अध्याय 7
“नहीं, नहीं और बिल्कुल नहीं!” बर्मेन्ताल अपनी बात पर अड़ा
था. “मेहेरबानी से अपना नैपकिन ठीक से टाँकिये.”
“आह, क्या मुसीबत है,
ऐ ख़ुदा,”
शारिकव अप्रसन्नता से भुनभुनाया.
“धन्यवाद, डॉक्टर,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने प्यार से कहा, “वर्ना मैं तो हिदायतें देते-देते बेज़ार हो गया था.”
“कुछ भी कर लो,
जब तक ढंग से नैपकिन नहीं लगाते, खाने
नहीं दूँगा. ज़ीना, शारिकव के हाथ से मेयोनेज़ ले लो.”
“ये ‘ले लो’ का क्या मतलब है?”
शारिकव चिढ़ गया, “मैं फ़ौरन लगाता हूँ.”
बायें हाथ से ज़ीना से प्लेट को बचाते हुए, उसने
दाएँ हाथ से नैपकिन को कॉलर में घुसाया और हेयरकटिंग सैलून में ग्राहक की तरह
दिखाई देने लगा.
“और कांटे से,
प्लीज़,”
बर्मेन्ताल ने आगे कहा.
शारिकव ने एक लम्बी साँस ली और गाढ़े सूप में से
स्टर्जन के टुकड़े ढूँढ़ने लगा.
“मैं और वोद्का पी सकता हूँ?” उसने प्रश्नार्थक अंदाज़ में ज़ाहिर कर दिया.
“आपको नुक्सान तो नहीं होगा?” बर्मेन्ताल ने पूछा,
“पिछले कुछ समय से आप काफ़ी वोद्का पी
रहे हैं.”
“आपको अफ़सोस हो रहा है?”
शारिकव ने पूछा और कनखियों से उसकी
ओर देखा.
“बकवास करते हैं...” फ़िलिप फ़िलीपविच ने गंभीरता से दखल
देते हुए कहा, मगर बर्मेन्ताल ने उसकी बात काटी.
“आप परेशान न हों,
फ़िलिप फ़िलीपविच, मैं
ख़ुद संभाल लूँगा. आप, शारिकव, फ़िज़ूल की बात कर रहे हैं और सबसे ज़्यादा अपमानजनक बात
यह है कि आप इसे एकदम बेधड़क और पूरे विश्वास के साथ कहते हैं. मुझे, बेशक, वोद्का
के लिये कोई अफ़सोस नहीं है, ख़ास तौर से इसलिये कि वह मेरी नहीं, बल्कि
फ़िलिप फ़िलीपविच की है. सिर्फ – वह नुक्सान करती है. ये – पहली बात, और
दूसरी – आप बगैर वोद्का के भी असभ्यता से बर्ताव करते हैं.”
बर्मेन्ताल ने चिपकाये गये साइड-बोर्ड की ओर इशारा
किया.
“ज़ीनूश्का, मुझे थोड़ी और मछली दो,”
प्रोफेसर ने कहा.
इस बीच शारिकव ने सुराही की तरफ़ हाथ बढ़ाया और बर्मेन्ताल
पर तिरछी नज़र डालकर, जाम में वोद्का डाली.
“औरों को भी पेश करना चाहिये,” बर्मेन्ताल ने कहा,
“और ऐसे: पहले फ़िलिप फ़िलीपविच को, फिर
मुझे, और आख़िर में ख़ुद को.”
मुश्किल से नज़र आ रही व्यंग्यात्मक मुस्कान शारिकव के
मुँह को छू गई, और उसने जामों में वोद्का डाली.
“आपके यहाँ सब कुछ परेड जैसे होता है,” उसने कहा, “नैपकिन – उधर,
टाई – इधर, और
“माफ़ कीजिये”, और “प्लीज़-मर्सी”,
और ये वास्तव में होता हो – ऐसा नहीं
है. अपने आप को तकलीफ़ देते हैं, जैसे त्सार के ज़माने में होता था.”
“और ये “वास्तव में” का क्या मतलब है –
जानने की इजाज़त दीजिये.”
शारिकव ने फ़िलिप फ़िलीपविच को इस पर कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि
जाम उठाया और बोला:
“तो, चाहता हूँ कि सब...”
“और आपको भी,”
कुछ व्यंग्य से बर्मेन्ताल ने फ़िकरा
कसा.
शारिकव ने जाम में पड़ी हुई वोद्का एक घूँट में गले में
उछाल दी, त्यौरियाँ चढ़ाईं,
ब्रेड का टुकड़ा नाक के पास ले गया, सूंघा, और
उसके बाद उसे निगल गया, ऐसा करते हुए उसकी आँखें आँसुओं से लबालब भर गईं.
“ये भी एक दौर है,”
अचानक रुक-रुक कर और जैसे खोये-खोये
अंदाज़ में फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा.
बर्मेन्ताल ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा.
“माफ़ी चाहता हूँ...”
“दौर!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने दोहराया और अफ़सोस के साथ सिर
हिलाया, “इस बारे में कुछ भी नहीं कर सकते – क्लीम.”
बर्मेन्ताल ने बेहद दिलचस्पी से एकटक फ़िलिप फ़िलीपविच
की आँखों में देखा :
“आप ऐसा सोचते हैं,
फ़िलिप फ़िलीपविच?”
“सोचने का सवाल ही नहीं है,
मुझे इसमें पूरा यकीन है.”
“क्या वाकई में...” बर्मेन्ताल ने कहना शुरू किया और
शारिकव की ओर देखकर रुक गया.
वह सन्देह से नाक-भौंह चढ़ा रहा था.
“बाद में...” फ़िलिप फ़िलीपविच ने धीरे से कहा.
“अच्छा” सहायक ने कहा.
ज़ीना टर्की लाई. बर्मेन्ताल ने फ़िलिप फ़िलीपविच के जाम
में रेड-वाईन डाली और शारिकव को भी पेश की.
“मुझे नहीं चाहिये. इससे अच्छा तो मैं वोद्का पिऊँगा.”
उसका चेहरा तैलीय हो गया, माथे पर पसीना झलक आया,
वह प्रसन्न हो गया. वाईन के बाद
फ़िलिप फ़िलीपविच भी कुछ ख़ुश हो गया. उसकी आँखें चमकने लगीं, वह
ज़्यादा नर्मी से शारिकव की ओर देखने लगा,
नैपकिन में उसका काला सिर इस तरह चमक
रहा था, जैसे दही में मक्खी गिरी हो.
बर्मेन्ताल ने कुछ ताज़ा-तरीन होकर, कुछ
करने का फ़ैसला किया.
“तो, आज शाम को हम दोनों क्या करने वाले हैं?” उसने शारिकव से पूछा.
उसने आँखें झपकाईं,
जवाब दिया:
“सर्कस जायेंगे,
सबसे बढ़िया रहेगा.”
“हर रोज़ सर्कस,”
फ़िलिप फ़िलीपविच ने भलमनसाहत से कहा, “मेरे ख़याल से,
ये काफ़ी बोरिंग है. आपकी जगह यदि मैं
होता, तो कम से कम एक बार ज़रूर थियेटर जाता.”
“थियेटर मैं नहीं जाऊँगा,”
शारिकव ने अप्रियता से कहा और मुँह
टेढ़ा किया.
“मेज़ पर हिचकियाँ लेने से औरों की भूख ख़त्म हो जाती है,” बर्मेन्ताल ने यंत्रवत् कहा. “आप मुझे माफ़
कीजिये...आपको, आख़िर क्यों,
थियेटर पसन्द नहीं है?”
शारिकव
ने ख़ाली जाम की ओर इस तरह देखा जैसे दूरबीन में देख रहा हो, थोड़ी
देर सोचा और होंठ आगे की ओर निकाले और बोला:
“बेवकूफ़ होने का ढोंग करते हैं... बातें करते रहते हैं,
करते रहते हैं...सिर्फ
प्रति-क्रांति.”
फ़िलिप
फ़िलीपविच ने अपनी कुर्सी की गोथिक पीठ से टिककर इस तरह ठहाका लगाय कि उसके मुँह के
भीतर सुनहरी पट्टी चमक उठी. बर्मेन्ताल ने सिर्फ सिर हिलाया.
“आप
कुछ पढ़ ही लेते,” उसने सुझाव दिया,
“वर्ना,
जानते हैं...”
“पढ़ता
हूँ, पढ़ता ही रहता हूँ...” शारिकव ने जवाब दिया और हिंस्त्र
भाव से वोद्का से अपना आधा गिलास भर दिया.
“ज़ीना,” फ़िलिप फ़िलीपविच उत्तेजना से चिल्लाया, “बच्ची, वोद्का हटा लो,
अब इसकी ज़रूरत नहीं है. आप आख़िर क्या
पढ़ते हैं?”
उसके दिमाग़ में अचानक एक तस्वीर कौंध गई: सुनसान टापू, चीड़
का पेड़, जानवर की खाल और टोप पहना आदमी. :ये रोबिन्सन होगा”...
“ये...क्या कहते हैं...एजेल्स का पत्र व्यवहार
इस...क्या कहते हैं उसे – शैतान को – काऊत्स्की के साथ.”
बर्मेन्ताल ने सफ़ेद माँस का टुकड़ा टंका फोर्क आधे में
ही रोक दिया, और फ़िलिप फ़िलीपविच के मुँह से वाईन का फ़व्वारा निकल
गया.
फ़िलिप फ़िलीपविच ने कुहनियाँ मेज़ पर रखीं, शारिकव
को ग़ौर से देखा और पूछा:
“कृपया यह बताने का कष्ट करें कि आप अपने पढ़े हुए के
बारे में क्या कह सकते हैं.”
शारिकव ने कंधे उचका दिये.
“हाँ, मैं सहमत नहीं हूँ.”
“किससे? एन्जेल्स से या काऊत्स्की से?”
“दोनों से,” शारिकव ने जवाब दिया.
“ये ग़ज़ब की बात है,
ख़ुदा की कसम. “ सबको, जो
कहेगा कि दूसरा...” और आप अपनी ओर से क्या सुझाव देंगे?”
“उसमें क्या सुझाव देना है?...वो तो लिखते हैं,
लिखते हैं...काँग्रेस, कोई
जर्मन्स...दिमाग़ सूज जाता है. सब ले लो,
और सब में बांट दो...”
“मैंने ऐसा ही सोचा था,”
मेज़पोश पर हथेली मारते हुए फ़िलिप
फ़िलीपविच चहका, “बिल्कुल ऐसा ही मैं समझ रहा था.”
“आप तरीका भी जानते हैं?”
बर्मेन्ताल ने दिलचस्पी लेते हुए पूछा.
“क्या तरीका है वहाँ,”
वोद्का पीने के बाद बातूनी हो गए शारिकव ने समझाया, “ये कोई चालाकी वाला काम नहीं है. वर्ना ये क्या बात
हुई: एक अकेला आदमी सात कमरों में बस गया है,
उसके पास चालीस जोड़ी पतलून हैं, और
दूसरा आवारा भटकता है, कचरे के ढेरों में खाना ढूँढ़ता है.”
“सात कमरों के बारे में – ये आप, बेशक, मेरी
ओर इशारा कर रहे हैं?” गर्व से आँखें सिकोड़ते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा.
शारिकव सिकुड़ गया और चुप हो गया.
“ठीक है, अच्छी बात है,
मैं सब में बांटने के ख़िलाफ़ नहीं
हूँ. डॉक्टर, कल आपने कितने मरीज़ों को मना किया था?”
“उनतालीस लोगों को,”
बर्मेन्ताल ने फ़ौरन जवाब दिया.
“हुम्म...तीन सौ नब्बे रूबल्स. तो, तीन
मर्दों पर इसकी ज़िम्मेदारी है. महिलाओं – ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना - को नहीं
गिनेंगे. आपसे, एक सौ तीस रूबल्स. देने की मेहेरबानी कीजिये.”
“ये अच्छा काम है,”
शारिकव ने घबराकर जवाब दिया, “ये किसलिये?”
“नल के लिये और बिल्ले के लिये,” अचानक अपनी व्यंग्यात्मक शांति की स्थिति से बाहर आकर
फ़िलिप फ़िलीपविच गरजा.
“फ़िलिप फ़िलीपविच,”
बर्मेन्ताल उत्तेजना से चहका.
“रुकिये. उस हंगामे के लिये, जो
आपने किया था और जिसकी वजह से मरीज़ों को इनकार करना पड़ा. ये बर्दाश्त से बाहर है.
आदमी, आदिम मानव की तरह,
पूरे क्वार्टर में उछलता है, नल
तोड़ता है. मैडम पलासूखेर के यहाँ बिल्ली को किसने मार डाला? किसने....”
“आपने, शारिकव, परसों सीढ़ियों पर महिला को काट लिया,” बर्मेन्ताल टपक पड़ा.
“आपको तो...” फ़िलिप फ़िलीपविच गरजा.
“हाँ, उसने मेरे थोबड़े पे झापड़ मारा”, - शारिकव चिल्लाया,
“मेरा थोबड़ा सरकारी नहीं है!”
“क्योंकि आपने उसके सीने पर चिमटी काटी थी,” जाम पर टकटक करते हुए बर्मेन्ताल चीख़ा, “आपको तो...”
“आप विकास की सबसे निचली सीढ़ी पर खड़े हैं,” फ़िलिप फ़िलीपविच और भी ज़ोर से चीख़ा, “आप अभी सिर्फ निर्माण की स्थिति में हैं, मानसिक
रूप से कमज़ोर प्राणी, आपके सभी कार्यकलाप बिल्कुल जानवरों जैसे हैं, और
आप दो युनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त लोगों के सामने ऐसी बेतकल्लुफ़ी से, जो
बर्दाश्त से बाहर है, ब्रह्माण्ड के स्तर की सलाह देते हैं, जो
ब्रह्माण्ड के ही स्तर की मूर्खतापूर्ण है,
कि कैसे हर चीज़ का विभाजन किया
जाये...मगर उसी समय आपने टूथपेस्ट गटक ली...”
“परसों,” बर्मेन्ताल ने पुष्टि की.
“और,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कड़कते हुए कहा, “हमेशा के लिये याद रखो,
वैसे,
तुमने अपनी नाक से ज़िंक का
ऑइन्टमेन्ट क्यों पोंछ दिया? – याद रखो कि आपको ख़ामोश रहना और सुनना चाहिये, जो
आपसे कहा जा रहा है. सीखना है और समाजवादी समाज का स्वीकार्य सदस्य बनने की कोशिश
करना है. वैसे, किस बदमाश ने आपको ये किताब दी थी?”
“आपके लिये तो सभी बदमाश हैं,” दोनों तरफ़ से हो रहे हमलों से सहम कर शारिकव ने जवाब
दिया.
“मैं
अन्दाज़ लगा रहा हूँ,” गुस्से से लाल होते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच चहका.
“हाँ, तो क्या. हाँ,
श्वेन्देर ने दी है. वह बदमाश नहीं
है...मैं अपना विकास कर रहा था...”
“मैं देख रहा हूँ,
कि काऊत्स्की के बाद आप किस तरह से
अपना विकास कर रहे हैं,” पीला पड़ चुका फ़िलिप फ़िलीपविच चिरचिरी आवाज़ में चीख़ा.
उसने फ़ौरन तैश से दीवार में लगी घंटी बजाई. आज की घटना ने इसे बहुत अच्छी तरह
साबित कर दिया है. ज़ीना!”
“ज़ीना!” बर्मेन्ताल चीख़ा.
“ज़ीना!” भयभीत शारिकव गरजा.
घबराहट से विवर्ण ज़ीना भागते हुए आई.
“ज़ीना, वहाँ स्वागत-कक्ष में...वह स्वागत-कक्ष में है?”
“स्वागत-कक्ष में,”
शारिकव ने नम्रता से जवाब दिया, “हरी, तूतिया (कॉपर सल्फेट – अनु.) जैसी.
“हरी किताब...”
“तो, उसे फ़ौरन जला दो,”
शारिकव बदहवासी से चिल्लाया, “वो सरकारी है,
लाइब्रेरी से!”
“पत्र-व्यवहार – नाम है,
क्या कहते हैं उसे...एंजेल्स का इस
शैतान के साथ...उसे भट्टी में फेंक दे!”
ज़ीना फ़ौरन भागी.
“मैं
इस श्वोन्देर को लटका देता, ईमानदारी से कहता हूँ,
पहली ही डाल पर,” तैश से टर्की का पर चूसते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच चीखा, “बैठा है ग़ज़ब का कचरा बिल्डिंग में – पके हुए फ़ोड़े की
तरह. ऊपर से वह अख़बारों में हर तरह की फ़िज़ूल की, अपमानजनक बातें लिखता है...”
शारिकव कटुता और व्यंग्य से प्रोफ़ेसर की ओर देखने लगा.
फ़िलिप फ़िलीपविच ने भी उसे तिरछी नज़र से देखा और ख़ामोश हो गया.
‘ओह, लगता
है, हमारे क्वार्टर में कुछ भी अच्छा नहीं होगा’, अचानक बर्मेन्ताल ने भविष्यवक्ता के अंदाज़ में सोचा.
ज़ीना एक गोल प्लेट में दाईं ओर से लाल और बाईं ओर से
भूरी केक और कॉफ़ी-पॉट लाई.
“मैं इसे नहीं खाऊँगा,”
अचानक धमकीभरे- शत्रुतापूर्ण लहज़े
में शारिकव ने घोषणा की.
“कोई आपसे कह भी नहीं रहा है. सलीके
से बैठो. डॉक्टर, प्लीज़, लीजिये.”
ख़ामोशी से खाना ख़त्म हुआ.
शारिकव ने जेब से एक मुड़ी-तुड़ी सिगरेट बाहर निकाली और
उसे जलाया. कॉफ़ी पीने के बाद फ़िलिप फ़िलीपविच ने घड़ी पर नज़र डाली, रिपीटर
को दबाया और उसने हौले से सवा आठ बजाया. फ़िलिप फ़िलीपविच आदत के मुताबिक अपनी
कुर्सी की गोथिक पीट से टिक गया और उसने छोटी-सी मेज़ पर पड़े अख़बार की ओर हाथ
बढ़ाया.
“डॉक्टर, आपसे विनती करता हूँ,
प्लीज़ उसके साथ सर्कस जाईये. सिर्फ़,
ख़ुदा की ख़ातिर, प्रोग्राम में देख लीजिये – बिल्लियाँ तो नहीं हैं?”
“ऐसे हरामी को सर्कस में आने कैसे देते हैं,” शारिकव सिर हिलाते हुए ठुनठुनाया.
“”ख़ैर, पता भी नहीं चलता कि वहाँ किस-किसको आने देते हैं,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने संदिग्ध उत्तर दिया, “क्या है उनके पास?”
“सलमोन्स्की के यहाँ,”
बर्मेन्ताल पढ़ने लगा, “कोई चार...युसेम्स और मृत बिंदु का आदमी.”
“ये युसेम्स क्या है?”
फ़िलिप फ़िलीपविच ने संदेह से पूछा.
“ख़ुदा
ही उन्हें जाने. पहली बार यह लब्ज़ सुन रहा हूँ.”
“ख़ैर, तब
निकीतिनों के पास देखिये. ये ज़रूरी है कि सब कुछ स्पष्ट हो.”
“निकीतिनों
के पास...निकीतिनों के पास...हुम्...हाथी और इन्सानों की बेहद ख़ूबसूरत
कलाबाज़ियाँ.”
“ठीक
है. हाथियों के बारे में आप क्या कहते हैं,
डियर शारिकव?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने अविश्वास से पूछा.
वह
बुरा मान गया.
“ये
क्या है, क्या मैं समझता नहीं हूँ. बिल्ला- और बात है. हाथी –
उपयोगी जानवर हैं,” शारिकव ने जवाब दिया.
“ठीक
है और बढ़िया. अगर उपयोगी हैं तो जाईये और उन्हें देखिये. इवान अर्नोल्दविच की बात
मानना ज़रूरी है. और वहाँ बुफ़े में किसी भी तरह की बातचीत में नहीं कूदना है! इवान
अर्नोल्दविच, तहे दिल से विनती करता हूँ कि शारिकव को ‘बिअर’ न
दें.”
दस मिनट बाद इवान अर्नोल्दविच और, बत्तख की नाक जैसी
टोपी और उभरे हुए कॉलर वाले ड्रेप कोट में शारिकव सर्कस चले गये. क्वार्टर में
सन्नाटा छा गया. फ़िलिप फ़िलीपविच अपने अध्ययन कक्ष में आया. उसने भारी हरे शेड वाला
लैम्प जलाया, जिससे उस विशाल अध्ययन-कक्ष में बेहद सुकून महसूस होने
लगा, और वह कमरे में चहल कदमी करने लगा. हल्के-हरे रंग की
रोशनी से सिगार का सिरा देर तक गर्माहट से चमकता रहा.
प्रोफ़ेसर ने हाथ पतलून की जेबों में घुसाए और एक गंभीर
विचार उसके गंजे हो रहे वैज्ञानिक माथे पर शिकन डालते रहे. वह बार-बार अपने होठों
पर जीभ फ़ेरता, भिंचे हुए दांतों से “पवित्र नील के किनारों की
ओर...” गा रहा था. और कुछ बड़बड़ा रहा था. आख़िरकार,
उसने सिगार को ऐश-ट्रे में रख दिया, काँच
वाली अलमारी की ओर आया, और छत से तीन तेज़ रोशनी वाले बल्बों से पूरे
अध्ययन-कक्ष को रोशन कर दिया. अलमारी से,
काँच की तीसरी शेल्फ से फ़िलिप
फ़िलीपविच ने एक तंग जार निकाला और नाक-भौंह चढ़ाकर रोशनी में उसे ग़ौर से देखने लगा.
पारदर्शक और गाढ़े द्रव में, तली पर न गिरते हुए,
एक छोटा-सा सफ़ेद टुकड़ा तैर रहा था, जो
शारिकव के मस्तिष्क की गहराई से निकाला गया था. कंधे सिकोड़ते हुए, होंठों
को टेढ़ा करते हुए और हुम्-हुम् करते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच उसे आँखों से पीता रहा, जैसे
इस सफ़ेद तैरते हुए टुकड़े में आश्चर्यजनक घटनाओं का कारण ढूँढ़ना चाहता हो, जिन्होंने
प्रिचिस्तेन्का के क्वार्टर में ज़िंदगी को उलट-पुलट कर दिया था.
काफ़ी संभव है कि इस उच्च शिक्षित व्यक्ति ने उसे ढूढ़
भी लिया हो. कम से कम, काफ़ी देर तक मस्तिष्क के उस उपांग को जी भरके देखने के
बाद उसने जार को अलमारी में छुपा दिया, उस पर ताला लगा दिया. चाभी को जैकेट की जेब में रख
दिया, और ख़ुद कंधों के बीच अपना सिर दबाये,
हाथों को जैकेट की जेबों में गहरे घुसाए चमड़े के दीवान में धंस गया. वह बड़ी देर तक
दूसरी सिगार फूँकता रहा, उसके सिरे को भी चबा गया,
और,
आख़िरकार,
पूरी तनहाई में, हरे
रंग से प्रकाशित, बूढ़े फ़ाऊस्ट जैसा,
चहका:
“ऐ ख़ुदा, मैं, शायद, फ़ैसला कर लूँगा.”
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