कुत्ता दिल
लेखक
मिखाईल
बुल्गाकव
हिंदी
अनुवाद
आ.
चारुमति रामदास
अध्याय
1
‘ऊ-ऊ-ऊ-ऊ-ऊ-हू-हुह–हुऊ! ओह, मेरी ओर देखो, मैं
मर रहा हूँ. गली का बर्फीला तूफ़ान गरजते हुए मेरी आख़िरी घड़ी के बारे में घोषणा कर
रहा है, और उसके साथ मैं भी बिसूर रहा हूँ. खतम हो गया मैं, बर्बाद
हो गया. गंदी हैट वाला शैतान – राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की सेन्ट्रल कौन्सिल के
कर्मचारियों के लिये सामान्य भोजन वाले कैन्टीन का रसोइया – उबलता हुआ पानी फेंका
और मेरी बाईं बाज़ू को झुलसा दिया. कैसा
साँप है, और ऊपर से प्रोलेटेरियन. ओह, मेरे
ख़ुदा – कितना दर्द हो रहा है! उबला हुआ पानी हड्डियों तक खा गया. मैं अब बिसूर रहा
हूँ, विलाप कर रहा हूँ,
मगर बिसूरने से क्या फ़ायदा होगा.’
‘मैंने उसका क्या बिगाड़ा था?
अगर मैं कूड़े के ढेर में थोबड़ा
घुसाता हूँ, तो क्या मैं अर्थव्यवस्था की कौन्सिल को खा जाऊँगा? लालची
चीज़! कभी आप उसके थोबड़े पर नज़र डालो : कितना चौड़ा है. तांबे के थोबड़े वाला चोर. आह, लोगों, लोगों.
दोपहर को हैट वाले ने उबलते हुए पानी से मेरी मेहमान नवाज़ी की थी, और
अब अंधेरा हो गया है, और प्रिचिस्तेन्स्काया फ़ायर ब्रिगेड से आती प्याज़ की
ख़ुशबू से अंदाज़ लगाया जा सकता है कि दिन के करीब चार बजे हैं. जैसा कि आप जानते
हैं, फ़ायर ब्रिगेड वाले डिनर में पॉरिज खाते हैं. मगर ये –
हाल ही की बात है, मश्रूम्स जैसी. प्रिचिस्तेन्का के परिचित कुत्ते बताते हैं, कि
नेग्लिन्नी के “बार” रेस्टॉरेन्ट में वे साधारण खाना खाते हैं – मश्रूम्स, सॉस-पिकान
- 3
रूबल्स पचहत्तर कोपेक वाली प्लेट. ये किसी शौकिया कुत्ते के लिये गलोश चाटने जैसा
है...ऊ-ऊ-ऊ-ऊ-ऊ....’
‘बाएँ बाज़ू में बेइन्तहा दर्द है, और
अपना भविष्य मुझे साफ़ नज़र आ रहा है : कल छाले आ जाएँगे और, ज़रा
फ़रमाईये, मैं कैसे उन्हें ठीक करूँगा? गर्मियों
में सकोल्निकी जा सकते हो, वहाँ खास किस्म की,
बेहद बढ़िया घास है, और
इसके अलावा मुफ़्त में जी भर के सॉसेज के सिरे गटक सकते हो, नागरिक
तेल से लथपथ कागज़ फेंकते हैं, जी भर के चाट सकते हो. और अगर कोई खूसट न हो, जो
चाँद की रोशनी में घास के मैदान में इस तरह से “प्यारी आइदा” गाता हो, कि
दिल डूबने लगे, तो बस मज़ा ही आ जाये. मगर अब कहाँ जाओगे? क्या
आपको जूतों से नहीं पीटा गया? पीटा गया. पसलियों पर ईंटों की मार पड़ी है? काफ़ी
खाना खा चुका. सब कुछ भुगत चुका हूँ, अपनी किस्मत से समझौता करता हूँ और, अगर
इस समय मैं रो रहा हूँ, तो सिर्फ जिस्म के दर्द और ठण्ड के कारण, क्योंकि
अभी मेरी आत्मा बुझी नहीं है...कुत्ते की आत्मा – ज़िंदाबाद.’
‘मगर मेरा जिस्म टूट चुका है, उसे
बुरी तरह मारा गया है, लोग बुरी तरह मुझे गालियाँ दे चुके. मगर ख़ास बात –
कैसे उसने उबलते हुए पानी से मुझे चीर दिया,
रोएँदार खाल के भीतर तक खा गया, और
बचाव का कोई ज़रिया, बाएँ बाज़ू के लिये, नहीं है. मुझे आसानी से निमोनिया हो सकता है, और, वह
हो जाने के बाद, नागरिकों, मैं भूख से मर जाऊँगा. निमोनिया होने पर मुख्य प्रवेश
द्वार में सीढ़ियों के नीचे लेटे रहना पड़ता है,
और तब,
मुझ लेटे हुए कुँआरे कुत्ते के बदले, कूड़े
के डिब्बों के पास खाने की तलाश में कौन भागेगा?
फेफ़ड़े को पकड़ लेगा, पेट
के बल घिसटूँगा, कमज़ोर हो जाऊँगा,
और कोई भी विषेषज्ञ मुझे डंडे से मौत
के घाट उतार देगा. और बैज वाले चौकीदार मेरी टाँगें पकड़कर मुझे छकड़े में फेंक
देंगे...’
‘सभी प्रोलेटेरियन्स में,
चौकीदार सबसे ज़्यादा घिनौनी चीज़ है. इन्सानों
की सफ़ाई करना सबसे घटिया किस्म का काम है. रसोइये अलग-अलग तरह के मिल जाते हैं, मिसाल
के तौर पर – प्रिचिस्तेन्का से स्वर्गीय व्लास. उसने कितनी ज़िंदगियाँ बचाई हैं.
क्योंकि, बीमारी के दौरान सबसे ज़रूरी है खाने का कोई टुकड़ा
पाना. और, बूढ़े कुत्ते बताते हैं कि अक्सर व्लास हड्डी हिलाता था, और
उस पर ढेर सारा माँस चिपका रहता था. ख़ुदा उसे जन्नत बख़्शे, इस
बात के लिये कि वह असली इन्सान था, ग्राफ़ टाल्स्टॉय का ख़ानदानी रसोइया था, न
कि सामान्य पोषण कौंसिल का. वहाँ – सामान्य पोषण में वे क्या-क्या करते हैं –
कुत्ते की बुद्धि की समझ से परे है. वे,
कमीने,
नमक लगे,
गंधाते बीफ़ का सूप उबालते हैं, और
वे, ग़रीब बेचारे,
कुछ भी नहीं जानते. भाग कर आते हैं, खा
जाते हैं, चटखारे लेते हैं.’
‘एक टायपिस्ट छोकरी,
जो नवीं श्रेणी की कर्मचारी है और
जिसे पैंतालीस रूबल मिलते हैं, ख़ैर, ये सच है कि उसका आशिक उसे पर्शियन-रेशमी जुराबों का
उपहार देगा. मगर इन जुराबों के लिये उसे कितनी बदतमीज़ी बर्दाश्त करनी पड़ेगी. आख़िर, वह
उसे किसी मामूली तरीके से तो नहीं ना देगा,
बल्कि फ्रांसीसी ढंग से प्यार करने
पर मजबूर करेगा. श्...ये फ्रांसीसी, हमारी आपस की बात है, हाँलाकि खाते खूब हैं,
मगर सब रेड-वाईन के साथ. हाँ...तो, टायपिस्ट
छोकरी भागकर आती है, आख़िर पैंतालीस रूबल्स में कोई ‘बार’ में
तो नहीं जा सकता. उसके पास तो सिनेमा देखने के पैसे भी नहीं बचते, और
सिनेमा औरत की ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा सुकून देने वाली चीज़ है. थरथराती है, त्यौरियाँ
चढ़ाती है, मगर खाती है...ज़रा सोचो : दो प्लेटों के लिये चालीस
कोपेक, जबकि उनकी कीमत पंद्रह कोपेक भी नहीं है, क्योंकि
बचे हुए पच्चीस कोपेक मैनेजर ने चुरा लिए हैं. मगर क्या उसे ऐसे खाने की ज़रूरत है?
उसके दाएँ फ़ेफ़ड़े का ऊपरी हिस्सा खराब
है और औरतों वाली बीमारी भी है, उसे काम से हटा दिया गया,
डाइनिंग हॉल में सड़ा हुआ माँस खिलाया
गया, यही है वो, यही है...आशिक की जुराबें पहनकर भागते हुए गली में
मुड़ती है. पैर ठण्डे हैं, और पेट पर हवा की मार लग रही है, क्योंकि
उसके ऊपर के रोंएँ मेरे जैसे ही है, और उसने पतलून भी ठण्डी ही पहनी है, सिर्फ
झालर ही झालर दिखाई देती है. आशिक की ख़ातिर चीथड़ा पहना है. अगर वह फ़लालैन की पहने, कोशिश
तो करे, वह चिल्लायेगा : कितनी फ़ूहड़ है तू! बेज़ार कर दिया मुझे
मेरी मत्र्योना ने, उसकी फलालैन की पतलून से मैं तंग आ चुका हूँ, अब
मेरे दिन आये हैं. मैं अब चेयरमैन हूँ, और जितना भी चुराता हूँ - सब औरत के जिस्म पर, लॉब्स्टर्स पर और अब्राऊ-दूर्सो वाईन पर लुटा देता
हूँ. क्योंकि मैं जवानी में बेहद भूखा रहा,
अब मेरे पास काफ़ी है, और
मरने के बाद ज़िंदगी होती ही नहीं है.’
‘अफ़सोस होता है मुझे उसके लिये, अफ़सोस!
मगर अपने आप पर और भी ज़्यादा अफ़सोस होता है. यह मैं स्वार्थ के कारण नहीं कह रहा
हूँ, ओह नहीं, बल्कि इसलिये कि हम वाकई में अलग-अलग हालात में हैं.
उसे कम से कम घर में तो गर्माहट मिलती है,
मगर मुझे...कहाँ जाऊँ? ऊ-ऊ-ऊ-ऊ-ऊ!...’
“कुत्-कुत्, कुत्!
शारिक, ओ शारिक...दाँत क्यों निकाल रहा है, बेचारा? किसने
तुम्हारी बेइज़्ज़ती की? ऊख...”
सूखी
चुडैल जैसा तूफ़ान दरवाज़े भड़भड़ा रहा था और लड़की के कान के पास से झाडू की तरह निकल
गया. स्कर्ट को घुटनों तक उठा दिया, क्रीम के रंग की जुराबें,
और गंदे,
लेस की किनार वाले कच्छे की पतली
किनार दिखा दी, लब्ज़ों को दबा दिया और कुत्ते को बर्फ़ से ढंक दिया.
‘या ख़ुदा...कैसा
मौसम है...ऊख...और पेट भी दुख रहा है. ये सड़े हुए बीफ़ की वजह से है! और ये सब
कब ख़त्म होगा?’
सिर
झुकाकर वह लड़की तूफ़ान का मुकाबला करने भागी,
गेट की तरफ़ भागी, और
रास्ते में वह लट्टू की तरह गोल-गोल घूमने लगी,
घूमने लगी, पटखनी
खाने लगी, फिर बर्फीले स्क्रू ने उसे कसना शुरू किया, और
वह ग़ायब हो गई.
और
कुत्ता गली में रह गया और, ज़ख़्मी बाज़ू की पीड़ा से तड़पते हुए ठण्डी दीवार से चिपट
गया, उसका दम घुटने लगा और उसने पक्का इरादा कर लिया कि
यहाँ से कहीं नहीं जायेगा, यहीं, गली में ही मर जायेगा. उस पर बदहवासी हावी हो गई. दिल
में इतना दर्द और इतनी कड़वाहट थी, इतना अकेलापन और इतना डर था, कि
कुत्ते के नन्हे-नन्हे आँसू, मुँहासों जैसे,
आँखों से लुढ़कते रहे और वहीं सूखते
रहे.
घायल
बाज़ू पर जमी हुई गांठें बन गई थी, और उनके बीच में लाल,
दुष्ट छाले दिखाई दे रहे थे. किस कदर
भावनाहीन, बेवकूफ़, क्रूर होते हैं रसोइये. – “शारिक” उसने इसी नाम से
पुकारा था उसे...कहाँ का आया “शारिक”? शारिक का मतलब होता है गोल-मटोल, खाया-पिया, बेवकूफ़, दलिया
खाने वाला, जाने-माने माँ-बाप का लड़का,
और वह है झबरा, दुबला-पतला
और चीथड़े जैसा, झुलसा हुआ, आवारा कुत्ता,
ख़ैर,
उस प्यारे लब्ज़ के लिये उसका
शुक्रिया.
‘सड़क के उस पार जगमगाती दुकान का दरवाज़ा धड़ाम से बजा और
उसमें से एक नागरिक निकला. अस्सल नागरिक,
न कि कॉम्रेड, मुमकिन
है – भला आदमी भी हो. करीब-करीब – पक्का – भला आदमी. क्या आप यह सोच रहे हैं कि
मैं ओवरकोट देखकर फ़ैसला करता हूँ? बकवास. ओवरकोट तो आजकल बहुत सारे प्रोलेटेरियन्स भी
पहनते हैं. ये सही है कि कॉलर ऐसी नहीं होती,
इसके बारे तो कुछ कहा ही नहीं जा
सकता, मगर फिर भी दूर से गलती कर सकता हूँ. मगर आँखों से –
यहाँ तो दूर हो, या नज़दीक - मैं ग़लती नहीं कर सकता. ओह, आँखें
ग़ज़ब की चीज़ हैं. बैरोमीटर की तरह. सब
पता चल जाता है कि किसका दिल एकदम सूखा है,
कौन यूँ ही, बिना
बात पसलियों में जूते की नोक गड़ायेगा, और कौन ख़ुद हर चीज़ से डरता है. इस आख़िरी वाले के टखने को काटना मुझे बहुत अच्छा
लगता है. डरते हो – लो. जब डरते हो तो तुम इसी लायक हो....र्-र्—र्...भौ-भौ...’
‘भले आदमी ने आत्मविश्वास से तूफ़ानी तेज़ी से गोल-गोल
घूम रही बर्फ के स्तंभ को पार किया और गली में आगे बढ़ा. हाँ, हाँ, इसका
सब कुछ समझ में आ रहा है. ये सड़ा हुआ गोश्त नहीं खायेगा, और
अगर किसी ने कहीं उसे सड़ा हुआ गोश्त दिया, तो वह इतना हंगामा करेगा,
अख़बारों में लिखेगा : मुझे, फिलिप
फिलीपविच को, ख़तरनाक खाना दिया गया.’
‘वह पास-पास आ रहा है. ये भरपेट खाता है और चोरी नहीं
करता, ये पैर से चोट नहीं करेगा,
मगर ख़ुद भी किसी से नहीं डरता, और
इसलिये नहीं डरता, क्योंकि उसका पेट हमेशा भरा रहता है. वह दिमाग़ी काम
करने वाला भला आदमी है, नुकीली फ़्रांसीसी दाढ़ी और सफ़ेद मूँछों वाला, खूब घनी और शानदार, जैसी
फ्रांसीसी सूरमाओं की होती हैं, मगर तूफ़ान में उसके बदन से गंदी, अस्पताल
जैसी बू आ रही है. और सिगार की भी.’
‘मैं पूछता हूँ,
कि कौनसा शैतान इसे सेन्ट्रल कौन्सिल
के कोऑपरेटिव में खींच लाया? ये मेरी बगल में ही है...किस बात का इंतज़ार कर रहा है? ऊ-ऊ-ऊ-ऊ...
इस गंदी दुकान में वह क्या खरीद सकता है,
क्या ‘अखोत्नी कतार’ उसके लिये काफ़ी नहीं है?
ये क्या है? सॉसेज.
भले इन्सान, अगर आपने देखा होता कि यह सॉसेज किस चीज़ से बनाते हैं, तो
आप दुकान के पास भी नहीं फ़टकते. इसे आप मुझे दे दीजिये.’
कुत्ते
ने बची-खुची ताकत बटोरी और पागलपन से गली से फुटपाथ पर रेंग गया. तूफ़ान मानो बंदूक की नली से सिर के ऊपर
वार कर रहा था, कैनवास के पोस्टर पर लिखे भारी-भरकम अक्षरों को उछाल
रहा था “क्या फिर से जवान होना संभव है?”
‘ज़ाहिर है, संभव है. ख़ुशबू ने मुझे जवान बना दिया, मुझे
पेट के बल उठाया, दो दिनों से खाली पड़े पेट में जलन हो रही थी, ख़ुशबू, अस्पताल
को हराने वाली, लहसुन और काली मिर्च डली घोड़ी के कीमे की स्वर्गीय
ख़ुशबू. महसूस कर रहा हूँ, जानता हूँ – उसके फ़र-कोट की दाईं जेब में सॉसेज है. वह
मुझ पर झुका. ओह, मेरे मालिक! मेरी तरफ़ देख. मैं मर रहा हूँ. हम गुलामों
की रूह, कमीनी किस्मत!’
कुत्ता
रेंगने लगा, साँप की तरह,
पेट के बल, आँसू
बहाते हुए. रसोईये की करतूत पर ग़ौर कीजिये. मगर आप यूँ ही क्यों देने लगे. ओह, मैं
अमीर आदमियों को बहुत अच्छी तरह जानता हूँ! मगर वाकई में – आपको उसकी ज़रूरत ही क्या
है? आपको सड़ा हुआ घोड़ा क्यों चाहिये? मॉस्सेल्प्रोम
(मॉस्को कृषि उद्योग – अनु.) के अलावा ऐसा ज़हर आपको कहीं और नहीं मिलेगा. और आपने, पुरुष
यौन-ग्रंथियों की बदौलत दुनिया भर में मशहूर इन्सान ने, आज नाश्ता किया है. ऊ-ऊ-ऊ-ऊ...दुनिया में ये क्या हो
रहा है? ज़ाहिर है, अभी मरने का समय नहीं आया है, मगर
बदहवासी – वाकई में गुनाह है. उसका हाथ चाटना होगा,
और तो कोई तरीका है नहीं.’
रहस्यमय
भला आदमी कुत्ते की ओर झुका, सुनहरे किनारे वाली आँख चमकाई और दाईं जेब से सफ़ेद, लम्बा
पैकेट निकाला. भूरे दस्तानों को उतारे बिना,
कागज़ हटाया, जिस
पर फ़ौरन बर्फीले तूफ़ान ने कब्ज़ा कर लिया,
और “स्पेशल क्राकव” सॉसेज का टुकड़ा
तोड़ा. और यह टुकड़ा कुत्ते को दिया.
‘ओह, कितना निःस्वार्थ व्यक्ति! ऊ-ऊ-ऊ!’
“फित्-फित्” – भले आदमी ने सीटी बजाई और कड़ी आवाज़ में
कहा: “ले! शारिक, शारिक!”
‘फ़िर से शारिक. नाम भी रख दिया. ठीक है, जैसा
चाहो, पुकारो. आपके इस ख़ास बर्ताव के लिये.’
कुत्ते
ने पल भर में सॉसेज का छिलका फ़ाड़ दिया, सिसकते
हुए क्राकव-सॉसेज में दांत गड़ा दिये और दो ही बार में उसे खा लिया. ऐसा करते हुए
सॉसेज और बर्फ के कारण उसका दम घुटने लगा,
आँसू निकलने लगे, क्योंकि
लालच के मारे उसने डोरी को भी लगभग निगल ही लिया था. ‘और, अभी भी आपका हाथ चाट रहा हूँ. पतलून चूम रहा हूँ, मेरे
मेहेरबान!’
“अभी
इतना ही काफ़ी है...” भले आदमी ने इतने उड़े-उड़े अंदाज़ में कहा, जैसे
हुक्म दे रहा था. वह शारिक की ओर झुका, ताड़ती हुई नज़र से उसकी आँख़ों में देखा और अचानक
दस्ताने वाले हाथ से घनिष्ठता और प्यार से शारिक का पेट सहलाने लगा.
“आ-हा,” अर्थपूर्ण स्वर में उसने कहा, “पट्टा नहीं है,
ये भी बढ़िया है, मुझे
तेरी ही तो ज़रूरत है. मेरे पीछे-पीछे आ,”
उसने चुटकी बजाई, “फ़ित्-फ़ित्!”
‘आपके पीछे आऊँ?
हाँ दुनिया के छोर तक. चाहे आप मुझे
अपने फेल्ट वाले जूतों से ठोकर ही क्यों न मारो,
मैं एक भी लब्ज़ नहीं कहूँगा.’
पूरी
प्रिचिस्तेन्का पर लैम्प जल रहे हैं. बाज़ू
में बर्दाश्त से बाहर दर्द हो रहा है, मगर शारीक कभी-कभी उसके बारे में भूल जाता, वह
सिर्फ एक ही ख़याल में खोया हुआ था – कि कहीं इस गहमा-गहमी में फर कोट से ढंके इस
आश्चर्यजनक नज़ारे को खो न दे और किसी तरह उसके प्रति अपने प्यार और वफ़ादारी का
इज़हार करे. और प्रिचिस्तेन्का से ओबुखवा
गली तक करीब सात बार उसने इस भावना को ज़ाहिर किया. म्योर्त्वी नुक्कड़ के पास रास्ता
साफ़ करते हुए उसके जूते चाटे, जंगलीपन से चिल्लाते हुए किसी औरत को इतना डराया कि वह
एक पत्थर पर बैठ गई, दो बार रोया,
ताकि अपने-आप के प्रति दया का समर्थन
कर सके.
कोई
एक कमीनी, झूठ-मूठ की साईबेरियन आवारा बिल्ली नाली के पीछे से
कूदी और, तूफ़ान के बावजूद उसने क्राकव-सॉसेज को सूंघ लिया.
शारिक इस ख़याल से एकदम सुन्न हो गया कि यह अमीर भला इन्सान, जो
गली के ज़ख़्मी कुत्ते को अपने साथ ले जा रहा है,
कहीं इस चोर को भी अपने साथ न ले ले, और
तब मॉस्सेल्प्रोम के इस उत्पाद को उसके साथ बांटना पड़ेगा. इसलिये उसने बिल्ली की
ओर देखते हुए इस तरह से दांत किटकिटाए कि वह छेद वाले पाईप जैसा फिसफिसाते हुए
पाईप पर दूसरी मंज़िल तक चढ़ गई.
‘गु-र्-र्-र्र-...भौ....! प्रिचिस्तेन्का पर भटकते हर गलीज़-आवारा के लिये मॉस्सेल्प्रोम
भी पूरा नहीं पड़ेगा’.
भले
आदमी को वफ़ादरी पसंद आई और ठीक फ़ायर-ब्रिगेड के पास,
खिड़की के निकट, जिसमें
से फ्रेंच भोंपू की प्यारी आवाज़ आ रही थी,
उसने कुत्ते को दूसरा टुकड़ा इनाम में
दिया, पाँच के सिक्के जितना.
‘ऐख, सनकी. मुझे ललचा रहा है. परेशान न हो! मैं ख़ुद भी कहीं
नहीं जाऊँगा. जहाँ कहो, तुम्हारे पीछे-पीछे आऊँगा.’
“फ़ित्—फ़ित्-
फित्! इधर!”
‘ओबुखवा? मेहेरबानी करो. हम इस गली को बहुत अच्छी तरह जानते
हैं.
“फित्-फित्!”
‘यहाँ? ख़ुशी...ऐ, नहीं, माफ़ कीजिये. नहीं. यहाँ दरबान है. और इससे बुरी चीज़
दुनिया में कोई और हो ही नहीं सकती. चौकीदार से कई गुना ज़्यादा ख़तरनाक. पूरी तरह
घिनौनी किस्म. बिल्लियों से भी ज़्यादा घिनौनी. फ़ीतों वाला कसाई.’
“अरे, डरने
की ज़रूरत नहीं, चल.”
“नमस्ते, फ़िलीप फिलीपविच.”
“नमस्ते, फ़्योदर.”
‘ये है – इन्सान. ऐ ख़ुदा,
मेरी कुत्ती-किस्मत! मुझे किसके पास
ले आई! ये कैसा आदमी है जो दरबानों की नज़र के सामने से सड़क के कुत्तों को हाऊसिंग
सोसाइटी की बिल्डिंग में ले जा सकता है?
देखिये,
ये कमीना – न कोई आवाज़, न
कोई हलचल! सही है, उसकी आँखों के सामने धुंध छा गई, मगर, आम
तौर से, अपनी हैट के सुनहरे फ़ीतों के नीचे वह उदासीन है. जैसे
कि ऐसा ही होना चाहिये. इज़्ज़त करता है, साहब, कितनी इज़्ज़त करता है! ख़ै-र,
और मैं उसके साथ और उसके पीछे. क्या, छुआ? काट
ले. काश, प्रोलेटेरियन का घट्टेदार पैर काट लेता. अपने भाई से
की गई सभी बदमाशियों के लिये. कितनी बार ब्रश से मेरे थोबड़े को बिगाड़ा है, आ?’
“चल, चल.”
‘समझ रहे हैं,
समझ रहे हैं, परेशान
होने की ज़रूरत नहीं है. जहाँ-जहाँ आप, वहाँ-वहाँ हम. आप सिर्फ रास्ता बताईये, और
मैं पीछे नहीं रहूँगा, मेरी बेहाल-परेशान बाज़ू के बावजूद.’
‘सीढ़ी से नीचे.’
“फ़्योदर, मेरे
लिये कोई चिट्ठी तो नहीं आई?”
नीचे
सीढ़ी से आदरपूर्वक:
“बिल्कुल
नहीं, फ़िलीप फ़िलीपविच (घनिष्ठता से दबी आवाज़ में पीछे से), - “और तीसरे क्वार्टर में हाऊसिंग कमिटी वालों को बसाया गया
है.”
महत्वपूर्ण,
कुत्तों का भला करने वाला, गर्र से सीढ़ी पर मुड़ा और रेलिंग पर झुककर, उसने
दहशत से पूछा:
“अच्छा-आ?”
उसकी
आँखें गोल हो गईं और मूंछें खड़ी हो गईं.
दरबान
ने नीचे से सिर को झटका दिया, होंठों पर हथेली रखी और पुष्टि की:
“सही
है, पूरे चार लोग.”
“ओह, गॉड!
कल्पना कर सकता हूँ कि अब क्वार्टर में क्या होगा. और,
कैसे हैं वो लोग?”
“कोई ख़ास नहीं.”
“और
फ़्योदर पाव्लविच?”
“परदे
लाने गये हैं और ईंटें लाने. पार्टीशन्स बनाएँगे.”
“शैतान
जाने, क्या बला है!”
“सभी
क्वार्टरों में, फ़िलीप फ़िलीपविच,
उन्हें बसाया जायेगा, सिवाय
आपके क्वार्टर के. अभी मीटिंग हुई थी, नई कमिटी चुनी गई है,
और पुराने वालों को गर्दन पकड़ कर
निकाल दिया.”
“क्या
हो रहा है. आय-आय-आय...फित्–फित्.”
‘आ रहा हूँ, भाग रहा हूँ. बाज़ू,
ग़ौर फ़रमाईये, अपने
दर्द की याद दिला रहा है. आपका जूता चाटने की इजाज़त दीजिये.’
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