मास्टर और मार्गारीटा – 05.3
ग्लुखारेव कवियत्री तमारा पलुमेस्यात्स के साथ नृत्य कर रहा था; क्वान्त नाच रहा था; उपन्यासकार झकोपोव नाच रहा था, पीले फ्रॉक वाली सिने अभिनेत्री के साथ; साथ ही नाच रहे थे : द्रागुंस्की, चेर्दाक्ची, छोटा-सा देनिस्किन विशालकाय नौचालक जॉर्ज के साथ; सुन्दर आर्किटेक्ट सिमेयकिना गॉल सफेद पैंट वाले अजनबी के साथ नाच रही थी, जिसने उसे कसकर पकड़ रखा था. सभी नाच रहे थे : क्या मेहमान क्या मेज़बान, मॉस्को के लेखक और क्रोनश्दात से आया हुआ लेखक; वीत्या कूफ़्तिक, जो रोस्तोव से आया था और शायद निर्देशक था, जिसके चेहरे पर कमल के रंग के चकत्ते थे; मॉसोलित के काव्य विभाग के विख्यात प्रतिनिधि नाच रहे थे, यानी कि पविआनोव, बोगाखुल्स्की, स्लाद्की, श्पीच्किन और अदेल्फिना बुज़्द्याक; कुछ अनजान पेशे वाले, बौक्सरों की तरह बालों वाले नौजवान नाच रहे थे; कोई एक दाढ़ीवाला बुज़ुर्ग नाच रहा था, जिसकी दाढ़ी में हरी प्याज़ का एक तिनका अटक गया था, उसके साथ बड़ी उम्र की, एनिमिक लड़की, नारंगी रंग का मुड़ा-तुड़ा फ्रॉक पहने नाच रही थी.
पसीने से नहाए हुए बेयरे नाचने वालों के सिरों के ऊपर से बियर के फेन भरे गिलास ले जा रहे थे. वे भर्राई और कड़वाहट भरी आवाज़ में चिल्लाते जा रहे थे, “क्षमा करें, नागरिक!” कहीं पीछे भोंपू में आवाज़ सुनाई पड़ती थी, “कार्स्की एक! ज़ुब्रोव्स्का दो!”, “होम स्टाइल ओझरी!” पतली आवाज़ अब गा नहीं रही थी, सिर्फ “अल्लीलुइय्या!” दुहराती जा रही थी. जॉज़ की सुनहरी तश्तरियों की छनछनाहट कभी-कभी खाने-पीने की प्लेटों की खनखनाहट को दबा देती थी, जिन्हें प्लेटें धोने वाले धो-धोकर नीचे की ओर जाते हुए फर्श पर रसोईघर में सरकाते जा रहे थे. संक्षेप में, बिल्कुल नरक!
और इस नरक में आधी रात को एक भूत दिखाई दिया. काले बालों और छुरी के समान दाढ़ी वाला एक युवक बरामदे में आया. उसने पल्लेदार कोट पहन रखा था. बरामदे पर आकर उसने शाही नज़र से अपनी इस सम्पदा को देखा. रहस्यवादी कहते हैं, कि एक समय था जब यह नौजवान पल्लेदार कोट नहीं पहना करता था, बल्कि चमड़े का चौड़ा कमरबन्द उसकी कमर पर कसा रहता था, जिसमें से पिस्तौलों के हत्थे नज़र आया करते थे. उसके कौए के परों जैसे बाल लाल रेशमी रुमाल से बँधे होते थे और उसकी आज्ञा से कराईब्स्की समुद्र में दो मस्तूलों वाला व्यापारिक जहाज़ चलता था, जिसके काले झण्डे पर आदम का सिर बना हुआ था.
मगर नहीं, नहीं! ये रहस्यवादी बिल्कुल बकवास करते हैं, झूठ बोलते हैं, दुनिया में कहीं भी कराईब्स्की नामक समुद्र है ही नहीं, और उस पर व्यापारिक जहाज़ भी नहीं चलते थे, न ही उनका पीछा तीन मस्तूलों वाले जहाज़ किया करते थे, न ही गोला-बारूद का धुँआ पानी के ऊपर तैरा करता था. नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं था, बिल्कुल नहीं था. बस यही पुराना, मरियल-सा सुगन्ध वाला छायादार पेड़ है. उसके पीछे लोहे की जाली और जाली के पीछे तरुमण्डित रास्ता...और फूलदानी में बर्फ तैर रही है, और पड़ोस की मेज़ पर शराब के नशे से खून जैसी लाल हुई जानवरों जैसी आँखें दिख रही हैं, और डरावना-डरावना-सा...हे भगवान...मेरे देवता, इससे बेहतर तो ज़हर ही होगा, मुझे वही दे दो!...
और अचानक किसी मेज़ के पीछे से ‘बेर्लिओज़’ शब्द उड़ा. अचानक जॉज़ बिखरकर थम गया, जैसे किसीने उसे घूँसे से मारा हो. “क्या, क्या, क्या, क्या!!” “बेर्लिओज़!!!” और सब अपने-अपने स्थान से उछलने और चीखने लगे.
हाँ, मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच के बारे में यह डरावनी ख़बर सुनकर दु:ख की एक लहर दौड़ गई. कोई यूँ ही भाग-दौड़ करने लगा, चिल्लाने लगा, कि इस समय सबसे ज़रूरी बात यह है कि अपनी जगह से हिले बिना, तुरंत, एक सामूहिक टेलिग्राम की इबारत रची जाए और उसे भेज दिया जाए.
मगर हम पूछते हैं कि कैसा टेलिग्राम और कहाँ भेजा जाए? और क्यों? मुख्य बात है, कहाँ? और किसी भी प्रकार के टेलिग्राम की अब उसे क्या ज़रूरत है जिसका पिचका हुआ सिर अब चीरफाड़ विशेषज्ञ के रबरी दस्ताने वाले हाथों में था, जिसकी गर्दन पर नुकीली सुई से प्रोफेसर छेद करने वाले थे? वह मर चुका है और उसे अब किसी तरह के टेलिग्राम की कोई ज़रूरत नहीं है. सब कुछ समाप्त हो गया है. अब टेलिग्राफ ऑफिस पर और बोझ नहीं डालेंगे.
हाँ, मर गया, मर गया...मगर हम तो ज़िन्दा हैं!
हाँ, तो दु:ख की लहर दौड़ गई, मगर वहीं थम गई. थम गई और धीरे-धीरे कम होने लगी. कोई-कोई तो अपनी मेज़ पर लौट गया और पहले चोरी-छिपे और फिर खुलेआम वोद्का का एक पैग पीकर साथ रखी चीज़ें खाने लगा. आख़िर, मुर्गी के कटलेटों को क्यों फेंका जाए? हम मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच की कोई मदद कैसे कर सकते हैं? क्या, भूखे रहकर? मगर, हम तो ज़िन्दा हैं!
स्वाभाविक ढंग से, पियानो को ताला लगा दिया गया, जॉज़ बिखर गया; कुछ संवाददाता अपने-अपने ऑफिस मृत व्यक्ति का चरित्र-सार लिखने चले गए. यह पता चला कि शवागार से झेल्दीबिन लौट आया है. वह मृतक के ऊपरी मंज़िल वाले कमरे में बैठ गया. तभी यह ख़बर फैल गई कि, वही बेर्लिओज़ के स्थान पर यानी कि प्रमुख के पद पर कार्य करेगा. झेल्दीबिन ने रेस्तराँ से कार्यकारिणी के सभी बारह सदस्यों को बुला भेजा. बेर्लिओज़ के कमरे में हुई आपात बैठक में कुछ ऐसे प्रश्नों पर विचार किया जाने लगा, जिन्हें स्थगित नहीं किया जा सकता था. प्रश्न थे : स्तम्भों वाले हॉल की सफाई करवा कर, शवागार से म्रतदेह लाकर इस हॉल में रखना, वहाँ तक पहुँचने के लिए रास्ता खोल देना और ऐसी ही कई अन्य, इस शोकपूर्ण घटना से जुड़ी हुई बातें.
और रेस्तराँ फिर से अपनी रात की ज़िन्दगी जी उठा और बन्द होने तक, यानी सुबह के चार बजे तक जीता रहता यदि कोई अप्रत्याशित घटना न घटती, जिसने रेस्तराँ के मेहमानों को बुरी तरह चौंका दिता, उससे भी कहीं ज़्यादा, जितना बेर्लिओज़ की मृत्यु की खबर ने.
पहले चौंके वे साहसी, जो ग्रिबोयेदव भवन के द्वार पर पहरा देते थे. सभी उपस्थितों ने सुना कि उनमें से एक बॉक्स पर चढ़कर चिल्लाया : छि:! ज़रा देखिए तो!
इसके बाद जिधर भी देखो, लोहे के जंगले के पास एक रोशनी दिखाई देने लगी, जो धीरे-धीरे बरामदे के पास आने लगी. टेबुलों के पीछे बैठे हुए लोग अपने-अपने स्थानों से उठकर देखने लगे, देखा कि इस रोशनी के साथ-साथ रेस्तराँ की तरफ एक सफेद भूत आ रहा है. जब वह जाली के मोड़ के निकट पहुँचा, सभी मेज़ों के पीछे काँटों में मछली उठाए, आँखें फाड़े मानो जम गए. दरबान ने, जो इसी समय रेस्तराँ के कोट आदि टाँगने के बाद सिगरेट पीने के लिए कमरे से बाहर निकला था, अपनी सिगरेट बुझा दी और भूत को रेस्तराँ में प्रवेश करने से रोकने के लिए उसकी ओर बढ़ना चाहा, मगर न जाने क्यों उसने ऐसा नहीं किया और मूर्खों की भाँति मुस्कुराता रहा.
और भूत, जाली का मोड़ पार करके, बेधड़क बरामदे में घुस पड़ा. अब सबने देखा कि वह कोई भूत-वूत नहीं है, बल्कि इवान निकोलायेविच बेज़्दोम्नी – प्रख्यात कवि है.
क्रमश: