अध्याय – 2.2
हमने देखा कि पोंती पिलात सिर दर्द से परेशान है.
इस सिर दर्द की वजह है लाल गुलाबों से आती हुई सुगन्ध जो हर तरफ व्याप्त थी.
”मास्टर और मार्गारीटा “ में आप कई बार देखेंगे
कि बुल्गाकोव सिर की ओर – याने विचार प्रक्रिया की ओर ध्यान नहीं देना चाहते और कई बार आपको ऐसे वाक्य पढ़ने को मिलेंगे, जैसे : ‘सिर क्यों?’, ‘सिर का यहाँ क्या काम?’, ‘सिर की यहाँ कोई
ज़रूरत नहीं है!’
व्लादीमिर मायाकोव्स्की ने भी अपने नाटक ‘खटमल’
में एक दृश्य लिखा है जिसमें बाज़ार में मछली बेचे जाने का दृश्य है. दो दुकानदार
एक ही तरह की मछली अलग-अलग दामों पर बेच रहे हैं. पूछताछ करने से पता लगता है कि सस्ती
मछली लम्बी भी है. दुकानदार द्वारा अपनी सफ़ाई में यह कहा जाता है कि मछली का सिर
काट दो, लम्बाई बराबर हो जाएगी. सिर की ज़रूरत ही क्या है?
तात्पर्य यह कि तत्कालीन सोवियत संघ में किसी भी
प्रकार के बौद्धिक कार्यकलापों का स्वागत नहीं होता था . सिर्फ संख्या की, सिर्फ
हुक्म का पालन करने वाले रोबो की ज़रूरत थी?
अध्याय 2 में जो व्यक्ति हमारा ध्यान आकर्षित
करता है वह है मार्क क्रिसोबोय. अंग्रेज़ी अनुवाद होगा Ratslayer
और हिन्दी अनुवाद – चूहामार.
उन दिनों एक अभियान चला था खेतों से चूहों को, याने समाज से घातक तत्वों को ख़त्म करने का. क्रिसोबोय उसी विभाग से था जो समाज के लिए ख़तरनाक समझे जाने वाले व्यक्तियों का सफ़ाया करता था.