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सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

Heart of a Dog - 4

 

 

अध्याय – 4

 

तंग ऑपरेशन टेबल पर, हाथ-पैर फ़ैलाये, कुत्ता शारिक पड़ा था और उसका सिर असहायता से मोमजामे के तकिये पर लुढ़क रहा था. उसके पेट के बाल काट दिये गये थे और अब डॉक्टर बर्मेन्ताल भारी-भारी सांसें लेते हुए और शीघ्रता से, रोओं में मशीन घुसाकर शारिक के सिर के बाल काट रहा था. फ़िलिप फ़िलीपविच, मेज़ के किनारे पर हथेलियाँ टिकाये, अपने चश्मे की सुनहरी फ्रेम की तरह चमकती आँखों से इस प्रक्रिया को देख रहा था और वह उत्तेजना से बोला:

“इवान अर्नोल्दविच, सबसे महत्वपूर्ण पल – जब मैं टर्किश सेडल (पल्याणिका – अनु.) के भीतर जाऊँगा. फ़ौरन, आपसे विनती करता हूँ, फ़ौरन ग्लैण्ड देना और तुरंत सी देना, अगर वहाँ रक्तस्त्राव शुरू हो गया तो समय गँवायेंगे और कुत्ते से भी हाथ धो बैठेंगे. ख़ैर, उसके लिये वैसे भी कोई उम्मीद नहीं है, - वह चुप हो गया, आँखें सिकोड़ते हुए, कुत्ते की उपहासपूर्वक आधी खुली आँख में देखा और आगे बोला , “पता है, उस पर दया आ रही है. सोचिये, मुझे उसकी आदत हो गई है.”

इस समय उसने हाथ इस तरह उठाए, जैसे अभागे शारिक को कठिन परीक्षा के लिये आशिर्वाद दे रहा हो. वह कोशिश कर रहा था कि धूल का एक भी कण काले रबड़ पर न बैठे.

काटे गये रोओं के नीचे से कुत्ते की सफ़ेद त्वचा चमकने लगी. बर्मेन्ताल ने मशीन एक तरफ़ रख दी और उस्तरा हाथ में ले लिया. उसने छोटे-से असहाय सिर पर साबुन लगाया और मूंडने लगा. ब्लेड के नीचे खूब करकराहट हो रही थी, कहीं-कहीं खून भी निकल आया. सिर मूंडने के बाद ज़ख़्मी ने बेंज़ीन में भिगोये हुए गीले फ़ाहे से उसे पोंछा, इसके बाद कुत्ते का नंगा पेट खींचा और राहत की साँस लेते हुए कहा : “तैयार है”.

ज़ीना ने सिंक के ऊपर वाला नल खोला और बर्मेन्ताल हाथ धोने के लिये भागा. ज़ीना ने एक फ्लास्क से उन पर स्प्रिट डाला.

“क्या मैं जा सकती हूँ, फ़िलिप फ़िलीपविच?” उसने कुत्ते के गंजे सिर पर भयभीत नज़र डालते हुए पूछा.

“जा सकती हो.”

ज़ीना ग़ायब हो गई. बर्मेन्ताल आगे के काम में व्यस्त हो गया. उसने शारिक के सिर के चारों ओर हल्के जालीदार बैण्डेज रख दिये और तब तकिये पर किसी के भी द्वारा नहीं देखा गया कुत्ते का गंजा सिर और विचित्र दढ़ियल थोबड़ा प्रकट हो गया.

अब प्रीस्ट ने हलचल की. वह सीधा हो गया, कुत्ते के सिर पर नज़र डाली और बोला :

“ऐ ख़ुदा, रहम कर. चाकू.”

बर्मेन्ताल ने छोटी-सी मेज़ पर पड़े चमचमाते ढेर से चौड़े फ़ल वाला छोटा-सा चाकू निकाला और उसे प्रीस्ट को दिया. इसके बाद उसने भी वैसे ही काले दस्ताने पहन लिये जैसे प्रीस्ट ने पहने थे.

“सो रहा है?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा. 

“सो रहा है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच के दांत भिंच गये, आँखों में तीक्ष्ण, चुभती हुई चमक आ गई और, चाकू घुमाकर उसने शारिक के पेट पर सफ़ाई से लम्बा चीरा लगाया. त्वचा फ़ौरन फ़ट गई और उसमें से अलग-अलग दिशाओं में खून का फ़व्वारा निकला. बर्मेन्ताल फ़ुर्ती से लपका , बैंडेज के फ़ाहों से वह शारिक का ज़ख़्म दबाने लगा, इसके बाद, छोटे-छोटे, शक्कर के चिमटों जैसी क्लिपों से उसके किनारे दबा दिये और वह सूख गया. बर्मेन्ताल के माथे पर पसीने की बूंदें छा गईं. फ़िलिप फ़िलीपविच ने दूसरी बार चीरा लगाया और दोनों मिलकर शारिक के शरीर को कैंचियों से, हुकों से, स्टैपल्स से फ़ाड़ने लगे. गुलाबी और पीले, ओस जैसे खूनी आँसू टपकाते ऊतक बाहर उछले. फ़िलिप फिलीपविच ने शरीर के भीतर चाकू घुमाया, फिर चीख़ा: “कैंची!”

ज़ख़्मी के हाथों में औज़ार ऐसे प्रकट हुआ जैसे जादूगर के हाथ में प्रकट हुआ हो. फ़िलिप फ़िलीपविच गहराई में घुसा और कुछ ही घुमावों के बाद शारिक के शरीर से वीर्य ग्रंथियों को कुछ लटकते हुए टुकड़ों सहित बाहर निकाल लिया. बर्मेन्ताल, जो उत्साह और उत्तेजना से पूरी तरह गीला हो गया था, काँच के जार की ओर भागा और उसमें से दूसरी, गीली, झूलती हुई वीर्य ग्रंथियाँ निकाल लाया. प्रोफ़ेसर और सहायक के हाथों में नम तंतु उछल रहे थे, कुंडलियाँ बना रहे थे. मुड़ी हुई सुईयाँ चिमटियों के बीच खटखटाने लगीं. शारिक की वीर्य ग्रंथियों के स्थान पर इन ग्रंथियों को रखकर सी दिया गया. प्रीस्ट ज़ख़्म से दूर हटा, उस पर बैण्डेज का टुकड़ा दबाया और आज्ञा दी:

“डॉक्टर, फ़ौरन त्वचा पर टाँके लगा दो,” फिर सफ़ेद, गोल दीवार-घड़ी की ओर देखा.

“चौदह मिनट में किया,” भिंचे हुए दांतों से बर्मेन्ताल ने कहा और पिलपिली त्वचा में मुड़ी हुई सुई घुसाई. इसके बाद दोनों हत्यारों की तरह परेशान हो गये, जो जल्दी में हों.

“चाकू” फ़िलिप फ़िलीपविच चीख़ा.

चाकू जैसे अपने आप उछल कर उसके हाथों में आ गया, जिसके बाद फ़िलिप फ़िलीपविच का चेहरा ख़ौफ़नाक हो गया. उसने अपने चीनी और सुनहरी कैप वाले दांत दिखाते हुए एक ही झटके में शारिक के माथे पर लाल मुकुट बना दिया. हजामत की हुई खोपड़ी की खाल को अलग हटा दिया. हड्डियों वाली खोपड़ी उजागर हुई.

“ट्रेपन!” (छेद करने का सर्जिकल उपकरण – अनु.)

बर्मेन्ताल ने उसके हाथों में चमचमाता हुआ बरमा दिया. होंठ काटते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच  बरमे को घुसाकर शारिक की खोपड़ी में एक-एक सेंटीमीटर की दूरी पर छोटे-छोटे छेद बनाने लगा, इस तरह कि वे पूरी खोपड़ी के चारों ओर बनें. हर छेद पर उसने पाँच सेकण्ड से ज़्यादा समय नहीं लिया. फ़िर एक अजीब-सी आरी लेकर उसका पिछला हिस्सा पहले छेद में डाला और घिसने लगा, जैसे औरतों के लिये बक्सा बना रहा हो. खोपड़ी हौले-से आवाज़ करते हुए चटक रही थी. तीन मिनट बाद शारिक की खोपड़ी के ढक्कन को निकाल दिया गया.

तब शारिक के मस्तिष्क का गुम्बद उजागर हुआ – भूरा, नीली नसों और लाल धब्बों वाला. फ़िलिप फ़िलीपविच कैंची से झिल्लियाँ खोलने लगा. एक बार खून की पतली धार फ़व्वारे जैसी उछली , प्रोफ़ेसर की आँख़ में गिरते-गिरते बची, और उसके टोप पर छिड़काव कर गई. हाथ में तूर्निकेट (ख़ास तरह का बैण्डेज जो रक्तप्रवाह को रोकने के लिये इस्तेमाल किया जाता है – अनु.) लिये बर्मेन्ताल शेर की तरह उछला, उसे दबाया और रक्त-प्रवाह को बंद कर दिया. बर्मेन्ताल के शरीर से पसीने की धाराएँ बह रही थीं और उसका चेहरा सूज गया और रंगबिरंगा हो गया. उसकी आँखें प्रोफेसर के हाथों से मेज़ पर रखी उपकरणों की प्लेट तक घूम रही थीं. फ़िलिप फ़िलीपविच वाकई में ख़ौफ़नाक लग रहा था. उसकी नाक से आवाज़ आ रही थी, दाँत मसूड़ों तक खुल गये थे. उसने मस्तिष्क से झिल्ली खुरची और मस्तिष्क के खुले हुए अर्धगोल से हटाते हुए कहीं गहराई में घुस गया. इस समय बर्मेन्ताल के चेहरे का रंग पीला होने लगा, उसने एक हाथ से शारिक का सीना पकड़ लिया और भर्राई आवाज़ में बोला:  

नब्ज़ तेज़ी से गिर रही है...”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने जंगली की तरह उसकी ओर देखा, कुछ कहा तथा और ज़्यादा गहराई में गया. बर्मेन्ताल ने कर्र से इंजेक्शन की शीशी को तोड़ा, उसमें सिरिंज डाल कर दवाई सोख ली और चुपके से शारिक के दिल के पास कहीं चुभो दी.                 

“टर्किश सैडल की ओर जा रहा हूँ,” फ़िलिप फ़िलीपविच चिल्लाया और खून से लथपथ चिकने दस्तानों से शारिक के सिर के भीतर से भूरा-पीला मस्तिष्क निकाल लिया. पल भर को उसने शारिक के थोबड़े पर तिरछी नज़र डाली और बर्मेन्ताल ने फ़ौरन पीले द्रव वाली इंजेक्श्न की दूसरी शीशी तोड़ी और एक लम्बी सिरिंज में उसे खींच लिया.     

“सीधे दिल में?” उसने नम्रता से पूछा.

“आप अभी भी पूछ रहे हैं?” प्रोफ़ेसर क्रोध से गरजा. “वह आपके यहाँ पहले ही पाँच बार दम तोड़ चुका है. चुभाईये! क्या कोई तुक है?” ऐसा कहते हुए उसका चेहरा किसी उत्साही लुटेरे जैसा हो गया.

पलक झपकते ही डॉक्टर ने हौले से कुत्ते के दिल में सुई घुसा दी.

“ज़िंदा है, मगर मुश्किल से,” वह नम्रता से फुसफुसाया.

“बहस करने का समय नहीं है – ज़िंदा है – ज़िंदा नहीं है,” डरावना फ़िलिप फ़िलीपविच फुफ़कारते हुए बोला. “मैं सैडल में हूँ. वैसे भी मर ही जायेगा...आह, शैता....पवित्र नील के किनारों पर.. एपिडीडिमिस ( पुरुष जनन तंत्र की वह नलिका जो अण्डकोश को शुक्रवाहिका से जोड़ती है-अनु.) दीजिये.”

बर्मेन्ताल ने उसे वह फ्लास्क दिया जिसमें धागे से लटका हुआ एक पिंड द्रव में झूल रहा था. एक हाथ से – यूरोप में इसके जैसा कोई नहीं है...ऐ ख़ुदा! बर्मेन्ताल ने अस्पष्टता से सोचा, - उसने हिलते हुए पिण्ड को पकड़कर बाहर निकाला, और दूसरा, वैसा ही, कहीं गहराई से फ़ैले हुए अर्धगोलों के बीच से कैंची से, काटकर बाहर निकाला. शारिक का पिण्ड उसने एक प्लेट पर फेंक दिया, और नये वाले को धागे समेत मस्तिष्क में रख दिया और अपनी छोटी-छोटी उँगलियों से, जो मानो किसी चमत्कार से पतली और लचीली हो गईं थीं, बड़ी कुशलता से सुनहरे धागे से वहाँ स्थापित कर दिया. इसके बाद उसने सिर से कोई छिलके, स्क्रू-ड्राईवर बाहर निकाले, मस्तिष्क को वापस हड्डियों के बाऊल में छुपा दिया, पीछे हटा और कुछ अधिक इत्मीनान से पूछा:

“मर गया, ज़ाहिर है?”...

“हल्की-सी नब्ज़ चल रही है,” बर्मेन्ताल ने जवाब दिया.

“और अड्रेनलिन दो.”

प्रोफ़ेसर ने मस्तिष्क को वापस झिल्लियों से ढाँक दिया, छीलकर बाहर निकाले हुए ढक्कन को ठीक निशानों के हिसाब से जमा दिया, खोपड़ी को वापस खींच दिया और गरजा:

“स्टिचेज़ लगाओ!”

बर्मेन्ताल ने तीन सुईयाँ तोड़कर पाँच मिनट में सिर को सी दिया.

और तब तकिये पर खून से रंगी हुई पार्श्वभूमि पर शारिक का निर्जीव, बुझा हुआ थोबड़ा प्रकट हुआ, जिसके सिर पर अंगूठीनुमा घाव था. अब फ़िलिप फ़िलीपविच पूरी तरह ढेर हो गया, तृप्त पिशाच की तरह, उसने पसीने से लथपथ पाउडर का बादल उड़ाते हुए एक दस्ताना चीर दिया, दूसरे को फ़ाड़ दिया, फ़र्श पर फेंक दिया और दीवार में लगी घंटी का बटन दबाया. ज़ीना देहलीज़ पर प्रकट हो गई, मुड़कर वहीं खड़ी रही ताकि खून से लथपथ शारिक को न देखे. प्रीस्ट ने चाक जैसे हाथों से खून से सना टोप उतारा और चिल्लाया:

“मुझे फ़ौरन सिगरेट दो, ज़ीना. ताज़ा अंतर्वस्त्र और स्नान का इंतज़ाम करो.”

उसने मेज़ की किनार पर ठोढ़ी टिकाई, दो ऊँगलियों से कुत्ते की दाईं आँख़ खोली, स्पष्ट रूप से मृतप्राय होती आँख़ में झाँका और बोला: 

“ख़ैर, शैतान ले जाये. नहीं मरा. मगर फ़िर भी दम तोड़ ही देगा. ऐख, प्रोफेसर बर्मेन्ताल, अफ़सोस हो रहा है कुत्ते पर, प्यारा था, हाँलाकि चालाक भी था.”

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