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शनिवार, 18 जनवरी 2014

The Fateful Eggs - 9

अध्याय 9
ज़िन्दा पॉरिज

दुगीनो स्टेशन की शासकीय सुरक्षा एजेंसी (गेपेऊ) का एजेंट शूकिन एक बहुत बहादुर इन्सान था. उसने कुछ सोचते हुए अपने लाल बालों वाले साथी पोलाइतिस से कहा:
“तो फिर, जाएँगे. हाँ? मोटरसाइकल निकाल...” फिर कुछ देर चुप रहने के बाद उस आदमी से मुख़ातिब होते हुए, जो बेंच पर बैठा था, वह आगे बोला, “आप बन्सी तो रख दीजिए.”
मगर दुगीनो की गेपेऊ की इमारत में बेंच पर बैठे सफ़ेद बालों वाले, थरथर काँपते उस आदमी ने बन्सी नहीं रखी, बल्कि रोने और बुदबुदाने लगा. तब शूकिन और पोलाइतिस समझ गए कि बन्सी को उसके हाथों से खींचकर अलग करना पड़ेगा. उँगलियाँ उससे चिपक गई थीं. शूकिन ने, जो बेहद ताक़तवर था, एक एक करके सारी उँगलियाँ मोड़-मोड़ कर दूर हटाईं. तब बन्सी को मेज़ पर रख दिया गया.
ये हो रहा था मान्या की मौत के दूसरे दिन तेज़ धूप वाली सुबह को.
 “आप हमारे साथ जाएँगे,” शूकिन ने अलेक्सान्द्र सिम्योनोविच से मुख़ातिब होते हुए कहा, “हमें दिखाएँगे कि कहाँ और क्या-क्या हुआ था.” मगर रोक्क डर के मारे उससे दूर हट गया और उसने हाथों से स्वयँ को यूँ ढाँक लिया जैसे किसी भयानक दृश्य से अपने आप को बचा रहा हो.           
 “मगर, दिखाना तो पड़ेगा,” संजीदगी से पोलाइतिस ने जोड़ा.
 “नहीं, छोड़ो उसे. देख रहे हो न, कि आदमी अपने बस में नहीं है.”
 “ मुझे मॉस्को भेज दीजिए,” अलेक्सान्द्र सिम्योनोविच ने रोते हुए विनती की.
 “क्या आप कभी सोव्खोज़ वापस नहीं लौटेंगे?”
मगर रोक्क ने जवाब के बदले फिर से स्वयँ को हाथों से ढाँक लिया, और उसकी आँखों से भय टपकने लगा.
 “ठीक है, कोई बात नहीं,” शूकिन ने फ़ैसला कर लिया, “आप वाक़ई में सही हालत में नहीं हैं...मैं देख रहा हूँ. अभी थोड़ी देर में एक्स्प्रेस ट्रेन जाने वाली है, उसमें बैठ कर आप चले जाईये.”
इस बीच, जब तक स्टेशन के गार्ड ने अलेक्सान्द्र सिम्योनोविच को पानी पिलाया, जिसे उसने नीले बदरंग मग पर दाँत किटकिटाते हुए पी लिया, शूकिन और पोलाइतिस ने कुछ सलाह-मशविरा कर लिया. पोलाइतिस का कहना था कि असल में कुछ भी नहीं हुआ है, सिर्फ रोक्क एक मानसिक रोगी है और उसे कोई भ्रम हुआ है. जबकि शूकिन का विचार था कि ग्राचेव्का शहर से, जहाँ आजकल सर्कस आई हुई है, कोई अजगर भाग निकला है. उनकी संदेहास्पद फुसफुसाहट को सुनकर, रोक्क उठ खड़ा हुआ. वह कुछ संभल चुका था, और उसने बाइबल के किसी प्रवर्तक की तरह हाथ फैलाते हुए कहा:
 “मेरी बात सुनिए. सुनिए. आप मेरी बात पर यक़ीन क्यों नहीं कर रहे हैं? वो थी. कहाँ है मेरी बीबी?”
शूकिन ख़ामोश और संजीदा हो गया और उसने फ़ौरन ग्राचेव्का को कोई टेलिग्राम भेज दिया. तीसरे एजेंट को शूकिन के निर्देशों के अनुसार, लगातार अलेक्सान्द्र सिम्योनोविच के पास बने रहना था और उसके साथ मॉस्को जाना था. ख़ुद शूकिन और पोलाइतिस अभियान पर जाने की तैयारी करने लगे.           
उनके पास सिर्फ एक ही इलेक्ट्रिक रिवॉल्वर था, मगर यह भी पर्याप्त सुरक्षा प्रदान कर सकता था. पचास गोलियों की क्षमता वाला सन् ’27 का मॉडॆल, नज़दीकी रेंज के लिए फ्रेंच टेक्नोलॉजी का बेहतरीन नमूना, सिर्फ सौ कदम की दूरी से मार गिराता था, मगर दो मीटर के व्यास की रेंज का था, और इस घेरे के भीतर हर ज़िन्दा चीज़ का ख़ात्मा कर सकता था. निशाना चूक जाना बेहद मुश्किल था. शूकिन ने यह शानदार इलेक्ट्रिक खिलौना पहन लिया, जबकि पोलाइतिस 25 गोलियों वाली कमर में लटकाने वाली साधारण मशीन-गन से लैस हो गया, गोलियों का चार्जर ले लिया, और वे एक मोटरसाइकल पर, सुबह की ओस और ठण्डक में राजमार्ग से सोव्खोज़ की ओर निकल पड़े. स्टेशन और सोव्खोज़ के बीच की दूरी को, जो 20 मील थी, मोटरसाइकल ने पन्द्रह मिनट में पार कर लिया (रोक्क पूरी रात चलता रहा था, मौत के डर से रास्ते के किनारे वाली घास में बार-बार छुपते हुए), और जब सूरज काफ़ी तपने लगा, तो पहाड़ी पर, जिसे घेरते हुए तोप नदी बह रही थी, हरियाली में स्तम्भों वाला शक्करनुमा महल दिखाई दिया. चारों और मृतप्राय सन्नाटा था. सोव्खोज़ के ठीक प्रवेश-द्वार पर एजेंट्स ने गाड़ी पर जाते हुए एक किसान को पीछे छोड़ दिया. किन्हीं बोरों से लदा-फंदा, वह धीरे धीरे जा रहा था और जल्दी ही पीछे छूट गया. मोटरसाइकल ने पुल पार किया, और पोलाइतिस ने भोंपू बजाया ताकि किसी को बुला सके. मगर दूर, कोन्त्सोव्का के पागल कुत्तों के सिवाय कहीं से भी, किसी ने भी कोई जवाब नहीं दिया. अपनी गति को कम करते हुए मोटरसाइकल जंग लगे सिंहों के गेट की ओर आई. धूल धूसरित, पीले गेटर्स पहने एजेंट्स उछल कर नीचे उतरे, मोटरसाइकल को जंगले के पास खड़ा करके चेन वाला ताला लगाया और कम्पाऊण्ड में घुसे. सन्नाटे ने उन्हें चौंका दिया.
 “ऐ, कोई है!” शूकिन ज़ोर से चिल्लाया.
मगर उसकी दमदार आवाज़ का किसी ने जवाब नहीं दिया. अधिकाधिक चौंकन्ने होते हुए एजेंट्स ने कम्पाऊण्ड का चक्कर लगाया. पोलाइतिस ने त्यौरियाँ चढ़ा ली. शूकिन बड़ी गंभीरता से, अपनी सफ़ेद भौंहे चढ़ाए निरीक्षण करने लगा. किचन की बन्द खिड़की से झाँका तो पाया कि वहाँ पर कोई नहीं है, मगर पूरा फर्श पर प्लेटों के सफ़ेद टुकड़ों से अटा पड़ा था.
“तू समझ रहा है ना, उनके यहाँ कुछ तो ज़रूर हुआ है. अब मैं देख सकता हूँ. भयानक हादसा,” पोलाइतिस बुदबुदाया.
 “ऐ, वहाँ कौन है! ऐ!,” शूकिन चिल्लाया, मगर किचन के गुम्बज़ से टकराकर उसकी आवाज़ लौट आई.
”शैतान ही जाने!” शूकिन बड़बड़ाया. “वो एकदम सबको तो निगल नहीं ना सकता था. या फिर भाग गए हैं. घर के अन्दर चलते हैं.”
महल के स्तम्भों वाले बरामदे का दरवाज़ा पूरी तरह खुला हुआ था, और उसमें निपट ख़ामोशी थी. एजेंट्स अटारी पर भी गए, सारे दरवाज़े खटखटाए और खोले, मगर कोई ख़ास बात नहीं मिली और वे मृतप्राय पोर्च से निकल कर फिर से कम्पाऊण्ड में आ गए.
 “चारों ओर एक चक्कर लगाते हैं. ग्रीन-हाऊस की ओर,” शूकिन ने कहा, “सब कुछ ठीक से देख लेंगे, और वहाँ से फोन भी कर सकते हैं.”
क्यारियों को पार करके, ईंटोंवाले रास्ते से होते हुए एजेंट्स पिछले आँगन में पहुँचे, उसे पार किया और उन्हें ग्रीन-हाऊस के दमकते शीशे दिखाई दिए.
 “थोड़ा रुक,” शूकिन ने फुसफुसाकर कहा और कमर से रिवॉल्वर निकाल लिया. पोलाइतिस सतर्क हो गया और उसने मशीनगन निकाल ली. ग्रीन हाऊस में और कहीं उसके पीछे से एक विचित्र और गरजती हुई आवाज़ आ रही थी. ऐसा लग रहा था कि कहीं कोई इंजिन फुफकार रहा है. ज़ऊ-ज़ऊ...ज़उ-ज़ऊ...स्-स्-स्-स्... ग्रीन हाऊस फुफकार रहा था.
 “देख, सावधानी से,” शूकिन फुसफुसाया, और, एड़ियों की आवाज़ न करने की कोशिश करते हुए, एजेंट्स शीशों के बिल्कुल पास आ गए और उन्होंने ग्रीन हाऊस में झाँका.
पोलाइतिस फ़ौरन पीछे हटा, और उसका चेहरा विवर्ण हो गया. शूकिन का मुँह खुल गया और वह हाथ में रिवॉल्वर समेत जम गया.
पूरा ग्रीन हाऊस कीड़ों के पॉरिज जैसा खदखदा रहा था. छल्ले बनाते हुए और बिगाड़ते हुए, फुफकारते हुए और पलटते हुए, गोल-गोल घूमते हुए और सिरों को हिलाते हुए, ग्रीन हाऊस के फर्श पर विशालकाय साँप रेंग रहे थे. अंडों के टूटे हुए छिलके फर्श पर बिखरे थे और उनके शरीरों के नीचे चूर-चूर हो रहे थे. ऊपर काफ़ी पॉवरफुल इलेक्ट्रिक बल्ब जल रहा था, और इसके कारण ग्रीन हाऊस का भीतरी भाग एक अजीब डरावने प्रकाश से चमक रहा था. फर्श पर फोटोग्राफिक कैमेरों जैसे काले तीन बड़े बडे डिब्बे झाँक रहे थे, जिनमें से दो जो टेढ़े हो गए थे और सरका दिए गए थे, बुझ चुके थे, मगर तीसरे में प्रकाश का एक छोटा सा गहरा लाल धब्बा चमक रहा था. सभी आकारों के साँप तारों पर रेंग रहे थे, फ्रेम्स से लिपट रहे थे, रेंगते हुए छत पर बने छेदों से बाहर निकल रहे थे. ख़ुद इलेक्ट्रिक बल्ब पर एक बिल्कुल काला, धब्बों वाला, कई हाथ लम्बा साँप लटक रहा था, और उसका सिर बल्ब से पेंडुलम की भाँति झूल रहा था. इस फुफकार में कुछ झुनझुने जैसी आवाज़ भी थी, ग्रीन हाऊस से विचित्र, सड़ी हुई, तालाब जैसी दुर्गन्ध आ रही थी. और एजेंट्स ने देखे धूल भरे कोनों में बिखरे, धुंधले-से सफ़ेद अण्डों के ढेर, और एक विचित्र जलचर पक्षी, जो डिब्बों के पास निश्चल पड़ा था, और देखा दरवाज़े के पास भूरे कपड़ों में एक आदमी का मृत शरीर, जो संगीन के पास पड़ा था.
 “पीछे,” दाएँ हाथ से पोलाइतिस को पीछे दबाते हुए और बाएँ हाथ में रिवॉल्वर ऊपर को उठाए शूकिन चीख़ा और पीछे हटने लगा. ग्रीन हाऊस में सनसनाती बिजली की हरी लकीर फेंकते हुए उसने नौ बार फ़ायर किए. आवाज़ भयानक रूप से गूंजी, और शूकिन की गोलीबारी के जवाब में पूरे ग्रीन हाऊस में बदहवास हलचल होने लगी, और सभी छेदों से चपटे सिर झाँकने लगे. ये गड़गड़ाहट फ़ौरन ही पूरे सोव्खोज़ में फैल गई और दीवारों पर बिजलियों की चमक नाचने लगी. ‘चाख्-चाख्-चाख्-चाख् – पोलाइतिस पीछे हटते हुए फ़ायर किए जा रहा था. पीठ के पीछे एक अजीब चार पैरों वाली सरसराहट सुनाई दी, और पीठ के बल गिरते हुए पोलाइतिस अचानक भय से चिल्लाया. मुड़ी हुई टाँगों वाला, भूरे-हरे रंग का, भारी-भरकम नुकीले थोबड़े वाला, दाँतेदार पूँछ वाला, भयानक आकार की छिपकली जैसा प्राणी गोदाम के कोने से बाहर आया और, तैश में पोलाइतिस का पैर काट कर, उसे ज़मीन पर गिरा दिया.
 “बचाओ,” पोलाइतिस चीखा, और तभी उसका दायाँ हाथ उस प्राणी के जबड़े में जा गिरा और चूर-चूर हो गया, बाएँ हाथ को मज़बूती से उठाने की कोशिश करते हुए वह रिवॉल्वर को ज़मीन पर घुमाने लगा. शूकिन पलटा और हरकत में आ गया. एक बार उसने फ़ायर किया मगर गोली किनारे से निकल गई क्योंकि उसे डर था कि कहीं अपने साथी को ही न मार दे. दूसरी बार उसने ग्रीन हाऊस की दिशा में गोली चलाई, क्योंकि वहाँ से, साँपों के छोटे-छोटे सिरों के बीच से एक विशालकाय, ज़ैतूनी सिर बाहर निकला, जिसका धड़ सीधे उसकी ओर उछला. इस फ़ायर से उसने इस महाकाय साँप को मार डाला और फिर से, पोलाइतिस के नज़दीक उछलते हुए और घूमते हुए, जो मगरमच्छ के जबड़े में अधमरा हो गया था, एक जगह चुनी, जहाँ गोली चलाई जा सके, जिससे एजेंट को धक्का पहुँचाए बिना ख़तरनाक सरपट प्राणी को मार डाले. आख़िरकार उसे इसमें सफ़लता मिल ही गई. चारों ओर हरा प्रकाश बिखेरते हुए इलेक्ट्रिक रिवॉल्वर से दो बार फ़ायर हुए, और मगरमच्छ, उछलकर सीधा तन गया, पत्थर की तरह निश्चल हो गया और उसने पोलाइतिस को छोड़ दिया.                                                   
उसकी बाँह से खून बह रहा था, मुँह से खून बह रहा था, और उसने, बाएँ, तन्दुरुस्त हाथ पर मुड़कर टूटे हुए पैर को सीधा किया. उसकी आँखें बुझ रही थीं.
 “शूकिन...भाग...” वह हिचकियाँ लेते हुए बुदबुदाया.
शूकिन ने ग्रीन हाऊस की दिशा में कुछ और फ़ायर किए, उसके कई शीशे टूट कर बिखर गए. मगर तभी पीछे से, गोदाम की खिड़की से एक भयानक, ज़ैतूनी और लचीली कुण्डली, उछल कर बाहर आई, अपने पाँच हाथ के शरीर से कम्पाऊण्ड को पूरा घेरते हुए उसे पार किया, और पल भर में शूकिन के पैरों से लिपट गई. वह ज़मीन पर गिर पड़ा, और शानदार रिवॉल्वर उछल कर एक ओर को जा गिरा. शूकिन पूरी ताक़त से चीख़ा, फिर उसका दम घुट गया, फिर कुण्डली के छल्लों ने सिर्फ सिर को छोड़कर उसे पूरी तरह से ढाँक लिया. छल्ला एक बार सिर के ऊपर से गुज़रा उसकी खोपड़ी फाड़ते हुए, और तब, सिर चटक गया. इसके बाद सोव्खोज़ में एक भी फ़ायर की आवाज़ नहीं सुनाई दी. चारों ओर व्याप्त फुफकारती आवाज़ हर चीज़ निगल गई. और दूर कोन्त्सोव्का से हवा पे सवार एक विलाप ने उसे जवाब दिया, मगर अब यह समझना भी मुश्किल था कि ये किसका विलाप है, कुत्तों का या इन्सान का.


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