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बुधवार, 6 अक्टूबर 2021

Heart of a Dog - 6

 


अध्याय 6


सर्दियों की शाम थी. जनवरी के अंतिम दिन. लंच से पूर्व, कन्सल्टेशन से पूर्व का समय. स्वागत-कक्ष के दरवाज़े के पास एक चौखट पर सफ़ेद कागज़ लटक रहा था, जिस पर फ़िलिप फ़िलीपविच के हाथ से लिखा था:

“क्वार्टर में सूरजमुखी के बीज खाना मना है”.

फ़ि. प्रिअब्राझेन्स्की.

और नीली पेन्सिल से बड़े-बड़े, केक जैसे अक्षरों में बर्मेन्ताल के हाथों से:

“दोपहर पाँच बजे से सुबह सात बजे तक वाद्य यंत्र बजाना मना है”.

इसके बाद ज़ीना के हाथ से:

“जब वापस आयें, तो फ़िलिप फ़िलीपविच को बताईये : मुझे मालूम नहीं – वह कहाँ गया है. फ़्योदर ने बताया कि श्वोन्देर के साथ”.

प्रिअब्राझेन्स्की के हाथ से:

“क्या सौ साल शीशागर का इंतज़ार करूँगा?”

दार्या पित्रोव्ना के हाथ से (बड़े-बड़े अक्षरों में):

“ज़ीना दुकान में गई है, कह रही थी, उसे लाएगी”.

रेशमी लैम्प-शेड के कारण डाइनिंग रूम में बिल्कुल शाम जैसा लग रहा था. साईडबोर्ड से आती हुई रोशनी दो हिस्सों में बंट गई थी – आईनों के काँच एक किनारे से दूसरे किनारे तक टेढ़े-मेढ़े टेप की सहायता से चिपका दिये गये थे. फ़िलिप फ़िलीपविच मेज़ पर झुक कर अख़बार के खुले हुए बड़े पृष्ठ पर कुछ पढ़ने में मगन था. बिजलियाँ उसके चेहरे को विकृत कर रही थीं और होठों से कुछ संक्षिप्त, टूटे-फूटे, बुदबुदाते शब्द निकल रहे थे. वह एक टिप्पणी पढ़ रहा था:

“इसमें कोई सन्देह नहीं, कि यह उसका अवैध रूप से पैदा हुआ (जैसा कि सड़े हुए बुर्झुआ समाज में कहा करते थे) पुत्र है. इस तरह हमारे छद्म-वैज्ञानिक बुर्झुआ अपना दिल बहलाते हैं. हर कोई तब तक सात कमरों पर कब्ज़ा कर सकता है, जब तक इन्साफ़ की जगमगाती तलवार लाल किरण बनकर उसके ऊपर नहीं चमकती.

श्वो...र”

दो कमरे छोड़कर कोई लगन और मस्तीभरी निपुणता से बलालाइका बजा रहा था, और फ़िलिप फ़िलीपविच के दिमाग़ में “चाँद चमके...” के नाज़ुक आलापों की आवाज़ें टिप्पणी के शब्दों के साथ गड्ड-मड्ड होकर एक घिनौना पॉरिज बना रहे थे. पूरा पढ़ने के बाद, उसने रूखेपन से कंधे के पीछे थूक दिया और भिंचे हुए दांतों से गाने लगा:

च-अ-म-के चाँद... च-अ-म-के चाँद...चमके चाँद...छि, चिपक ही गई, ये नासपीटी धुन!”

उसने घंटी बजाई. परदों के बीच से ज़ीना का चेहरा झाँका.

“उससे कहो, कि पाँच बज चुके हैं, अब रोक दे, और उसे यहाँ बुलाओ, प्लीज़.”            

फ़िलिप फ़िलीपविच मेज़ के पास आरामकुर्सी में बैठा था. बायें हाथ की उँगलियों में कत्थई रंग के सिगार का टुकड़ा दबा था. परदे के पास, सरदल से टिककर, पैर पर पैर रखे, एक छोटे कद का और अप्रिय आकृति वाला आदमी खड़ा था. उसके सिर के बाल कड़े थे, जैसे किसी उखाड़े हुए खेत में कंटीली झाड़ियों के गुच्छे उग आये हों, और चेहरा बिना मुंडे बालों से ढंका था. माथा अपनी छोटी-सी ऊँचाई से चौंका रहा था. बिखरी हुई काली भौंहों के एकदम ऊपर से सिर के घने बालों का ब्रश शुरू हो गया था.

जैकेट को, जो बाईं बगल के नीचे फटा हुआ था, फूस से ढांक दिया गया था, धारियों वाली पतलून दाएँ घुटने पर फ़टी हुई थी, और बायें घुटने पर बैंगनी रंग का धब्बा पड़ा था. उस आदमी के गले में ज़हरीले-आसमानी रंग की टाई थी जिस पर कृत्रिम रूबी की पिन थी. इस टाई का रंग इतना चटख़दार था कि अपनी थकी हुई आँखों को बार-बार बंद करते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच घुप् अंधेरे में भी कभी छत पर तो कभी दीवार पर नीले मुकुट वाली दहकती मशाल देख रहा था. उन्हें खोलते हुए फ़िर से चुंधिया जाता, क्योंकि फ़र्श से चमकदार जूतों और सफ़ेद जुराबों से पंखे की तरह बिखरता प्रकाश आँखों में चुभता. जैसे गलोश पहने हों’, अप्रिय भाव से फ़िलिप फ़िलीपविच ने सोचा, गहरी सांस ली, नाक सुड़सुड़ाई और बुझे हुए सिगार में व्यस्त हो गया. दरवाज़े के पास खड़े आदमी ने धुंधली आँखों से प्रोफ़ेसर की ओर देखा और कमीज़ के सामने वाले हिस्से पर राख गिराते हुए सिगरेट पीता रहा.

दीवार पर लकड़ी के पक्षी की बगल में टंगी घड़ी पाँच बार बजी. जब फ़िलिप फ़िलीपविच ने बातचीत शुरू की  तब भी उसके भीतर कोई चीज़ कराह रही थी.

“मैंने, शायद, पहले भी दो बार कहा है कि किचन में लगे बिस्तर पर नहीं सोना चाहिये - ख़ास तौर से दिन में?”

आदमी भर्राई हुई आवाज़ में खाँसा, जैसे गले में कोई गुठली फंस गई हो, और बोला:  

“किचन की हवा ज़्यादा ख़ुशनुमा है.”

उसकी आवाज़ असाधारण थी, घुटी-घुटी, और साथ ही खनखनाती हुई, मानो किसी छोटे-से ड्रम से आ रही हो.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने सिर हिलाया और पूछा:

“ये घिनौनी चीज़ कहाँ से आई? मैं टाई के बारे में कह रहा हूँ.”

आदमी, आँखों को उँगली की दिशा में घुमाते हुए, उन्हें अपने उभरे हुए होठों तक लाया और प्यार से टाई की ओर देखने लगा.

“घिनौनापन कहाँ से हो गया?” उसने कहा, “शानदार टाई है. दार्या पित्रोव्ना ने गिफ्ट दिया है.”   “दार्या पित्रोव्ना ने गंदी चीज़ दी है, इन जूतों की तरह. ये चमकदार बकवास क्या है? कहाँ से आई? मैंने क्या कहा था? ब-ढ़ि‌-या जूते ख़रीदो; और ये क्या है? कहीं डॉक्टर बर्मेन्ताल ने तो नहीं चुने?”

“मैंने उससे कहा, कि पेटेन्ट चमड़े वाले चाहिये. मैं, क्या औरों से किसी बात में कम हूँ? कुज़्नेत्स्की पर जाईये, सभी पेटेन्ट लेदर वाले जूतों में दिखाई देंगे.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने सिर हिलाया और ज़ोर देकर कहा:

“किचन के बिस्तर पर सोना मना है. समझ में आया? ये क्या गुण्डागर्दी है? आप परेशान करते हैं. वहाँ महिलाएँ होती हैं.”

उस आदमी का चेहरा स्याह पड़ गया और होंठ गोल-गोल हो गये.

“”ओह, महिलाएँ. ज़रा सोचो. जैसे कोई मालकिनें हों. साधारण नौकर हैं, और नख़रे ऐसे जैसे कमिसार की बीबी हों. ये ज़ीन्का ही है, जो अफ़वाहें फ़ैलाती है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने कड़ाई से देखा:

“ज़ीना को ज़ीन्का कहने की हिम्मत न करना! समझ में आया?”

ख़ामोशी.

“समझ में आया, मैं आपसे पूछ रहा हूँ?”

“समझ गया.”

“गर्दन से ये गंदी चीज़ निकालो. आप....आप ज़रा आईने में अपने आप को देखिये, कैसे दिखते हैं. जैसे कोई जोकर हो. सिगरेट के टुकड़े फ़र्श पर नहीं फेंकना है – सौंवी बार कह रहा हूँ. मैं क्वार्टर में फ़िर कभी कोई गाली न सुनूँ! थूकना मना है! थूकदान यहाँ है. कमोड़ का इस्तेमाल सही तरीके से करना है. ज़ीना से किसी भी तरह की बात नहीं करोगे. वह शिकायत कर रही थी कि आप अँधेरे में उस पर निगरानी रखते हैं. ध्यान रहे! पेशन्ट को किसने जवाब दिया था “कुत्ता ही जाने”!? आप क्या, वाकई में शराबख़ाने में हैं?”

“आप तो, पपाशा, मुझे बेहद डांट रहे हैं,” आदमी अचानक रोनी आवाज़ में बोला.

फ़िलिप फ़िलीपविच का चेहरा लाल हो गया, चश्मा चमकने लगा.

“यहाँ आपका पपाशा कौन है? ये कैसी बेतकल्लुफ़ी है? मैं फ़िर कभी ये लब्ज़ न सुनूँ! मुझे अपने नाम और पिता के नाम से बुलाना है!” 

आदमी के चेहरे पर धृष्ठता का भाव प्रकट हुआ.

“ये आप बस कहे ही जा रहे हैं...कभी थूको मत...कभी सिगरेट मत पियो. वहाँ मत जाओ...ये सब असल में क्या है? बिल्कुल जैसे ट्राम में होता है. आप मुझे जीने क्यों नहीं देते?! और जहाँ तक “पपाशा” का सवाल है – ये आप बेकार ही परेशान हो रहे हैं. क्या मैंने आपसे कहा था ऑपरेशन करने के लिये?” आदमी गुस्से से भौंक रहा था, “बड़ा अच्छा काम किया! जानवर को पकड़ लिया, माथे पर चीरा लगा दिया और अब नफ़रत करते हैं. मैं, हो सकता है, ऑपरेशन के लिये कभी भी अपनी सम्मति नहीं देता. और उसी तरह (आदमी ने छत की तरफ़ अपनी आँखें उठाईं, जैसे कोई फॉर्मूला याद कर रहा हो), और मेरे रिश्तेदार भी नहीं देते. मेरे पास कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है.”     

फ़िलिप फ़िलीपविच की आँखें पूरी गोल-गोल हो गईं, हाथों से सिगार छूट गई. ओह, नमूना’, उसके दिमाग़ में कौंध गया.

“आप नाख़ुश हैं इस बात से कि आपको इन्सान में बदल दिया गया है?” आँख़ें सिकोड़ते हुए उसने पूछा, “आप, शायद, फ़िर से कचरे में भागना ज़्यादा पसन्द करते हैं? गलियों में ठण्ड से ठिठुरने में? ओह, अगर मुझे पता होता...”

ये आप क्या ताना दिये जा रहे हैं - कचरा, कचरा. मैं अपने लिये रोटी का टुकड़ा हासिल कर लेता था. और अगर मैं आपके चाकू के नीचे मर जाता तो? इस बारे में आप क्या कहेंगे, कॉम्रेड?”

“फ़िलिप फ़िलीपविच!” चिड़चिड़ाहट से फ़िलिप फ़िलीपविच चिल्लाया, “मैं आपका कॉम्रेड नहीं हूँ! ये ख़ौफ़नाक है! भयानक, भयानक’, उसके मन में ख़याल आता रहा.

“ओह, हाँ, बेशक, बेशक...” आदमी व्यंग्य से बोला और उसने विजयी मुद्रा में पैर हटा लिया, “हम सब समझते हैं. हम कैसे आपके कॉम्रेड हुए! कहाँ से. हम युनिवर्सिटियों में नहीं पढ़े हैं, स्नानगृह के साथ 15 कमरों वाले क्वार्टरों में नहीं रहे हैं. सिर्फ अब यह सब रोकने का समय आ गया है. आज के समय में हरेक के पास अपना अधिकार है...”

फ़िलिप फ़िलीपविच विवर्ण होते हुए मुँह से आदमी के तर्क सुनता रहा. उसने अपना भाषण रोक दिया और शान से हाथ में चबाई हुई सिगरेट लिये ऐश-ट्रे की तरफ़ आया. उसकी चाल ढीली-ढाली थी. वह बड़ी अदा से देर तक सिगरेट को ऐश-ट्रे में मसलता रहा, जैसे कह रहा हो: “लो! और लो!” सिगरेट बुझा कर, उसने चलते-चलते अचानक दाँत किटकिटाये और बगल के नीचे नाक घुसा दी. 

“उँगलियों से पिस्सू पकड़ो! उँगलियों से!” फ़िलिप फ़िलीपविच तैश में चीख़ा, “और मुझे समझ में नहीं आता – आप उन्हें कहाँ से लाते हैं?”

“क्या करें, मैं क्या उन्हें पालता हूँ?” आदमी बुरा मान गया, “ज़ाहिर है, पिस्सुओं को मुझसे प्यार है,“ अब उसने उँगलियों से आस्तीन के नीचे का अस्तर खंगाला और हल्की भूरी रूई का गुच्छा निकाल कर फेंक दिया.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने अपनी नज़र छत पर बनी बेलों पर गड़ा दी और मेज़ पर उँगलियों से टक-टक करने लगा. आदमी, पिस्सू को मारकर, दूर हटा और कुर्सी पर बैठ गया. उसने अपने हाथ नीचे, जैकेट के पल्लों की सीध में लटका दिये. उसकी आँखें लकड़ी के फ़र्श के चौख़ानों पर थीं. वह अपने जूते देख रहा था और इससे उसे बड़ी ख़ुशी हासिल हो रही थी. फ़िलिप फ़िलीपविच ने उस तरफ़ देखा, जहाँ उसके मोज़े प्रखरता से चमक रहे थे, आँख़ें सिकोडीं और बोला:

“आप मुझसे कुछ और भी कहना चाह रहे थे?”

“कहना क्या है! बात सीधी-सी है. फ़िलिप फ़िलीपविच, मुझे डॉक्युमेन्ट चाहिये.”

फ़िलिप फ़िलीपविच कुछ काँप गया.

“हुम्...शैतान! डॉक्युमेन्ट! वाकई में...हुम्...और, हो सकता कि, किसी तरह संभव हो...” उसकी आवाज़ में सन्देह और अप्रसन्नता थी.

“माफ़ कीजिये,” आदमी ने आत्मविश्वास से कहा. “बिना डॉक्युमेन्ट के कैसे? ये तो – माफ़ी चाहता हूँ. आप ख़ुद ही जानते हैं, बिना डॉक्युमेन्ट के आदमी के अस्तित्व पर सख़्त पाबन्दी है. पहली बात हाऊसिंग सोसाइटी...”

“यहाँ हाऊसिंग सोसाइटी का क्या काम है?”

“ऐसे कैसे, क्या काम है? मिलते हैं, पूछते हैं – अतिआदरणीय, तू कब रजिस्ट्रेशन करवा रहा है?”

“आह, ख़ुदा,” फ़िलिप फ़िलीपविच निढ़ाल होकर चहका. “मिलते हैं, पूछते हैं...कल्पना कर सकता हूँ कि आप उनसे क्या कहते होंगे. मैंने तो आपको सीढ़ियों पर मंडराने से मना किया था.”

“मैं, क्या कोई कैदी हूँ?” आदमी हैरान हो गया, और उसकी सच्चाई की चेतना से उसकी नकली रूबी भी दमक उठी, “और ये “मंडराना” क्या है?! आपके शब्द काफ़ी अपमानजनक हैं. मैं वैसे ही जाता हूँ, जैसे सब लोग जाते हैं.”

ऐसा कहते हुए वह अपने चमकीले जूतों से फ़र्श पर टक-टक करने लगा.

फ़िलिप फ़िलीपविच ख़ामोश हो गया, उसकी आँखें एक किनारे को चली गईं. अपने आप पर हर हालत में संयम रखना होगा’, उसने सोचा. साईडबोर्ड के पास जाकर वह एक ही दम में पानी का गिलास पी गया.

“बढ़िया,” उसने इत्मीनान से कहा, “बात लब्ज़ों की नहीं है. तो, आपकी ये शानदार हाऊसिंग कमिटी क्या कहती है?”

“उसे क्या कहना है...आप बेकार ही में शानदार कहकर उसे गाली दे रहे हैं. वह हितों की रक्षा करती है.”

“किसके हितों की, क्या मैं पूछ सकता हूँ?”

“ज़ाहिर है किसके – श्रमिक तत्व के.”

फ़िलिप फ़िलीपविच की आँखें फ़टी रह गईं.

“आप – श्रमिक कैसे हुए?”

“दाँ, ज़ाहिर है – नेपमैन नहीं हूँ (नई आर्थिक नीति के दौरान अपना निजी व्यवसाय करने वाले – अनु.) 

“चलो, ठीक है. तो, आपके क्रंतिकारी हितों की रक्षा करने के लिये उसे क्या चाहिये?”

“ज़ाहिर है क्या – मुझे रजिस्टर करना. वे कहते हैं – ऐसा कहीं देखा है कि कोई इन्सान बिना रजिस्ट्रेशन के मॉस्को में रहता हो. ये – पहली बात. मगर सबसे महत्वपूर्ण है एक रजिस्ट्रेशन कार्ड. मैं भगोड़ा बनकर नहीं रहना चाहता. फिर – प्रोफ़सयुज़, लेबर एक्सचेंज...” (यहाँ तात्पर्य है उन संस्थाओं से जहाँ बेरोज़गारों का रजिस्ट्रेशन होता था – अनु.)

“”और, ये बताने का कष्ट करें कि मैं आपको किस आधार पर रजिस्टर करूँ? इस मेज़पोश के या अपने पासपोर्ट के? आख़िर परिस्थिति पर विचार करना ही होगा. मत भूलिये कि आप...अं...हुम्...आप आख़िर, कहें तो, ‌अकस्मात् प्रकट हुए प्राणी हैं, लैबोरेटरी के,” फ़िलिप फ़िलीपविच का आत्मविश्वास कम होता जा रहा था.

आदमी विजेता के अंदाज़ में ख़ामोश रहा.

“बढ़िया... आख़िर किस चीज़ की ज़रूरत है आपके रजिस्ट्रेशन के लिये और आम तौर से आपकी इस हाऊसिंग कमिटी के प्लान के मुताबिक सब कुछ करने के लिये? क्योंकि आपके पास न तो कोई नाम है और न कुलनाम.”

“ये सरासर अन्याय है. नाम तो मैं आराम से अपने लिये चुन लूँगा. अख़बार में छपवा दो और बस...”

“आप कौनसा नाम रखना चाहते हैं?”

आदमी ने अपनी टाई ठीक की और जवाब दिया:

“पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच.”

“बेवकूफ़ी मत करो,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने नाक-भौंह चढ़ाकर कहा, “मैं आपसे संजीदगी से बात कर रहा हूँ.”

एक ज़हरीली मुस्कान ने आदमी की मूँछों को मरोड़ दिया.

“मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ,” उसने प्रसन्नता से और अर्थभरे अंदाज़ में कहा, “ मेरे लिये माँ की गाली देना मना है. थूकना – मना है. और मैं आपसे सिर्फ इतना ही सुनता हूँ : बेवकूफ़, बेवकूफ़” लगता है कि एरएसएफएसएर में (RSFSR – अनु.) सिर्फ प्रोफ़ेसरों को ही गाली देने की इजाज़त है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच जैसे खून में नहा गया, और ग्लास भरते हुए उसने उसे फ़ोड़ दिया. दूसरे ग्लास से पानी पीकर, उसने सोचा: कुछ और समय के बाद, ये मुझे सिखाने लगेगा और यह बिल्कुल सही होगा. अपने आप पर काबू नहीं रख पा रहा हूँ’.

वह अपनी कुर्सी पर घूमा, बेहद नम्रता से झुका और अत्यंत कठोरता से बोला:
“माफ़ कीजिये. मैं परेशान हूँ. आपका नाम मुझे अजीब-सा लगा. मुझे जानने में दिलचस्पी है कि आपने ऐसा नाम कहाँ से खोजकर निकाला है
?”

“हाऊसिंग कमिटी ने सुझाया है,. कैलेण्डर में ढूँढ रहे थे – पूछने लगे, तुझे कौनसा चाहिये? और मैंने चुन लिया.”

“किसी भी कैलेण्डर में इस तरह का कुछ नहीं हो सकता.”

“बड़े अचरज की बात है,” आदमी हँस पड़ा, “जबकि आपके जाँच वाले कमरे में लटक रहा है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच, बिना उठे वॉल-पेपर पर लगे बटन की ओर झुका, और घंटी की आवाज़ सुनकर ज़ीना प्रकट हुई.

“जाँच-कक्ष से कैलेण्डर लाओ.”

कुछ देर ख़ामोशी रही. जब ज़ीना कैलेण्डर के साथ वापस आई, तो फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा:

“कहाँ?”

“4 मार्च को मनाया जाता है.”

“दिखाइये...हुम्...शैतान...इसे भट्टी में फेंक दो, ज़ीना, फ़ौरन.”

ज़ीना भय से आँखें फ़ाड़े, कैलेण्डर लेकर चली गई, और आदमी ने उलाहने से सिर हिलाया.

“क्या कुलनाम बताने का कष्ट करेंगे?

“मैं अपना अनुवांशिक कुलनाम लेने पर सहमत हूँ.”

“कैसे? अनुवांशिक? मतलब?”

“शारिकव”

******

अध्ययन-कक्ष में मेज़ के सामने चमड़े की जैकेट पहने हाऊसिंग कमिटी का प्रेसिडेंट श्वोन्देर खड़ा था. डॉक्टर बर्मेन्ताल कुर्सी में बैठा था. डॉक्टर के बर्फ़ के कारण लाल हुए गालों पर (वह अभी-अभी लौटा था) उतना ही परेशानी का भाव था, जितना उसकी बगल में बैठे हुए फ़िलिप फ़िलीपविच के मुख पर था.

“कैसे लिखना है?” उसने बेसब्री से पूछा.

“उसमें क्या है,” श्वोन्देर कहने लगा, “काम मुश्किल तो नहीं है. एक सर्टिफिकेट लिखिये, नागरिक प्रोफ़ेसर, कि ऐसा, अलाना-फ़लाना, इस सर्टिफिकेट का धारक वाकई में शारिकव पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच है, हम्...जिसका जन्म, मतलब, आपके क्वार्टर में हुआ है.”

बर्मेन्ताल अविश्वास से अपनी कुर्सी में कसमसाने लगा. फ़िलिप फ़िलीपविच अपनी मूँछ खींचने लगा. 

हम्...शैतान ले जाये! इससे बड़ी बेवकूफ़ी की बात कोई हो ही नहीं सकती. वो कोई पैदा-वैदा नहीं हुआ है, बल्कि सिर्फ़...ख़ैर, एक लब्ज़ में...”

“वो सब – आपका मामला है” – श्वोन्देर ने शान्त कटुता से कहा, “पैदा हुआ या नहीं...वैसे, सारांश यह है कि आपने प्रयोग किया था, प्रोफ़ेसर! आपने ही नागरिक शारिकव का निर्माण किया था.”

“और, बहुत आसान है,” किताबों की अलमारी से शारिकव भौंका. वह आईने की अंतहीनता में प्रतिबिम्बित हो रही अपनी टाई को निहार रहा था.

“मैं आपसे खूब-खूब विनती करता हूँ,” फ़िलिप फ़िलीपविच गुर्राया, “बातचीत में दखल न दें. आप बेकार ही में कह रहे हैं और, बहुत आसान है – ये ज़रा भी आसान नहीं है.”

“मैं दखल क्यों नहीं दे सकता,” शारिकव आहत होकर भुनभुनाया. श्वोन्देर ने फ़ौरन उसका समर्थन किया.

“माफ़ कीजिये, प्रोफ़ेसर, नागरिक शारिकव बिल्कुल सही कह रहा है. ये उसका अधिकार है – उसके अपने भविष्य के निर्णय के बारे में हो रही बातचीत में दखल देने का, ख़ासकर तब, जब बातचीत उसके डॉक्यूमेंट से संबंधित है.  डॉक्यूमेन्ट – दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है.”      

इसी समय कान के ऊपर टेलिफ़ोन की बहरा कर देने वाली घंटी ने बातचीत में ख़लल डाल दिया. फ़िलिप फ़िलीपविच ने रिसीवर में कहा: “हाँ”...वह लाल पड़ गया और चीख़ा:

“कृपया छोटी-छोटी बातों से मुझे परेशान न करें. आपको इससे क्या करना है?” और उसने ज़ोर से रिसीवर को हुक पर लटका दिया.

श्वोन्देर के चेहरे पर नीली-नीली प्रसन्नता छा गई.

फ़िलिप फ़िलीपविच, लाल होते हुए, चीख़ा:

“एक लब्ज़ में, ये ख़तम करेंगे.”

उसने नोटबुक से एक पन्ना फ़ाड़ा और उस पर कुछ शब्द लिखे, इसके बाद चिड़चिड़ाहट से ज़ोर से पढ़ा:

“एतद् द्वारा प्रमाणित करता हूँ”...शैतान जाने, ये सब क्या है...हुम्...”इसके धारक को – जो प्रयोगशाला में मस्तिष्क पर किये गये ऑपरेशन के फ़लस्वरूप प्राप्त किया गया इन्सान है, डॉक्यूमेन्ट्स की आवश्यकता है”...शैतान! वैसे मैं पूरी तरह इन बेवकूफ़ी भरे डॉक्यूमेन्ट्स को हासिल करने के ख़िलाफ़ हूँ. हस्ताक्षर – “प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की”.

“बड़ी अजीब बात है, प्रोफ़ेसर,” श्वोन्देर बुरा मान गया, “आप डॉक्यूमेन्ट्स को बेवकूफ़ीभरे कैसे कह सकते हैं? मैं बिल्डिंग में ऐसे किरायेदार को रहने की इजाज़त नहीं दे सकता जो बगैर  डॉक्यूमेन्टस के है, और जिसका पुलिस ने मिलिट्री सेवा के लिये रजिस्ट्रेशन न किया हो. और अगर अचानक साम्राज्यवादी लुटेरों के साथ युद्ध हो जाये तो?”

मैं युद्ध करने के लिये कहीं नहीं जाऊँगा,” शारिकव अचानक उदासी से अलमारी के अन्दर भौंका.

श्वोन्देर भौंचक्का रह गया, मगर फ़ौरन संभल गया और उसने नम्रता से शारिकव से कहा:

“नागरिक शारिकव, आप बेहद नासमझी की बात कर रहे हैं. मिलिट्री सेवा के लिये रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य है.”

“रजिस्ट्रेशन करवा लूँगा, मगर युद्ध – सवाल ही नहीं उठता,” – अपनी टाई ठीक करते हुए शारिकव ने अप्रियता से जवाब दिया.                       

अब श्वोन्देर की बारी थी शर्मिन्दा होने की. प्रिअब्राझेंस्की ने कटुता और दुख से बर्मेन्ताल की ओर देखा: “क्या नैतिकता की कोई ज़रूरत नहीं है”. बर्मेन्ताल ने अर्थपूर्ण ढंग से सिर हिलाया.

“मैं ऑपरेशन के दौरान गंभीर रूप से घायल हुआ था,” शारिकव ने रिरियाते हुए कहा, “ देख, मेरा ये हाल किया गया,” और उसने सिर की ओर इशारा किया. माथे पर आरपार ऑपरेशन का बेहद ताज़ा घाव का निशान था.

“क्या आप अराजकतावादी-व्यक्तिवादी हैं?” श्वोन्देर ने भौंहे ऊपर उठाते हुए पूछा.  

“मुझे सफ़ेद टिकट की ज़रूरत है,” शारिकव ने इस पर जवाब दिया. (सफ़ेद टिकट से तात्पर्य है सक्रिय युद्ध से छूट, अन्य कार्यों के लिये इस्तेमाल – अनु.)    

ख़ैर, ठीक है, अभी ये ज़रूरी नहीं है,” आश्चर्यचकित श्वोन्देर ने जवाब दिया, “मुद्दा यह है, कि हम प्रोफ़ेसर का सर्टिफिकेट पुलिस को भेजेंगे और हमें डॉक्यूमेन्ट देंगे.”

“देखो, अं...” अचानक किसी ख़याल से परेशान फ़िलिप फ़िलीपविच ने उसकी बात काटी, “आपके पास बिल्डिंग में कोई ख़ाली कमरा तो नहीं है? मैं उसे ख़रीदने के लिये तैयार हूँ.”

शोन्देर की भूरी आँखों में पीली चिंगारियाँ प्रकट हुईं.

नहीं, प्रोफ़ेसर, बेहद अफ़सोस है. और कोई उम्मीद भी नहीं है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने होंठ भींच लिये और कुछ नहीं कहा. टेलिफ़ोन फ़िर से ज़ोर से बज उठा. फ़िलिप फ़िलीपविच ने कुछ भी पूछे बिना स्टैण्ड से रिसीवर इस तरह फेंक दिया, कि वह कुछ गोल-गोल घूमकर अपने नीले तार से लटक गया. सब काँप गये. “बूढ़ा नर्व्हस हो गया है,” बर्मेन्ताल ने सोचा, और श्वोन्देर आँखों में चमक लिये, झुका और बाहर निकल गया.

जूते चरमराते हुए शारिकव भी उनके पीछे चल पड़ा.

प्रोफ़ेसर बर्मेन्ताल के साथ अकेला रह गया. कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद फ़िलिप फ़िलीपविच ने हौले से सिर हिलाया और बोला:

“ये भयानक है, ईमानदारी से. आप देख रहे हैं? कसम से कहता हूँ, प्रिय डॉक्टर, इन दो हफ़्तों में मैं इतना थक गया हूँ जितना पिछले चौदह सालों में नहीं थका था! ये है – नमूना, मैं आपसे कह रहा हूँ...”

दूर कहीं हल्के से काँच के टूटने की आवाज़ आई, फिर किसी औरत की घुटी-घुटी चीख़ सुनाई दी और फ़ौरन ही ख़ामोश हो गई. कोई शैतानी ताकत जाँच-कक्ष की तरफ़ बढ़ते हुए कॉरीडोर में वॉल-पेपर से टकराई, वहाँ कुछ गिरने की आवाज़ आई, और वह फ़ौरन तेज़ी से वापस लौट गई. दरवाज़े भड़भड़ाने लगे, और किचन से दार्या पित्रोव्ना की हल्की चीख़ सुनाई दी. इसके बाद शारिकव गुर्राने लगा.
“ऐ ख़ुदा
, अब और क्या है!” दरवाज़े की ओर लपकते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच चीख़ा.

“बिल्ली,” बर्मेन्ताल ने अनुमान लगाया और उसके पीछे उछला. वे कॉरीडोर से होते हुए प्रवेश कक्ष तक भागे, उसमें घुस गये, वहाँ से वापस कॉरीडोर में मुड़े टॉयलेट और बाथरूम की तरफ़. किचन से ज़ीना उछल कर बाहर आई और धड़ाम् से फ़िलिप फ़िलीपविच से टकराई.

“कितनी बार मैंने कहा है – कि बिल्लियों का नामोनिशान न रहे,” फ़िलिप फ़िलीपविच जंगलीपन से चिल्लाने लगा. “कहाँ है वह? इवान अर्नोल्दविच, ख़ुदा के लिये, स्वागत कक्ष में मरीज़ों को शांत कीजिये!”

“बाथरूम में, नासपीटा शैतान बाथरूम में बैठा है,” ज़ीना हाँफ़ते हुए चिल्लाई.

फ़िलिप फ़िलीपविच बाथरूम के दरवाज़े पर टूट पड़ा, मगर वह खुला ही नहीं.

“फ़ौरन खोलो!”

जवाब में बंद बाथरूम में दीवारों पर कोई चीज़ कूदी, बेसिन खड़खड़ाये , दरवाज़े के पीछे शारिकव की जंगली आवाज़ गरजी:
“यहीं पर मार डालूँगा...”

पानी पाईपों में शोर मचाते हुए गिर रहा था. फ़िलिप फ़िलीपविच दरवाज़े पर झुक कर उसे तोडने की कोशिश करने लगा. पसीने से लथपथ, विकृत चेहरा लिये दार्या पित्रोव्ना किचन की देहलीज़ पर प्रकट हुई. इसके बाद ऊँचा शीशा, जो बाथरूम की छत के ठीक नीचे से किचन में खुलता था, लम्बी दरार बनाते हुए चटक गया और उसमें से काँच के दो टुकडे गिर पड़े, और उनके पीछे गिरा एक भारी-भरकम बिल्ला, जिसके बदन पर शेर जैसे गोले थे और गर्दन में नीली टाई थी, पुलिस इन्स्पेक्टर जैसा. वह सीधा मेज़ पर लम्बी प्लेट में गिरा, उसके दो टुकड़े कर दिये, प्लेट से फ़र्श पर गिरा, फिर तीन टाँगों पर मुड़ गया, और दाईं टाँग इस तरह हिलाने लगा, जैसे डान्स कर रहा हो, और फ़ौरन चोर-सीढ़ी पर तंग झिरी से बाहर फ़िसल गया. झिरी चौड़ी हो गई, और बिल्ला स्कार्फ़ पहनी बुढ़िया की आकृति में बदल गया. सफ़ेद मटर के दानों वाला बुढ़िया का स्कर्ट किचन में दिखाई दिया. बुढ़िया ने तर्जनी और बड़ी ऊँगली से अपना पोपला मुँह पोंछा, फूली-फूली और चुभती हुई आँख़ों से किचन में चारों तरफ़ देखा और उत्सुकता से बोली:

“ओह, क्राईस्ट!”

विवर्ण चेहरे से फ़िलिप फ़िलीपविच ने किचन पार किया और धमकाती आवाज़ में बुढ़िया से पूछा:

“आपको क्या चाहिये?”

“बोलने वाले कुत्ते को देखने की उत्सुकता है,” बुढ़िया ने ख़ुशामदी लहज़े में जवाब दिया और सलीब का निशान बनाया.

फ़िलिप फ़िलीपविच और भी विवर्ण हो गया, बुढ़िया के बिल्कुल पास गया और घुटनभरी फ़ुसफ़ुसाहट से बोला:

“इसी पल किचन से भाग जाओ!”

अपमानित होकर बुढ़िया पीछे-पीछे हटती हुई दरवाज़े की ओर गई और बोली:

“बेहद बदतमीज़ी से पेश आ रहे हैं, प्रोफ़ेसर महाशय.”

“भाग जा, कह रहा हूँ!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने दुहराया और उसकी आँखें गोल-गोल हो गईं, उल्लू जैसी. उसने ख़ुद ही धड़ाम् से बुढ़िया के पीछे काला दरवाज़ा बंद कर दिया, - “दार्या पित्रोव्ना मैंने तो आपसे कहा था!”

“फ़िलिप फ़िलीपविच,” दार्या पित्रोव्ना ने खुले हुए हाथों की मुट्ठियाँ भींचते हुए बदहवासी से जवाब दिया, “मैं क्या करूँ? लोग दिन भर घुसते रहते हैं, चाहे सबको बाहर फेंक दो.”    

बाथरूम में पानी घरघराहट और भयानकता से गरज रहा था, मगर अब आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी. डॉक्टर बर्मेन्ताल भीतर आया.

“इवान अर्नोल्दविच, संजीदगी से पूछ रहा हूँ...हुम्...कितने पेशन्ट्स हैं?”

ग्यारह,” बर्मेन्ताल ने जवाब दिया.

“सबको छोड़ दीजिये, आज मैं किसी को नहीं देखूँगा.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने उँगली के पोर से दरवाज़ा खटखटाया और चिल्लाया:

“इसी पल बाहर निकलने की मेहेरबानी कीजिये! आपने ख़ुद को बंद क्यों कर लिया है?”   

“ऊ-ऊ!” शारिकव की दयनीय और मंद आवाज़ ने जवाब दिया.

“क्या मुसीबत है!...कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा है, पानी बंद करो.”

“आऊ!आऊ! ...”

“अरे पानी बंद करो! उसने क्या कर दिया है – समझ नहीं पा रहा हूँ...” फ़िलिप फ़िलीपविच उन्माद से चीख़ा.

ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना, दरवाज़ा खोलकर, किचन से बाहर देख रही थीं. फ़िलिप फ़िलीपविच ने एक बार फिर मुट्ठी से दरवाज़ा भड़भड़ाया.

“ये रहा वो!” दार्या पित्रोव्ना किचन से चीख़ी.

फ़िलिप फ़िलीपविच उस ओर लपका. छत के नीचे फूटी हुई खिड़की में पलिग्राफ़ पलिग्राफविच का चेहरा दिखाई दिया जो किचन में झुक रहा था. वह टेढ़ा हो रहा था, आँखों में आँसू थे, और नाक के पास सीधे जा रही थी - ताज़े खून से दहकती हुई खरोंच.

“आप क्या पागल हो गये हैं?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा. “बाहर क्यों नहीं निकलते?”

शारिकोव ने ख़ुद भी दुख और भय से इधर-उधर देखा और जवाब दिया:

“मेरे हाथ से ताला बंद हो गया है.”

“ताला खोलिये. क्या आपने कभी ताला नहीं देखा है?”

“अरे, नहीं खुल रहा है, नासपीटा!” पलिग्राफ़ ने भय से जवाब दिया.

भला हो! उसने सेफ़्टी-लॉक तोड़ दिया है!” ज़ीना चीख़ी और हाथ नचाने लगी.                 

वहाँ एक बटन है, देखो!” अपनी आवाज़ को पानी के शोर से ऊँचा करने के लिये फ़िलिप फ़िलीपविच चिल्ला रहा था, “उसे नीचे की ओर दबाइये...नीचे दबाइये! नीचे!”

शारिकोव ग़ायब हो गया और एक मिनट बाद फ़िर से खिड़की में प्रकट हुआ.

“कोई कुत्ता नज़र नहीं आ रहा है,” वह भय से खिड़की में भौंका.

“अरे बल्ब जलाइये. वह पागल हो गया है!”

“नासपीटे बिल्ले ने बल्ब चकनाचूर कर दिया,” शारिकव ने जवाब दिया, “और मैं, उस कमीने को टाँग से पकड़ने लगा, नल खुल गया, और अब मैं ढूँढ़ नहीं पा रहा हूँ.”

तीनों हाथ नचाने लगे और उसी हालत में जैसे जम गये.

करीब पाँच मिनट बाद बर्मेन्ताल, ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना एक कतार में गीले कालीन पर बैठे थे, जिसे पाईप की तरह गोल-गोल लपेट कर दरवाज़े की चौखट के पास रखा था, और वे उसे अपने पृष्ठभागों से पीछे-पीछे दरवाज़े के नीचे वाली दरार की तरफ़ दबा रहे थे, और दरबान फ़्योदर दार्या पित्रोव्ना के विवाह-समारोह की जलती हुई मोमबत्ती लिये लकड़ी की सीढ़ी से छत वाली खिड़की में घुसा. बडे-बड़े भूरे चौखानों में उसके पृष्ठभाग की झलक हवा में लहराई और छेद में ग़ायब हो गई.

“दू...ऊ-ऊ!” पानी की गरज के बीच शारिकव कुछ चिल्लाया.

फ़्योदर की आवाज़ सुनाई दी:

“फ़िलिप फ़िलीपविच, जो भी हो खोलना तो पड़ेगा, पानी बह जाने दें, किचन में से सोख लेंगे.”

“खोलिये!” फ़िलिप फ़िलीपविच गुस्से से चीखा.    

तीनों कालीन से उठ गये, बाथरूम का दरवाज़ा दबाया और फ़ौरन थपेड़े लगाते हुए पानी की तेज़ लहर कॉरीडोर में घुस गई. यहाँ वह तीन धाराओं में बंट गई : सीधे सामने वाले टॉयलेट में, दायें  – किचन में और बायें  प्रवेश कक्ष में. छपछपाते और उछलते हुए ज़ीना ने उस पर धड़ाम से दरवाज़ा बंद कर दिया. टखनों तक गहरे पानी से न जाने क्यों मुस्कुराते हुए फ़्योदर बाहर आया. वह ऑइलक्लॉथ जैसा लग रहा था – पूरा गीला.

“मुश्किल से बंद किया, पानी का दबाव बहुत ज़्यादा था,” उसने स्पष्ट किया.

“ये कहाँ है?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा और गाली देते हुए अपना एक पैर उठाया.

“बाहर आने से डर रहा है,” बेवकूफ़ी से खिखियाते हुए फ़्योदर ने कहा.        

मारोगे तो नहीं, पापाजी?” बाथरूम में से शारिकव की रुँआसी आवाज़ आई.

“बदमाश!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने संक्षिप्त उत्तर दिया.

ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना घुटनों तक अपने स्कर्ट उठाये, नंगे पैर; और शारिकव वाचमैन के साथ, पतलून ऊपर की ओर मोड़े, नंगे पाँव किचन के फ़र्श पर गीले चीथड़ों से पानी सोख-सोखकर उसे गंदी बाल्टियों और सिंक में निचोड़ रहे थे. परित्यक्त चूल्हा गुनगुना रहा था. पानी दरवाज़े से बाहर निकलते हुए पिछली, गूंजती हुई सीढ़ियों पर बहकर सीधे बेसमेन्ट में गिर रहा था. 

बर्मेन्ताल, प्रवेश कक्ष के फ़र्श पर गहरे डबरे में पंजों के बल खड़े होकर जंज़ीर के सहारे थोड़े से खुले दरवाज़े से बातचीत कर रहा था.

“आज मरीज़ नहीं देखे जायेंगे, प्रोफ़ेसर बीमार हैं. मेहेरबानी से दरवाज़े से दूर हट जाइये, हमारे यहाँ पानी का पाईप टूट गया है...”

“मगर कब देखेंगे?” दरवाज़े के पीछे से आवाज़ आई, “मुझे सिर्फ एक मिनट के लिये...”

“नहीं कर सकता,” बर्मेन्ताल उँगलियों से एड़ियों पर आया, “प्रोफ़ेसर सो रहे हैं और पाईप टूट गया है. कल आईये. ज़ीना! प्यारी! यहाँ से पोंछिये, नहीं तो वह प्रमुख सीढ़ियों पर बह जायेगा.

“चीथड़े सोख नहीं पा रहे हैं.”. 

“अभी बर्तनों से भर-भर के निकालते हैं”, फ़्योदर ने जवाब दिया, “अभी, फ़ौरन.”

एक के बाद एक घंटियाँ बजती रहीं और बर्मेन्ताल टखनों तक पानी में खड़ा था.

“आख़िर ऑपरेशन कब है?” एक ज़िद्दी आवाज़ बोली और दरार से भीतर घुसने की कोशिश करने लगी.   

“पाईप टूट गया है...”

“मैं गलोशों में गुज़र जाऊँगा...”

दरवाज़े के पीछे नीली-नीली आकृतियाँ प्रकट हुईं.

“नहीं, कृपया कल आइये.”

“मगर मेरा अपॉइन्टमेन्ट है.”

“कल. पानी के पाइप की दुर्घटना हो गई है.”

फ़्योदर, तालाब में छपछपाते हुए, डॉक्टर के पैरों के पास जग से खुरच रहा था, और खरोंचोवाले शारिकव ने एक नया ही तरीका ढूँढ़ निकाला था. उसने एक भारी-भरकम कपड़े को पाईप की तरह गोल-गोल लपेटा, पेट के बल पानी में लेट गया और उसे प्रवेश कक्ष से वापस बाथरूम की ओर धकेलने लगा.

“अरे शैतान, ये तू पूरे क्वार्टर में क्या धकेल रहा है?” दार्या पित्रोव्ना ने गुस्से से कहा, “सिंक में निचोड़.”

“सिंक में क्या,” हाथों से गंदा पानी पकड़ते हुए शारिकव ने जवाब दिया, “वह प्रवेश द्वार पर भाग जायेगा.”

कॉरीडोर से चरमराते हुए एक बेंच बाहर आई, जिस पर धारियों वाले नीले मोज़ों में बदहवासी से ख़ुद को संतुलित करते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच पसरा हुआ था. “इवान अर्नोल्दविच, उन्हें जवाब देना बंद कीजिये. बेडरूम में चलिये, मैं आपको जूते देता हूँ.”

“कोई बात नहीं, फ़िलिप फ़िलीपविच, छोटी-सी बात है.”

“गलोश पहन लीजिये.”

“ओह, कोई बात नहीं. वैसे भी पैर गीले हो चुके हैं.”

“आह, ख़ुदा!” फ़िलिप फ़िलीपविच परेशान हो गया.

“किस कदर ख़तरनाक जानवर है!” अचानक शारिकव के मुँह से निकला और वह हाथ में सूप का बाऊल लिये उकडू बैठ गया.

बर्मेन्ताल ने धड़ाम से दरवाज़ा बंद किया, अपने आपको रोक नहीं पाया और हँस पड़ा. फ़िलिप फ़िलीपविच के नथुने फूल गये, चश्मा चमकने लगा.

“आप किसके बारे में बात कर रहे हैं?” उसने ऊपर से शारिकव से पूछा, “मेहेरबानी करके बतायें.”

“बिल्ले के बारे में कह रहा हूँ. ऐसा हरामी है,” शारिकव ने आँखें नचाते हुए जवाब दिया.

“जानते हैं, शारिकव,” गहरी साँस लेते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा, “ मैंने वाकई में इतना ढीठ प्राणी नहीं देखा जितने आप हैं.”

बर्मेन्ताल खिलखिलाया.

“आप”, फ़िलिप फ़िलीपविच कहता रहा, “बेहद गुस्ताख हैं. आपकी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की? आपने ये सब किया है और फ़िर भी फ़रमाते हैं... अरे नहीं! शैतान ही जाने कि यह सब क्या है!”

“शारिकव, मुझे बताइये, प्लीज़,” बर्मेन्ताल ने कहा, “अभी और कितने दिन आप बिल्लियों के पीछे भागते रहेंगे? शर्म कीजिये! आख़िर ये बेहूदगी है! जंगली!”

“मैं कहाँ से जंगली हुआ?” मुँह बनाकर शारिकव ने कहा, “मैं कोई जंगली-वंगली नहीं हूँ. क्वार्टर में उसे बर्दाश्त करना नामुमकिन है. बस, सिर्फ़ ढूँढ़ता ही रहता है – कि कैसे कुछ चुरा ले. दार्या का कीमा खा गया. मैं उसे सबक सिखाना चाहता था.”

“आपको ख़ुद ही सीखने की ज़रूरत है!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा, “आप ज़रा आईने में अपनी शकल देखिये.”

“मेरी तो आँख ही चली गई थी,” आँख को गंदे, गीले हाथ से छूते हुए शारिकव ने उदासी से कहा.

जब नमी से काला पड़ गया लकड़ी का फ़र्श कुछ सूखा, सारे आईने घनी भाप से ढँक गये और घंटियाँ भी रुक गईं. फ़िलिप फ़िलीपविच लाल, नरम जूतों में प्रवेश कक्ष में खड़ा था.
“ये आपके लिये
, फ़्योदर.”

“बहुत, बहुत शुक्रिया.”

“फ़ौरन कपड़े बदल लो. हाँ और एक बात : दार्या पित्रोव्ना के पास जाकर वोद्का पी लो.”

“बहुत बहुत शुक्रिया,” फ़्योदर कुछ हिचकिचाया, फिर बोला, “कुछ और बात भी है, फ़िलिप फ़िलीपविच. माफ़ी चाहता हूँ, मुझे शर्म भी आ रही है.

सिर्फ – सातवें क्वार्टर में काँच के लिये...नागरिक शारिकव ने पत्थर फ़ेंके थे...”

“बिल्ले पर?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने गरजते हुए बादल की तरह त्यौरियाँ चढ़ाकर पूछा.

“कुछ-तो, क्वार्टर के मालिक पर. उसने मुकदमा करने की धमकी दी है.”

“शैतान!”

“उनकी रसोईन को शारिकव ने गले लगा लिया, और वह उसे भगाने लगा. तो, शायद, उनके बीच झगड़ा हो गया.”

“ख़ुदा के लिये, ऐसी बातों के बारे में आप मुझे हमेशा फ़ौरन बतायें! कितना चाहिये?”

“डेढ़.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने पचास-पचास कोपेक के तीन चमचमाते सिक्के निकाले और उन्हें फ़्योदर को दे दिया.

“और ऐसे कमीने के लिये डेढ़ रूबल देना पड़ता है,” दरवाज़े से खोखली आवाज़ सुनाई दी, “वह ख़ुद ही...”

फ़िलिप फ़िलीपविच पीछे मुड़ा, उसने अपना होंठ चबाया और ख़ामोशी से शारिकव को दबाया, उसे स्वागत-कक्ष में धकेला और ताला बंद कर दिया. शारिकव फ़ौरन मुट्ठियों से दरवाज़ा भड़भड़ाने लगा.

“हिम्मत न करना,” स्पष्ट रूप से बीमार आवाज़ में फ़िलिप फ़िलीपविच चिल्लाया.

“ये तो, वाकई में ,” फ़्योदर ने भेदभरे अंदाज़ में कहा, “ऐसा बेशर्म तो मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं देखा.”

अचानक बर्मेन्ताल प्रकट हुआ, जैसे ज़मीन से निकला हो.

“फ़िलिप फ़िलीपविच, विनती करता हूँ, प्लीज़ परेशान न हों.”

फुर्तीले डॉक्टर ने स्वागत कक्ष का  दरवाज़ा खोला और वहाँ से उसकी आवाज़ सुनाई दे रही थी:

“ये आप कर क्या रहे हैं? शराबखाने में हैं क्या?”

“ये बात है...: फ़्योदर ने निर्णायक ढंग से कहा, “ ये ऐसा ही होना चाहिये...कान के नीचे भी एक जड़ना चाहिये...”

“क्या कह रहे हो, फ़्योदर,” फिलिप फ़िलीपविच दयनीयता से बुदबुदाया.

“माफ़ कीजिये, आपके ऊपर दया आती है, फ़िलिप फ़िलीपविच.”

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