अध्याय 33
उपसंहार
वोलान्द के मॉस्को
से जाने के साथ हर चीज़ समाप्त नहीं हो गई. वह अफ़वाहों के माध्यम से लम्बे समय तक
लोगों की याददाश्त में रह गया. अफ़वाहें देश के दूर-दराज़ के इलाकों तक फैल गई थीं.
अनेक गिरफ़्तारियाँ
की गईं. वे लोग जिनके नाम कोरो- या वोल- से आरम्भ होते थे, अपरिहार्य रूप से
गिरफ़्तार कर लिए गए: इनमें नौ कोरोविन, चार कोरोव्किन, दो कोरोवायेव थे; वोल्मन,
वोल्पेर, वोलोदिन, वोलोख, वेत्चिन्केविच ...भी गिरफ़्तार किए गए...यह बात बुल्गाकोव व्यंग्य से नहीं कह रहे हैं, ऐसा
उन दिनों वाक़ई में होता था जब एक ही नाम
के सैंकड़ों आदमियों को बन्द कर दिया जाता था ताकि असली मुजरिम छूट न जाए.
बहुत सी बिल्लियों
को भी पकड़ा गया...
पिछले तीन दिनों की
घटनाओं के कारणों को समझाने की कोशिश की गई और यह बताया गया कि मॉस्को में लुटेरों
का एक बहुत ही ताक़तवर गैंग आया था जो विशेष
प्रकार की सम्मोहन-विधियाँ भी जानता
था.
इस तरह काफ़ी सारी
चीज़ें समझा दी गईं....उन्होंने स्वीकार किया कि मॉस्को में कोई था तो ज़रूर, जो इन
सब घटनाओं का संचालन कर रहा था : ग्रिबोयेदोव-भवन का आग में नष्ट होना; बेर्लिओज़
और सामंत माइकेल की हत्या – इन घटनाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता था; उन्होंने
कहा कि मार्गारीटा और नताशा को उनकी सुन्दरता के कारण अगवा कर लिया गया...जो बात
वे समझा नहीं पाए वह थी स्त्राविन्स्की के क्लीनिक से 118 नं. के मरीज़ का अजीब
तरीक़े से गायब हो जाना, जिसका नाम तक किसी को मालूम नहीं था.
आइए, बुल्गाकोव के
जादुई शब्दों में परिस्थिति को जानें:
“...मगर जिस बात का कोई प्रमाण नहीं पाया जा सका, वह यह थी कि
मानसिक रूप से बीमार, अपने आपको मास्टर कहने वाले व्यक्ति को ये मण्डली अस्पताल से
उड़ाकर क्यों ले गई. इसकी वजह वे नहीं ढूँढ़ सके और न ही पता लगा सके उस मरीज़ के नाम
का. वह ‘नम्बर एक सौ अठारह’ वाले सम्बोधन के साथ ही हमेशा के लिए गुम हो गया.
इस तरह हर चीज़ समझा दी गई और जाँच का काम खत्म हो गया, वैसे ही
जैसे और सब कुछ खत्म होता है.
कुछ साल बीत गए. लोग वोलान्द को, कोरोव्येव को और अन्य लोगों को
भूलने लगे. वोलान्द और उसकी मण्डली के कारण दुःख पाए लोगों के जीवन में कई
परिवर्तन हुए और ये परिवर्तन कितने ही मामूली क्यों न रहे हों, उनके बारे में बता
देना अच्छा रहेगा.
उदाहरण के लिए, जॉर्ज बेंगाल्स्की अस्पताल में तीन महीने बिताने के
बाद ठीक हो गया और घर भेज दिया गया, मगर उसे वेराइटी की नौकरी छोड़नी पड़ी; और वह भी
खास तौर से भीड़ के सीज़न में, जब जनता टिकटों के लिए टूटी पड़ रही थी – काले जादू और
उसका पर्दाफाश करने वाली बात की स्मृतियाँ एकदम ताज़ा थीं. बेंगाल्स्की ने वेराइटी
छोड़ दिया, क्योंकि वह समझ गया कि हर शाम दो हज़ार दर्शकों के सामने जाना, हर हालत
में पहचान लिए जाना और इस चिढ़ाते हुए सवाल का सामना करना कि उसके लिए क्या अच्छा
रहेगा : सिर वाला शरीर या बिना सिर वाला? – यह सब बड़ा पीड़ादायी होगा.
हाँ, इसके अलावा सूत्रधार अपनी खुशमिजाज़ी भी खो बैठा, जो उसके पेशे
के लिए निहायत ज़रूरी है. उसे एक अप्रिय और बोझिल आदत पड़ गई : हर पूर्णमासी की रात
को वह व्याकुल होकर अपनी गर्दन पकड़ लेता, भय से इधर-उधर देखता और फिर रो पड़ता. यह
सब धीरे-धीरे कम होता गया, मगर उनके रहते पुराने काम को करना असम्भव ही था; इसलिए
सूत्रधार ने वह नौकरी छोड़ दी, वह खामोश जीवन बिताने लगा, अपनी बचत पर जीने लगा, जो
उसकी साधारण जीवन शैली की बदौलत पन्द्रह वर्षों के लिए काफी थी.
वह चला गया और फिर कभी भी वारेनूखा से नहीं मिला जो थियेटर
प्रबन्धकों के बीच भी, अपनी अविश्वसनीय सहृदयता, शिष्ट व्यवहार, और हाज़िरजवाबी के
कारण लोकप्रिय हो गया था. मुफ़्ट टिकट पाने वाले तो उसे ‘दयालु पिता’ कहकर ही
बुलाते थे. कोई भी, कभी भी वेराइटी में फोन करे, हमेशा टेलिफोन पर नर्म, मगर उदास
आवाज़ सुनाई देती, “सुन रहा हूँ” - और जब वारेनूखा को टेलिफोन पर बुलाए जाने की
प्रार्थना की जाती तो वही आवाज़ जल्दी से आगे कहती, “मैं हाज़िर हूँ, कहिए क्या सेवा
करूं.” मगर इवान सावेल्येविच अपनी शिष्टता के कारण भी दुःख उठाता रहा.
स्त्योपा लिखोदेयेव को भी अब वेराइटी में टेलिफोन पर बात नहीं करना
पड़ता. अस्पताल से छूटने के फौरन बाद, जहाँ उसने आठ दिन बिताए थे, उसे रोस्तोव भेज
दिया गया. वहाँ उसे एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर का डाइरेक्टर बना दिया गया. कहते
हैं कि अब उसने पोर्ट वाइन पीना पूरी तरह छोड़ दिया है, और केवल वोद्का पीता है –
वह भी बेदाने की, जिससे उसकी तबियत भी काफी अच्छी हो गई है. यह भी कहते हैं कि वह
एकदम खामोश तबियत का हो गया है और औरतों से भी दूर रहता है.
स्तेपान बोग्दानोविच को वेराइटी से निकालकर रीम्स्की को इतनी खुशी
नहीं हुई, जिसके वह पिछले कई सालों से इतनी अधीरता से सपने देखता रहा था. अस्पताल
और किस्लोवोद्स्क के बाद बूढ़े, जक्खड़ बूढ़े, हिलते हुए सिर वाले वित्तीय डाइरेक्टर
ने भी वेराइटी से बाहर जाने के लिए दरख्वास्त दे दी. मज़े की बात तो यह है कि इस
दरख्वास्त को वेराइटी लेकर आई उसकी बीवी. ग्रिगोरी दानिलोविच को दिन में भी उस
इमारत में जाने की हिम्मत नहीं हुई, जहाँ उसने चाँद की रोशनी में खिड़की के चटकते
शीशे को देखा था और उस लम्बे हाथ को जो निचली सिटकनी की ओर बढ़ा आ रहा था.
वेराइटी छोड़कर वित्तीय डाइरेक्टर बच्चों के कठपुतलियों वाले थियेटर
में आ गया. इस थियेटर में उसे ध्वनि संयोजन की समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता था,
ज़ामस्क्वोरेच्ये में इस बारे में सम्माननीय अर्कादी अपोलोनोविच सिम्प्लेयारोव से
बहस भी नहीं करनी पड़ती थी. उसे दो ही मिनट में ब्र्यान्स्क भेज दिया गया और मशरूम
को डिब्बों में बन्द करने वाले कारखाने का डाइरेक्टर बना दिया गया. अब मॉस्कोवासी
नमकीन लाल और सफेद मशरूम खाते हैं, और उनकी तारीफ करते नहीं थकते; वे इस तबादले से
बेहद खुश हैं. बात तो पुरानी है और कह सकते हैं कि अर्कादी अपोलोनोविच से ध्वनि
संयोजन का काम सँभलता ही नहीं था. उसने चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न की हो, वह
जैसा था वैसा ही रहा.
थियेटर से जिनका नाता टूटा उनमें अर्कादी अपोलोनोविच के अलावा
निकानोर इवानोविच बोसोय को भी शामिल करना होगा, हालाँकि निकानोर इवानोविच का मुफ़्त
के टिकटों को छोड़कर थियेटर से कोई वास्ता नहीं था. निकानोर इवानोविच अब कभी थियेटर
नहीं जाता: न पैसों से, न मुफ़्त में; इतना ही नहीं, थियेटर का ज़िक्र छिड़ते ही उसके
चेहरे का रंग बदल जाता है. थियेटर के अलावा उसे कवि पूश्किन से और सुयोग्य कलाकार
साव्वा पोतापोविच कूरोलेसोव से भी बड़ी घृणा हो गई. उससे तो इतनी कि पिछले साल काली
किनार के बीच यह समाचार देखकर कि साव्वा पोतापोविच अपने जीवन के चरमोत्कर्ष के काल
में दिल के दौरे से परलोक सिधार गया – निकानोर इवानोविच का चेहरा इतना लाल पड़ गया
कि वह स्वयँ भी साव्वा पोतापोविच के पीछे जाते-जाते बचा. वह गरजा, “उसके साथ ऐसा
ही होना चाहिए!” इसके अलावा, उसी शाम को निकानोर इवानोविच ने, जिसे लोकप्रिय
कलाकार की मृत्यु के कारण अनेक कड़वी बातें फिर से स्मरण हो आई थीं, अकेले,
पूर्णमासी के चाँद के साथ सादोवाया में बैठ कर खूब शराब पी. हर जाम के साथ उसके
सामने घृणित आकृतियों की श्रृंखला लम्बी होती जाती और इस श्रृंखला में थे दुंचिल
सेर्गेइ गेरार्दोविच और सुन्दरी इडा हेर्कुलानोव्ना, और वह लाल बालों वाला लड़ाकू
हंसों का मालिक, और स्पष्टवक्ता कानाव्किन निकोलाय .
और उनके साथ क्या हुआ? गौर फरमाइए! जैसे कुछ हुआ ही नहीं, और हो भी
नहीं सकता, क्योंकि उनका अस्तित्व ही नहीं था; जैसे कि खूबसूरत कलाकार सूत्रधार
का, और खुद थियेटर का, और बूढ़ी बुआजी पोरोखोव्निकोवा का जिसने तहखाने में विदेशी
मुद्रा छुपाई थी; और, बेशक, सुनहरी तुरहियाँ नहीं थीं, न ही थे दुष्ट रसोइए.
निकानोर इवानोविच को शैतान कोरोव्येव के प्रभाव से इनका केवल सपना आया था. सिर्फ
एक जीता-जागता इन्सान जो इस सपने में उपस्थित था, वह था केवल साव्वा पोतापोविच –
कलाकार, और वह इस सपने से इसलिए जुड़ा था, क्योंकि वह निकानोर इवानोविच की स्मृति
में अपने रेडियो कार्यक्रमों के कारण गहरे पैठ गया था. वह था, बाकी के नहीं थे.
इसका मतलब है कि अलोइज़ी मोगारिच भी नहीं था? ओह, नहीं! वह न केवल
तब था, बल्कि अब भी है; उसी पद पर जिसे रीम्स्की ने छोड़ा था,यानी वेराइटी के
वित्तीय डाइरेक्टर के पद पर.
वोलान्द से मुलाकात होने के करीब चौबीस घण्टे बाद, ट्रेन में, कहीं
व्यात्का के निकट अलोइज़ी को होश आया. उसे विश्वास हो गया कि उदास मनःस्थिति में न
जाने क्यों मॉस्को से निकलते हुए वह पैण्ट पहनना भूल गया था, मगर न जाने क्यों
कॉण्ट्रेक्टर की किराए वाली किताब चुरा लाया था. कण्डक्टर को काफी बड़ी रकम देने के
बाद अलोइज़ी ने उससे पुरानी और गन्दी पैण्ट प्राप्त की और उसे पहनकर व्यात्का से
वापस चल पड़ा, मगर अब वह कॉण्ट्रेक्टर वाला मकान ढूँढ़ ही नहीं पाया. जीर्ण ढाँचा
पूरी तरह आग में जल रहा था. मगर अलोइज़ी काफी होशियार आदमी था, दो हफ्तों बाद वह एक
खूबसूरत कमरे में रहने भी लगा, जो ब्रूसोव गली में था, और कुछ ही महीनों बाद वह
रीम्स्की की कुर्सी पर बैठ गया. जैसे पहले रीम्स्की स्त्योपा के कारण परेशान रहता
था, वैसे ही अब वारेनूखा अलोइज़ी के कारण दुखी था. अब इवान सावेल्येविच केवल एक ही
बात का सपना देखता है कि कोई इस अलोइज़ी को उसकी आँखों से दूर हटा दे; क्योंकि,
जैसा कि वारेनूखा अपने घनिष्ठ मित्रों से कभी-कभी कहता है, “ऐसे सूअर को, जैसा
अलोइज़ी है, उसने अपने जीवन में कभी नहीं देखा और इस अलोइज़ी से उसे कुछ भी हो सकता
है.”
हो सकता है, व्यवस्थापक पूर्वाग्रह से ग्रसित हो. अलोइज़ी से
सम्बन्धित कभी कोई काले कारनामे नहीं देखे गए और आमतौर से कोई भी कारनामे नहीं –
अगर रेस्तराँ प्रमुख सोकोव के स्थान पर किसी अन्य की नियुक्ति की ओर ध्यान न दिया
जाए. अन्द्रेई फोकिच तो मॉस्को यूनिवर्सिटी के नम्बर एक वाले अस्पताल में कैंसर से
मर गया. वोलान्द के मॉस्को में प्रकट होने के नौ महीने बाद...
हाँ, कई साल गुज़र गए और इस किताब में सही-सही वर्णन की गई घटनाएँ
लोगों की स्मृति से लुप्त होती गईं, मगर सब की नहीं, सबकी स्मृति से नहीं.
हर साल जब बसंत की पूर्णमासी की रात आती है, शाम को लिण्डेन के
वृक्षों के नीचे पत्रियार्शी तालाब पर एक तीस-पैंतीस साल का आदमी प्रकट होता है –
लाल बालों वाला, हरी-हरी आँखों वाला, साधारण वेशभूषा में. यह – इतिहास और दर्शन
संस्थान का संशोधक है – प्रोफेसर इवान निकोलायेविच पनीरेव.
लिण्डेन की छाया में आकर वह उसी बेंच पर बैठता है, जहाँ बहुत पहले
विस्मृति के गर्त में डूबे बेर्लिओज़ ने जीवन में अंतिम बार टुकड़ों में बिखरते चाँद
को देखा था.
अब वह चाँद, पूरा, रात्रि के आरम्भ में सफेद, मगर बाद में सुनहरा,
काले घोड़े जैसी साँप की आकृति के साथ भूतपूर्व कवि इवान निकोलायेविच के ऊपर तैर
रहा है; मगर साथ ही ऊँचाई पर अपनी जगह स्थिर खड़ा है.
इवान निकोलायेविच को सब मालूम है, वह सब कुछ जानता है और समझता है.
वह जानता है कि युवावस्था में वह अपराधी सम्मोहनकर्ताओं का शिकार हुआ था, इसके बाद
उसका इलाज किया गया और वह ठीक हो गया. मगर वह यह भी जानता है कि कुछ है, जिस पर
उसका बस नहीं चलता. इस बसंत के पूरे चाँद पर उसका कोई ज़ोर नहीं चलता. जैसे ही यह
पूर्णमासी नज़दीक आने लगती है, जैसे ही चाँद बढ़ना और सुनहरा होना शुरू होता है,
जैसे कभी दो पंचकोणी दीपों के ऊपर चमका था, इवान निकोलायेविच बेचैन होना शुरू हो
जाता है, वह उदास हो जाता है, उसकी भूख मर जाती है, नींद उड़ जाती हि, वह इंतज़ार
करता है चाँद के पूरा होने का, और जब पूर्णमासी आती है तो कोई भी ताक़त इवान
निकोलायेविच को घर में नहीं रोक सकती. शाम होते-होते वह निकलकर पत्रियार्शी तालाब
पर चला जाता है.
बेंच पर बैठे-बैठे इवान निकोलायेविच खुलकर अपने आप से बातें करने
लगता है. सिगरेट पीता है, आँखें बारीक करके कभी चाँद को देखता है, तो कभी
भली-भाँति स्मृति में ठहर गए उस घुमौने दरवाज़े को.
इस तरह इवान निकोलायेविच घंटे-दो घंटे गुज़ारता है. फिर वह अपनी जगह
से उठकर हमेशा एक ही रास्ते से, स्पिरिदोनोव्का होते हुए खाली और अनमनी आँखों से
अर्बात की गलियों में घूमता है.
वह तेल की दुकान के करीब से गुज़रता है, वहाँ जाकर मुड़ जाता है,
जहाँ पुरानी तिरछी गैसबत्ती लटक रही है और वह चुपके-चुपके जाली के पास जाता है,
जिसके उस पार वह खूबसूरत, मगर अभी नंगे उद्यान देखता है; उसके बीच में एक ओर से
चाँद की रोशनी में चमकती तीन पटों की खिड़की वाली और दूसरी ओर से अँधेरे से घिरी उस
विशेष आलीशान इमारत को देखता है..
प्रोफेसर को मालूम नहीं है कि उसे उस जाली के पास कौन खींचकर ले
जाता है, और उस इमारत में कौन रहता है; मगर वह इतना जानता है कि इस पूर्णमासी को
उसे अपने आप से संघर्ष नहीं करना पड़ता. इसके अलावा उसे यह भी मालूम है कि जाली से
घिरे इस उद्यान में वह हमेशा एक ही चीज़ देखता है.
वह बेंच पर बैठे अधेड़ उम्र के मज़बूत, दाढ़ी वाले आदमी को देखता है,
जिसने चश्मा पहन रखा है और जिसके नाक-नक्श कुछ-कुछ सुअर जैसे हैं. इवान
निकोलायेविच उस इमारत में रहने वाले इस व्यक्ति को हमेशा सोच में डूबे पाता है ,
चाँद की ओर देखते हुए. इवान निकोलायेविच को मालूम है कि चाँद को काफी देर देखने के
बाद बैठा हुआ व्यक्ति किनारे वाली खिड़की की ओर देखने लगेगा, मानो इंतज़ार कर रहा हो
कि अब वह फट् से खुलेगी और उसमें से कोई अजीब-सा दृश्य बाहर आएगा.
आगे की सब घटनाएँ इवान निकोलायेविच को ज़बानी याद हैं. अब जाली में
थोड़ा छिपकर बैठने की ज़रूरत है, क्योंकि बेंच पर बैठा हुआ आदमी बेचैनी से सिर को
इधर-उधर हिलाने लगेगा, और चकाचौंध आँखों से हवा में कुछ पकड़ने की कोशिश करने
लगेगा, फिर वह उत्तेजित होकर खिलखिलाएगा और हाथ नचा-नचाकर किसी मीठे दर्द में डूब
जाएगा और इसके बाद वह ज़ोर-ज़ोर से बड़बड़ाएगा, “वीनस! वीनस!...आह, मैं, बेवकूफ!”
“हे भगवान, हे भगवान!”
इवान निकोलायेविच फुसफुसाने लगेगा और जाली के पीछे छिपे-छिपे अपनी जलती आँखें उस
रहस्यमय अजनबी पर टिकाए रखेगा – यह था चाँद का एक और शिकार, “हाँ, यह भी एक और
शिकार है, मेरी तरह.”
और बैठा हुआ आदमी कहता रहेगा, “आह, मैं पागल! मैं उसके साथ क्यों न
उड़ गया? क्यों डर गया? किससे डर गया, बूढ़ा गधा! अपने लिए सर्टिफिकेट लेता रहा! अब
सहते रहो, बूढ़े सुअर!”
ऐसा तब तक चलता रहेगा जब तक उस इमारत के अँधेरे भाग में खिड़की नहीं
खुलेगी, उसमें कोई सफेद साया नहीं तैरेगा और एक कर्कश जनानी आवाज़ नहीं गूँजेगी, ”
निकोलाय इवानोविच, कहाँ हो तुम? यह क्या कल्पना है! क्या मलेरिया होने देना है? आओ
चाय पीने!”
इस पर बैठा हुआ व्यक्ति जाग उठेगा और बनावटी आवाज़ में कहेगा,
“ठण्डी हवा, ठण्डी हवा खाना चाहता था, मेरी जान! हवा कितनी सुहानी है!...”
वह बेंच से उठेगा, नीचे बन्द होती खिड़की पर घूँसा तानेगा और
धीरे-धीरे अपने घर में तैर जाएगा.
“झूठ बोलता है वह, झूठ! हे
भगवान, कितना झूठ!” जाली से दूर हटते हुए इवान निकोलायेविच बड़बड़ाता है, “उसे इस
बगीचे में हवा नहीं खींच लाती; इस बसंती पूनम को वह चाँद में, बाग में और ऊपर
ऊँचाई पर कुछ देखता है. आह, उसके इस भेद को जानने के लिए मैं कुछ भी दे देता, बस
यह जानने के लिए कि उसने किस वीनस को खोया है और अब वह बेकार हवा में हाथ घुमाते
हुए उसे पकड़ने की कोशिश करता है?”
और प्रोफेसर एकदम बीमार-सा घर लौटता है. उसकी बीवी ऐसा दिखाती है,
मानो उसकी हालत न देख रही हो, और उसे जल्दी-जल्दी बिस्तर में सुलाने लगती है. मगर
वह खुद नहीं लेटती, बल्कि लैम्प के पास एक किताब लेकर बैठ जाती है, उदास आँखों से
सोने वाले को देखती रहती है. उसे मालूम है कि सुबह इवान निकोलायेविच एक पीड़ा भरी
चीख मारकर उठेगा, रोने लगेगा और इधर-उधर घूमने लगेगा. इसीलिए उसने पहले से ही
स्प्रिट में डूबी इंजेक्शन की सिरिंज और गाढी चाय के रंग की दवा लैम्प वाले टेबुल
की मेज़पोश पर तैयार रखी है.
यह गरीब औरत, मरीज़ के साथ बँधी, अब चैन से सो सकती है, बिना किसी
भय के. अब इवान निकोलायेविच सुबह तक सोता रहेगा, उसके चेहरे पर होंग़े सुख के भाव
और वह सपने देखता रहेगा उदात्त विचारों वाले, सौभाग्यशाली, जिनके बारे में पत्नी
को कुछ भी मालूम नहीं.
वैज्ञानिक को पूर्णमासी की रात को पीड़ा भरी चीख के साथ हमेशा एक ही
चीज़ जगाती है. वह देखता है – बिना नाक वाला जल्लाद, जो उछलकर चीखते हुए भाले की
नोक वध-स्तम्भ से जकडे हुए बेसुध कैदी गेस्तास के सीने में चुभोता है. मगर जल्लाद
इतना भयानक नहीं है जितना कि सपने में दिखाई दे रहा अप्राकृतिक प्रकाश, जो किसी
ऐसे बादल से आ रहा है, जो उबलता हुआ भूमि पर छलकता रहता है, जैसा पृथ्वी पर आने
वाली विपत्तियों से पूर्व होता है.
इंजेक्शन के बाद सोने वाले के सामने सब कुछ बदल जाता है. बिस्तर से
लेकर खिड़की तक चौड़ा चाँद का रास्ता बिछ जाता है और इस रास्ते पर चलने लगता है
रक्तवर्णी किनार वाला सफेद अंगरखा पहना आदमी और जाने लगता है चाँद की ओर. उसके साथ
एक नौजवान भी चल रहा था, फटे-पुराने कपड़े पहने, बिगाड़े हुए चेहरे वाला. चलने वाले
किसी बात पर जोश में बहस कर रहे हैं, बातें कर रहे हैं, कुछ कहना चाह रहे हैं.
“हे भगवान, भगवान!” अंगरखा
पहने व्यक्ति ने अपना कठोर चेहरा अपने साथी की ओर फेरते हुए कहा, “कैसा मृत्युदण्ड
था! कितना निकृष्ट! मगर तुम, कृपया मुझे बताओ,” उसके चेहरे पर याचना के भाव छा गए,
“मृत्युदण्ड तो दिया ही नहीं गया! मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ, मुझे सच-सच बताओ,
नहीं दिया गया न?”
“बेशक, नहीं दिया गया,”
उसके साथी ने भर्राई आवाज़ में जवाब दिया, “तुम्हें ऐसा भ्रम हुआ था.”
“क्या तुम कसम खाकर कह
सकते हो?” अंगरखे वाले ने ताड़ने के भाव से पूछा.
“कसम खाकर कहता हूँ,” साथी
ने जवाब दिया और उसकी आँखें न जाने क्यों मुस्कुराने लगीं.
“और मुझे कुछ नहीं चाहिए,”
फटी आवाज़ में अंगरखे वाला चिल्लाया और वह चाँद की ओर ऊपर-ऊपर जाने लगा, अपने साथी
को अपने साथ लिए. उनके पीछे-पीछे शान से चल रहा था खामोश और विशालकाय, तीखे कानों
वाला कुत्ता.
तब चाँद का प्रकाश उफनने लगता है, उसमें से चाँदी की नदी चारों
दिशाओं में बहने लगती है. चाँद राज करते हुए खेल रहा है, चाँद नृत्य करते हुए
आँखें मिचका रहा है. तब उस धारा में से एक अद्भुत सुन्दरी प्रकट होती है और वह
इवान की ओर सहमे हुए दाढ़ी वाले को खींचते हुए लाती है. इवान निकोलायेविच फौरन उसे
पहचान लेता है. यह – वही एक सौ अठारह नम्बर है, उसका रात का मेहमान. इवान
निकोलायेविच सपने में ही उसकी ओर हाथ बढ़ाता है और अधीरता से पूछता है, “तो, शायद
ऐसे ही सब खत्म हुआ?”
“ऐसे ही खत्म हुआ, मेरे
चेले,” एक सौ अठारह नम्बर जवाब देता है, और वह सुन्दरी इवान के पास आकर कहती है,
“हाँ, बेशक, ऐसे ही. सब खत्म हुआ, और सब खत्म हो रहा है...और मैं तुम्हारे माथे को
चूमूँगी, तब तुम्हारे साथ ही सब कुछ वैसे ही होगा, जैसे होना चाहिए.”
वह इवान की झुकती है और उसके माथे को चूमती है, इवान उसकी ओर
खिंचता है और उसकी आँखों में देखने लगता है; मगर वह पीछे-पीछे हटते हुए अपने साथी
के साथ चाँद की ओर जाने लगती है.
तब चाँद फैलने लगता है, अपनी किरणें सीधे इवान पर डालने लगता है;
वह चारों दिशाओं में प्रकाश बिखेर रहा है, कमरे में चाँद की रोशनी लबालब भर जाती
है, रोशनी हिलोरें लेती है, ऊपर उठती है और बिस्तर को डुबो देती है. तभी इवान
निकोलायेविच सुख की नींद सोता है.
सुबह वह उठता है चुप-सा, मगर पूरी तरह शांत और स्वश्थ. उसकी बेचैन
यादें शांत हो जाती हैं और अगली पूर्णमासी तक प्रोफेसर को कोई भी परेशान नहीं
करता. न तो गेस्तास का बिना नाक वाला हत्यारा, न ही जूडिया का क्रूर पाँचवाँ
न्यायाधीश अश्वारोही पोंती पिलात.”
बहुत
ही शानदार है उपसंहार.... पूरे उपन्यास का सिरमौर!
बुल्गाकोव
ने हर पात्र के अंजाम के बारे में बताया है....पाठक भी तृप्त होकर उपन्यास को बन्द
करते हैं. जिसने इसे पहली बार पढ़ा है उसे पता नहीं है कि वह इसे बार-बार पढ़ेगा
!!!!!