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शनिवार, 18 अगस्त 2012

Discussion on Master&Margarita(Hindi) - 15



अध्याय – 15

गुरुवार की शाम को, जब निकानोर इवानोविच अपने फ्लैट में विदेशी मुद्रा छिपाने के जुर्म में गिरफ़्तार किया गया था, तो वह अंत में स्त्राविन्स्की के क्लिनिक में पहुँच गया.

मगर यहाँ उसे बिल्डिंग नं. 302 से सीधे नहीं लाया गया था. पहले उसे किसी और जगह  ले जाया गया था. बुल्गाकोव उस जगह का नाम नहीं बताते हैं, मगर यह स्पष्ट है कि यह ख़ुफ़िया पुलिस का दफ़्तर था. वे उससे सवाल पूछते हैं : पहले प्यार से और बाद में ऊँची आवाज़ में.
अचानक निकानोर इवानोविच को कमरे के एक कोने में अलमारी के पीछे कोरोव्येव दिखाई देता है जो उसे चिढ़ा रहा है.

निकानोर इवानोविच की मानसिक हालत इतनी ख़राब हो जाती है कि उसे सीधे स्त्राविन्स्की क्लिनिक ले जाना पड़ता है.

निकानोर इवानोविच को नींद का इंजेक्शन दिया जाता है और नींद में वह एक सपना देखता है...एक थियेटर में कोई मुकदमा चल रहा है...लोग अपनी छुपाई गई विदेशी मुद्रा ला-लाकर दे रहे हैं.

यहाँ हमें इस अध्याय की कुछ बातों पर गौर करना होगा:

 - पूछताछ करने वाले अधिकारी प्यार भरे और दहशत भरे तरीकों का इस्तेमाल करते हैं;
 - पूछताछ अक्सर खुले थियेटरों में होती थी और लोग अपने अपराध कबूल करते ही थे (स्टालिन के समय में ऐसा ही होता था);
 - बुल्गाकोव आँखों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं, यह कहते हुए कि आँखें आत्मा का दर्पण होती हैं. कोई अपराधी चाहे कितना ही मंजा हुआ क्यों न हो, जैसे ही उससे कोई सवाल पूछा जाता है, उसकी आँखें उसके मन में हो रही उथल-पुथल का संकेत ज़रूर दे देती हैं, चाहे उसका चेहरा एकदम निर्विकार क्यों न रहे, और तब वह पकड़ा जाता है;
 - बुल्गाकोव विदेशी मुद्रा के प्रति बढ़ते हुए आकर्षण को, जमाखोरी की प्रवृत्ति को दर्शाते हुए कहते हैं कि विदेशी मुद्रा से उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला है, अतः उचित यही है कि उसे सरकार को सौंप दिया जाए.

निकानोर इवानोविच ने हालाँकि कोई विदेशी मुद्रा नहीं ली थी, मगर रिश्वत तो उसने ली ही थी – यह सुनिश्चित करने के बाद कि कोई गवाह तो नहीं हैं. इसके बाद उसने इस धन को शौचालय के वेंटीलेटर में छुपा दिया. लोगों में आसानी से पैसा कमाने के प्रति, रिश्वत लेने के प्रति रुझान तो था, मगर वे डरते भी थे कि कोई देख तो नहीं रहा है, कोई गवाह तो नहीं है.

इस अध्याय का अंतिम परिच्छेद बड़ा सुन्दर है. शुक्रवार की सुबह-सुबह निकानोर इवानोविच एक सपना देखता है कि सूरज गंजे पहाड़ के पीछे छुप रहा है और इस पहाड़ को दुहरी सुरक्षा-पंक्तियों ने घेर रखा है...

और बुल्गाकोव पाठकों को हौले से वर्तमान समय से प्राचीन युग की ओर ले जाते हैं...येरूशलम में...

रविवार, 12 अगस्त 2012

Discussion on M&M(Hindi) - 14


अध्याय – 14

काले जादू के ‘शो’ के बाद हम वेरायटी की तरफ गए ही नहीं हैं, चलिए, देखें कि वहाँ क्या हो रहा है.
वित्तीय डाइरेक्टर रीम्स्की काले जादू के जादूगर से और उसके ‘शो’ से बहुत अप्रसन्न है. सिप्म्लेयारोव का भण्डाफोड़ होने के बाद वह अपने तनाव पर काबू न कर सका और ‘शो’ के बाद की औपचारिकताएँ पूरी किए बगैर अपने कक्ष में लौट आया. मेज़ पर पड़े जादुई नोटों की ओर देखते हुए वह विचारमग्न हो गया.
अचानक उसे पुलिस की कर्कश सीटी की आवाज़ सुनाई दी जो किसी प्रसन्नता का प्रतीक नहीं होती.
वह सादोवाया की ओर खुलने वाली खिड़की की तरफ गया और सड़क पर झाँकने लगा...लोग थियेटर से निकल रहे थे...एक जगह कुछ मनचले सीटियाँ बजा रहे थे, ठहाके लगा रहे थे, ताने कस रहे थे और एक महिला को छेड़ रहे थे. महिला बिचारी, जिसने फागोत की दुकान से बढ़िया फैशनेबुल ड्रेस पाई थी, अपने आप को बचाने की भरसक कोशिश कर रही थी, उसकी ड्रेस गायब हो चुकी थी और वह केवल अंतर्वस्त्रों में थी. कुछ दूर पर एक और ऐसा ही नज़ारा दिखाई दिया. कुछ मनचले महिला को अपनी इच्छित जगह पर ले जाने के लिए तत्पर थे.
घृणा से थूकते हुए रीम्स्की खिड़की से दूर हट गया और वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया. ज़िम्मेदारी का कड़वा घूँट पीने का क्षण आ गया था. उसे उन्हें  सूचित करना था : स्त्योपा के गायब होने के बारे में, इसके तुरंत बाद वारेनूखा के लापता हो जाने के बारे में; करेंसी नोटों की बरसात के बारे में; बेंगाल्स्की के साथ हुए दर्दनाक हादसे के बारे में; और सिम्प्लेयारोव वाले लफ़ड़े के बारे में.
मगर जैसे ही उसने टेलिफोन की तरफ हाथ बढ़ाया, वह खुद ही बजने लगा और एक कामुक आवाज़ ने रीम्स्की को धमकी देते हुए कहा कि वह कहीं भी फोन न करे.
अब कहीं फोन करने का सवाल ही नहीं उठता था, वह बैठा रहा – मगर तभी की-होल में चाभी अपने आप घूमने लगी, दरवाज़ा खुला और वारेनूखा भीतर आया.  
ख़ैर, इसके बाद क्या हुआ यह तो आपने पढ़ ही लिया होगा: वारेनूखा ने, जो वाक़ई में वारेनूखा था ही नहीं, बल्कि वारेनूखा के भेस में कोई शैतानी रूह थी, रीम्स्की को मार डालने की कोशिश की; कैसे एक नग्न औरत वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे में पिछली खिड़की से घुसने की कोशिश कर रही थी और कैसे उसे और वारेनूखा को, मुर्गे की बाँग सुनते ही हवा में तैरते हुए वहाँ से भाग जाना पड़ा...और कैसे रीम्स्की जो अचानक 80 साल के बूढे जैसा हो चुका था, अपने सफेद बालों वाले, हिलते हुए सिर को सम्भाले रेल्वे स्टेशन की ओर भागा और मॉस्को से गायब हो गया...
एक नज़र रीम्स्की के चरित्र पर डालें:
रीम्स्की बहुत अकलमन्द था. उसकी निरीक्षण शक्ति ग़ज़ब की थी; वह बेहद संवेदनशील था...बुल्गाकोव तो यहाँ तक कहते हैं कि उसकी संवेदनशीलता की विश्व के सर्वोतम सेस्मोग्राफ से तुलना की जा सकती है...उसे दरवाज़े के नीचे से कमरे में प्रवेश करती सड़ानयुक्त गंध का अनुभव हो रहा था; वह खिड़की से भीतर प्रवेश करने की कोशिश करती हुई नग्न महिला के सड़े हुए वक्ष को देख सकता था; उसे यह भी महसूस हो रहा था कि वह औरत भी सड़ानयुक्त गंध में लिपटी हुई है; उसने इस बात को भाँप लिया था कि कुर्सी में बैठे हुए वारेनूखा की परछाईं फर्श पर नहीं पड़ रही है और वह इस निष्कर्ष पर पहुँच चुका था कि यह वारेनूखा नहीं बल्कि कोई प्रेतात्मा है जो आधी रात के समय केवल स्त्योपा के दुःसाहस के किस्से सुनाने ही नहीं आया है, उसके दिमाग में ज़रूर कोई ख़तरनाक ख़याल है!
मैं फिर से दुहराऊँगी कि बुल्गाकोव एक बार फिर हमें मानो किसी 3D फिल्म में ले गए हैं, जहाँ हम सिर्फ पढ़ते ही नहीं हैं; केवल कल्पना ही नहीं करते हैं, बल्कि रीम्स्की के कमरे में हो रहे हर कार्यकलाप में भाग लेते हैं .
हम रीम्स्की के साथ-साथ एक जासूस की तरह विश्लेषण करते हैं कि वारेनूखा इतनी देर से, चोरों की तरह रीम्स्की के कमरे में क्यों घुसा जबकि वह यह सोच रहा था कि रीम्स्की घर जा चुका है? वह स्त्योपा लिखोदेयेव के बारे में झूठ पर झूठ क्यों बोले जा रहा था; वह टेबल लैम्प की छाँव से बाहर क्यों नहीं आ रहा था; वह रीम्स्की से अपना चेहरा क्यों छुपा रहा था; उसे चटखारे लेने और सिसकारियाँ भरने की गन्दी आदत कैसे पड़ गई थी; उसके गाल पर चोट का निशान कैसे आ गया था?
हम रीम्स्की के भीतर के मानसिक तनाव को, उसके भीतर हो रही  उथल-पुथल को महसूस करते हैं; हम महसूस करते हैं कि अपनी जान पर मंडलाते खतरे का अनुभव करते हुए उसके मस्तिष्क की नसें बस फटने ही वाली हैं; और हम राहत की साँस लेते हैं जब मुर्गा बाँग देता है और प्रेतात्माएं हवा में बिखर जाती हैं, घुल जाती हैं.
बुल्गाकोव ने इस उपन्यास ने कई बार कहा है कि पूरब से उजाला मॉस्को में आ रहा था...क्या ऐसा आभास नहीं होता कि पूरबी प्रज्ञा के बारे में उनकी कोई विशिष्ठ राय थी?
संक्षेप में यह एक अद्भुत अध्याय है, साँस रोके पढ़ता रहता है पाठक; अध्याय पूरा किए बिना उपन्यास छोड़ ही नहीं सकता!

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

Discussion on M&M (Hindi) - 13.3


अध्याय - 13.3

उपन्यास के एक बड़े अंश के एक पत्रिका में प्रकाशित होने के बाद विभिन्न अख़बारों में लेखक विरोधी लेखों की मानो बरसात होने लगी – वे सभी लेखक को कोस रहे थे जिसने येशू के औचित्य को सिद्ध करने की जुर्रत की थी.

दिन प्रतिदिन ऐसे लेखों की संख्या बढ़ती जाती थी और वे अधिकाधिक तीव्र निषेधात्मक, अधिकाधिक ज़हरीले, अधिकाधिक तीखे होते जाते थे...(अगर आपको बोरिस पास्तरनाक के उपन्यास  ‘डॉ. झिवागो’ से सम्बन्धित घटनाओं की याद है, तो आप शीघ्र ही इस प्रसंग को समझ जाएँगे).

पहले तो मास्टर इन लेखों पर हँस देता, उन्हें अनदेखा कर देता; मगर फिर उसे इन पर आश्चर्य होने लगा. वह समझ रहा था कि इन लेखों के लेखक वह नहीं कह रहे हैं जो वे कहना चाहते हैं. वे अधिकाधिक आक्रामक होते जा रहे थे, उनकी शैली अधिकाधिक धमकाने वाली होती जा रही थी; हर कोई मास्टर की कड़ी निन्दा कर रहा था.

तीसरी अवस्था थी भय की. मास्टर को हर चीज़ से डर लगने लगा. उसे अँधेरे से डर लगने लगा. उसे ऐसा लगता मानो अँधेरे में कोई ऑक्टोपस उसकी ओर बढ़ा आ रहा है जो अपने तंतुओं से उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा है. संक्षेप में यह मानसिक रोगी की अवस्था थी.

मास्टर की प्रियतमा भी बहुत बदल गई थी; वह बड़ी दुखी थी – अपने आप को कोसती रहती कि न वह उपन्यास के एक अंश को छपवाने की ज़िद करती और न ही मास्टर पर यह कहर टूट पड़ता.
मानसिक हताशा की ऐसी स्थिति में मास्टर ने एक दिन अपने उपन्यास को अँगीठी में झोंक दिया...मगर अचानक उसकी प्रियतमा रात को आ गई और उसने कुछ पन्नों को जलने से बचा लिया. उसने कहा कि वह अगली सुबह को अपने पति को सूचित करके उसके पास हमेशा के लिए आ जाएगी. तब तक के लिए वह मास्टर से विनती करती है कि वह कोई दुःस्साहस भरा कदम न उठाए.

यह हुआ अक्टूबर के मध्य में.

उसके जाने के बाद दरवाज़े पर टकटक हुई.

इसके पश्चात् मास्टर ने इवान को जो भी बताया वह पाठकों तक नहीं पहुँचा. वह इवान के कान में फुसफुसाकर कह रहा था...भय से काँप रहा था; उसकी आँखों में दहशत थी...

और जनवरी के मध्य में वह फिर अपने घर के आँगन में था, उसी कोट में जिसके बटन अब टूट चुके थे, ठण्ड से काँपते हुए.

मगर उसके घर में कोई और रहने आ गया था. वह एक कुत्ते से डर गया जो उसके पैरों के बीच आ गया था; उसने ट्राम के नीचे अपनी जान दे देने का इरादा किया और ट्राम की पटरियों की ओर चल पड़ा. मगर वह निकट आती हुई ट्राम से भी डर गया और वहाँ से भाग निकला.

एक ट्रक ड्राइवर को, जो इसी तरफ आ रहा था, उस पर दया आ गई और वह उसे स्त्राविन्स्की क्लिनिक ले आया.

यहाँ उस पर उपचार किया गया, उसकी जमी हुई उँगलियों को ठीक कर दिया गया.

इस क्लिनिक में वह पिछले चार महीनों से है, और अब उसे यहाँ उतना बुरा नहीं लगता.

जब इवान ने पूछा कि उसने अपनी प्रियतमा को अपने बारे में खबर क्यों नहीं दी, तो मास्टर जवाब देता है कि वह उसे यह बताकर दुखी नहीं करना चाहता कि वह स्त्राविन्स्की के क्लिनिक में है और उस पर मानसिक उपचार किए जा रहे हैं.

अपने उपन्यास की याद से ही वह सिहर उठता है...

जब इवान उससे यह बताने की विनती करता है कि पोंती पिलात और येशुआ-हा-नोस्त्री का आगे क्या हुआ तो मास्टर जवाब देता है कि जो उसे पत्रियार्शी पार्क में मिला था वही इस सवाल का भली-भाँति जवाब दे सकता है.

जब वे बातें कर रहे थे तो अस्पताल के कॉरीडोर में दो बार गहमा-गहमी हुई. मास्टर जाकर देख आया और उसने बताया कि कमरा नं. 119 में एक लाल मोटे को लाया गया है जो रोशनदान में छुपाए गए किन्हीं नोटों के बारे में बात कर रहा है; और कमरा नं. 120 में एक व्यक्ति को लाया गया है जो अपना सिर लौटाने के बारे में प्रार्थना कर रहा है.

आधी रात गुज़र चुकी थी जब इवान को छोड़कर मास्टर वापस गया.

गुरुवार समाप्त हो गया है...मगर हमें अभी तक यह मालूम नहीं है कि उस रात मॉस्को में और क्या क्या हुआ.

जाते-जाते मास्टर ने यह कहा कि इन्सान को बड़ी बड़ी योजनाएँ नहीं बनानी चाहिए, “मैं पूरी दुनिया देखना चाहता था, मगर मैं यहाँ आ गया. दुनिया का यह हिस्सा बुरा तो नहीं है, मगर वह सबसे बेहतरीन भी नहीं है.”

असल में बुल्गाकोव स्वयँ सोवियत संघ से बाहर जाना चाहते थे, मगर उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी गई और उन्हें पूरी उम्र सोवियत संघ में ही रहना पड़ा.

बुधवार, 8 अगस्त 2012

Discussion on Master&Margarita - 13.2


    अध्याय -13.2

अजनबी अपनी कहानी इवान को सुनाता है जो किसी साधारण कहानी की तरह नहीं है.

इतिहास में शिक्षा पूरी करने के बाद उसने एक म्यूज़ियम में क़रीब दो वर्ष काम किया. वहाँ उसे एक लॉटरी का टिकट दिया गया, और संयोगवश इस टिकट पर उसने एक लाख रूबल्स जीत लिए. यह एक बहुत बड़ी धनराशि थी. एक लाख रूबल्स जीतने के बाद जो सबसे पहला काम उसने किया वो ये कि म्यास्नित्स्काया रास्ते वाला अपना कमरा छोड़ दिया और अर्बात पर एक मकान किराए पर लेकर रहने लगा.

यह एक बड़ा ख़ूबसूरत और आरामदेह मकान था. प्रवेश कक्ष, सिंक के साथ; एक छोटा कमरा जिसकी खिड़कियाँ बगीचे में खुलती थीं और एक बड़ा हॉल, फायरप्लेस के साथ. फायरप्लेस में हमेशा आग जलती रहती; घर में हमेशा गर्माहट रहती.

उसने कई सारी किताबें खरीद लीं और पोंती पिलात तथा येशुआ–हा-नोस्त्री के बारे में उपन्यास लिखने लगा (वही जो लाल किनारी वाले सफेद चोगे में पिलात के हिरोद के महल की छत पर प्रवेश से आरंभ होता है). उपन्यास तेज़ी से आगे बढ़ रहा था, पिलात अंत की ओर भाग रहा था...सर्दियाँ ख़त्म हो चुकी थीं; बहार के दिन आ गए और बगीचे में लिण्डन और लिली के वृक्षों ने हरियाली के वस्त्र पहन लिए.
लेखक ने (वह उपन्यास में कहीं भी अपना नाम अथवा उपनाम नहीं बताता) अपना नाम और उपनाम त्याग दिया है, ज़िन्दगी की और चीज़ों की तरह...अब वह है सिर्फ मास्टर  और उसके व्यक्तित्व की पहचान है काले रंग की वह टोपी जिस पर पीले रेशम से M अक्षर कढ़ा हुआ है. यह अक्षर उसकी प्रियतमा ने बनाया है. उसीने उसे यह नाम दिया था – मास्टर.

इस अध्याय में मास्टर की प्रियतमा का नाम भी नहीं बताया गया है. मास्टर उससे एक शाम को त्वेर्स्काया रास्ते पर मिला था जब वह हाथों में पीले घिनौने फूल लिए जा रही थी. यह घटना उसके लिए एक लाख रूबल्स का इनाम जीतने से भी बढ़कर थी.

इस पीले रंग के कारण वह उसके पीछे-पीछे चलने लगा. अचानक वह एक गली में मुड़ी और उसकी ओर देखा.

वह उसके पीछे-पीछे चलता रहा, अचानक वह रुकी और उससे पूछने लगी कि क्या उसे ये फूल पसन्द हैं. मास्टर के इनकार करने पर उसने वे फूल नाली में फेंक दिए. वे ख़ामोश चलते रहे, फिर उसने अपने खूबसूरत हाथ में मास्टर का हाथ ले लिया और वे साथ-साथ चलने लगे. ..क्रेमलिन की मॉस्को नदी वाली दीवार तक पहुँचे और दूसरे दिन फिर मिलने का वादा करके जुदा हुए.

शीघ्र ही वह औरत उसकी पत्नी बन गई, खुले आम नहीं बल्कि गुप्त रूप में. मास्टर को यकीन था कि उसके बारे में किसी को भी कुछ भी पता नहीं था.

वह  शादी-शुदा थी; मास्टर भी अपनी पत्नी से अलग हो गया था.

वह प्रतिदिन सुबह उसके पास आती, नाश्ता बना लेती; उसकी किताबों की धूल साफ करती; उसके लिखे पन्नों को पढ़ती रहती; ख़ाली समय में यह टोपी बनाती रहती. यह उपन्यास  उसे बहुत पसन्द था, इससे उसे बड़ी आशाएँ थीं. तभी से उसने उसे मास्टर कहना शुरू कर दिया.

उपन्यास पूरा हो चुका था. उसे टाइप कर दिया गया और वह उपन्यास को लेकर अपनी आरामगाह से निकल पड़ा, उसे किसी प्रकाशक को देने; और यही था उसकी ज़िन्दगी का अंत.

बुल्गाकोव प्रकाशन जगत की बड़ी घिनौनी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं.

प्रकाशक उससे उसके पूर्वानुभव के बारे में पूछते; उसके परिवार के बारे में पूछते और अंत में यह पूछ लेते कि इस ख़तरनाक विषय पर उपन्यास लिखने के लिए उसे किसने उकसाया है.

वे उससे साफ़-साफ़ नहीं कहते कि उपन्यास नहीं छापा जा सकता; वे कोई न कोई बहाना बनाकर उसे बार-बार आने के लिए कहते. अंत में उससे कह दिया गया कि प्रकाशन गृह के पास दो वर्ष के लिए पर्याप्त सामग्री है अतः उसका उपन्यास प्रकाशित नहीं किया जा सकता.

किसी और सम्पादक ने उपन्यास का एक बड़ा अंश अपनी पत्रिका में छाप दिया और इसके पश्चात् पूरे साहित्य जगत में ऐसा हंगामा हुआ जिसने मास्टर को पूरी तरह नष्ट कर दिया.

यह इस तरह हुआ...

सोमवार, 6 अगस्त 2012

Discussion on M&M (Hindi) - Chapter 13.1


अध्याय 13.1

कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे हैं कि इवान बेज़्दोम्नी उपन्यास का नायक है? तब तो आपको निराश होना पड़ेगा!

तेरहवाँ अध्याय नायक के बारे में है – हीरो का प्रवेश – यह है इस अध्याय का शीर्षक. और, वह कहाँ से आता है? इवान को स्त्राविन्स्की के क्लीनिक के कमरा नं. 117 में रखा गया है...गुरुवार की शाम को, जब इवान की मनोदशा में परिवर्तन हो रहा है, जब अँधेरा छाने लगा है; जब इवान ऊँघ रहा है; जब उसे सपने में अपने क़रीब से गुज़रता हुआ मोटा बिल्ला दिखाई देता है तब एक रहस्यमय आकृति बालकनी से प्रविष्ट होती है और उँगली से धमकाते हुए इवान को ख़ामोश रहने के लिए कहती है.

इवान घबराता नहीं है. वह एक सफ़ाचट दाढी-मूँछ वाले व्यक्ति को देखता है जिसके बाल काले थे, नाक तीखी, बदहवास आँखों से वह कमरे में झाँक रहा है. उसकी आयु करीब 38 वर्ष की थी; बालों की लट माथे पर लटक रही थी.

आपने अनुमान लगा लिया होगा कि यह गोगोल की तस्वीर है. उम्र वही बताई गई है जितनी बुल्गाकोव की उस समय थी (जन्म 1991). आपको यह भी याद आ गया होगा कि गोगोल का भी मानसिक उपचार किया गया था. ..’मृत आत्माओं’ के बाद उन्हें शासकीय अधिकारियों द्वारा इतना सताया गया था कि वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठे थे. निकोलाय गोगोल बुल्गाकोव के प्रिय लेखक थे, अतः हम कह सकते हैं कि बुल्गाकोव ने इस चित्रण के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है, यह दिखाकर कि सुयोग्य लेखकों को कितना कष्ट उठाना पड़ता था.

इस अध्याय के कथानक को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं: समकालीन साहित्य पर टिप्पणियाँ; नायक का जीवन और सोवियत समाज में सुयोग्य लेखकों को दी जा रही यातनाएँ.

हम हर पहलू पर विचार करेंगे.

तो, जब अजनबी कमरा नं. 117 में प्रवेश करता है तो वह इवान को बताता है कि उसने कैसे प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना का चाभियों का गुच्छा पार कर लिया और इस वजह से वह कैसे अपने पड़ोसी से मिल सकता है. मगर बाल्कनी की चाभियाँ हाथ में होने पर भी वह इस जगह से भागने के बारे में सोचता भी नहीं है क्योंकि उसका कोई ठौर-ठिकाना ही नहीं है. इसके बाद उनकी बातचीत शुरू हो जाती है. अजनबी इवान से पूछता है कि वह आक्रामक तो नहीं है, और जब इवान उसे बताता है कि कल उसने रेस्तराँ में एक आदमी का थोबड़ा तोड़ दिया तो मेहमान उसे चेतावनी देता है कि ऐसा नहीं चलेगा, इवान को यह आदत छोड़नी पड़ेगी...मगर उसे इवान के ‘थोबड़ा’ शब्द के प्रयोग पर आपत्ति थी. वह ज़ोर देकर कहता है कि आदमी के पास ‘चेहरा’ होता है, न कि ‘थोबड़ा’! यहाँ बुल्गाकोव फॉर्मेलिस्टस (रूपवादियों) के, विशेषतः फ्यूचरिस्ट्स (भविष्यवादियों) के शब्द प्रयोग पर ताना कस रहे हैं. उनका ख़ास निशाना है मायाकोव्स्की, जिसकी कविताओं में ‘थोबड़ा’ शब्द का प्रयोग कई बार हुआ है.

और, जब इवान उसे बताता है कि वह एक कवि है, तो मेहमान दुखी हो जाता है. ज़ाहिर है कि उसे लेखक, कवि, आलोचक... अच्छे नहीं लगते...फिर इवान का उपनाम ‘बेज़्दोम्नी’ भी , जो तत्कालीन फैशन के अनुरूप था, उसे नाराज़ कर देता है.

जब इवान उससे पूछता है कि क्या उसे इवान की कविताएँ अच्छी लगती हैं, तो मेहमान इनकार कर देता है. इवान के इस प्रश्न पर कि “आपने मेरी कौनसी कविताएँ पढ़ी हैं?” वह कहता है, “एक भी नहीं. मगर मुझे बताओ, कि क्या वे औरों की कविताओं जैसी ही नहीं हैं?” यहाँ हम देखते हैं कि बुल्गाकोव का इशारा प्रचार- साहित्य की ओर है, जो किसी साँचे से ढला हुआ प्रतीत होता था...

तब इवान वादा करता है कि वह लिखना बिल्कुल छोड़ देगा.

जब मेहमान को पता चलता है कि इवान यहाँ पोंती पिलात के कारण आया है, तो वह इवान के साथ पत्रियार्शी पर हुई घटना को जानने के लिए उत्सुक हो उठता है. वह इवान को बताता है कि असल में पत्रियार्शी पर उसकी मुलाकात शैतान से हुई थी.

वह इवान को बतलाता है कि वह भी पोंती पिलात ही के कारण स्त्राविन्स्की के क्लीनिक में आया है और तब वह अपनी कहानी इवान को सुनाता है...

रविवार, 29 जुलाई 2012

Discussion on M&M (Hindi) - Chapter 12


अध्याय 12

पोस्टरों में लिखा गया था कि शाम को वेरायटी थियेटर में “काला जादू और उसका पर्दाफ़ाश” नामक शो होने वाला है – कार्यक्रम के दूसरे भाग में.


वेरायटी का हॉल खचाखच भरा था.


कार्यक्रम का आरम्भ जूली और उसके परिवार द्वारा दिखाए गए छोटे-मोटे कारनामों से हुआ.
लोग काफ़ी उत्तेजित हैं और वे बेसब्री से काले जादू वाले शो का इंतज़ार कर रहे हैं.


सिर्फ एक व्यक्ति जो इस पूरी चीज़ से बहुत उद्विग्न प्रतीत हो रहा है, वह है वेरायटी का वित्तीय डाइरेक्टर – रीम्स्की. वह अपने कैबिन में अकेला बैठा है और निराशा से अपने होठ काट लेता है. कभी-कभी उसका चेहरे पर भय की सिहरन दौड़ जाती है. वह इस बात से डर गया है कि स्त्योपा के गायब होने के बाद अब वारेनूखा भी गुम हो गया है. रीम्स्की महसूस कर रहा था कि इन दोनों घटनाओं में कोई न कोई सम्बन्ध ज़रूर है.


उसे इस बात पर अचरज हो रहा था कि वारेनूखा उस जगह से वापस क्यों नहीं लौटा था जहाँ उसे टेलिग्राम्स देकर भेजा गया था? वह उन्हें फोन करके यह मालूम करने का फैसला नहीं कर पा रहा था कि वारेनूखा वहाँ पहुँचा भी था अथवा नहीं. आख़िर रात के दस बजे उसने वहाँ फोन करने का निश्चय कर ही लिया, मगर पता चला कि टेलिफोन ख़ामोश पड़ा है, पता चला कि वेरायटी के सारे टेलिफोन ही काम नहीं कर रहे थे. हालाँकि रीम्स्की इस बात से थोड़ा घबरा ज़रूर गया मगर साथ ही उसे ख़ुशी भी हुई कि वह उन्हें फोन करने से बच गया था.
पहले अंतराल के दौरान रीम्स्की को सूचित किया गया कि विदेशी कलाकार अपनी मण्डली के साथ पहुँच गया है. उसे कलाकार का स्वागत करने के लिए जाना ही पड़ता है क्योंकि वेरायटी में उनका स्वागत करने के लिए कोई बचा ही नहीं था.


वोलान्द अपने दुभाषिए और एक अकराल-विकराल बिल्ले के साथ आया था. दुभाषिए की उपस्थिति भी रीम्स्की को अच्छी नहीं लगी. विदेशी कलाकार के इस सहायक / दुभाषिए की कुछ जादुई करामातें वहाँ इकट्ठा लोगों को बहुत पसन्द आईं; बिल्ले ने भी उन्हें बहुत प्रभावित किया जिसने अपने पिछले पैरों पर चल कर जग में से गिलास में पानी डालकर पिया.
जब तीसरी घण्टी बजी और हॉल की बत्तियाँ बुझ गईं तो कार्यक्रम के सूत्रधार जॉर्ज बेंगाल्स्की ने कलाकारों का परिचय कराया, काले जादू के बारे में बताया और यह टिप्पणी की कि विदेशी कलाकार काले जादू की तकनीक का पर्दाफ़ाश करेंगे...


परदा खुलता है; जादूगर अपने दो सहायकों : चौखाने वाले लम्बू और अपने पिछले पैरों पर चलते हुए भीमकाय बिल्ले के साथ प्रवेश करता है. पब्लिक ने ज़ोरदार तालियाँ बजाईं...


जादूगर अपने लिए एक कुर्सी मँगवाता है, न जाने कहाँ से एक बदरंग कुर्सी प्रकट हो जाती है. उस पर बैठकर वोलान्द कुछ देर तक दर्शकों का निरीक्षण करता है और अपने सहायक से पूछता है, 


“प्रिय फागोत, क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि मॉस्को के लोग काफी बदल गए हैं?”


फागोत (जो कि वास्तव में कोरोव्येव है) सहमति में सिर हिला देता है.
वोलान्द टिप्पणी करता है कि मॉस्को में बहुत परिवर्तन हो गया है: लोग अच्छी वेष-भूषा में हैं, ट्रामगाड़ियाँ, कारें, बसेस...”


बेंगाल्स्की बीच में टपक पड़ता है और कहता है कि विदेशी कलाकार मॉस्को की तकनीकी प्रगति से बहुत विस्मित जान पड़ते हैं, साथ ही मॉस्कोवासियों ने भी उन्हें काफ़ी प्रभावित किया है.
वोलान्द को गुस्सा आ जाता है, वह फागोत से पूछता है कि क्या उसने विस्मय का प्रदर्शन किया था?


फागोत इनकार करता है और फ़ब्ती कसता है कि बेंगाल्स्की झूठा है...


बेंगाल्स्की पर मुसीबत टूट पड़ती है.


अगला कार्यक्रम, ताश के पत्तों के साथ, बड़ा दिलचस्प हो गया जब ताश के पत्ते करेंसी नोटों में बदल जाते हैं, हॉल में नोटों की बारिश होने लगती है और लोगों के बीच उन्हें पकड़ने के लिए होड़ लग जाती है.  बेंगाल्स्की फिर से टिप्पणी करता है कि ये काले जादू का एक नमूना था और ये नोट शीघ्र ही गायब हो जाएँगे.

अब तो वोलान्द को सचमुच ही बहुत गुस्सा आ जाता है...फागोत दर्शकों से कहता है कि ये झूठा मुझे बहुत तंग कर रहा है, इसके साथ क्या सलूक किया जाए? भीड़ में से एक आवाज़ आती है, “इसका सिर काट दो!” फागोत मान जाता है और बेगेमोत (बिल्ले) को आवाज़ देता है. अगले ही पल बिल्ला उछल कर बेंगाल्स्की की गर्दन पर चढ़ जाता है और दो ही बार घुमा कर गर्दन से उसका सिर उखाड़ लेता है!


टूटी हुई नसों से फ़व्वारे की तरह खून उछलता है और बेंगाल्स्की के कोट को भिगोने लगता है...बेसिर का धड़ कुछ देर लड़खड़ाता है और फिर स्टेज पर धम् से बैठकर विनती करने लगता है, “प्लीज़, मेरा सिर वापस दे दो...मुझसे सब कुछ ले लो...मेरा फ्लैट, मेरी तस्वीरें...बस, मेरा सिर मुझे लौटा दो!...”

हॉल में महिलाओं की चीख-पुकार, आदमियों का हो-हल्ला गूँजने लगा... लोगों को उस पर दया आ गई, वे कहने लगे कि उसे उसका सिर वापस कर दिया जाए...

फागोत वोलान्द से पूछता है, “क्या हुक्म है, मेरे आका?”

वोलान्द कहता है, “ ये लोग साधारण लोगों की तरह ही हैं. उन्हें पैसे से प्यार है...मगर कभी-कभी उनके दिल में दया भी जागती है...आवास की समस्या ने उन्हें बिगाड़ दिया है...” और वह हुक्म देता है कि बेंगाल्स्की का सिर अपनी जगह पर वापस रख दिया जाए.

बेंगाल्स्की को ये ताक़ीद दी जाती है कि आइन्दा वह हर जगह अपनी झूठी नाक नहीं घुसेड़े...फिर उसका सिर वापस उसकी गर्दन पर रख दिया जाता है, कोट को साफ़ कर दिया जाता है और उसकी जेब में नोटों की एक गड्डी डालकर उसे हॉल से बाहर भेज दिया जाता है, मगर अचानक उसकी तबियत बिगड़ जाती है और उसे स्त्राविन्स्की के क्लीनिक ले जाया जाता है.

इसके पश्चात महिलाओं के लिए मीना-बाज़ार खुल जाता है. इस बाज़ार में महिलाओं को उनके पुराने कपड़ों और जूतों के बदले अत्याधुनिक फैशन के कपड़े, जूते और पर्सेस दिए जाते हैं. साथ ही परफ्यूम की शीशी भी दी जाती है...

इस भाग के कार्यक्रम की समाप्ति पर मॉस्को की ध्वनि संयोजन समिति का चेयरमैन, जो वहाँ शो में उपस्थित था, यह माँग करता है कि इन कारनामों का परदाफाश किया जाए, साथ ही बेंगाल्स्की की हालत के बारे में भी जनता को बताया जाए...

मगर यह परदाफाश स्वयँ चेयरमैन के लिए ही बहुत भारी पड़ता है....पूरे हॉल में सैकड़ों दर्शकों के सामने यह भेद खुल जाता है कि अर्कादी अपोलोनोविच सिम्प्लेयारोव के प्रवासी थियेटर की एक महिला कलाकार से घनिष्ठ सम्बन्ध हैं और इन्हीं सम्बन्धों की बदौलत उसे नाटकों में महत्वपूर्ण रोल दिए जाते हैं, जबकि अनेक योग्य कलाकार मौके की प्रतीक्षा करते ही रह जाते हैं...

बुल्गाकोव थियेटर जगत की असलियत को उजागर करते हैं; आवास समस्या के कारण लोगों का बर्ताव किस तरह बदल जाता है यह भी बताते हैं...

अचानक बेगेमोत घोषणा करता है कि शो समाप्त हो गया है और एक ही पल में स्टेज खाली हो जाता है, बेगेमोत और कोरोव्येव मानो हवा में घुल जाते हैं; पुलिस सिम्प्लेयारोव के बॉक्स में घुस जाती है जहाँ उसकी एक रिश्तेदार, एक युवा संघर्षरत कलाकार, ज़हरीली हँसी के ठहाके लगाते हुए इस परदाफ़ाश पर अपनी छत्री से सिम्प्लेयारोव पर वार किए जा रही है, और सिम्प्लेयारोव की भीमकाय बीबी गरजते हुए पुलिस को बुला रही है...

रविवार, 22 जुलाई 2012

Discussion on Master&Margarita(Hindi)- 11


अध्याय 11

यह एक बड़ा ख़ूबसूरत अध्याय है जिसमें संक्षेप में इवान बेज़्दोम्नी का एक नए इवान में रूपांतरण दिखाया गया है.

जब प्रोफेसर स्त्राविन्स्की ने इवान को बेर्लिओज़ की दर्दनाक मौत का वर्णन पुलिस को लिखित रूप में देने की सलाह दी तो इवान लिखना आरम्भ करता है, मगर चाहे उसने कितनी ही बार लिखने की कोशिश क्यों न की हो, हर बार अगला ड्राफ्ट पहले वाले ड्राफ्ट से बदतर ही साबित होता.

इसी बीच आसमान काले बादलों से ढँक गया, मूसलाधार बारिश होने लगीगी, नदी किनारे के दृश्य जो इवान की खिड़की से दिखाई देते थे, लुप्त हो गए. इवान बहुत हताश हो गया, उसने हवा के कारण इधर-उधर बिखरे पन्नों को समेटने की कोशिश भी नहीं की और रोने लगा.

डॉक्टर ने आकर उसे इंजेक्शन दिया और वादा किया कि जल्दी ही सब कुछ ठीक हो जाएगा और इवान अच्छा महसूस करने लगेगा.

कृपया ध्यान दें कि यह सब ठीक उसी समय हो रहा है जब वारेनूखा को बरसते पानी में उठाकर फ्लैट नं. 50 में ले जाया जा रहा था.... अर्थात् गुरुवार की दोपहर/शाम को.

शीघ्र ही बारिश रुक गई, आसमान साफ हो गया और इवान की खिड़की से लिण्डन का जंगल और नदी साफ-साफ दिखाई देने लगे.

इवान काफी शांत महसूस कर रहा था और तर्कसंगत विचार करने लगा था.

वह स्वीकार करता है कि उस रहस्यमय प्रोफेसर के पीछे ईसा की तस्वीर कमीज़ पर लटकाए, हाथ में मोमबत्ती लिए भागने और ग्रिबोयेदोव-भवन में हंगामा खड़ा करने में कोई समझदारी नहीं थी. वह अपने आप से पूछता है, “अगर बेर्लिओज़ ट्राम से कुचल गया तो मैं इतना उत्तेजित क्यों हो गया? दुर्घटनाएँ तो जीवन में होती ही रहती हैं. फिर बेर्लिओज़ मेरा लगता ही कौन था? क्या वह मेरा दोस्त था, या कोई रिश्तेदार? मैं तो उसे ठीक से जानता भी नहीं था, सिवाय इसके कि वह ख़तरनाक हद तक मीठा बोलने वाला था!. अगर बेर्लिओज़ मर गया है तो मासोलित का नया प्रेसिडेण्ट आ जाएगा, शायद पहले वाले से भी ज़्यादा ख़तरनाक!”

मैं बेवकूफ था जो मैंने इतना बड़ा हंगामा कर दिया...

इवान में परिवर्तन हो रहा है...वह महसूस करता है कि यह अस्पताल उतना बुरा नहीं है, स्त्राविन्स्की अच्छा इंसान है, यहाँ उसका हर तरह से ख़याल रखा जाएगा. प्रोफेसर के पीछे भागने के बदले उससे यह पूछना ज़्यादा बेहतर होता कि पोंती पिलात और कैदी हा-नोस्त्री का आगे क्या हुआ.

बीच-बीच में पुराना इवान नये इवान को वापस लौटाने की कोशिश करता है, मगर इवान अब परिवर्तित हो चुका है. वह स्वीकार कर लेता है कि यह सब हंगामा करना वाक़ई में बेवकूफ़ी थी.
इस परिवर्तन के बाद वह स्वयम् को काफ़ी हल्का महसूस करता है, उसे झपकी आने लगती है; आँखों के सामने लिण्डन का जंगल दिखाई देता है, ऐसा लगता है कि एक ख़ुशनुमा बिल्ला क़रीब से होकर गुज़र गया है...

और जब उसे नींद आने ही वाली थी तो अचानक बालकनी का दरवाज़ा बिना आवाज़ किए खुल गया और एक आकृति उसे उँगली से धमकाते हुए बोली, “ श्श्श...!”