नोट कर लेता हो?
ज़ोया – और आपने क्या सोचा?
अल्लीलूया – पब्लिक होशियार हो गई है! पब्लिक! (जाता है)
ओबोल्यानिनोव (बदहवासी से भागते हुए आता है) – ज़ोयका! क्या मैं आ सकता हूँ?
ज़ोया – पाव्लिक! पाव्लिक! आओ, आओ, बेशक आओ! (परेशानी से) क्या हुआ पाव्लिक, फिर से?
ओबोल्यानिनोव – ज़ोया, ज़ोया, ज़ोका! (अपने हाथ मरोड़ता है.)
ज़ोया – लेट जाओ, लेट जाओ, पाव्लिक. मैं अभी वैलेरीन दूँगी. शायद, थोड़ी वाइन भी?
ओबोल्यानिनोव – भाड़ में जाए वाइन और वैलेरीन! क्या वैलेरीन से मुझे आराम मिलेगा?
आवाज़ गाती है:
याद दिलाते वे मुझे
कोई और जीवन, कोई और किनारा...    

ज़ोया (दुख से) – तुम्हारी मदद कैसे करूँ? हे भगवान!
ओबोल्यानिनोव – मुझे मार डालो!
ज़ोया – नहीं, तुम्हारी तड़पन मुझसे देखी नहीं जाती! मुक़ाबला नहीं कर सकते, पाव्लिक? अस्पताल चलें? पर्ची है?
ओबोल्यानिनोव – नहीं, नहीं. वह नाकारा डॉक्टर छुट्टियाँ मनाने फार्म हाऊस चला गया. फार्म हाऊस! लोग मर रहे हैं और वह फ़ार्म हाऊस की सैर कर रहा है. चीनी के पास! मुझसे और बर्दाश्त नहीं होता. चीनी के पास!
ज़ोया – चीनी के पास. अच्छा...अच्छा...मान्यूश्का, मान्यूश्का!
(मान्यूश्का आती है.)
ज़ोया – पावेल फ़्योदोरोविच बीमार हैं. फ़ौरन गाज़ोलिन के पास दौड़ जा. मैं चिट्ठी लिखकर देती हूँ...दवा लेती आना. समझ गईं?
मान्यूश्का – समझ गई, ज़ोया देनिसोव्ना...
ओबोल्यानिनोव – नहीं, ज़ोय देनोसोव्ना! उसे यहीं आकर मेरे सामने ही बनाने दो. वह बदमाश है. वैसे भी मॉस्को में एक भी ढंग का आदमी नहीं है. सब बदमाश हैं. किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता. और यह मानो कानों में गरम तेल डाल रही हो...... याद दिलाते वे मुझे...कोई और जीवन, कोई और किनारा...   
ज़ोया (मान्यूश्का को चिट्ठी देती है)  - फ़ौरन ले आना. गाड़ी करके जाना.
मान्यूश्का – और अगर वो घर पे न हो तो?
ओबोल्यानिनोव – होगा क्यों नहीं? कैसे नहीं होगा? होना ही चाहिए! होगा ही! होगा ही!
ज़ोया – जहाँ भी हो, पकड़ ला! मालूम कर, कहाँ है. भाग! उड़ कर जा!
मान्यूश्का – अच्छा. (भागती है.)
ज़ोया – पाव्लिक, मेरे अपने, बर्दाश्त करो, बर्दाश्त करो. वह अभी उसे ले आएगी.
(आवाज़ ज़िद्दीपन से गाये जा रही है, “...याद दिलाते वे मुझे...”)
ओबोल्यानिनोव -याद दिलाते...वे मुझे...कोई और जीवन. तुम्हारी बिल्डिंग का आँगन बड़ा मनहूस है. कितना शोर मचाते हैं. हे भगवान! तुम्हारी सादोवाया पर सूर्यास्त कितना बोझिल है. नंगा सूर्यास्त. बन्द करो, अभी बन्द करो, सारे पर्दे!
ज़ोय – हाँ, हाँ. (पर्दे बन्द करती है.)
अंधेरा छा जाता है.

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