अध्याय -10
उपसंहार
ओबुखवा
स्ट्रीट पर स्थित प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की के क्वार्टर के जाँच-कक्ष में हुए संघर्ष के ठीक
दस दिन बाद रात को कर्कश घंटी बजी.
“क्राईम-ब्रांच
पुलिस और अन्वेषक. कृपया खोलिये.”
भागते
हुए कदमों की आहट आने लगी, खटखटाहट होने लगी, लोग भीतर आने लगे, और बिजली से चमकते, नये काँच लगाई गई अलमारियों वाले प्रवेश कक्ष में भीड़ जमा हो गई. उनमें से
दो पुलिस की वर्दी में थे, एक ब्रीफ़केस के साथ काले ओवरकोट
में; काँइयेपन से ख़ुश होता हुआ, विवर्ण
श्वोन्देर; एक नौजवान-औरत, दरबान
फ्योदर, ज़ीना, दार्या पित्रोव्ना और
आधे कपडों में बर्मेन्ताल, जो शर्म से बिना टाई वाला गला
छुपा रहा था.
अध्ययन-कक्ष
के दरवाज़े से फ़िलिप फ़िलीपविच बाहर आया. वह अपने चिर-परिचित नीले गाऊन में था और
सभी उपस्थितों को फ़ौरन विश्वास हो गया कि पिछले सप्ताह के दौरान उसकी तबियत काफ़ी
संभल चुकी थी. पहले ही की तरह अधिकारपूर्ण और ऊर्जावान, गरिमायुक्त फ़िलिप फ़िलीपविच रात के मेहमानों के सामने आकर खड़ा हो गया और
माफ़ी माँगने लगा कि वह नाईट-गाऊन में है.
“शर्माइये नहीं, प्रोफ़ेसर,” सादे
कपडों वाले व्यक्ति ने बड़ी सकुचाहट से कहा, फिर हिचकिचाते
हुए बोला. “बड़ी अप्रिय बात है. हमारे पास आपके क्वार्टर की तलाशी का वारंट है और”,
प्रोफ़ेसर की मूँछों की ओर देखते हुए उसने अपनी बात पूरी की, “और तलाशी के परिणाम के अनुसार गिरफ़्तारी का भी वारंट है.”
फ़िलिप
फ़िलीपविच ने त्यौरियाँ चढ़ाईं और पूछा:
“क्या
मैं पूछ सकता हूँ कि किस आरोप के आधार पर, और किसको?”
उस
व्यक्ति ने अपना गाल खुजाया और ब्रीफ़केस में से कागज़ निकाल कर पढ़ने लगा:
“प्रेअब्राझेन्की, बर्मेन्ताल, ज़िनाइदा बूनिना और दार्या इवानवा को
मॉस्को की सामूहिक सेवाओं के सफ़ाई-उपविभाग
के प्रमुख पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच शारिकव के कत्ल के इलज़ाम में”.
ज़ीना की
सिसकियाँ उसके अंतिम शब्दों को खा गईं. हलचल मच गई.
“मैं कुछ
भी नहीं समझ पा रहा हूँ,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने शाही अंदाज़ में
कंधे सिकोड़ते हुए जवाब दिया, “कौनसे शारिकव को? आह, माफ़ी चाहता हूँ, मेरे इस
कुत्ते को...जिसका मैंने ऑपरेशन किया था?”
“माफ़
कीजिये,
प्रोफ़ेसर, कुत्ते को नहीं, बल्कि जब वह इन्सान था. यही मामला है.”
“मतलब, वह बोलता था?: फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा, “इसका मतलब ये नहीं होता कि वह इन्सान है. ख़ैर, ये
ज़रूरी नहीं है. शारिक अभी भी मौजूद है, और किसी ने उसे नहीं
मारा है.”
“प्रोफ़ेसर,” काले ओवरकोट वाले आदमी ने बेहद आश्चर्य से भौंहे उठाईं, “तब तो उसे हाज़िर करना पड़ेगा. उसे ग़ायब हुए आज दस दिन हो गये हैं, और मेरे पास जो जानकारी है, वह बहुत बुरी है.”
“डॉक्टर
बर्मेन्ताल, कृपया शारिक को अन्वेषक के सामने प्रस्तुत करें,”
फ़िलिप फ़िलीपविच ने वारंट पर कब्ज़ा करते हुए कहा.
डॉक्टर
बर्मेन्ताल रहस्यमय ढंग से मुस्कुराया और बाहर निकल गया.
जब उसने
वापस आकर सीटी बजाई तो उसके पीछे अध्ययन-कक्ष के दरवाज़े से एक अजीब तरह का कुत्ता
उछल कर बाहर आया. किसी किसी जगह वह गंजा था, किसी किसी जगह
रोएँ बढ़ रहे थे. वह इस तरह बाहर आया जैसे सर्कस का प्रशिक्षित कुत्ता हो, पिछली टाँगों पर चलते हुए, फ़िर चारों टाँगों पर खड़ा
हो गया और चारों तरफ़ देखने लगा. प्रवेश-कक्ष में जैसे मौत-सा सन्नाटा जम गया,
जैली की तरह. भयानक आकृति वाला कुत्ता, जिसके
माथे पर घाव का लाल निशान था, फ़िर से पिछले पैरों पर उठा और
मुस्कुराते हुए कुर्सी पर बैठ गया.
दूसरे
पुलिस वाले ने अचानक अपने आप पर बड़ा-सा क्रॉस बनाया और, पीछे हटकर अचानक ज़ीना के दोनों पैर दबा दिये.
काले
ओवरकोट वाले ने मुँह बंद किये बिना कहा:
“ऐसा
कैसे हो सकता है, माफ़ कीजिये?...वह तो सफ़ाई विभाग में काम करता था...”
“मैंने
उसे वहाँ नहीं भेजा था,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने जवाब दिया,
“अगर मैं गलत नहीं हूँ, तो महाशय श्वोन्देर ने
उसकी सिफ़ारिश की थी.”
“मुझे
कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है,” काले ओवरकोट वाले ने संभ्रम
से कहा और वह पहले पुलिस वाले से मुख़ातिब हुआ. “ये वही है?”
“वही है,” पुलिस वाले ने बेआवाज़ जवाब दिया. “बिल्कुल वही.”
“वही है,” फ़्योदर की आवाज़ सुनाई दी, “सिर्फ, कमीना फ़िर से मोटा हो गया है.”
“वह तो
बोलता था...हे...हे...”
“और अभी
भी बोलता है, मगर उसका बोलना काफ़ी कम होता जा रहा है,
तो, मौके का फ़ायदा उठाईये, वर्ना वह पूरी तरह से ख़ामोश हो जायेगा.”
“मगर
क्यों?”
काले ओवरकोट वाले ने हौले से पूछा.
फ़िलिप
फ़िलीपविच ने कंधे उचका दिये.
“विज्ञान
को अभी तक जानवरों को इन्सान बनाने का तरीका ज्ञात नहीं है. मैंने कोशिश की थी, मगर कामयाब नहीं हुई, जैसा कि आप देख रहे हैं. कुछ
दिन बोला और फ़िर से अपनी मूल अवस्था में परिवर्तित होने लगा. पूर्वजानुरूपता.”
“अश्लील
शब्दों का प्रयोग न करें,” अचानक कुर्सी से कुत्ता भौंका और
खड़ा हो गया.
काले
ओवरकोट का मुख फ़ौरन विवर्ण हो गया, हाथ से ब्रीफ़केस
छूट गई और वह एक ओर गिरने लगा, पुलिस वाले ने उसे किनारे से पकड़ा
और फ़्योदर ने पीछे से. हंगामा होने लगा और उसके बीच तीन वाक्य स्पष्ट रूप से सुनाई
दिये:
फ़िलिप
फ़िलीपविच का – “वलेरिन की बूंदें. बेहोशी का दौरा पड़ा है.”
डॉक्टर
बर्मेन्ताल का : - “अगर श्वोन्देर फ़िर कभी प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की के क्वार्टर में दिखाई दिया, तो मैं उसे अपने हाथों से सीढ़ियों से फेंक दूँगा.”
और
श्वोन्देर का : - “कृपया इन शब्दों को प्रोटोकोल में दर्ज कर लें.”
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हार्मोनियम
जैसे भूरे हीटिंग पाईप्स धीमे-धीमे सनसना रहे थे. परदों ने प्रिचिस्तेन्का की घनी रात को उसके इकलौते तारे समेत छुपा दिया
था. महान व्यक्तित्व, कुत्तों का महत्वपूर्ण उपकारकर्ता
कुर्सी में बैठा था, और कुत्ता शारिक, चमड़े
के दिवान के पास कालीन पर पसरा हुआ था. मार्च के कोहरे से कुत्ता सुबह सिरदर्द से
व्यथित होता, जो माथे पर टाँको की सिलाई से बने अंगूठी के
निशान के आकार में उसे पीड़ा देते. नगर गर्माहट के कारण शाम होते-होते दर्द ग़ायब हो
जाता. और अब काफ़ी आराम पहसूस हो रहा था, और कुत्ते के दिमाग़
में प्रिय और स्पष्ट विचार आ रहे थे.
“इतना ख़ुशनसीब हूँ मैं, इतना ख़ुशनसीब,” ऊँघते हुए वह सोच रहा था, “वर्णन नहीं किया जा सकता,
इतना ख़ुशनसीब. इस क्वार्टर में पूरी तरह बस गया हूँ. मुझे पक्का
यकीन है कि मेरे वंश में ज़रूर कोई गड़बड़ है. लेब्रेडॉर का कुछ अंश तो है. मेरी दादी
छिछोरी किस्म की थी, ख़ुदा उस बुढ़िया को जन्नत बख़्शे. सही है
कि पूरे सिर पर न जाने क्यों धारियाँ बना दीं, मगर यह शादी
तक ठीक हो जायेगा. हमें इसकी फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है”.
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दूर कहीं
काँच की बोतलों की धीमी-धीमी खनखनाहट हो रही थी. ज़ख़्मी किया गया डॉक्टर जाँच-कक्ष
में अलमारियों की सफ़ाई कर रहा था.
सफ़ेद
बालों वाला जादूगर बैठा था और गा रहा था: “नील के पवित्र किनारों की ओर...”
कुत्ते
ने भयानक चीज़ें देखीं. रबर के चिकने दस्ताने पहने ‘महत्वपूर्ण’ आदमी ने एक बर्तन में हाथ डाला, मस्तिष्क निकाले,
- ज़िद्दी आदमी, धुन का पक्का, लगातार कुछ न कुछ ढूँढ़ता रहा, उसे काटा, ग़ौर से देखा, आँखें सिकोड़ीं और गाने लगा:
“नील
के पवित्र किनारों की ओर...”
समाप्त
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