अध्याय – 2
पढ़ना
सीखने की बिल्कुल कोई ज़रूरत नहीं है, जब वैसे भी एक मील दूर से माँस की ख़ुशबू आती है. वैसे भी (अगर आप मॉस्को में
रहते हैं और आपके सिर में थोड़ा-सा भी दिमाग़ है),
आप चाहे-अनचाहे बिना किसी कोर्स के
पढ़ना सीख ही जायेंगे. मॉस्को के चालीस हज़ार कुत्तों में से कोई बिल्कुल ही बेवकूफ़
होगा जो अक्षरों को जोड़-जोड़ कर “सॉसेज” शब्द नहीं बना सकता.
शारिक
ने रंग देखकर सीखना शुरू किया. जैसे ही वह चार महीने का हुआ, पूरे
मॉस्को में “MSPO (मॉस्को कंज़्यूमर सोसाइटीज़ यूनियन – अनु.) –
माँस का व्यापार” के हरे-नीले रंग के बैनर्स लग गये. हम दुहराते हैं, कि
यह बेकार में ही है, क्योंकि वैसे भी ‘माँस’ सुनाई देता है. और एक बार गड़बड़ हो गई : तीखे नीले रंग
के पास आने पर, शारिक, जिसकी सूँघने की शक्ति गाड़ियों से निकलते पेट्रोल के
धुँए के कारण ख़त्म हो गई थी, माँस की दुकान के बदले मिस्नीत्स्काया स्ट्रीट पर
गलुबिज़्नेर ब्रदर्स की इलेक्ट्रिकल सामानों की दुकान में घुस गया. वहाँ भाईयों की दुकान में कुत्ते ने
विद्युतरोधी तार को खाने की कोशिश की, वह गाड़ीवान के चाबुक से ज़्यादा साफ़ थी. इस लाजवाब पल
को ही शारिक की शिक्षा का आरंभिक बिंदु समझना होगा. वहीं फुटपाथ पर शारिक समझने
लगा कि “नीला” हमेशा “माँस की दुकान” को ही प्रदर्शित नहीं करता और, दाहक
दर्द के मारे अपनी पूँछ को पिछली टांगों में दबाये और विलाप करते हुए, उसने
याद कर लिया कि सभी माँस के बैनर्स पर बाईं ओर शुरू में एक सुनहरी या भूरी, टेढ़ी-मेढ़ी, स्लेज
जैसी चीज़ होती है.
आगे
और भी सफ़लता मिलती गई. ‘A’ उसने ‘ग्लावरीबा’ (प्रमुख मछली केंद्र – अनु.) से सीखा
जो मखवाया स्ट्रीट के नुक्कड़ पर था, फिर ‘B’ भी – उसके लिये ‘रीबा’ (मछली – अनु.) शब्द की पूँछ की तरफ़ से भागना आसान था, क्योंकि
इस शब्द के आरंभ में सिपाही खड़ा था. कोने वाली दुकानों से झांकती टाईल्स का मतलब
ज़रूर ‘चीज़’ होता था. समोवार का काला नल, जो
इस शब्द के आरंभ में होता था, पुराने मालिक “चीच्किन” को प्रदर्शित करता था, हॉलेण्ड
की ‘रेड चीज़’ के ढेर, जंगली जानवरों के वेष में क्लर्क, जो
कुत्तों से नफ़रत करते थे, फ़र्श पर पड़ा हुआ भूसा और बेहद बुरी तरह से गंधाती चीज़ ‘बेक्श्तेन’.
अगर
एकॉर्डियन बजा रहे होते, जो “स्वीट आयदा” से काफ़ी बेहतर होता, और
सॉसेज की ख़ुशबू आती, सफ़ेद बैनर्स पर पहले अक्षर आराम से “असभ् ...” शब्द
बनाते. इसका मतलब होता कि “असभ्य शब्दों का प्रयोग न करें और चाय-पानी के लिये न
दें”. यहाँ कभी-कभी झगड़े हो जाते, लोगों के थोबडों पर मुक्के बरसाये जाते, - कभी, कभी, बिरली स्थितियों में,
- रूमालों से या जूतों से भी पिटाई
होती.
अगर
खिड़कियों में ‘हैम” की बासी खाल लटक रही होती और संतरे पड़े
होते...गाऊ...गाऊ...गा...स्त्रोनोम (डिपार्टमेन्टल स्टोर – अनु.). अगर काली
बोतलें गंदे द्रव से भरी हुई...व-इ-वि-ना-आ-विनो (वाईन-अनु.)...भूतपूर्व
एलिसेयेव ब्रदर्स.
अनजान
‘भले आदमी’ ने, जो कुत्ते को बिचले तल्ले पर स्थित अपने शानदार
क्वार्टर के दरवाज़े की ओर खींचते हुए
ला रहा था, घंटी बजाई, और कुत्ते ने फ़ौरन सुनहरे अक्षरों वाली काली नेमप्लेट
की ओर आँखें उठाईं, जो एक चौड़े,
लहरियेदार और गुलाबी काँच जड़े दरवाज़े
की बगल में लटक रही थी. पहले तीन अक्षरों को उसने फ़ौरन पढ़ लिया : पे-एर-ओ “प्रो”.
मगर आगे फूली-फूली दोहरी कमर वाली बकवास थी,
पता नहीं उसका क्या मतलब था. ‘कहीं
प्रोएलेटेरियन तो नहीं?’ शारिक ने अचरज से सोचा... ‘ऐसा नहीं हो सकता’.
उसने नाक ऊपर उठाई, फिर
से ओवरकोट को सूंघा और यकीन के साथ सोचा:
‘नहीं, यहाँ प्रोलेटेरियन की बू नहीं आ रही है. वैज्ञानिक
शब्द है, और ख़ुदा जाने उसका क्या मतलब है’.
गुलाबी
काँच के पीछे एक अप्रत्याशित और ख़ुशनुमा रोशनी कौंध गई,
जिसने काली नेमप्लेट पर और भी छाया
डाल दी. दरवाज़ा बिना कोई आवाज़ किये खुला,
और सफ़ेद एप्रन और लेस वाला टोप पहनी
एक जवान, ख़ूबसूरत औरत कुत्ते और उसके ‘भले
आदमी’ के सामने प्रकट हुई.
उनमें
से पहले को ख़ुशनुमा गर्मी ने दबोच लिया,
और औरत की स्कर्ट घाटी की लिली जैसी
महक रही थी.
‘ये हुई न बात,
मैं समझ रहा हूँ,’ कुत्ते ने सोचा.
“आईये, शारिक
महाशय,” भले आदमी ने व्यंग्य से उसे बुलाया, और
शारिक आज्ञाकारिता से पूँछ हिलाते हुए भीतर आया.
प्रवेश-कक्ष
ख़ूब सारी शानदार चीज़ों से अटा पड़ा था. दिमाग़ में फ़ौरन फ़र्श तक आता हुआ शीशा याद रह
गया, जो दूसरे बदहाल और ज़ख़्मी शारिक को प्रतिबिम्बित कर रहा
था, ऊँचाई पर रेन्डियर के ख़ौफ़नाक सींग, अनगिनत
ओवर कोट और गलोश और छत के नीचे दूधिया त्युल्पान वाला बिजली का बल्ब.
“आप
ऐसे वाले को कहाँ से ले आये, फ़िलीप फ़िलीपविच?”
मुस्कुराते हुए औरत ने पूछा और नीली
चमक वाला काली-भूरी लोमड़ी की खाल का ओवरकोट उतारने में मदद करने लगी. ”पापा जी!
कितना ग़लीज़ है!”
“बकवास
कर रही हो. ग़लीज़ कहाँ है?” भले आदमी ने फ़ौरन कड़ाई से कहा.
ओवरकोट
उतारने के बाद वह अंग्रेज़ी कपड़े के काले सूट में नज़र आया और उसके पेट पर सुनहरी
चेन ख़ुशी से और अस्पष्ट रूप से दमक रही थी.
“रुक-भी, घूमो
नहीं, फ़ित्...अरे,
घूमो नहीं, बेवकूफ़.
हम्!...ये ग़ली...नहीं...अरे ठहर जा, शैतान...हुम्! आ-आ. ये जल गया है. किस बदमाश ने तुझे
जला दिया? आँ? अरे, तू शांति से खड़ा रह!...”
“रसोईये
ने, कैदी रसोईये ने!” शिकायत भरी आँखों से कुत्ते ने कहा
और हौले से बिसूरने लगा.
“ज़ीना,” सज्जन ने हुक्म दिया,
“इसे फ़ौरन जाँच वाले कमरे में और मुझे
एप्रन.”
औरत
ने सीटी बजाई, चुटकी बजाई और कुत्ता,
कुछ हिचकिचाकर, उसके
पीछे-पीछे चलने लगा. वे दोनों एक संकरे कॉरीडोर में आये, जिसमें
रोशनी टिमटिमा रही थी, एक वार्निश किये हुए दरवाज़े को छोड़ दिया, कॉरीडोर
के अंत तक आये, और फिर बाईं ओर मुड़े और एक छोटे-से अंधेरे कमरे में
पहुँचे, जो अपनी ख़तरनाक गंध के कारण कुत्ते को बिल्कुल पसन्द
नहीं आया. अंधेरा थरथराया और चकाचौंध करने वाले दिन में बदल गया, चारों
ओर से चिंगारियाँ निकल रही थीं, हर चीज़ चमक रही थी और सफ़ेद हो रही थी.
‘ऐ, नहीं’, कुत्ता ख़यालों में बिसूरने लगा, ‘माफ़ करना, मैं ख़ुद को आपके हवाले नहीं करूँगा! समझता हूँ, शैतान
ले जाये उन्हें अपने सॉसेज के साथ. ये मुझे कुत्तों के अस्पताल में ले आये हैं. अब
ज़बर्दस्ती कॅस्टर-ऑइल पिलायेंगे और पूरी बाज़ू को चाकुओं से काट देंगे, मगर
इस तरह आप मुझे नहीं छू सकते.’
“ऐ, नहीं, कहाँ?!” वह चिल्लाई,
जिसका नाम ज़ीना था.
कुत्ते
ने अपने शरीर को मोड़ा, स्प्रिंग की तरह उछला और अचानक अपनी तंदुरुस्त बाज़ूं
से दरवाज़े पर ऐसी चोट की, कि पूरा क्वार्टर झनझना गया. फिर, पीछे
की ओर उड़ा, अपनी जगह पर कोड़े खाते हुए आदमी की तरह गोल-गोल घूमा, सफ़ेद
बालटी फ़र्श पर उलट दी, जिसमें से रूई के फ़ाहे उड़ने लगे. जब वह चारों ओर
गोल-गोल घूम रहा था, तो उसके चारों ओर दीवारें फड़फ़ड़ा रही थीं, जिनसे
लगी हुई चमकीले उपकरणों वाली अलमारियाँ खड़ी थीं,
सफ़ेद एप्रन और औरत का भयभीत चेहरा
उछल रहा था.
“कहाँ
चला तू, बालों वाले शैतान?..”
बदहवासी से ज़ीना चीखी.”...घिनौने!”
‘उनकी चोर-सीढ़ी कहाँ है?’...कुत्ता सोच रहा था. उसने अपने बदन को ढीला किया और एक
ढेले की तरह काँच को ठोस मारी, इस आशा से कि यह दूसरा दरवाज़ा है. एक धमाके और आवाज़ के
साथ किरचियों का बादल उड़ा, एक बड़े पेट वाला जार,
अपने भूरे गंदे कीचड़ समेत उड़ा, जो
फ़ौरन पूरे फ़र्श पर बहने लगा और बदबू छोड़ने लगा. सचमुच का दरवाज़ा धड़ाम् से खुला.
“रुक, ज-जंगली,” एप्रन की एक ही आस्तीन पहने उछलता हुआ भला आदमी
चिल्लाया, और उसने कुत्ते को टाँगों से पकड़ लिया. “ज़ीना, इस
कमीने की गर्दन पकड़.”
“ब्बा...बाप
रे, क्या कुत्ता है!”
दरवाज़ा
और चौड़ा खुला और एक और मर्द इन्सान एप्रन पहने भीतर घुसा. टूटे हुए काँचों को
दबाते हुए वह कुत्ते की ओर नहीं, बल्कि अलमारी की तरफ़ लपका,
उसे खोला पूरे कमरे को मीठी, उबकाई
लाने वाली गंध से भर दिया. इसके बाद यह व्यक्ति ऊपर से पेट के बल कुत्ते पर,
झपटा, कुत्ते ने उसे जूते की लेस से कुछ ऊपर नोच लिया. वह
व्यक्ति कराहा, मगर परेशान नहीं हुआ. उबकाई लाने वाला द्रव कुत्ते की
सांसों में मिल गया और उसका सिर घूमने लगा,
फिर टाँगें ढीली पड़ गईं और वह
तिरछे-तिरछे चलने लगा. ‘शुक्रिया, बेशक,’ उसने सीधे नुकीले किरचों पर गिरते हुए, जैसे
सपने में सोचा. ‘अलबिदा, मॉस्को! मैं फिर कभी चीच्किन और प्रोलेटेरियन्स और
क्राकोव-सॉसेज नहीं देख पाऊँगा. कुत्ती-सहनशीलता के कारण जन्नत में जा रहा हूँ.
भाईयों, कसाईयों, आप क्यों मुझसे ऐसा कर रहे हैं?’
और
तब आख़िरकार वह एक करवट फ़र्श पर लुढ़क गया और उसने दम तोड़ दिया.
**********
जब
वह पुनर्जीवित हुआ, तो उसका सिर में हल्का-सा चक्कर आ रहा था और पेट में
कुछ मिचली-सी हो रही थी, बाज़ू जैसे थी ही नहीं,
बाज़ू मीठी-मीठी चुप्पी में खो गई थी.
कुत्ते ने दाईं भारी आँख खोली और आँख के किनारे से देखा कि उसके बाज़ुओं और पेट पर
कस कर बैण्डेज बांधा गया है. ‘आख़िर काट ही दिया कुत्ते के पिल्लों ने’, उसने अस्पष्टता से सोचा,
‘मगर बड़ी आसानी से, सच
में, उनकी तारीफ़ करनी चाहिये’.
“सेविला
से ग्रेनादा तक...ख़ामोश रातों के धुंधलके में”” – उसके ऊपर एक परेशान और
कृत्रिम रूप से ऊँची आवाज़ गा रही थी.
कुत्ते
को आश्चर्य हुआ, उसने दोनों आँखें पूरी खोल दीं और दो कदम की दूरी पर
सफ़ेद तिपाई पर मर्दाना पैर देखा. उसके ऊपर पतलून और स्टॉकिंग्ज़ मोड़े गये थे, और
नंगी, पीली पिंडली सूखे हुए खून और आयोडिन से पुती थी.
‘ख़ुशामदी’! कुत्ते ने सोचा,
‘शायद इसी को मैंने काटा था. ये मेरा
काम है. ख़ैर, अब लड़ाई करेंगे!’
“गूंज रहे हैं प्रेम-गीत, आ रही है खनखनाहट तलवारों की!’
तूने डॉक्टर को क्यों काटा, आवारा कहीं का?
आँ?
काँच क्यों फ़ोड़ा? आँ?”
‘ऊ-ऊ-ऊ’ – कुत्ता दयनीयता से रोने लगा.
“अच्छा, ठीक
है, होश में आ गया और अब लेटा रह, बदमाश.”
“आपने
ये कैसे कर लिया, फ़िलीप फ़िलीपविच,
ऐसे डरपोक कुत्ते को कैसे फ़ुसला लिया?” एक प्यारी मर्दाना आवाज़ ने पूछा और बुनी हुई
स्टॉकिंग्ज़ लुढ़कती हुई वापस नीचे आ गई. तम्बाकू की गंध फैल गई और अलमारी में
शीशियाँ खनखनाने लगीं.
“प्यार से... जीवित प्राणी से मुख़ातिब होने का सिर्फ एक
ही संभव तरीका है. आतंक से कुछ भी नहीं करना चाहिये, चाहे
वह प्राणी विकास की किसी भी सीढ़ी पर क्यों न हो. इसकी मैंने अच्छी तरह पुष्टि कर
ली है, पुष्टि करता हूँ और पुष्टि करता रहूँगा. वे बेकार ही
में सोचते हैं कि आतंक से उन्हें लाभ होगा. नहीं,
नहीं,
बिल्कुल नहीं होगा, चाहे
वह किसी भी तरह का आतंक क्यों न हो : श्वेत,
लाल और भूरा भी! आतंक तंत्रिका
प्रणाली को पूरी तरह पंगु बना देता है. ज़ीना! मैंने इस बदमाश के लिये क्राकव-सॉसेज
खरीदा था एक रूबल चालीस कोपेक में. जब उसकी मिचली रुक जाये,
तो खिलाने की कोशिश करना”.
धोए
जा रहे शीशों की करकराहट हो रही थी और औरत की आवाज़ ने शरारत से कहा:
“क्राकव-सॉसेज!
ख़ुदा, उसके लिये तो कसाई की दुकान से दो कोपेक की छीलन खरीदना
था. इससे अच्छा तो यह होगा कि क्राकव-सॉसेज को मैं ख़ुद खा जाऊँ.”
“कोशिश
तो कर. मैं तुझे खा जाऊँगा! ये इन्सान के पेट के लिये ज़हर है. बड़ी लड़की है, और
बच्चे की तरह मुँह में हर गंदी-संदी चीज़ डालती रहती है. हिम्मत न करना! चेतावनी
देता हूँ : न तो मैं, न डॉक्टर बरमेन्ताल तेरी फ़िक्र नहीं करेंगे, जब
तेरा पेट दर्द करेगा...”सबको, जो कहेगा,
कि यहाँ कोई और भी है
तेरे जैसी...”
इसी
समय हल्की, रुक-रुक कर आती हुई घंटी की आवाज़ पूरे क्वार्टर में
फ़ैल गई, और दूर, प्रवेश कक्ष से कभी-कभी आवाज़ें सुनाई दे रही थीं.
टेलिफ़ोन बज रहा था. ज़ीना ग़ायब हो गई.
फ़िलिप
फ़िलीपविच ने सिगरेट का टुकड़ा बाल्टी में फेंक दिया,
एप्रन बांधा, दीवार
पर लगे आईने के सामने फूली-फूली मूँछें ठीक कीं और कुत्ते को आवाज़ दी:
“फ़ित्त-फ़ित्.
चल, कोई बात नहीं. मेहमानों से मिलेंगे.”
कुत्ता
अपनी डगमगाती टाँगों पर उठा, लड़खड़ाता रहा और चलता रहा,
मगर जल्दी ही सामान्य हो गया और
फिलिप फिलीपविच के एप्रन के हिलते हुए पल्ले के पीछे-पीछे चलने लगा. कुत्ते ने फ़िर
से संकरे कॉरीडोर को पार किया, मगर अब उसने देखा कि वह ऊपर से किसी छेद से आती तेज़
रोशनी से जगमगा रहा है. जब वार्निश किया हुआ दरवाज़ा खुला, तो
वह फ़िलिप फ़िलीपविच के साथ अध्ययन-कक्ष में घुसा,
जिसने कुत्ते को अपनी सजावट से
चकाचौंध कर दिया. सबसे पहली बात, वह पूरा रोशनी से जल रहा था: फ़ाल्स-सीलिंग के नीचे जल
रहा था, मेज़ पर जल रहा था,
दीवार पर जल रहा था, अलमारियों
के शीशों में जल रहा था. रोशनी अनगिनत चीज़ों को नहला रही थी, जिनमें
सबसे ख़ास था विशालकाय उल्लू, जो दीवार से लगी
एक टहनी पर बैठा था.
“लेट
जा,” फ़िलिप फिलीपविच ने हुक्म दिया.
सामने
वाला नक्काशी किया हुआ दरवाज़ा खुला, भीतर वही, छोटी सी नुकीली दाढ़ी वाला नौजवान आया, जिसे
मैंने नोचा था, तेज़ रोशनी में वह बहुत ख़ूबसूरत लग रहा था. उसने कागज़
आगे बढ़ाया और बोला:
“पहले
वाला...”
फ़ौरन
चुपचाप ग़ायब हो गया, और फ़िलिप फ़िलीपविच,
अपने एप्रन के पल्ले खोलकर बड़ी भारी
लिखने की मेज़ पर बैठ गया और अचानक असाधारण रूप से महत्वपूर्ण और आकर्षक हो गया.
‘नहीं यह अस्पताल नहीं है,
ये तो मैं किसी और ही जगह पर आ गया’, - परेशानी से कुत्ते ने सोचा और चमड़े के भारी दीवान के पास
कार्पेट के डिज़ाईन पर लुढ़क गया, - ‘और इस उल्लू से हम समझ लेंगे...’
दरवाज़ा
हौले से खुला और कोई अंदर आया, जिसने कुत्ते को इस कदर चौंका दिया, कि
वह एकदम भौंका, मगर बहुत नर्मी से...
“ख़ामोश! ब्बा-ब्बा,
हूँ,
आपको पहचानना मुश्किल हो रहा है, प्यारे.”
आने वाले ने बड़ी नम्रता और सकुचाहट से फ़िलिप फ़िलीपविच
का अभिवादन किया.
“ही-ही! आप मैजिशियन और सम्मोहक हैं, प्रोफेसर,” उसने शर्माते हुए कहा.
“पतलून उतारो,
प्यारे,”
फ़िलिप फ़िलीपविच ने हुक्म दिया और वह
उठा.
‘जीज़स,लॉर्ड,’ कुत्ते ने सोचा,
‘कैसा ‘फ्रूट’ जैसा है!’
फ्रूट के सिर पर एकदम हरे बाल थे, और
सिर के पीछे वे ज़ंग लगे तम्बाकू के रंग के लग रहे थे,
‘फ्रूट’
के चेहरे पर झुर्रियाँ फ़िसल रही थीं, मगर
चेहरे का रंग गुलाबी था, जैसे किसी बच्चे का होता है. बायाँ पैर मुड़ नहीं रहा
था, उसे कालीन पर खींच कर लाना पड़ रहा था, मगर
दायाँ पैर बच्चों के ‘नट क्रैकर’ की तरह उछल रहा था. शानदार जैकेट के पल्ले पर, आँख
की तरह, एक हीरा दिखाई दे रहा था.
दिलचस्पी के कारण कुत्ते की मतली भी ख़त्म हो गई.
‘क्यांऊ-क्यांऊ!’...वह
हौले से भौंका.
“ख़ामोश! नींद कैसी आती है,
प्यारे?”
“ही-ही. हम अकेले हैं,
प्रोफ़ेसर?
इसका तो वर्णन ही नहीं कर सकता,”
– आगंतुक ने शर्माते हुए बोलना शुरू किया. “कसम से – पच्चीस साल तक ऐसा कुछ भी
नहीं था,” उस पात्र ने पतलून की बटन को हाथ लगाया, “ यकीन कीजिये,
प्रोफ़ेसर,
हर रात झुंड के झुंड निर्वस्त्र
लड़कियों के. मैं सकारात्मक रूप से मोहित हूँ. आप- जादूगर हैं.”
“हुम्,” मेहमान की पुतलियों को ग़ौर से देखते हुए फ़िलिप
फ़िलीपविच चिंता से चहका.
उस वाले ने आख़िरकार बटनों पर नियंत्रण कर लिया और
धारियों वाली पतलून उतार दी. उसके नीचे ऐसा जांघिया था जैसा पहले कभी नहीं देखा था.
वह दूधिया रंग का था, उस पर रेशमी काली बिल्लियाँ थीं और उनसे इत्र की महक आ
रही थी.
कुत्ता बिल्लियों को बर्दाश्त नहीं कर पाया और इस तरह
से भौंका कि ‘पात्र’ उछल पड़ा.
“आय!”
“मैं तेरी खाल खीच लूंगा! डरिये नहीं, वह
काटता नहीं है.”
‘मैं
काटता नहीं हूँ?’ कुत्ते को अचरज हुआ.
आने वाले ने पतलून की जेब से कालीन पर एक छोटा-सा
लिफ़ाफ़ा गिरा दिया, जिसके ऊपर खुले हुए बालों वाली एक सुन्दर लड़की की
तस्वीर थी. ‘पात्र’ उछला, झुका, उसे उठाया और खूब लाल हो गया.
“मगर, आप, देखिये,” फिलिप फिलीपविच ने उँगली से धमकाते हुए नाक-भौंह चढ़ाकर,
चेतावनी-सी देते हुए कहा, “फिर भी, देखिये, बेवजह ग़लत इस्तेमाल न कीजिये!”
“मैं नहीं गल...”,
कपड़े उतारते हुए ‘पात्र’ शर्म
से बुदबुदाया, “मैं, प्रिय प्रोफेसर,
सिर्फ अनुभव के तौर पर.”
“ओह, तो क्या? परिणाम क्या हुआ?”
फ़िलिप फिलीपविच ने कड़ाई से पूछा.
‘पात्र’ ने
ख़ुशी से हाथ हिलाया.
“25 साल, ख़ुदा की कसम,
प्रोफेसर,
ऐसी चीज़ हुई ही नहीं थी. पिछली बार
सन् 1899 में पैरिस में र्यु दे ला पे (पैरिस की एक फ़ैशनेबल स्ट्रीट – अनु.) में.”
“और आप हरे क्यों हो गये?”
आगंतुक का चेहरा उदास हो गया.
“नासपीटी झीर्कस्त! (झीर्कस्त – सोवियत कॉस्मेटिक्स
कम्पनी का नाम – अनु.). आप कल्पना भी नहीं कर सकते,
प्रोफेसर कि इन निठल्लों ने मुझे कैसा
हेयर-डाय थमा दिया. आप सिर्फ देखिये”, आँखों से आईना ढूँढ़ते हुए ‘पात्र’ बुदबुदाया. “उनका तो सिर ही फ़ोड़ देना चाहिये!” आगबबूला
होते हुए उसने आगे कहा. “अब मुझे क्या करना चाहिये,
प्रोफेसर?”
उसने रुँआसे रुँआसेपन से पूछा.
“हुम्, सिर गंजा करवा लीजिये”.
“प्रोफेसर,” आगंतुक शिकायत के सुर में चहका, “मगर फिर से सफ़ेद बाल ही आयेंगे. इसके अलावा, मैं
अपनी नौकरी पर मुँह भी नहीं दिखा सकूँगा,
वैसे ही तीन दिनों से मैं नहीं जा
रहा हूँ. ऐह, प्रोफ़ेसर, अगर आप कोई ऐसा तरीका ईजाद करते जिससे बाल भी जवान हो
जाते!”
“फ़ौरन नहीं,
फ़ौरन नहीं, मेरे
प्यारे,” फ़िलिप फ़िलीपविच बुदबुदाया.
झुकते हुए, उसने चमकीली आँखों से मरीज़ के नंगे पेट का मुआइना
किया:
“तो, बढ़िया, सब कुछ एकदम ठीक है. सच कहूँ तो मुझे भी ऐसे परिणाम की
उम्मीद नहीं थी. “ज़्यादा लहू, ज़्यादा गीत...”,
कपड़े पहन लो, प्यारे!”
“मैं हूँ वो,
जो है सबसे हसीन!...” फ्रायिंग पैन की तरह खड़खड़ाती आवाज़ में मरीज़ गाने लगा, और
दमकते हुए, कपड़े पहनने लगा. अपने आप को ठीक-ठाक करने के बाद, उछलते
हुए और इत्र की ख़ुशबू फ़ैलाते हुए, उसने फ़िलिप फ़िलीपविच को गिनकर सफ़ेद नोटों का बंडल
थमाया और प्यार से उसके दोनों हाथ दबाने लगा.
“दो सप्ताह तक आने की ज़रूरत नहीं है,” फ़िलिप फिलीपविच ने कहा,
“मगर फ़िर भी आपसे विनती करता हूः:
सावधान रहें.”
“प्रोफ़ेसर!” दरवाज़े के पीछे से प्रसन्नतापूर्ण आवाज़ आई, “बिल्कुल इत्मीनान रखें,”
वह मिठास से खिलखिलाया और ग़ायब हो
गया.
क्वार्टर में घण्टी की हल्की-सी आवाज़ तैर गई, वार्निश
वाला दरवाज़ा खुला, काटा हुआ व्यक्ति भीतर आया,
फ़िलिप फ़िलीपविच को कागज़ थमाया और
बोला:
“उम्र
गलत दिखाई गई है. शायद, 54-55. दिल की धड़कन धीमी है.”
वह ग़ायब हो गया और उसकी जगह पर सरसराती हुई महिला आ गई
फ़ैशनेबुल तरीके से तिरछी झुकी हुई हैट और थुलथुल, झुर्रियों वाली गर्दन में चमचमाता नेकलेस पहने. उसकी
आँखों के नीचे अजीब सी काली थैलियाँ लटक रही थीं,
और गाल गुड़ियों जैसे गुलाबी रंग के
थे. वह बेहद परेशान थी.
“महोदया!
आप कितने साल की हैं?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने उससे बेहद गंभीरता से पूछा.
महिला घबरा गई और लाली की पर्त के भी नीचे विवर्ण हो
गई.
“मैं, प्रोफेसर, कसम खाती हूँ,
काश आप जानते कि मेरे साथ कैसा
ड्रामा हो रहा है!...”
“उम्र कितनी है आपकी,
महोदया?”
और ज़्यादा गंभीरता से फ़िलिप फ़िलीपविच
ने दुहराया.
“ईमानदारी से...ख़ैर,
पैंतालीस...”
“मैडम,” फ़िलिप फिलीपविच चीखा,
“लोग मेरा इंतज़ार कर रहे हैं. देर न
करें, प्लीज़. आप अकेली ही तो नहीं हैं!”
महिला का सीना ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा.
“मैं सिर आपको,
विज्ञान के सितारे को बता रही हूँ.
मगर कसम खाती हूँ – ये इतना भयानक है...”
“आपकी उम्र कितनी है?”
फ़िलिप फिलीपविच ने तैश से और तीखी
आवाज़ में पूछा और उसका चश्मा चमकने लगा.
“इक्यावन!” भय से अधमरी हो गई महिला ने जवाब दिया.
“पतलून उतारिये,
महोदया,”
फ़िलिप फिलीपविच ने नरमाई से कहा और
कोने में पड़ी ऊँची सफ़ेद मेज़ की ओर इशारा किया.
“कसम खाती हूँ,
प्रोफेसर,”
थरथराती ऊँगलियों से बेल्ट के ऊपर
कुछ बटन खोलते हुए महिला बुदबुदाई, “ये मोरित्ज़...मैं आपके सामने स्वीकार करती हूँ, सच्चे
दिल से...”
“सेविले से ग्रेनादा तक...” अनमनेपन से फ़िलिप
फिलीपविच गाने लगा और उसने संगमरमर के वाश-बेसिन का पैडल दबाया. पानी सरसराने लगा.
“ख़ुदा की कसम!” महिला ने कहा और उसके गालों पर कृत्रिम
धब्बों से होते हुए जीवित धब्बे झाँकने लगे,
“मुझे मालूम है कि यह मेरी आख़िरी
दीवानगी है. वह इतना बदमाश है! ओह, प्रोफ़ेसर! वह पत्ताचोर है पूरा मॉस्को यह बात जानता
है. वह एक भी घिनौनी फ़ैशन डिज़ाइनर को नहीं छोड़ता. वह इस कदर जवान है – शैतानियत की
हद तक.” महिला बुदबुदाई और उसने सरसराते हुए स्कर्ट के नीचे से मुड़ी-तुड़ी लेस का
टुकड़ा बाहर फेंका.
कुत्ते की आँखों के आगे पूरी तरह धुंध छा गई और उसके
सिर में सब कुछ उल्टा-पुल्टा होने लगा.
‘आप
जहन्नुम में जाएँ,’ सिर को पंजों पर टिकाकर और शर्म से ऊँघते हुए उसने
अस्पष्टता से सोचा, ‘और मैं समझने की कोशिश नहीं करूँगा, कि
क्या हो रहा है – वैसे भी समझ तो नहीं पाऊँगा.’
वह फ़िर से घंटी की आवाज़ से जागा और उसने देखा कि फ़िलिप
फिलीपविच बेसिन में कोई चमकदार नलियाँ फेंक रहा है.
धब्बों वाली महिला,
सीने पर हाथों को दबाये, उम्मीद
से फ़िलिप फ़िलीपविच की ओर देख रही थी. उसने गंभीरता से भौंहे चढ़ाईं और कुर्सी पर
बैठकर, कुछ लिखा.
“महोदया, मैं आपके जिस्म में बंदर का अंडाशय डाल दूंगा,” उसने घोषणा की और कठोरता से देखा.
“आह, प्रोफेसर, क्या वाकई में बंदर का?”
“हाँ,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने दृढ़ता से उत्तर दिया.
“ऑपरेशन
कब होगा?” विवर्ण मुख से और कमज़ोर आवाज़ में महिला ने पूछा.
“सेविला से ग्रेनादा तक...” ऊँ...सोमवार को.
सुबह क्लिनिक में आ जाईये. मेरा असिस्टंट आपको ऑपरेशन के लिये तैयार करेगा.”
“आह, मैं क्लिनिक में नहीं जाना चाहती. प्रोफ़ेसर, क्या
आपके यहाँ नहीं हो सकता?”
“देखिये, यहाँ मैं सिर्फ चरम परिस्थितियों में ही ऑपरेशन करता
हूँ. ये बहुत महंगा पड़ेगा – पाँच सौ रूबल्स.”
“मैं तैयार हूँ,
प्रोफ़ेसर!”
फ़िर से पानी शोर मचाने लगा,
परों वाली हैट बाहर की ओर तैर गई, फिर
प्रकट हुआ प्लेट जैसा गंजा सिर और उसने फ़िलिप फ़िलीपविच को गले लगा लिया. कुत्ता
ऊँघ रहा था, मिचली ख़त्म हो गई थी,
कुत्ता शांत हो रही बाज़ू और गर्माहट
का मज़ा ले रहा था, उसने खर्राटे भी लिये और एक छोटा-सा प्यारा सपना देखा
: जैसे उसने उल्लू की पूँछ से सारे पर उखाड़ लिये हैं...फिर उसके सिर के ऊपर एक
परेशान आवाज़ भौंकी.
“मॉस्को में मैं काफ़ी मशहूर हूँ, प्रोफेसर.
मुझे क्या करना चाहिये?”
“जेन्टलमैन!” फ़िलिप फिलीपविच उत्तेजना से चीख़ा, “ऐसा तो नहीं करना चाहिये. अपने आप पर नियंत्रण रखना
चाहिये. उसकी क्या उम्र है?”
“चौदह साल, प्रोफ़ेसर...आप समझ रहे हैं,
बात फ़ैलने से मैं बर्बाद हो जाऊँगा.
कुछ ही दिनों में विदेश की ट्रिप का मौका मिलने वाला है.”
“अरे, मैं कोई एडवोकेट नहीं हूँ,
प्यारे...तो, दो
साल रुक जाईये और उससे शादी कर लीजिये.”
“मैं शादी-शुदा हूँ,
प्रोफेसर.”
“आह, जेंटलमैन, जेंटलमैन!”
दरवाज़े खुलते रहे,
चेहरे बदलते रहे, अलमारी
में उपकरण खनखनाते रहे, और फ़िलिप फ़िलीपविच काम करता रहा, बिना
रुके.
‘घटिया
क्वार्टर है,’ कुत्ता सोच रहा था,
मगर,
कितना अच्छा है! और इसे मेरी ज़रूरत
क्यों पड़ गई? ज़िंदा तो रखेगा ना?
ग़ज़ब का आदमी है! वह सिर्फ आँख झपकाता, उसे
कोई बढ़िया कुत्ता मिल सकता था! और हो सकता है कि मैं भी ख़ूबसूरत हूँ. ज़ाहिर है, मेरा
सुख! और ये उल्लू गलीज़ है....बेशरम.’
पूरी तरह से कुत्ता देर शाम को जागा, जब
घंटियाँ रुक गईं थीं और ठीक उसी पल जब दरवाज़े ने ख़ास मेहमानों को भीतर छोड़ा. वे
एकदम चार थे. सब नौजवान और सबने बेहद मामूली कपड़े पहने थे.
‘इन्हें
क्या चाहिये?’ कुत्ते ने अचरज से सोचा.
फ़िलीप फिलीपविच बेहद नाराज़गी से मेहमानों से मिला. वह
लिखने की मेज़ के पास खड़ा था और आनेवालों की ओर ऐसे देख रहा था, जैसे
कोई कर्नल दुश्मनों की तरफ़ देखता है. उसकी
बाज़ जैसी नाक के नथुने फूल रहे थे. आने वाले कालीन को कुचल रहे थे.
“हम आपके पास,
प्रोफ़ेसर,”
उनमें से एक ने बोलना शुरू किया
जिसके सिर पर करीब आधा बालिश्त ऊँचे घने,
घुंघराले टोप जैसे बाल थे, “ये इस काम से...”
“आप, महानुभावों,
बेकार ही ऐसे मौसम में बगैर गलोशों
के घूमते हैं,” फिलिप फिलीपविच ने ज़ोर देकर उनकी बात काटी, “पहली बात, आपको ज़ुकाम हो जायेगा,
और,
दूसरी बात, आपने
मेरे कालीनों पर धब्बे बना दिये हैं, और मेरे सारे कालीन पर्शियन हैं.”
वह, टोप जैसे बालों वाला चुप हो गया और चारों अचरज से
फ़िलिप फिलीपविच को देखने लगे. चुप्पी कुछ पल रही और उसे सिर्फ मेज़ पर पड़ी हुई
डिज़ाईन वाली लकड़ी की तश्तरी पर फिलिप फिलीपविच की उँगलियों की खटखट ने ही तोड़ा.
“पहली बात, हम महानुभाव नहीं हैं,”
आख़िरकार उन चारों में से सबसे जवान, आडू
जैसे चेहरे वाले ने कहा.
“पहली बात,” फिलिप फिलीपविच ने बीच में ही उसे टोका, “आप मर्द हैं या औरत?”
चारों फ़िर से ख़ामोश हो गये और उनके मुँह खुले रह गये.
इस बार होश में आया पहला वाला, वही जिसके टोप जैसे बाल थे.
“क्या फ़र्क पड़ता है,
कॉम्रेड?”
उसने इतराते हुए पूछा.
“मैं – औरत हूँ,”
चमड़े का जैकेट पहने आडू जैसे नौजवान
ने स्वीकार किया और बुरी तरह लाल हो गया. उसके पीछे-पीछे आने वालों में एक और भी
खूब लाल हो गया – भेड़ की खाल की टोपी पहना भूरे बालों वाला.
“तब आप अपनी हैट पहने रह सकते हैं, और
आपसे, प्रिय महाशय,
विनती करता हूँ कि अपना शिरस्त्राण
उतार दें.
“मैं आपके लिये प्रिय महाशय नहीं हूँ,” भूरे बालों वाले ने अपनी टोपी उतारते हुए तैश से कहा.
“हम आपके पास आये हैं,” फिर से काले,
बालों के टोप वाले ने कहा.
“सबसे पहले – ये ‘हम’ कौन हैं?”
“हम – हमारी बिल्डिंग की नई हाउसिंग सोसाइटी हैं,” काले वाले ने अपने तैश को काबू में रखते हुए कहना शुरू
किया. “मैं – श्वोन्दर. ये – व्याज़ेम्स्काया,
वो – कॉम्रेड पिस्त्रूखिन और
शरोव्किन. और हम...”
“तो ये आपको फ्योदर पाव्लविच साब्लिन के क्वार्टर में
बसाया गया है?”
“हमें” श्वोन्दर ने जवाब दिया.
“ख़ुदा, कलाबुखोव्स्की बिल्डिंग बर्बाद हो गई!” अनमनेपन से
फ़िलिप फिलीपविच चहका और उसने हाथ हिला दिये.
“क्या आप, प्रोफेसर, हंस रहे हैं?”
“कैसा हंसना?!
मैं पूरी तरह बदहवास हू,” फिलिप फिलीपविच चीख़ा,
“अब स्टीम-हीटिंग का क्या होगा?”
“आप
मज़ाक उड़ा रहे हैं, प्रोफेसर प्रिअब्राझेन्स्की?”
“आप
किस काम के लिये मेरे पास आये हैं? जितनी जल्दी हो सके बतायें,
मैं अभी खाना खाने जा रहा हूँ.”
“हम, बिल्डिंग की हाऊसिंग सोसाइटी,” श्वोन्देर ने नफ़रत से बोलना शुरू किया, “हमारी बिल्डिंग के निवासियों की जनरल-बॉडी मीटिंग के
बाद आये हैं, जिसमें बिल्डिंग के क्वार्टर्स में निवासियों की
संख्या का सवाल उठाया गया था...”
“किसे कहाँ उठाया गया था?”
फिलिप फिलीपविच चीखा,
“अपने विचार अधिक स्पष्ट रूप से समझाने की कोशिश कीजिए.”
“सवाल उठा था आबादी बढ़ाने के बारे में.”
“बस! मैं समझ गया! आपको पता है, कि
इस साल के 12 अगस्त को प्रकाशित नियम के अनुसार मेरा क्वार्टर किसी भी तरह के
आवासीय-घनेपन और आवास परिवर्तनों से मुक्त है?”
“मालूम है,” श्वोन्देर ने जवाब दिया,
“मगर जनरल बॉडी मीटिंग, आपके
सवाल का अध्ययन करने के बाद, इस निष्कर्ष पर पहुँची कि आप बहुत बड़ी जगह पर कब्ज़ा
जमाये हुए हैं. बेहद बड़ी. आप अकेले सात कमरों में रहते हैं.”
“सात कमरों में मैं अकेला रहता हूँ और काम करता हूँ,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने जवाब दिया, “ और मुझे आठवें कमरे की ज़रूरत है. मुझे लाइब्रेरी के
लिये उसकी ज़रूरत है.”
चारों की बोलती बंद हो गई.
“आठवाँ! ए-हे-हे,”
भूरे बालों वाला बोला, जिसके
सिर पर अब कैप नहीं थी, “ख़ैर, ये बढ़िया है.”
“ये अवर्णनीय है!” नौजवान,
जो लड़की था, चहका.
“मेरे यहाँ है बैठक का कमरा – ग़ौर कीजिये – वही
लाइब्रेरी भी है, डाइनिंग रूम,
मेरा अध्ययन कक्ष - 3. मरीज़ देखने वाला
कमरा – 4. ऑपरेशन रूम – 5. मेरा शयन कक्ष – 6 और सेविका का कमरा – 7. मतलब, पूरा
नहीं पड़ता...अच्छा, ख़ैर, ये महत्वपूर्ण नहीं है. मेरा क्वार्टर सभी नियमों से
आज़ाद है, और बात ख़त्म. क्या मैं लंच के लिये जा सकता हूँ?”
“माफ़ी चाहता हूँ,”
चौथे ने कहा, जो
मोटे गुबरैले जैसा था.
“माफ़ी
चाहता हूँ,” श्वोन्देर ने उसकी बात काटी, “हम ख़ासकर डाइनिंग-रूम और मरीज़ देखने वाले जाँच-कक्ष के
ही बारे में बात करने आये हैं. जनरल-बॉडी मीटिंग आपसे विनती करती है कि
कामगार-अनुशासन के तहत आप स्वेच्छा से, डाइनिंग-रूम को छोड़ दें. मॉस्को में किसी के भी पास
डाइनिंग-रूम नहीं है.”
“इसादोरा डंकन के पास भी नहीं है,” खनखनाती आवाज़ में लड़की चीखी.
फ़िलिप फिलीपविच को कुछ हो गया, जिसके
कारण उसका चेहरा हौले से लाल हो गया और उसने एक भी लब्ज़ नहीं कहा,
इंतज़ार करते हुए कि आगे क्या होगा.
“और जाँच वाला कमरा भी,”
श्वेन्देर ने अपनी बात जारी रकी, “जाँच वाले कमरे को आसानी से शयन-कक्ष से जोड़ा जा सकता
है.”
“उहू,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कुछ अजीब सी आवाज़ में कहा, “और मुझे खाना कहाँ खाना चाहिये?”
“शयन-कक्ष में” चारों ने एक सुर में उत्तर दिया.
फ़िलिप फ़िलीपविच के चेहरे की लाली में कुछ भूरी झलक
दिखाई दी.
“शयन-कक्ष में खाना खाऊँ,”
उसने कुछ घुटी हुई आवाज़ में बोलना
शुरू किया, “जाँच वाले कमरे में पढूँ,
बैठक वाले कमरे में कपड़े पहनूँ, सेविका
के कमरे में ऑपरेशन करूँ, और डाइनिंग रूम में मरीज़ देखूँ. काफ़ी संभव है कि
इसादोरा डंकन भी ऐसा ही करती हो. हो सकता है कि वह अध्ययन-कक्ष में खाना खाती हो, और
खरगोशों को बाथ-रूम में काटती हो. हो सकता है. मगर मैं इसाडोरा डंकन नहीं
हूँ!”...वह अचानक चिंघाड़ा और उसके चेहरे की लाली पीली हो गई. “मैं डाइनिंग रूम में
ही खाना खाऊँगा, और ऑपरेशन-रूम में ही ऑपरेशन करूँगा. जनरल=बॉडी मीटिंग
को बता दीजिये और बड़ी नम्रता से विनती करता हूँ कि अपने-अपने काम पर लौट जाईये, और
मुझे खाना खाने का मौका प्रदान करें वहीं,
जहाँ सभी सामान्य लोग खाते हैं, मतलब
डाइनिंग-रूम में, न कि प्रवेश-कक्ष में और न ही बच्चों वाले कमरे में.”
“तो फ़िर, प्रोफ़ेसर, आपके अडीयल रवैये और विरोध को देखते हुए,” उत्तेजित श्वोन्देर ने कहा,
“हम उच्च अधिकारियों से आपके ख़िलाफ़
शिकायत करेगे.”
“आहा,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा,
“ऐसा?”
और उसकी आवाज़ में सन्देहास्पद
विनम्रता का पुट आ गया, “कृपया एक मिनट इंतज़ार करें.”
‘ये
है ना जवान,’ कुत्ते ने उत्तेजना से सोचा, ‘बिल्कुल मेरी तरह. ओह,
अब नोचेगा वह उन्हें, ओह, नोचेगा.
अभी पता नहीं कि किस तरह से, मगर ऐसा नोचेगा...मार उन्हें! इस घुटनों तक जूते पहने
को जूते से ऊपर टखने के नीचे...र्-र्-र्....’
फ़िलिप फ़िलीपविच ने टक-टक करके, टेलिफ़ोन
का रिसीवर लिया और उसमें ऐसा कहा:
“प्लीज़....हाँ...धन्यवाद.
प्योत्र अलेक्सान्द्रविच को दीजिये, प्लीज़. प्रोफेसर प्रिअब्राझेन्स्की . प्योत्र
अलेक्सान्द्रविच? बहुत ख़ुश हूँ कि आप मिले. धन्यवाद, अच्छा
हूँ. प्योत्र अलेक्सान्द्रविच आपका ऑपरेशन रद्द किया जाता है. क्या? पूरी
तरह से रद्द किया जाता है. अन्य सभी ऑपेरेशनों की तरह. इसलिये, कि
मैं मॉस्को में, और आम तौर से रूस में अपना काम बंद कर रहा हूँ...अभी
मेरे पास चार लोग आये हैं, उनमें एक लड़की भी है जिसने आदमी के कपड़े पहने हैं, और
दो के पास रिवॉल्वर्स हैं और वे मेरे क्वार्टर में आकर उसका कुछ हिस्सा छीन लेने
के उद्देश्य से आतंकित कर रहे थे.”
“प्लीज़, प्रोफ़ेसर,” श्वोन्देर ने शुरूआत की,
उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे.
“माफ़ कीजिये...जो कुछ भी वे कह रहे थे, उसे
दुहराना मेरे लिये संभव नहीं है. मुझे बकवास करने का शौक नहीं है. इतना ही कहना
काफ़ी है कि उन्होंने मुझे मरीज़ों की जाँच करने वाले कमरे को छोड़ देने का सुझाव
दिया है, दूसरे शब्दों में,
मुझे उस जगह आपका ऑपरेशन करने पर
मजबूर किया है जहाँ मैं अब तक ख़रगोश काटा करता था. ऐसे हालात में मेरे लिये न
सिर्फ काम करना असंभव है, बल्कि मेरे पास काम करने का अधिकार भी नहीं है. इसलिये
मैं अपना काम बंद कर रहा हूँ, क्वार्टर बंद कर रहा हूँ और सोची जा रहा हूँ. चाभियाँ
श्वोन्देर के पास छोड़ सकता हूँ. वह क्वार्टर का जो चाहे करे.”
चारों स्तब्ध हो गये. उनके जूतों पर जमी बर्फ पिघल रही
थी.
“क्या करें...मुझे ख़ुद को भी बहुत बुरा लग रहा
है...क्या? ओह, नहीं, प्योत्र अलेक्सान्द्रविच! ओह, नहीं.
इस तरह काम करने से मैं और ज़्यादा सहमत नहीं हूँ. मेरे सब्र का बांध टूट गया है.
अगस्त से यह दूसरा मामला है. क्या? हुम्...जैसा आप चाहें.कम से कम. मगर सिर्फ एक शर्त पर
: किसके द्वारा, कब, क्या ठीक है,
मगर ऐसा कोई कागज़ हो, जिसके
होने से न श्वोन्देर, न कोई और मेरे क्वार्टर के दरवाज़े के करीब भी फ़टक सके.
पक्का कागज़. वास्तविक! असली! कवच की तरह. ताकि फिर कभी मेरे नाम का ज़िक्र भी न हो.
बेशक. मैं उनके लिये मर चुका हूँ. हाँ. प्लीज़. किसके साथ?
आहा...ख़ैर, ये
और बात है. आहा...अभी रिसीवर देता हूँ. मेहेरबानी फ़रमाईये,” साँप जैसी फ़ुफ़कार से फ़िलिप फिलीपविच श्वोन्देर से
मुख़ातिब हुआ, “अभी आपसे बात करेंगे.”
“माफ़ कीजिये,
प्रोफ़ेसर,”
श्वोन्देर, कभी
भड़कते हुए, कभी बुझते हुए कहा,
“आपने हमारे शब्दों को तोड़-मरोड़ कर
पेश किया है.”
“आपसे प्रार्थना करता हूँ कि ऐसे वाक्यों का इस्तेमाल
न करें.”
श्वोन्देर ने व्यग्रता से रिसीवर लिया और बोला:
“सुन रहा हूँ. हाँ...हाऊसिंग कमिटी का
प्रेसिडेन्ट...नहीं, बिल्कुल नियमों के अनुसार...प्रोफ़ेसर का वैसे भी एक
ख़ास महत्वपूर्ण स्थान है...हम उनके काम के बारे में जानते हैं. पूरे पाँच कमरे
उनके पास छोड़ना चाह रहे थे...अच्छा, ठीक है...ठीक है...अच्छा...”
पूरी तरह से लाल,
उसने रिसीवर रख दिया और मुड़ा.
‘कितना
अपमानित हो गया था! ये है न पट्ठा!’ कुता प्रसन्नता से सोच रहा था, ‘वह क्या, कोई लब्ज़ जानता है?
ख़ैर,
अब चाहें तो मुझे मार भी सकते हैं –
जैसा चाहे करो, मगर मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा.’
तीनों, मुँह खोले, अपमान से लाल हुए श्वोन्देर की ओर देख रहे थे.
“ये बेहद शर्मिंदगी की बात है!’ वह
जैसे किसी और की आवाज़ में बोला.
“अगर अभी वाद-विवाद होता,”
महिला ने परेशानी से लाल होते हुए
कहा, “तो मैं प्योत्र अलेक्सान्द्रविच के सामने साबित ....”
“माफ़ी चाहता हूँ,
आप इसी पल तो यह वाद-विवाद शुरू करना
नहीं चाहती हैं ना?” शिष्टतापूर्वक फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा.
महिला की आँखें जलने लगीं.
“मैं आपका व्यंग्य समझती हूँ, प्रोफ़ेसर, हम
अभी चले जायेंगे...सिर्फ मैं बिल्डिंग के सांस्कृतिक विभाग का संचालक होने के
नाते....”
“सं-चा-लि-का,”
फ़िलिप फिलीपविच ने उसकी गलती सुधारी.
“आपको सुझाव देना चाहती हूँ,” अब महिला ने कोट के भीतर से कुछ चमकदार और बर्फ से
गीली हो गईं पत्रिकाएँ निकालीं, “ कि आप जर्मनी के बच्चों की सहायता के लिये इनमें से
कुछ पत्रिकाएँ लें. पचास कोपेक की एक.”
“नहीं, नहीं लूँगा,”
फ़िलिप फ़िलीपविच ने पत्रिकाओं की ओर
देखकर संक्षिप्त जवाब दिया.
सभी पूरी तरह भौंचक्के रह गये, और
औरत पर जैसे किसी ने करौंदे का रस उंडेल दिया.
“आख़िर आप क्यों इनकार कर रहे हैं?”
“नहीं चाहता.”
“क्या आपको जर्मनी के बच्चों के साथ हमदर्दी नहीं है?”
“हमदर्दी है.”
“पचास कोपेक का अफ़सोस है?”
“नहीं.”
“तो फ़िर क्यों?”
“नहीं चाहता.”
ख़ामोशी छा गई.
“ये जान लीजिये,
प्रोफ़ेसर,”
महिला ने गहरी सांस लेकर कहा, “अगर आप यूरोप में प्रसिद्ध नहीं होते, और
अगर इतनी बेरहमी से आपका समर्थन न किया होता (भूरे बालों वाले ने जैकेट के किनारे
से उसे खींचा, मगर उसने हाथ झटक दिया) उन लोगों ने, जिनके
सामने, मुझे यकीन है,
कि हम अभी स्पष्टीकरण देंगे, तो,
आपको तो गिरफ़्तार कर लेना चाहिये था.”
“किसलिये?” उत्सुकता से फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा.
“आप प्रोलेटरियेट से नफ़रत करते हैं!” गर्व से महिला ने
कहा.
“हाँ, मैं प्रोलेटेरियन्स को पसंद नहीं करता,” दयनीयता से फ़िलिप फ़िलीपविच ने सहमति दर्शाई और घंटी का
बटन दबाया.
“ज़ीना,” फिलिप फिलीपविच चीखा,
“खाना लगा दो. आप इजाज़त देंगे, महानुभावों?”
चारों ख़ामोशी से अध्ययन-कक्ष से बाहर निकल गये, ख़ामोशी
से जाँच वाले कमरे से, प्रवेश कक्ष से गुज़रे और सुनाई दिया कि कैसे धम् से
आवाज़ करता हुआ उनके पीछे प्रवेश द्वार बंद हुआ.
कुत्ता पिछले पंजों पर उठा और फ़िलिप फ़िलीपविच के सामने
नमाज़ की मुद्रा में झुक गया.
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