अध्याय – 3
जन्नत के फ़ूलों के डिज़ाइन से सजी, काली
चौड़ी किनार वाली प्लेटों में पतले टुकड़ों में कटी हुए सैल्मन मछली, मसालेदार
सर्पमीन (ईल मछली – अनु.) पड़ी थी. एक
भारी बोर्ड पर आँसू के साथ पनीर का
टुकड़ा पड़ा था, और बर्फ से ढंके चांदी के टब में - कैवियर. प्लेटों के बीच-बीच में कुछ पतले-पतले जाम और
अलग-अलग रंगों की वोद्का वाली तीन क्रिस्टल की सुराहियाँ थीं. ये सारी चीज़ें
छोटी-सी संगमरमर की मेज़ पर रखी थीं, जो नक्काशी की हुई शाह-बलूत की भारी-भरकम अलमारी से
आसानी से जुड़ी हुई थी, जिससे काँच और चांदी के प्रकाश की किरणें निकल रही
थीं. कमरे के बीचोंबीच – सफ़ेद मेज़पोश से ढंकी भारी,
ताबूत जैसी मेज़ थी, और
उसके ऊपर दो प्लेटें, नैपकिन्स, पोप के मुकुट के आकार में मोड़े हुए, और
तीन काली बोतलें थीं.
ज़ीना चांदी का ढंका हुआ डोंगा भीतर लाई, जिसमें
कुछ खदखदा रहा था. डोंगे से ऐसी ख़ुशबू आ रही थी,
कि कुत्ते का मुँह फ़ौरन गीली लार से
भर गया. “बेबिलोन के लटकते उद्यान”! – उसने सोचा और लकड़ी के फ़र्श पर अपनी पूँछ से
इस तरह ठक-ठक किया जैसे डंडे से खटखटा रहा हो.
“यहाँ लाओ,” हिंसक ढंग से फ़िलिप फ़िलीपविच ने आज्ञा दी. “डॉक्टर बर्मेन्तल, आपसे
विनती करता हूँ, कैवियर को सुकून से रहने दें. और अगर अच्छी सलाह मानना
चाहते हैं, तो अंग्रेज़ी शराब न डालिये,
बल्कि साधारण रूसी वोद्का डालिये.”
मेरे द्वारा ज़ख़्मी किये गए ख़ूबसूरत नौजवान ने – वह
बगैर एप्रन के अच्छे काले सूट में था – अपने चौड़े कंधे उचकाए, शिष्टता
से मुस्कुराया और पारदर्शी शराब जामों में डाली.
“नोवा-ब्लागास्लवेन्नाया?”
उसने पूछा.
“ख़ुदा आपकी हिफ़ाज़त करे,
प्यारे,”
मेज़बान ने जवाब दिया. “यह स्प्रिट
है. दार्या पित्रोव्ना ख़ुद ही बढ़िया वोद्का बनाती है.”
“क्या कह रहे हैं,
फ़िलिप फ़िलीपविच, सभी
कहते हैं कि बेहद बढ़िया – 300 वाली होती है.”
“मगर वोद्का 400 वाली होनी चाहिये, न
कि 300 वाली, ये हुई पहली बात,
- और दूसरी,
- ख़ुदा ही जानता है कि उन्होंने उसमें
क्या-क्या मिलाया है. क्या आप बता सकते हैं कि उनके दिमाग़ में कब क्या आयेगा?”
“सब कुछ, जो भी वे चाहें,”
यकीन के साथ ज़ख़्मी नौजवान ने कहा.
“और मेरी भी यही राय है,”
फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा और एक ही घूंट
में जाम को अपने गले में खाली कर दिया, - “...
म्-म्....डॉक्टर बर्मेन्तल , आपसे
विनती करता हूँ, फ़ौरन इस चीज़ को,
और अगर आप कहेंगे कि यह...तो मैं
ज़िंदगी भर के लिये आपका जानी दुश्मन हो जाऊँगा. “सेवीला से ग्रेनादा तक...”
उसने ख़ुद इन शब्दों के साथ चांदी के मछली के कांटे में
काली-सी, छोटी ब्रेड जैसी कोई चीज़ अटकाई. ज़ख़्मी ने उसका अनुसरण
किया. फ़िलिप फ़िलीपविच की आँख़ें चमकने लगीं.
“क्या ये बुरा है?” चबाते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा. “बुरा है? आप
जवाब दीजिये, आदरणीय डॉक्टर.”
“ये लाजवाब है,”
ज़ख़्मी ने ईमानदारी से जवाब दिया.
“क्या कहने...ग़ौर कीजिये,
इवान अर्नोल्दविच, ठण्डा
नाश्ता और सूप सिर्फ वे ही बचे-खुचे ज़मींदार खाते हैं जिनका गला अभी तक
बोल्शेविकों ने नहीं काटा है. अपनी थोड़ी-बहुत कदर करने वाला आदमी गरम नाश्ता ही
खाता है. और मॉस्को की नाश्ते की गरम चीज़ों में – यह सबसे बेहतरीन है, कभी
इसे शान से स्लव्यान्स्की बाज़ार में बनाया करते थे. ले,
ये ले.”
“कुत्ते को डाइनिंग रूम में खिला रहे हैं”, एक
जनाना आवाज़ सुनाई दी, “और फिर उसे क्रीम रोल का लालच देकर भी यहाँ से नहीं
निकाल पाओगे.”
“कोई बात नहीं.बेचारा,
गरीब भूखा है,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कांटे की नोक पर फंसा कर उसे
स्नैक्स दिये, जिसे उसने बड़ी अदा से खा लिया, और
कांटे को झनझनाहट के साथ तसले में फेंक दिया.
प्लेटों से अब लॉब्स्टर की ख़ुशबू की भाप उठ रही थी; कुत्ता
मेज़पोश की छाँव में बारूद के गोदाम के पहरेदार की तरह बैठा था. और फ़िलिप फ़िलीपविच, मोटे
नैपकिन के कोने को कॉलर के भीतर डालकर बोला:
“खाना, इवान अर्नाल्दविच,
बड़ी नाज़ुक चीज़ है. खाना भी एक कला है, और
सोचिये, ज़्यादातर लोग खाना ही नहीं जानते. न सिर्फ यह जानना
ज़रूरी है कि क्या खाना चाहिये, बल्कि यह भी कि कब और कैसे खाना चाहिये. (फ़िलिप
फ़िलीपविच ने गहरे अर्थपूर्ण अंदाज़ में चम्मच हिलाई). और खाते समय किस बारे में बात
करनी चाहिये. हां--. अगर आप अपने हाज़मे के बारे में सतर्क हैं,तो
मेरी नेक सलाह है – खाना खाते समय बोल्शेविकों के बारे में बात न करें और
चिकित्सा-शास्त्र के बारे में. और – ख़ुदा आपको सलामत रखे – खाना खाने से पहले
सोवियत अख़बार न पढ़ें.”
“हुम्...मगर कोई और अख़बार तो हैं ही नहीं.”
“तो कोई भी अख़बार न पढ़ें. आप जानते हैं कि मैंने अपने
क्लिनिक में 30 परीक्षण किये थे. और आपका क्या ख़याल है?
जो मरीज़ अख़बार नहीं पढ़ते थे, उनकी
तबियत काफ़ी अच्छी रहती है. वे, जिन्हें मैंने ख़ास तौर से “प्राव्दा” पढ़ने पर मजबूर
किया, - उनका वज़न कम हो गया.”
“हुम्...” सूप और वाईन से लाल होते हुए ज़ख़्मी ने
दिलचस्पी से प्रतिक्रिया दी.
“यह भी कम है. घुटनों की सजगता कम होना, खाने
की इच्छा ख़त्म होना, उदास मनःस्थिति भी देखी गई.”
” ये तो शैतान...”
“हाँ-आ. मगर,
मैं ये क्या कर रहा हूँ? ख़ुद
ही चिकित्सा-शास्त्र के बारे में बोलने लगा.”
फ़िलिप फ़िलीपविच ने, पीठ टिकाकर,
घंटी बजाई, और
चेरी के पर्दे से ज़ीना प्रकट हुई. कुत्ते को स्टर्जन मछली का सफ़ेद, मोटा
टुकड़ा दिया गया, जो उसे पसन्द नहीं आई,
और इसके फ़ौरन बाद रोस्ट-बीफ़ का लाल
टुकड़ा भी आया. उसे गटकने के बाद, कुत्ते को अचानक महसूस हुआ कि उसे नींद आ रही है, और
वह अब और ज़्यादा खाने की तरफ़ नहीं देख सकता. ‘अजीब-सा एहसास है,’
भारी पलकें फ़ड़फ़ड़ाते हुए वह सोच रहा
था, ‘काश मेरी आँखों को कोई खाने की चीज़ न दिखाई देती. और
खाने के बाद सिगरेट पीना – ये बेवकूफ़ी है’.
डाइनिंग रूम अप्रिय नीले धुँए से भर गया. सामने
के पंजों पर सिर रखकर कुत्ता ऊँघ रहा था.
“सेन-ज्युलिएन
– शानदार वाईन है,” उनींदेपन के बीच में कुत्ते को सुनाई दिया, “मगर सिर्फ अब वह है ही नहीं.”
घुटा-घुटा, छतों और कालीनों के कारण मद्धम हो गया कोरस कहीं ऊपर
से और बगल से सुनाई दे रहा था.
फ़िलिप फ़िलीपविच ने घंटी बजाई और ज़ीना आई.
“ज़ीनूश्का, इस सब का क्या मतलब है?”
“फ़िर से जनरल-बॉडी मीटिंग रखी है, फ़िलिप
फ़िलीपविच,” ज़ीना ने जवाब दिया.
“फ़िर से!” फ़िलिप फ़िलीपविच अफ़सोस से बोला, “तो, अब शायद, हो गई शुरूआत,
कलाबूखव्स्की बिल्डिंग का हो गया
सत्यानाश. चले जाना चाहिये, मगर कोई बताये तो सही,
कि कहाँ. सब कुछ आसानी से होगा. पहले
हर शाम गाने होंगे, फिर
शौचालयों में पाईप जम जायेंगे, फिर हीटिंग सिस्टम का बॉयलर फ़ट जायेगा वगैरह, वगैरह.
ताबूत कलाबूखव के लिये.”
“फ़िलिप फ़िलीपविच बेहद परेशान हो रहे हैं,” ज़ीना ने मुस्कुराते हुए कहा और प्लेटों का ढेर ले गई.
“परेशान कैसे न होऊँ?!”
फ़िलिप फ़िलीपविच चीख़ा, “ आख़िर ये बिल्डिंग कैसी थी – आप समझ रहे हैं!”
“आप चीज़ों को काफ़ी मायूसी से लेते हैं, फ़िलीप
फ़िलीपविच,” ख़ूबसूरत ज़ख्मी ने प्रतिवाद किया, “आजकल वे काफ़ी ज़्यादा बदल गये हैं.”
“प्यारे, आप
तो मुझे जानते हैं? सही है ना? मैं – तथ्यों का इन्सान हूँ, अवलोकनों
का इन्सान. मैं – निराधार कपोल कल्पनाओं का दुश्मन हूँ. और यह बात न सिर्फ रूस में, बल्कि
यूरोप में भी सबको अच्छी तरह मालूम है. अगर मैं कुछ कहता हूँ तो इसका मतलब है कि
उसकी जड़ में कोई तथ्य है, जिससे मैं निष्कर्ष निकालता हूँ. और ये रहा आपके सामने
तथ्य: हमारी बिल्डिंग में हैंगर और गलोशों का स्टैण्ड.”
“ये दिलचस्प है...”
‘बकवास
है – गलोश. गलोश में सुख नहीं है,’ कुत्ता सोच रहा था,
‘मगर आदमी है बड़ा ग़ज़ब का.’
“क्या कोई ज़रूरत है – गलोशों के स्टैण्ड की. मैं सन्
1903 से इस बिल्डिंग में रह रहा हूँ. और इस दौरान – मार्च 1917 तक एक भी बार ऐसा
नहीं हुआ – रेखांकित करता हूँ लाल पेन्सिल से ए-क भी – कि
हमारे नीचे वाले प्रवेश-कक्ष के खुले दरवाज़े से गलोशों की एक भी जोड़ी चोरी हुई हो. ग़ौर कीजिए, यहाँ
12 क्वार्टर्स हैं, मेरे पास हमेशा आने-जाने रहते हैं. सन् ‘17
के मार्च में एक सुहाने दिन सभी गलोश, जिनमें दो जोड़ियाँ मेरी भी थीं, 3 छड़ियाँ, दरबान का ओवरकोट और समोवार ग़ायब हो गये. और तब से
गलोशों के स्टैण्ड ने अपना अस्तित्व समाप्त कर दिया. प्यारे! सेन्ट्रल हीटिंग की
तो मैं बात ही नहीं कर रहा हूँ. कुछ नहीं कह रहा हूँ.चलने दो : जब सामाजिक क्रांति
हुई है – तो हीटिंग की ज़रूरत नहीं है. मगर मैं पूछता हूँ : क्यों, जब
ये पूरा लफ़ड़ा शुरू हुआ, सभी लोग संगमरमर की सीढ़ियों पर गंदे गलोशों और नमदे के
जूतों में चलने लगे? क्यों अभी तक गलोशों को ताले में बंद रखने की ज़रूरत
पड़ती है? और उनके पास किसी सैनिक को भी रखना पड़ता है, ताकि
कोई उन्हें खींच कर न ले जाये? प्रवेश-हॉल की सीढ़ियों से कालीन क्यों हटा दिया गया? क्या
कार्ल मार्क्स सीढ़ियों पर कालीन बिछाने की इजाज़त नहीं देता? क्या
कार्ल मार्क्स ने कहीं लिखा है कि प्रिचिस्तेन्का स्ट्रीट पर कलाबूखव्स्की
बिल्डिंग के दूसरे प्रवेश द्वार को लकड़ी के फ़ट्टों से बन्द करना चाहिये और घूम कर
चोर दरवाज़े से आना-जाना चाहिये? किसे इसकी ज़रूरत है?
प्रोलेटेरिएट अपने गलोशों को नीचे
क्यों नहीं रखते, और क्यों संगमरमर को धब्बों से गंदा करते हैं?”
“मगर, फ़िलिप फ़िलीपविच,
उसके पास तो गलोश हैं ही नहीं,” ज़ख़्मी हकलाते हुए बोला.
“ऐसी कोई बात नहीं है!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने गरजती हुई
आवाज़ में कहा और जाम में वाईन डाली. “हुम्...खाने के बाद वाईन पीना ठीक नहीं समझता, वे
हाज़मे को मुश्किल बनाती है और लिवर पर बुरा असर डालती है...ऐसी कोई बात नहीं है!
उसके पास अभी गलोश हैं, और ये – मेरे हैं! ये वे ही गलोश हैं, जो
सन् 1917 के बसन्त में ग़ायब हुए थे. मैं पूछना चाहता हूँ, - उन्हें किसने पार किया?
मैंने?
ऐसा नहीं हो सकता. बुर्झुआ साब्लिन? (फ़िलिप फ़िलीपविच ने उँगली छत की ओर उठा दी). ऐसा सोचना
भी हास्यास्पद है. शकर-कारखाने वाले पोलज़व ने?
(फ़िलिप फ़िलीपविच ने एक किनारे की ओर
इशारा किया. किसी हालत में नहीं! हाँ - महाशय! मगर कम से कम सीढ़ियों पर तो वे
उन्हें उतार देते! (फ़िलिप फ़िलीपविच का चेहरा लाल होने लगा). सीढ़ियों की चौकियों से
फूल किस ख़ुशी में हटा दिये? क्यों बिजली,
जो ख़ुदा मेरी याददाश्त को सलामत रखे, पिछले
बीस सालों में सिर्फ दो बार बंद हुई थी,
आजकल महीने में एक बार ज़रूर जाती है? डॉक्टर
बर्मेन्ताल, सांख्यिकी – ख़तरनाक चीज़ है. आपको, जो
मेरे हाल ही के काम से परिचित हैं, किसी और की अपेक्षा ये ज़्यादा अच्छी तरह मालूम है.”
“तबाही, फ़िलिप फ़िलीपविच.”
“नहीं,” पूरे यकीन के साथ फ़िलिप फ़िलीपविच ने विरोध किया. आप
पहले हैं, प्रिय इवान अर्नोल्दविच,
इस शब्द के प्रयोग से बचिये. ये –
मृगतृष्णा है, धुँआ, कपोल कल्पना है,
- फ़िलिप फ़िलीपविच ने छोटी-छोटी
उँगलियाँ चौड़ी फ़ैला दीं, जिससे दो परछाईयाँ,
कछुओं जैसी, मेज़पोश
पर कसमसाने लगीं. – आपकी ये तबाही क्या है?
छड़ी वाली बुढ़िया? जादूगरनी, जिसने
सारे काँच फ़ोड़ दिये, सारे लैम्प बुझा दिये?
मगर असल में तो उसका अस्तित्व ही नहीं
है. इस शब्द से आप क्या मतलब निकालते हैं?”
फ़िलिप फ़िलीपविच ने तैश से अलमारी की
बगल में ऊपर पैर किये लटक रही कार्डबोर्ड की बत्तख़ से पूछा, और
ख़ुद ही उसके लिये जवाब दे दिया. “देखिये,
वह ये है: अगर मैं, हर
शाम को ऑपरेशन करने के बजाय, अपने क्वार्टर में कोरस में गाने लगूँ, तो
मेरे पास तबाही आ जायेगी. अगर मैं, शौचालय में जाकर,
इस प्रयोग के लिये माफ़ कीजिए, कमोड
के सामने पेशाब करने लगूँ और ऐसा ही ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना भी करने लगें, तो
शौचालय में तबाही शुरू हो जायेगी. मतलब,
तबाही अलमारियों में नहीं, बल्कि
दिमाग़ों में है. मतलब, जब ये मध्यम आवाज़ें चिल्लाती हैं “तबाही को मारो!” –
तो मैं हँसने लगता हूँ. (फ़िलिप फ़िलीपविच का चेहरा इस तरह टेढ़ा हो गया कि ज़ख़्मी
नौजवान ने मुँह खोल दिया). कसम खाता हूँ,
मुझे यह हास्यास्पद लगता है! इसका
मतलब ये है कि इनमें से हर कोई अपने-अपने सिर पर पीछे से झापड़ लगाये! और फ़िर, जब
वह झापड़ मार-मार कर अपने भीतर से सभी भ्रमों को बाहर निकाल देगा और शेड्स की सफ़ाई
में लग जायेगा – जो उसका प्रत्यक्ष काम है,
- तो तबाही ख़ुद-ब-ख़ुद ग़ायब हो जायेगी.
दो ख़ुदाओं की सेवा नहीं करना चाहिये! एक ही समय में ट्राम की पटरियों पर झाडू
लगाना और किन्हीं स्पैनिश भिखारियों की किस्मत चमकाना संभव नहीं है! ये किसी के
लिये भी संभव नहीं है, डॉक्टर, और ऊपर से – उन लोगों के लिये जो आम तौर से अपने विकास
में यूरोपियन लोगों से करीब दो सौ वर्ष पिछड़ गये हैं ,
और जो आज तक पूरे विश्वास से अपनी ख़ुद
की पतलून भी नहीं पहन सकते!”
फ़िलिप फ़िलीपविच बेहद उत्तेजित हो गया. बाज़ जैसे उसके
नथुने फूल रहे थे. भरपेट खाने के बाद ताकत बटोर कर,
वह किसी प्राचीन पैगम्बर की तरह गरज
रहा था और उसका सिर चांदी की आभा से दमक रहा था.
उनींदे कुत्ते पर उसके शब्द ज़मीन के भीतर हो रही किसी
अस्पष्ट गड़गड़ाहट की तरह गूंज रहे थे. सपने में उसे कभी बेवकूफ़ पीली आँखों वाला
उल्लू उछल कर बाहर आते हुए दिखाई दे रहा था,
तो कभी गंदी सफ़ेद टोपी पहने रसोईये
का घिनौना थोबड़ा, तो कभी लैम्प-शेड से आती बिजली की प्रखर रोशनी में
चमकती फ़िलिप फ़िलीपविच की शानदार मूँछ, तो कभी चरमराती और लुप्त होती हुई उनींदी स्लेजें, और
कुत्ते के पेट में रोस्टबीफ़ का टुकड़ा शोरवे में तैरते हुए खदखदा रहा था.
‘ये
तो सीधे सभाओं में आसानी से पैसे कमा सकता था,’
अस्पष्टता से कुत्ते ने सोचा, ‘पहले दर्जे का चालाक है. ख़ैर, उसके
पास, वैसे भी, ज़ाहिर है बेहद पैसा है.’
“पुलिस!”, फ़िलिप
फ़िलीपविच चीख़ा, “पुलिस!” – ‘उहू-हू-हू!’ कुत्ते के दिमाग़ में कुछ बबूले-से फूटने लगे...”पुलिस!
वही और सिर्फ वही. और ये बिल्कुल महत्वपूर्ण नहीं है कि वह बिल्ला लगाये है या लाल
टोपी में है. हर इन्सान की बगल में पुलिसवाले को खड़ा करना चाहिये और उस पुलिस वाले
को मजबूर करना चाहिये कि हमारे नागरिकों के मुखर आवेगों पर नियंत्रण रखे. आप कहते
हैं – तबाही. मैं आपसे कहता हूँ, डॉक्टर. कि हमारी बिल्डिंग में, बल्कि, हर
बिल्डिंग में, कोई भी अच्छा परिवर्तन तब तक नहीं होगा, जब
तक इन गवैयों को नियंत्रित नहीं किया जाता! जैसे ही वे अपनी कॉन्सर्ट्स बंद करेंगे, परिस्थिति
अपने-आप सुधरने लगेगी.”
“आप क्रांतिविरोधी बातें कर रहे हैं, फ़िलिप
फ़िलीपविच,” ज़ख़्मी नौजवान ने मज़ाक में कहा, “ख़ुदा न करे कि कोई आपकी बातें सुन ले...”
“कुछ भी ख़तरनाक नहीं है,”
फ़िलिप फ़िलीपविच ने तैश से प्रतिवाद
करते हुए कहा, “कोई क्रांतिविरोधी नहीं है. वैसे, यह
भी एक शब्द है जिसे मैं ज़रा भी बर्दाश्त नहीं कर सकता. बिल्कुल पता नहीं है - उसके
पीछे क्या छुपा हुआ है? शैतान ही जाने! तो मैं भी यही कह रहा हूँ, कि
मेरे शब्दों में किसी भी तरह की क्रांतिविरोधी चीज़ नहीं है. उनमें सामान्य बुद्धि
और जीवन का अनुभव है.”
अब फ़िलिप फ़िलीपविच ने कॉलर के पीछे से चमकदार नैपकिन
का कोना बाहर निकाला और, उसे मरोड़कर वाईन के जाम की बगल में, जिसमें
अभी कुछ वाईन बची थी, फेंक दिया. ज़ख़्मी नौजवान फ़ौरन उठा और उसने मेज़बान को
धन्यवाद दिया : “थैंक्स”.
“एक मिनट डॉक्टर!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने पतलून की जेब से
वैलेट निकालते हुए उसे रोका. उसने आँखें सिकोड़ीं,
छोटे-छोटे सफ़ेद कागज़ों को गिना और
ज़ख़्मी की तरफ़ यह कहते हुए बढ़ाये: “आज आपके चालीस रूबल्स बनते हैं. ये लीजिये, प्लीज़.”
कुत्ते की वजह से तकलीफ़ झेल रहे नौजवान ने नम्रता से
धन्यवाद दिया और, लाल होते हुए,
पैसों को कोट की जेब में रख लिया.
“आज शाम को मेरी ज़रूरत तो नहीं है, फ़िलिप
फ़िलीपविच?” उसने पूछा.
“नहीं, आपका धन्यवाद,
प्यारे. आज कुछ नहीं करेंगे. पहली
बात, ख़रगोश ने दम तोड़ दिया,
और दूसरी,
आज बल्शोय थियेटर में है – “आयदा”.
और मैंने बहुत दिनों से सुना नहीं है. पसंद करता हूँ...याद है? ड्युएट...तरी-रा-रिम.”
“आप इतना सब कैसे कर लेते हैं, फ़िलिप
फ़िलीपविच?” डॉक्टर ने आदर से पूछा.
“इतना सब कुछ वही कर सकता है, जिसे
कहीं जाने की जल्दी नहीं होती,” मेज़बान ने नसीहत के सुर में समझाया. “बेशक, अगर
मैं मीटिंगों में उछलता फ़िरता, और पूरे-पूरे दिन कोयल की तरह गाता रहता, अपना
मुख्य काम करने के बदले, तो मैं कुछ भी नहीं कर पाता, कहीं
भी नहीं जा पाता,” जेब में रखी फ़िलिप फ़िलीपविच की ऊँगलियों के नीचे स्वर्गीय
धुन बजने लगी, “आठ बज गये...दूसरे अंक तक पहुँचूंगा...मैं श्रम के
विभाजन के पक्ष में हूँ. बल्शोय थियेटर में उन्हें गाने दो, और
मैं ऑपरेशन करता रहूँगा. यही अच्छा है. और कोई तबाही-वबाही नहीं है...ये बात है. इवान
अर्नोल्दविच, आप ग़ौर से देखते रहिये : जैसे ही कोई उचित प्रकार की
मौत हो, तो फ़ौरन मेज़ से – पोषक द्रव में और फ़ौरन मेरे पास!”
“फ़िक्र न करें,
फ़िलिप फ़िलीपविच,” “पैथोलोजिस्टों ने मुझसे वादा किया है.”
“बढ़िया, और फ़िलहाल हम इस सड़कछाप सिरफ़िरे का निरीक्षण करते
रहेंगे. उसकी बाज़ू ठीक हो जाने दो.”
‘मेरी
फ़िक्र कर रहा है’, कुत्ते ने सोचा,
‘बहुत अच्छा आदमी है. मुझे मालूम है
कि ये कौन है. ये – कुत्ते की परीकथा का जादूगर है,
इंद्रजालिक है, ओझा
है. ..आख़िर ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि यह सब मैंने सपने में देखा हो. और कहीं
अचानक – सपना हुआ तो? (कुत्ता नींद में ही कंपकंपाया). जब जागूंगा...और कुछ
भी नहीं है. न तो रेशम से ढंका कोई लैम्प,
न गरमाहट,
न ही तृप्ति. फ़िर शुरू हो जायेगी गली, सिरफ़िरी
ठण्ड, बर्फ हो चुका फुटपाथ,
भूख,
दुष्ट लोग...डाइनिंग हॉल, बर्फ...ख़ुदा, कितना
मुश्किल होगा मेरे लिये!...’
मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. वह गली ही पिघल गई – घिनौने
सपने की तरह, और फ़िर कभी वापस नहीं आई.
लगता है, कि तबाही उतनी ख़तरनाक नहीं है. उसके बावजूद, दिन
में दो बार, खिड़की के दासे के नीचे,
हार्मोनियन जैसे भूरे पाईप गर्मी से
भर जाते और गरमाहट की लहरें पूरे क्वार्टर में फ़ैल जातीं.
बिल्कुल स्पष्ट है : कुत्ते ने लॉटरी से भाग्यशाली
टिकट चुना था. अब उसकी आँखें दिन में कम से कम दो बार प्रिचिस्तेन्का के विद्वान
के प्रति कृतज्ञता के आँसुओं से लबालब भर जातीं. इसके अलावा, हॉल
के, प्रवेश कक्ष की अलमारियों के बीच के सभी शीशों में ख़ूबसूरत, कामयाब
कुत्ते की छबि परावर्तित होती रहती.
‘मैं
– ख़ूबसूरत हूँ. हो सकता है, कोई अज्ञात श्वान-राजकुमार जो भेस बदल कर रह रहा है,’ कॉफ़ी के रंग के,
शीशों की दूरियों में घूम रहे, संतुष्ट
चेहरे वाले झबरे प्रतिबिम्ब की ओर देखते हुए कुत्ता सोच रहा था. – बहुत मुमकिन है, कि
मेरी दादी ने न्यूफ़ाउण्डलैण्ड के कुत्ते के साथ पापकर्म किया हो. तभी तो मैं देखता
हूँ - मेरे थोबड़े पर सफ़ेद धब्बा है. वो कहाँ से आया,
क्या मैं पूछ सकता हूँ? फ़िलिप
फ़िलीपविच – बढ़िया किस्म की पसंद वाला आदमी है – वह यूँ ही किसी भी आवारा कुत्ते को
नहीं उठायेगा.’
एक सप्ताह में कुत्ते ने उतना खा लिया जितना भुखमरी के
पिछले डेढ़ महीने में सड़क पर खाया था. ख़ैर,
बेशक,
वज़न के हिसाब से. फ़िलिप फ़िलीपविच के
यहाँ खाने की गुणवत्ता के बारे में कुछ भी कहना उचित नहीं है. अगर माँस की छीलन की
ओर ध्यान न दिया जाये जो दार्या पित्रोव्ना हर रोज़ स्मलेन्स्क मार्केट में 18
कोपेक में खरीदा करती थी, शाम को सात बजे डाइनिंग-रूम में होने वाले डिनर्स का
ज़िक्र करना ही काफ़ी है, जहाँ ख़ूबसूरत ज़ीना के विरोध के बावजूद कुत्ता उपस्थित
रहता था. इन डिनर्स के दौरान फ़िलिप फ़िलीपविच को आख़िरकार “ख़ुदा’ की
उपाधि मिल गई. कुत्ता पिछले पैरों पर खड़ा हो जाता और उसका जैकेट चबाता रहता, कुत्ता
फ़िलिप फ़िलीपविच की घंटियाँ पहचान गया था – पूरी आवाज़ में रुक-रुक कर मालिक की दो
घंटियाँ, और वह भौंकते हुए उससे मिलने के लिये प्रवेश कक्ष की
ओर भागता. मालिक काले-भूरे लोमड़ी के कोट में भीतर घुसता, बर्फ
के लाखों चमचमाते हुए कणों से दमकते हुए,
संतरों की, सिगार
की, सेन्ट की, नींबुओं की,
बेंज़िन की, यू
डी कलोन की, और कपडों की महक में लिपटा हुआ, और
उसकी आवाज़, कमाण्ड देने वाले बिगुल की तरह पूरे क्वार्टर में
गूंजती.
“तूने, सुअर, उल्लू को क्यों फ़ाड़ दिया?
क्या वह तुझे परेशान कर रहा था? परेशान
कर रहा था, मैं तुझसे पूछ रहा हूँ?
प्रोफ़ेसर मेच्निकव की तस्वीर क्यों
फ़ोड़ दी?”
“उसे, फ़िलिप फिलीपविच, कम से कम एक बार चाबुक से मारना चाहिये,” ज़ीना ने उत्तेजना से कहा,
“वर्ना वह पूरी तरह सिर पर चढ़ जायेगा.
आप देखिये, इसने आपके गलोशों के साथ क्या किया है.”
“किसी को भी मारना नहीं है,”
फ़िलिप फ़िलीपविच परेशान हो गया, “ये बात हमेशा के लिये याद रख लो. इन्सान और जानवर को
हमेशा सिर्फ सुझाव से ही प्रेरित किया जा सकता है. आज उसे माँस दिया था?”
“ख़ुदा, वह पूरा घर खा गया. आप क्या पूछ रहे हैं, फ़िलिप
फ़िलीपविच. मुझे अचरज होता है – कहीं उसका पेट न फ़ट जाये.”
“खाने दो, जी भर के...उल्लू तुझे क्यों परेशान कर रहा था, बदमाश?”
‘ऊ-ऊ!’
चतुर कुत्ते ने दांत दिखा दिये और पंजे बाहर निकाल कर पेट के बल रेंगने लगा.
इसके बाद उसे शोर मचाते हुए,
गर्दन से पकड़ कर प्रवेश कक्ष से होते हुए अध्ययन कक्ष में लाया गया. कुत्ता चिल्ला
रहा था, गुर्रा रहा था,
कालीन से चिपक रहा था, पूँछ
पर बैठकर घिसटने लगा, जैसे सर्कस में हो. अध्ययन कक्ष के बीचो-बीच फ़टे हुए
पेट वाला काँच की आँखों का उल्लू पड़ा था,
जिसके भीतर से नैप्थलीन की गंध वाले
कुछ लाल चीथड़े बाहर निकल रहे थे. मेज़ पर चूर-चूर हुआ पोर्ट्रेट गिरा था.
“मैंने जानबूझकर साफ़ नहीं किया, ताकि
आप भी अच्छी तरह देख लें,” ज़ीना हताशा से बयान कर रही थी, - “उछल कर मेज़ पर चढ़ गया,
कमीना! और उसे पूँछ से – धप्प! मैं
कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसने उसे पूरा फ़ाड़ दिया. उसका थोबड़ा उल्लू के भीतर
घुसाइये, फ़िलिप फ़िलीपविच,
जिससे उसे पता चले कि कैसे चीज़ें
ख़राब करते हैं.”
और विलाप शुरू हो गया. कुत्ते को, जो
कार्पेट से चिपका हुआ था, घसीट कर उल्लू में मुँह गड़ाने के लिये ले गये, इस
दौरान कुत्ता कड़वे आँसू बहा रहा था और सोच रहा था – ‘मारो, सिर्फ क्वार्टर से मत निकालो”.
“उल्लू को आज ही चर्म प्रसाधक के पास भेजा जाये. इसके
अलावा तुम्हें 8 रूबल और 16 कोपेक दे रहा हूँ ट्राम से जाने के लिये, म्यूर
के डिपार्टमेंटल स्टोर में जाओ, उसके लिये जंज़ीर के साथ एक अच्छा पट्टा खरीद लो.”
अगले दिन कुत्ते को चौड़ा,
चमचमाता पट्टा पहनाया गया. पहले ही
पल में, आईने में देखने के बाद वह फ़ौरन ताव खा गया, दुम दबाकर बाथरूम में चला गया, ये
सोचते हुए कि उसे कैसे संदूक या दराज़ से घिसा जाये. मगर कुत्ता बहुत जल्दी समझ गया
कि वह - बिल्कुल बेवकूफ़ है. ज़ीना जंज़ीर के साथ उसे घुमाने के लिये ले ओबूखवा स्ट्रीट
पर ले गई. कुत्ता किसी कैदी की तरह चल रहा था,
शर्म से लाल होते हुए, मगर, प्रिचिस्तेन्का
पर क्राइस्ट-चर्च तक जाने के बाद वह अच्छी तरह समझ गया कि ज़िंदगी में पट्टे का
क्या मतलब होता है. सामने से आ रहे सभी कुत्तों की आँख़ों में वहशतभरी ईर्ष्या नज़र
आ रही थी, और म्योर्त्वी स्ट्रीट पर – कोई कटी हुई पूँछ वाला मरियल, आवारा
कुत्ता उस पर “मालिक का हरामी” और “छक्का” (छक्का- यहाँ नौकर से तात्पर्य है –
अनु.) कहते हुए भौंकने लगा. जब
ट्राम की पटरियाँ पार कर रहे थे तो पुलिस वाले ने पट्टे की ओर प्रसन्नता और आदर से
देखा, और जब वापस आये,
तो ऐसी बात हुई जो ज़िंदगी में अब तक
नहीं देखी थी : फ़्योदर-दरबान ने ख़ुद अपने हाथ से प्रवेश द्वार खोला और शारिक को
भीतर जाने दिया, ऐसा करते हुए उसने ज़ीना से कहा:
“ऐह, कैसे झबरे को लाये थे फ़िलिप फिलीपविच. कैसी ग़ज़ब की
चर्बी चढ़ गई है.”
“और क्या, - छह आदमियों का खाना खा जाता है,” बर्फ़ से
गुलाबी और ख़ूबसूरत हो गई ज़ीना ने स्पष्ट किया.
‘गले का पट्टा – ब्रीफ़केस की तरह होता है,’ कुत्ते ने
ख़यालों में चुटकी ली, और, मटकते हुए मालिक की तरह ज़ीना के पीछे-पीछे बिचले तल्ले
की ओर चला.
पट्टे का महत्व जानने के बाद, कुत्ता
पहली बार जन्नत के उस विभाग में गया, जहाँ उसके लिये प्रवेश पूरी तरह वर्जित था – मतलब
रसोईन दार्या पित्रोव्ना के साम्राज्य में. पूरा क्वार्टर दार्या के साम्राज्य के
दो इंच के बराबर भी नहीं था. हर रोज़ काले और टाइल्स जड़े स्टोव में लपटें गरजतीं.
ओवन चटख़ता रहता. लाल लपटों में दार्या पित्रोव्ना का चेहरा निरंतर आग की पीड़ा और
अतृप्त जुनून से जलता रहता. वह चमकदार और चिकना था. कानों के ऊपर से जाते हुए बाल, सिर
के पीछे उजले बालों की डलिया से 22
नकली हीरे जगमगा रहे थे. दीवारों पर लगे हुकों से सुनहरे बर्तन लटक रहे थे, पूरी
रसोई ख़ुशबुओं से महकती, बन्द बर्तनों में उठते बुलबुलों से गड़गड़ाती और फुफ़कारती...
“भाग जा!” दार्या पित्रोव्ना चीखी, “भाग जा, आवारा जेबकतरे! यहाँ तेरी ही कमी थी! मैं तुझे चिमटे
से मारूँगी!....”
‘क्या
कर रही है? अरे, किसलिये भौंक रही है?’
कुत्ते ने प्यार से आँख़ें सिकोड़ीं. ‘मैं
कहाँ का जेबकतरा हो गया? क्या आप पट्टा नहीं देख रही हैं?’ और वह दरवाज़े में थोबड़ा घुसाकर किनारे से भीतर में
रेंग गया.
शारिक लोगों का दिल जीतने की कोई गुप्त तरकीब जानता
था.
दो दिन बाद ही वह कोयलों की टोकरी के पास लेटा था और
देख रहा था कि दार्या पित्रोव्ना कैसे काम करती है. पतले, तेज़ चाकू से उसने असहाय तीतरों के सिर और पंजे काट
दिये, उसके बाद, किसी भयानक जल्लाद की तरह हड्डियों से माँस नोंच लिया, मुर्गियों
की आँतें बाहर निकाल दीं, ग्राइन्डर में कुछ घुमाया. शारिक इस समय तीतर का सिर
कुतर रहा था. दूध वाले कटोरे से दार्या पित्रोव्ना ने ब्रेड के भीगे हुए टुकड़े
बाहर निकाले, उन्हें एक बोर्ड पर पिसे हुए माँस के साथ मिलाया, इसमें
मलाई मिलाई, नमक छिड़का, और बोर्ड पर ही कटलेट थापे. स्टोव्ह में आग गरज रही थी, और
फ्रायपैन में खदबदाहट हो रही थी, बुलबुले उठ रहे थे और उछल-कूद हो रही थी. भट्टी का
दरवाज़ा आवाज़ करते हुए उछल गया, और एक भायानक नर्क दिखाई दिया, जिसमें
फुसफ़ुसाती लपटें चटख रही थीं.
शाम को पत्थर का जबड़ा बुझ जाता, रसोईघर
की खिड़की में आधे सफ़ेद परदे के ऊपर एक, अकेले सितारे के साथ प्रिचिस्तेन्का की घनी और शानदार
रात दिखाई दे रही थी. रसोईघर का फ़र्श नम था,
बर्तन रहस्यमय ढंग से और धुंधलेपन से
चमक रहे थे, मेज़ पर अग्निशामक दल के सिपाही की कैप पड़ी थी. कुत्ता
गरमाहट भरी भट्टी के ऊपर लेटा था, जैसे गेट पर कोई सिंह हो और, उत्सुकता
से एक कान उठाकर उत्सुकता से देख रहा था,
कि कैसे चमड़े का काला पट्टा पहने, काली
मूँछों वाला, उत्तेजित आदमी ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना के कमरे के
अधखुले दरवाज़े के पीछे दार्या पित्रोव्ना को गले लगा रहा था. सिर्फ पावडर पुती नाक
को छोड़कर उसका पूरा चेहरा पीड़ा और लालसा से तमतमा रहा था. रोशनी की लकीर काली
मूँछों वाले की तस्वीर पर पड़ रही थी और उससे ईस्टर के गुलाब का छोटा-सा पौधा लटक
रहा था.
“एकदम राक्षस की तरह टपक पड़े,” आधे-अंधेरे में दार्या पित्रोव्ना बुदबुदाई, “ ठहर जाओ! ज़ीना अभी आ जायेगी. क्या कर रहे हो, जैसे
तुम्हें भी फ़िर से जवान बना दिया है?”
“हमें इसकी ज़रूरत नहीं है,”
काली मूँछों वाले ने मुश्किल से अपने
आप पर काबू रखते हुए भर्राई आवाज़ में जवाब दिया. “तुम कितनी गर्म हो!”
शामों को प्रिचिस्तेन्का का सितारा भारी परदों के पीछे
छुप जाता और, अगर बल्शोय थियेटर में “आइदा” नहीं हो रहा होता और
ऑल-रशियन सर्जिकल सोसाइटी की मीटिंग नहीं होती,
तो ‘ख़ुदा’ अध्ययन कक्ष में गहरी आराम कुर्सी में स्थापित जाता.
छत के नीचे रोशनी नहीं होती. सिर्फ मेज़ पर एक हरा लैम्प जल रहा था. शारिक छाँव में
कालीन पर लेटा था और, एकटक, ख़ौफ़नाक चीज़ों को देख रहा था. काँच के बर्तनों में
घिनौने तीक्ष्ण और गंदले द्रव में इन्सानी दिमाग़ पड़े थे. कुहनियों तक नंगे ख़ुदा के
हाथ, रबर के लाल दस्तानों में थे, और
चिकनी, भोथरी उँगलियाँ उस भूरे द्रव मे घूम रही थीं. कभी-कभी
ख़ुदा के पास छोटा-सा चमचमाता चाकू भी होता और वह चुपचाप पीले, इलास्टिक
जैसे दिमागों को चीरता.
“नील के पवित्र किनारों पर”, अपने
होंठ काटते हुए और बल्शोय थियेटर के सुनहरे ऑडिटोरियम को याद करते हुए ख़ुदा
धीमे-धीमे गा रहा था.
इस समय पाईप अपनी पूरी क्षमता से गर्म हो जाते. उनकी
गर्माह्ट छत तक जाती, वहाँ से पूरे कमरे में बिखर जाती, कुत्ते
की चमड़ी में अंतिम, ख़ुद फ़िलीप फ़िलीपविच द्वारा अभी तक कंघी से बाहर न
निकाला गया, मगर ख़स्ताहाल पिस्सू जीवित हो उठा. कार्पेट्स क्वार्टर
के भीतर के शोर को दबा रहे थे. और फ़िर कहीं दूर से प्रवेश द्वार की घंटी बज उठी.
‘ज़ीन्का
फ़िल्म देखने गई थी,’ कुत्ते ने सोचा,
‘और जैसे ही आयेगी, शायद, डिनर
करेंगे. आज, मैं समझता हूँ,
बछड़े का माँस है!’
**********
इस ख़तरनाक दिन सुबह से ही शारिक को पूर्वाभास कचोटे जा
रहा था. इस वजह से वह सुबह के नाश्ते -
आधी कटोरी ओट्स का दलिया और कल की मेमने की हड्डी पर फ़ौरन लपका और बिना किसी रुचि
के खा गया. वह उकताहट से हॉल में घूम रहा था और हौले से अपने प्रतिबिम्ब को देखकर
विलाप कर रहा था. मगर दोपहर को, जब ज़ीना उसे छायादार रास्ते पर घुमाने ले गई, दिन
हमेशा की तरह गुज़रा. आज मरीज़ नहीं थे, क्योंकि, जैसा सबको पता है,
मंगलवार को मरीज़ नहीं आते, और
मेज़ पर शोख़ रंगों की तस्वीरों वाली कुछ मोटी-मोटी किताबें फ़ैलाये, ख़ुदा
अध्ययन कक्ष में बैठा था. लंच का इंतज़ार हो रहा था. कुत्ते के दिल में इस ख़याल ने
जान डाल दी कि आज दूसरा व्यंजन, जैसा कि उसने किचन से पक्का पता किया था, टर्की
होगा. कॉरीडोर से गुज़रते हुए कुत्ते ने सुना कि कैसे फ़िलिप फ़िलीपविच के अध्ययन
कक्ष में अकस्मात् अप्रियता से टेलिफ़ोन बजने लगा. फ़िलिप फ़िलीपविच ने रिसीवर उठाया, सुनता
रहा और अचानक परेशान हो गया.
“बढ़िया,” उसकी आवाज़ सुनाई दी,
“अभी ले आईये. फ़ौरन!”
वह गड़बड़ मचाने लगा,
घण्टी बजाई और भीतर आती हुई ज़ीना को
आज्ञा दी कि फ़ौरन खाना परोस दे.
“लंच! लंच! लंच!”
डाइनिंग रूम में फ़ौरन प्लेटों की खड़खड़ाहट होने लगी, ज़ीना
भागी, रसोईघर से दार्या पित्रोव्ना की भुनभुनाहट सुनाई दी, कि
टर्की अभी तैयार नहीं है. कुत्ता फ़िर से बेचैनी महसूस करने लगा.
‘क्वार्टर
में हंगामा मुझे पसन्द नहीं है,’ वह सोच रहा था...और जैसे ही उसने यह सोचा, हंगामे
ने फ़ौरन अधिक अप्रिय रूप धारण कर लिया. और सबसे पहले,
मेरे द्वारा कभी ज़ख़्मी किये गये
डॉक्टर बर्मेन्ताल के प्रकट होने के कारण. वह अपने साथ एक बदबूदार सूटकेस लाया, और
बिना गरम कपड़े उतारे, सीधे उसके साथ कॉरीडोर से होते हुए जाँच वाले कमरे में
की ओर गया. फ़िलिप फ़िलीपविच ने कॉफ़ी अधूरी छोड़ दी,
जैसा उसके साथ कभी नहीं हुआ था, बर्मेन्ताल
से मिलने भागा, ऐसा भी उसके साथ कभी नहीं हुआ था.
“कब मरा?” वह चिल्लाया.
“तीन घंटे पहले,”
बर्फ से ढंकी टोपी बिना उतारे और
सूटकेस को खोलते हुए बर्मेन्ताल ने जवाब दिया.
‘ये
कौन मर गया?’ कुत्ते ने उदासी और अप्रियता से सोचा और वह पैरों के नीचे
घुस गया, ‘बर्दाश्त नहीं कर सकता,
जब भाग-दौड़ करते हैं.’
“पैरों के नीचे से भाग! जल्दी, जल्दी, जल्दी!”
फ़िलिप फ़िलीपविच पूरे क्वार्टर में चीख़ रहा था और कुत्ते को लगा कि वह सभी घंटियाँ
बजा रहा है. ज़ीना भागती हुई आई. “ज़ीना! दार्या पित्रोव्ना से कहो कि टेलिफ़ोन के
पास रहे, किसी को भी न आने दे! तेरी ज़रूरत है. डॉक्टर
बर्मेन्ताल, प्लीज़ – जल्दी,
जल्दी,
जल्दी!”
‘मुझे
अच्छा नहीं लगता, नहीं अच्छा लगता,’
कुत्ते ने अपमान से मुँह बनाया और
क्वार्टर में घूमने लगा, जबकि सारा हंगामा जाँच वाले कमरे में केंद्रित हो गया
था. ज़ीना अकस्मात् कफ़न जैसे गाऊन में प्रकट हो गई,
और जाँच-कक्ष से किचन में और वहाँ से
वापस भागने लगी.
‘क्या
खाने के लिये जाऊँ? उन्हें तो कुछ याद नहीं है,’
कुत्ते ने फ़ैसला किया और अचानक उसे
झटका लगा.
“शारिक को खाने के लिये कुछ मत देना.” जाँच-कक्ष से
गरजता हुआ आदेश आया.
“उस पर नज़र कैसे रखूँ.”
“बंद कर दे!”
और शारिक को फ़ुसला कर बाथरूम में ले गये और उसे वहाँ
बंद कर दिया.
‘बदमाशी,’ आधे-अंधेरे बाथरूम में बैठे शारिक ने सोचा, ‘निहायत बेवकूफ़ी...’
और करीब पंद्रह मिनट वह अजीब-सी मनःस्थिति में बाथरूम
में रहा, कभी गुस्से में,
कभी गहरे अवसाद में. सब कुछ उकताहट
भरा था, अस्पष्ट था...
‘ठीक
है, देख लेना कि कल आपके गलोश कैसे रहते हैं, अत्यंत
आदरणीय फ़िलिप फ़िकीपविच,’ वह सोच रहा था,
‘दो जोड़ी तो ख़रीदने ही पड़े और एक और
खरीदेंगे. ताकि आप कुत्तों को बंद न करें.’
मगर अचानक उसका आवेशपूर्ण ख़याल भंग हो गया. न जाने
क्यों अचानक और बड़ी स्पष्टता से आरंभिक जवानी का एक किस्सा याद आ गया –
प्रिअब्राझेन्स्काया गेट के पास धूप में नहाया हुआ असीम आँगन, धूप
के टुकड़े बोतलों में, टूटी हुई ईंट,
आज़ाद,
आवारा कुत्ते.
‘नहीं, कहाँ, अब
यहाँ से किसी भी तरह की आज़ादी में नहीं जाऊँगा,
झूठ क्यों बोलूँ’, नाक सुड़सुड़ाते हुए कुत्ता दुखी हो रहा था, - आदत हो गई. मैं मालिक का कुत्ता हूँ, बुद्धिमान
प्राणी, बेहतरीन दुनिया देख चुका हूँ. और आख़िर आज़ादी क्या है? बस, धुँआ, मृगतृष्णा, कपोल-कल्पना...बदकिस्मत
लोकतन्त्रवादियों की बकवास...’
फ़िर बाथरूम का आधा-अंधेरा डरावना हो गया, वह
रोने लगा, दरवाज़े की ओर लपका,
खुरचने लगा.
“ऊ-ऊ-ऊ!’ क्वार्टर में जैसे किसी पीपे से आ रही आवाज़ गूंज गई.
‘उल्लू
को फ़ाड़ दूँगा फ़िर से’ – जंगलीपन से,
मगर निर्बलता से कुत्ते ने सोचा.
इसके बाद कमज़ोर पड़ गया, लेट गया, और जब उठा, तो उसकी खाल के बाल खड़े हो गये, न
जाने क्यों बाथरूम में भेड़िये की घिनौनी आँखें नज़र आईं.
और दुख के बीच ही दरवाज़ा खुला. कुत्ता बाहर आया, अपने
आप को झटक कर गंभीरता से वह रसोईघर की तरफ़ चला,
मगर ज़ीना उसे पट्टे से पकड़कर
जाँच-कक्ष में ले गई. कुत्ते के दिल के नीचे ठण्डी लहर दौड़ गई.
‘मेरी
ज़रूरत क्यों पड़ गई?’ उसने संदेह से सोचा,
‘बाज़ू तो ठीक हो गई है. कुछ भी समझ
में नहीं आ रहा है.’
और वह लकड़ी के चिकने फ़र्श पर पंजों के बल फ़िसलने लगा, वैसे
ही उसे जाँच-कक्ष में लाया गया. उसमें हो रहे अद्भुत प्रकाश ने एकदम चौंका दिया.
छत के नीचे सफ़ेद गोला इतना चमक रहा था, कि आँखों को जैसे चीर रहा था. श्वेत आलोक में प्रीस्ट
खड़ा था और दांत भींचकर नील के पवित्र तटों के बारे में गा रहा था. सिर्फ धुंधली-सी
ख़ुशबू से ही पता चल रहा था कि यह फ़िलिप फ़िलीपविच है. उसके कटे हुए सफ़ेद बाल टोप के
नीचे छुपे थे, जो प्रीस्ट के शिरस्त्राण की याद दिला रहा था : ख़ुदा
पूरे सफ़ेद कपड़ों में था, और सफ़ेद के ऊपर दुपट्टे की तरह रबर का तंग एप्रन था.
हाथ – काले दस्तानों में.
ज़ख्मी भी शिरस्त्राण में ही था. लम्बी मेज़ पूरी तरह
खोल दी गई थी, और बगल में चमकदार स्टैण्ड पर एक छोटी-सी चौकोर मेज़
सरका दी गई थी.
कुत्ते को यहाँ सबसे ज़्यादा नफ़रत ज़ख़्मी से हो रही थी
और सबसे ज़्यादा उसकी आज की आँखों के कारण. आम तौर से निर्भय और सीधे देखने वाली
आँख़ें, आज वे चारों ओर कुत्ते की आँखों से दूर भाग रही थीं.
वे सतर्क थीं, बेईमानी से भरी थीं और उनकी गहराई में अगर कोई अपराध
नहीं, तो कम से कम कोई अप्रिय,
नीच बात छुपी हुई थी. कुत्ते ने
बोझिलपन और उदासी से उसकी तरफ़ देखा और कोने में चला गया.
“पट्टा, ज़ीना,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने हौले से कहा, “सिर्फ उसे परेशान न करना.”
ज़ीना की आँखें भी पल भर में वैसी ही घिनौनी हो गईं, जैसी
ज़ख़्मी की थीं. वह कुत्ते के पास आई और झूठमूठ प्यार से उसे सहलाने लगी. उसने पीड़ा
और संदेह से ज़ीना की तरफ़ देखा.
‘क्या
करें...आप तीन हैं. लीजिये, अगर चाहते हैं. सिर्फ, शर्म आयेगी आपको....काश,
मैं जानता कि आप मेरे साथ क्या करने
वाले हैं...’
ज़ीना ने पट्टा खोला,
कुत्ते ने सिर हिलाया, नाक
फ़ुरफ़ुराई. ज़ख्मी उसके सामने खड़ा हो गया और उसके पास से गंदी, सुन्न
करने वाली गंध आ रही थी.
‘फ़ुः, घिनौने...मुझे
इतना धुंधला और डरावना क्यों लग रहा है...’
कुत्ते ने सोचा और ज़ख्मी से दूर हटा.
“जल्दी, डॉक्टर,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने अधीरता से विनती की.
हवा में तीखी और मीठी गंध फ़ैल गई. ज़ख्मी ने
अपनी सतर्क, गंदी आँखों को कुत्ते से हटाए बिना पीठ के पीछे से
दायाँ हाथ निकाला और फ़ौरन कुत्ते की नाक में नम रूई का फ़ाहा घुसा दिया. शारिक चौंक
गया, उसे हल्का-सा चक्कर आ गया,
मगर वह छिटकने में कामयाब हो गया.
ज़ख्मी उसके पीछे उछला, और अचानक उसने पूरे थोबड़े को रूई से ढाँक दिया. फ़ौरन
साँस रुक गई, मगर कुत्ता एक बार फ़िर छूटने में कामयाब हो गया. ‘खलनायक...’
उसके दिमाग़ में कौंध गया. ‘किसलिए?’ और एक बार फ़िर रूई से दबा दिया. अब अकस्मात् जाँच-कक्ष
के बीचोंबीच तालाब दिखाई दिया, और उसमें कश्तियों पर बेहद ख़ुश, दूसरी
दुनिया के अभूतपूर्व गुलाबी कुत्ते थे. टाँगों की हड्डियाँ ग़ायब हो गईं और वे मुड़
गईं.
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