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रविवार, 26 फ़रवरी 2012

Master aur Margarita-26.2


मास्टर और मार्गारीटा 26.2
उस महल से आने के बाद, जिसमें झाड़फानूस, आकाशदीप जल रहे थे, और त्यौहार की गहमागहमी चल रही थी, यह नौजवान और भी बेधड़क, निडर और खुशी-खुशी वापस निचले शहर को लौट रहा था. उस कोने पर जहाँ यह सड़क बाज़ार के चौक से मिलती थी, बुर्का पहनी, फुदकती चाल से चलती एक औरत ने, उस रेलपेल के बीच उसे पीछे छोड़ दिया. इस खूबसूरत नौजवान के निकट से गुज़रते हुए उसने अपने बुर्के का नकाब क्षण भर के लिए ऊपर उठाकर इस नौजवान को आँखों से इशारा किया, मगर अपनी चाल धीमी नहीं की, बल्कि और तेज़ कर दी, मानो उससे भागकर छिप जाना चाहती हो, जिसे उसने पीछे छोड़ दिया था.
नौजवान ने इस औरत को न सिर्फ देखा, बल्कि पहचान भी लिया, और पहचान कर वह काँपते हुए रुक गया और बदहवास होकर उसे जाते देखता रहा. मगर तभी वह सँभलकर उसे पकड़ने दौड़ा. हाथों में सुराही लेकर जाते हुए एक राही से वह टकराया लेकिन फौरन ही लपककर वह उस महिला के निकट पहुँच गया और हाँफते हुए गहरी साँसें लेते परेशान स्वर में उसने पुकारा, नीज़ा!
औरत मुड़ी, उसने माथे पर बल डालते हुए उसे देखा, मगर उसके चेहरे पर था एक ठण्डा हताश भाव. उसने ग्रीक में रूखे स्वर में जवाब दिया, आह, यह तुम हो, जूडा! मैंने तुम्हें पहली नज़र में पहचाना ही नहीं. मगर यह अच्छी बात है. हम लोग ऐसा मानते हैं कि यदि तुम किसी को पहचान न पाओ तो समझो वह अमीर बनने वाला है...
जूडा का दिल इतनी ज़ोर से धड़कने लगा, मानो काले कपड़े में बँधा कोई पक्षी फड़फड़ा रहा हो. इस डर से कि आने जाने वाले सुन न लें, उसने रुक-रुक कर फुसफुसाते हुए पूछा, तुम जा कहाँ रही हो, नीज़ा?
 तुम्हें इससे क्या? नीज़ा ने अपनी चाल धीमी करते हुए और जूडा की ओर उलाहना भरी नज़रों से देखते हुए जवाब दिया.
तब जूडा की आवाज़ में कुछ बचपना-सा आ गया, वह बदहवासी से फुसफुसाया, क्यों नहीं?...हमने तो वादा किया था. मैं तो तुम्हारे पास आने वाला था. तुमने कहा था कि सारी शाम घर पर ही रहोगी...
 आह, नहीं, नहीं, नीज़ा ने जवाब दिया और ज़िद्दी बच्चे के समान अपना निचला होठ आगे को निकाल लिया, जिससे जूडा को ऐसा लगा मानो उसका सबसे खूबसूरत चेहरा, और भी सुन्दर लगने लगा है. नीज़ा बोली, मैं उकता गई था. तुम्हारा तो त्यौहार है, मगर मैं क्या करूँ? बैठे-बैठे सुनती रहूँ कि तुम छत पर कैसी आहें भरते हो? और डरती भी रहूँ कि नौकरानी मेरे ख़ाविन्द से कह देगी? नहीं, नहीं, इसीलिए मैंने तय कर लिया है कि शहर से बाहर जाकर चिड़ियों की चहचहाहट को सुनूँगी.
 ऐसे कैसे, शहर से बाहर? जूडा ने परेशानी से पूछा, अकेली?
 बेशक, अकेली, नीज़ा ने जवाब दिया.
 मुझे अपने साथ आने दो, जूडा ने गहरी साँस लेते हुए विनती की. उसके विचार धुँधले हो गए, वह दुनिया की हर चीज़ के बारे में भूल गया और प्रार्थना भरी नज़रों से नीज़ा की नीली, मगर अब काली दिख रही आँखों में देखता रहा.
नीज़ा ने कुछ कहे बगैर अपनी चाल तेज़ कर दी.
 तुम चुप क्यों हो, नीज़ा? जूडा ने उसके कदम से कदम मिलाते हुए शिकायत के स्वर में पूछा.
वह रुक गई.
 और क्या मैं तुम्हारे साथ उकता न जाऊँगी?
अब तो जूडा के विचारों की कड़ी पूरी तरह बिखर गई. वह मिन्नत करने लगा.
 अच्छा ठीक है... नीज़ा ने कुछ नरम पड़ते हुए कहा, चलो.
 कहाँ, आखिर कहाँ जाएँगे?
 सब्र करो...इस घर के आँगन में चलकर सलाह करते हैं, नहीं तो मुझे डर है, कि अगर किसी जान-पहचान वाले ने देख लिया तो कहते फिरेंगे कि मैं अपने प्रेमी के साथ सड़कों पर घूम रही थी.
तब बाज़ार में न नीज़ा बची और न ही जूडा. वे किसी मकान के आँगन के कोने में खड़े होकर फुसफुसाने लगे.
 तेलियों वाले मोहल्ले में चलो, नीज़ा ने नकाब चेहरे पर डालते हुए और किसी आदमी से बचने के लिए मुड़ते हुए कहा, जो बाल्टी लेकर वहाँ आया था, केद्रोन के पीछे, गेफसिमान में. समझ गए?
 हाँ, हाँ, हाँ.
 मैं आगे चलती हूँ, नीज़ा आगे बोली, मगर तुम मेरे पीछे-पीछे मत आओ, मुझसे दूर रहो. मैं आगे जाऊँगी... जब झरना पार करोगे...तुम्हें मालूम है गुफा कहाँ है?
 मालूम है, मालूम है...
 तेलियों के कोल्हू की बगल से ऊपर की ओर जाकर गुफा की ओर मुड़ जाना. मैं वहीं रहूँगी. मगर इस समय मेरे पीछे मत आना, थोड़ा धीरज रखो, यहाँ कुछ देर रुको. इतना कहकर नीज़ा उस गली से निकलकर यूँ चली गई जैसे उसने जूडा से बात ही न की हो.
जूडा कुछ देर अकेला खड़ा रहा, अपने भागते हुए विचारों को तरतीब में लाने की कोशिश करने लगा. इन विचारों में एक यह भी था कि उत्सव की दावत के समय अपनी अनुपस्थिति के बारे में वह अपने रिश्तेदारों को क्या कैफ़ियत देगा. जूडा खड़े-खड़े कोई बहाना सोचने लगा. मगर जैसा कि हमेशा होता है, परेशानी में वह कुछ सोच न पाया और उसके पैर उसे अपने आप गली से दूर ले चले.
 अब उसने अपना रास्ता बदल दिया. वह निचले शहर में जाने के बजाय वापस कैफ के महल की ओर चल पड़ा. जूडा को अब आसपास की चीज़ें देखने में कठिनाई हो रही थी. उत्सव शहर के अन्दर आ गया था. जूडा के चारों ओर हर घर में अब न केवल रोशनी जल चुकी थी, बल्कि प्रार्थना भी सुनाई देने लगी थी.
देरी से घर जाने वाले अपने-अपने गधों को चाबुक मारकर चिल्लाते हुए आगे धकेल रहे थे. जूडा के पैर उसे लिये जा रहे थे, उसे पता ही नहीं चला कि कैसे उसके सामने से अन्तोनियो की काई लगी, ख़ौफ़नाक मीनारें तैरती चली गईं. उसने किले में तुरही की आवाज़ नहीं सुनी. रोम की मशाल वाली घुड़सवार टुकड़ी पर उसका ध्यान नहीं गया, जिसकी उत्तेजक रोशनी में रास्ता नहा गया था. मीनार के पास से गुज़रते हुए जूडा ने मुड़कर देखा कि मन्दिर की डरावनी ऊँचाई पर दो पंचकोणीय दीप जल उठे हैं. मगर जूडा को वे भी धुँधले ही नज़र आए. उसे यूँ लगा जैसे येरूशलम के ऊपर दस अतिविशाल दीप जल उठे थे, जो येरूशलम पर सबसे ऊपर चमकते दीप चाँद से प्रतिस्पर्धा कर रहे थे. अब जूडा को किसी से कोई मतलब नहीं था. वह गेफसिमान की ओर बढ़ा जा रहा था. शहर को जल्द से जल्द पीछे छोड़ना चाहता था. कभी-कभी उसे ऐसा महसूस होता, जैसे उसके आगे जाने वालों की पीठों और चेहरों के बीच फुदकती आकृति चली जा रही है, जो उसे अपनी ओर खींच रही है. मगर यह सिर्फ धोखा था. जूडा समझ रहा था, नीज़ा ने जानबूझकर उसे पीछे छोड़ा है. जूडा सूद वाली दुकानों के सामने से होकर भाग रहा था. आख़िर में वह गेफसिमान तक पहुँच ही गया. बेचैन होते हुए भी प्रवेश-द्वार पर उसे इंतज़ार करना ही पड़ा. शहर में ऊँटों का काफिला प्रवेश कर रहा था जिसके पीछे-पीछे था सीरियाई फौजी गश्ती-दल जिसे मन ही मन जूडा ने गाली दी...
मगर हर चीज़ का अन्त होता ही है. अशांत और बेचैन जूडा अब शहर की दीवार के बाहर था. दाईं ओर उसने एक छोटा-सा कब्रिस्तान देखा, उसके निकट कुछ भक्तजनों के धारियों वाले तम्बू थे. चाँद की रोशनी से नहाए धूल भरे रास्ते को पार करके जूडा केद्रोन झरने की ओर बढ़ा, ताकि उसे पार कर सके. जूडा के पैरों के नीचे पानी कलकल करता धीमे से बह रहा था. एक पत्थर से दूसरे पत्थर पर उछलते वह आखिर में गेफसिमान के दूसरे किनारे पर पहुँच गया. उसे यह देखकर खुशी हुई कि यहाँ बगीचों के ऊपर वाला रास्ता एकदम सुनसान है. दूर तेलियों के मुहल्ले के ध्वस्त द्वार दिखाई दे रहे थे.
शहर के दमघोंटू वातावरण के बाद बसंती रात की महक जूडा को पागल बना दे रही थी. बगीचे से अकासिया और अन्य फूलों की महक आ रही थी.
प्रवेश-द्वार पर कोई पहरेदार नहीं था, वहाँ कोई था ही नहीं; कुछ क्षणों बाद ज़ैतून के वृक्षों की विशाल रहस्यमय छाया के नीचे जूडा दौड़ने लगा. रास्ता पहाड़ तक जाता था. तेज़-तेज़ साँस लेते हुए जूडा अँधेरे से उजाले में चाँद की रोशनी से बने कालीनों पर चलता ऊपर चढ़ने लगा, जो उसे नीज़ा के ईर्ष्यालु पति की दुकान में देखे कालीनों की याद दिला रहे थे. कुछ देर बाद जूडा के बाईं ओर मैदान में तेलियों का कोल्हू दिखाई दिया. वहाँ था पत्थर का अजस्त्र पहिया. कुछ बोरे भी रखे थे. सूर्यास्त तक सारे काम समाप्त हो चुके थे. उद्यान में कोई भी प्राणी नहीं था और जूडा के सिर के ऊपर पंछियों की चहचहाहट गूँज रही थी.
जूडा का लक्ष्य निकट ही था. उसे मालूम था कि दाईं ओर अँधेरे में अभी उसे गुफा में बहते पानी की फुसफुसाहट सुनाई देगी. वैसा ही हुआ, उसने वह आवाज़ सुनी. ठण्डक महसूस हो रही थी.
तब उसने अपनी चाल धीमी करते हुए हौले से आवाज़ दी, नीज़ा!
मगर नीज़ा के स्थान पर ज़ैतून के वृक्ष के मोटे तने से अलग होते हुए एक शक्तिशाली आदमी की आकृति प्रकट हुई. उसके हाथों में कुछ चमका और तत्क्षण बुझ गया.

                                                       क्रमशः

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

Master aur Margarita-26.1


मास्टर और मार्गारीटा 26.1
अन्तिम संस्कार

शायद इस धुँधलके के ही कारण न्यायाधीश का बाह्य रूप परिवर्तित हो गया. मानो वह देखते ही देखते बूढ़ा हो गया, उसकी कमर झुक गई. इसके साथ ही वह चिड़चिड़ा और उद्विग्न हो गया. एक बार उसने नज़र इधर-उधर दौड़ाई और न जाने क्यों उस खाली कुर्सी पर नज़र डालकर, जिसकी पीठ पर उसका कोट पड़ा था, वह सिहर उठा. त्यौहार की रात निकट आ रही थी, संध्या-छायाएँ अपना खेल खेल रही थीं, और शायद थके हुए न्यायाधीश को यह आभास हुआ कि कोई उस खाली कुर्सी पर बैठा है. डरते-डरते कोट को झटककर न्यायाधीश ने उसे वापस वहीं डाल दिया और बाल्कनी पर दौड़ने लगा; कभी वह हाथ मलता, कभी जाम हाथ में लेता, कभी वह रुक जाता और बेमतलब फर्श के संगमरमर को देखने लगता, मानो उसमें कोई लिखावट पढ़ना चाहता हो.
आज दिन में दूसरी बार उसे निराशा का दौरा पड़ा था. अपनी कनपटी को सहलाते हुए, जिसमें सुबह की यमयातना की भोंथरी-सी, दर्द भरी याद थी, न्यायाधीश यह समझने की कोशिश कर रहा था कि इस निराशा का कारण क्या है. वह शीघ्र ही समझ गया, मगर अपने आपको धोखा देता रहा. उसे समझ में आ गया था कि आज दिन में वह कुछ ऐसी चीज़ खो चुका है, जिसे वापस नहीं पाया जा सकता और अब वह इस गलती को कुछ ओछी, छोटी, विलम्बित हरकतों से कुछ हद तक सुधारना चाहता था. न्यायाधीश अपने आपको यह समझाते हुए धोखे में रख रहा था कि शाम की उसकी ये हरकतें उतनी ही महत्त्वपूर्ण हैं, जितनी कि सुबह के मृत्युदण्ड की घोषणा. मगर वह इसमें सफल नहीं हो रहा था.
एक मोड़ पर आकर वह झटके से रुका और सीटी बजाने लगा. इस सीटी के जवाब में कुत्ते के भौंकने की हल्की-सी आवाज़ सुनाई दी और उद्यान से बाल्कनी में एक विशालकाय, तेज़ कानों और भूरे बालों वाला कुत्ता उछलकर आ गया. उसके गले में सुनहरी जंज़ीर पड़ी थी.
  बांगा, बांगा, न्यायाधीश ने कमज़ोर आवाज़ में कहा.
कुत्ता पिछले पंजों पर खड़ा हो गया और अगले पंजे उसने अपने मालिक के कन्धों पर रख दिए, जिससे वह फर्श पर गिरते-गिरते बचा. न्यायाधीश कुर्सी पर बैठ गया. बांगा जीभ बाहर निकाले, गहरी साँसे भरते अपने मालिक के पैरों के पास लेट गया. कुत्ते की आँखों की चमक यह बता रही थी कि तूफ़ान, दुनिया में सिर्फ जिससे उस निडर कुत्ते को डर लगता था, ख़त्म हो चुका है; साथ ही यह भी यह भी कि वह उस व्यक्ति के पास है जिससे उसे बेहद प्यार है. वह न केवल उसे प्यार करता था, बल्कि उसकी इज़्ज़त करता था, उसे दुनिया का सबसे अधिक शक्तिशाली व्यक्ति, सबका शासक समझता था, जिसकी बदौलत वह अपने आपको भी विशिष्ट महत्त्व देता था. मगर मालिक के पैरों के पास पड़े, बगैर उसकी ओर देखे भी कुत्ता फौरन समझ गया कि उसके मालिक को किसी दुःख ने घेर रखा है. इसलिए वह उठकर खड़ा हो गया और मुड़कर न्यायाधीश के चोगे की निचली किनार पर गीली रेत लगाते हुए, अपने सामने के पंजे और सिर को उसके घुटनों पर रख दिया. बांगा की हरकतों से साफ था कि वह अपने मालिक को सांत्वना और विश्वास दिलाना चाहता है कि मुसीबत में वह उसके साथ है. यह उसने तिरछी नज़रों से मालिक की ओर देखते हुए दिखाने का प्रयत्न किया, कान खड़े करके मालिक से चिपककर भी वह यह ज़ाहिर करता रहा. इस तरह वे दोनों, कुत्ता और आदमी, जो एक दूसरे को प्यार करते थे, त्यौहार की रात का बाल्कनी में स्वागत कर रहे थे.
इस समय न्यायाधीश का मेहमान काफी व्यस्त था. बाल्कनी के सामने वाले उद्यान की ऊपरी मंज़िल से नीचे उतरकर वह एक और छत पर आया, दाईं ओर मुड़कर उन छावनियों की ओर मुड़ गया जो महल की सीमा के अन्दर थीं. इन्हीं छावनियों में वे दो टुकड़ियाँ थीं, जो न्यायाधीश के साथ त्यौहार के अवसर पर येरूशलम आई थीं; और थी न्यायाधीश की वह गुप्त टुकड़ी जिसका प्रमुख यह अतिथि था. अतिथि ने छावनी में दस मिनट से कुछ कम समय बिताया. इन दस मिनटों के पश्चात् महल की छावनियों से तीन गाड़ियाँ निकलीं, जिन पर खाइयाँ खोदने के औज़ार और पानी की मशकें रखी हुई थीं. इन गाड़ियों के साथ भूरे रंग के ओवरकोट पहने पन्द्रह व्यक्ति घोड़ों पर चल रहे थे. उनकी निगरानी में ये गाड़ियाँ महल के पिछले द्वार से निकलीं और पश्चिम की ओर चल पड़ीं. शहर के परकोटे की दीवार में बने द्वार से बाहर निकलकर पगडंडी पर होती हुई पहले बेथलेहेम जाने वाले रास्ते पर कुछ देर चलीं और फिर उत्तर की ओर मुड़ गईं. फिर खेव्रोन्स्की चौराहे तक आकर याफा वाले रास्ते पर मुड़ गईं, जिस पर दिन में अभियुक्तों के साथ जुलूस जा रहा था. इस समय तक अँधेरा हो चुका था और आसमान में चाँद निकल आया था.
गाड़ियों के प्रस्थान करने के कुछ देर बाद ही महल की सीमा से घोड़े पर सवार होकर न्यायाधीश का मेहमान भी निकला. उसने अब काला पुराना चोगा पहन रखा था. मेहमान शहर से बाहर न जाकर शहर के अन्दर गया. कुछ देर बाद उसे अन्तोनियो की मीनार के निकट देखा गया, जो उत्तर की ओर, मन्दिर के काफी निकट थी. इस मीनार में भी मेहमान कुछ ही देर रुका, फिर उसके पदचिह्न शहर के निचले भाग की तंग, टेढ़ी-मेढ़ी, भूलभुलैया गलियों में दिखाई दिए. यहाँ तक मेहमान टट्टू पर सवार होकर आया.
शहर से भली-भाँति परिचित मेहमान ने उस गली को ढूँढ़ निकाला जिसकी उसे ज़रूरत थी. उसका नाम ग्रीक गली था, क्योंकि यहाँ कुछ ग्रीक लोगों की दुकानें थीं, जिनमें एक दुकान वह भी थी, जहाँ कालीन बेचे जाते थे. इसी दुकान के सामने उसने टट्टू रोका, उतरकर उसे सामने के दरवाज़े की एक गोल कड़ी से बाँध दिया. दुकान बन्द हो चुकी थी. मेहमान उस दरवाज़े में आ गया, जो दुकान के प्रवेश द्वार की बगल में था और एक छोटे-से चौरस आँगन में आ गया, जिसमें एक सराय थी. आँगन के कोने में मुड़कर, मेहमान एक मकान की पत्थर से बनी छत पर आ गया, जिस पर सदाबहार की बेल चढ़ी थी. उसने इधर-उधर देखा. घर और सराय में अँधेरा था. अभी तक रोशनी नहीं की गई थी. मेहमान ने हौले से पुकारा, नीज़ा!
इस पुकार के जवाब में दरवाज़ा चरमराया और शाम के धुँधलके में एक बेपरदा तरुणी छत पर आई. वह छत की मुँडॆर पर झुककर उत्सुकतावश देखने लगी कि कौन आया है. आगंतुक को पहचानकर वह उसके स्वागत में मुस्कुराई. सिर झुकाकर और हाथ हिलाकर उसने उसका अभिवादन किया.
 तुम अकेली हो? अफ्रानी ने धीरे से ग्रीक में पूछा.
 अकेली हूँ, छत पर खड़ी औरत फुसफुसाई, पति सुबह केसारिया चला गया. तरुणी ने दरवाज़े की ओर नज़र दौड़ाते हुए, फुसफुसाहट से आगे कहा, मगर नौकरानी है घर पर... उसने इशारा किया, जिसका मतलब था अन्दर आओ.  
अफ्रानी इधर-उधर देखकर पत्थर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा. इसके बाद वह उस तरुणी के साथ घर के अन्दर छिप गया.
इस तरुणी के पास अफ्रानी कुछ ही देर को रुका पाँच मिनट से भी कम. इसके बाद उसने छत से उतरकर टोपी आँखों पर और नीचे सरका ली और सड़क पर निकल आया. इस समय तक घरों में रोशनियाँ जल उठी थीं. त्यौहार के लिए आई भीड़ अभी भी थी और आने-जाने वालों और घोड़ों पर सवार लोगों की रेलमपेल में अफ्रानी अपने टट्टू पर बैठा खो गया. आगे वह कहाँ गया, किसी को पता नहीं.
वह औरत जिसे अफ्रानी ने नीज़ा कहकर सम्बोधित किया था, अकेली रह जाने पर जल्दी-जल्दी वस्त्र बदलने लगी. जान पड़ता था कि वह काफी जल्दी में थी. उस अँधेरे कमरे में अपनी ज़रूरत की चीज़ें ढूँढ़ने में काफी कठिनाई हो रही थी, मगर फिर भी उसने दीया नहीं जलाया, न ही नौकरानी को बुलाया. तैयार होकर उसने सिर पर बुर्का पहन लिया. उसने आवाज़ देकर कहा, अगर कोई मुझे पूछता हुआ आए, तो कह देना कि मैं एनान्ता के यहाँ जा रही हूँ.
अँधेरे में बूढ़ी नौकरानी के बुड़बुड़ाने की आवाज़ सुनाई दी, एनान्ता के यहाँ? ओह, क्या चीज़ है यह एनान्ता! आपके पति ने आपको वहाँ जाने से मना किया है न! दलाल है, तुम्हारी एनान्ता! मैं तुम्हारे पति से कहूँगी...
 चुप, चुप, चुप! नीज़ा बोली, और परछाईं की तरह घर से बाहर फिसल गई. उसकी चप्पलों की खट्खट् आँगन में जड़े पत्थरों पर गूँजती रही. नौकरानी ने बड़बड़ाते हुए छत का दरवाज़ा बन्द किया. नीज़ा ने अपना घर छोड़ दिया.
इसी समय आड़ी-तिरछी होते हुए तालाब की ओर जाने वाली एक और गली के एक भद्दे-से मकान के दरावाज़े से एक नौजवान निकला. मकान का पिछवाड़ा इस गली में खुलता था और खिड़कियाँ खुलती थीं आँगन में. नौजवान की दाढ़ी करीने से कटी थी. कन्धों तक आती सफेद टोपी, नया नीला, कौड़ियाँ टँका चोगा और नए चरमराते जूते पहन रखे थे उसने. तोते जैसी नाक वाला यह खूबसूरत नौजवान त्यौहार की खुशी में तैयार हुआ था. वह आगे जाने वालों को पीछे छोड़ते हुए जल्दी-जल्दी बेधड़क जा रहा था, जो त्यौहार के लिए घर लौटने की जल्दी में थे. वह देखता हुआ चल रहा था कि कैसे एक के बाद एक खिड़कियों में रोशनी होती जा रही है. नौजवान बाज़ार से धर्मगुरु कैफ के महल को जाने वाले रास्ते पर चल रहा था जो मन्दिर वाले टीले के नीचे था.
कुछ ही देर बाद वह कैफ के महल के आँगन में प्रवेश करता देखा गया. कुछ और देर बाद उसे देखा गया इस आँगन से बाहर आते.

                                                    क्रमशः

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

Master aur Margarita-25.3


मास्टर और मार्गारीटा 25.3
इस पर मेहमान का चेहरा लाल हो गया. वह उठकर न्यायाधीश का झुककर अभिवादन कर कहने लगा, मैं तो सिर्फ सम्राट के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करता हूँ.
 मगर मैं आपसे विनती करने वाला था, महाबली ने आगे कहा, यदि आपको तरक्की देकर किसी दूसरी जगह भेजा जाए तो मना कर दीजिए और यहीं रहिए. मैं आपसे अलग होना नहीं चाहता. बेशक, आपको किसी और तरह से पुरस्कृत किया जाए.
 मुझे आपके अधीन सेवा करने में बड़ी प्रसन्नता होगी, महाबली.
 मैं खुश हुआ, तो, अब, दूसरा सवाल. इसका सम्बन्ध उससे है, क्या नाम...हाँ, किरियाफ के जूडा से.
अब मेहमान ने अपने विशिष्ट अन्दाज़ में न्यायाधीश की ओर देखा और, जैसाकि स्वाभाविक था, फौरन नज़र झुका ली.
 कहते हैं कि, आवाज़ नीची करते हुए न्यायाधीश ने कहा, उसने इस सिरफिरे दार्शनिक को अपने यहाँ रखने के लिए पैसे लिए थे?
 पैसे मिलेंगे, गुप्तचर सेवा के प्रमुख ने धीमे स्वर में जवाब दिया.
 क्या बहुत बड़ी रकम है?
 यह किसी को पता नहीं, महाबली.
 आपको भी नहीं? महाबली ने आश्चर्य से पूछा.
 हाँ, मुझे भी नहीं, मेहमान ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, मगर मुझे इतना मालूम है कि उसे ये पैसे आज मिलने वाले हैं. उसे आज कैफ के महल में बुलाया जाने वाला है.
 ओह, किरियाफ का लालची बूढ़ा, मुस्कुराते हुए महाबली ने फब्ती कसी, वह बूढ़ा है न?
 न्यायाधीश कभी गलती नहीं करते, मगर इस बार आपका अनुमान सही नहीं है, मेहमान ने प्यार से जवाब दिया, किरियाफ का वह आदमी नौजवान है.
 ऐसा न कहिए! आप उसका विवरण मुझे दे सकते हैं? वह सिरफिरा है?
 ओफ, नहीं, न्यायाधीश!
 अच्छा. और कुछ?
 बहुत खूबसूरत है.
 और? शायद कोई शौक रखता है? कोई कमज़ोरी?
 इतने बड़े शहर में सबको अच्छी तरह जानना बहुत मुश्किल है, न्यायाधीश...
 ओह नहीं, नहीं, अफ्रानी! अपनी योग्यता को इतना कम मत आँको!
 उसकी एक कमज़ोरी है, न्यायाधीश, मेहमान ने कुछ देर रुककर कहा, पैसों का लोभ.
 और वह करता क्या है?
अफ्रानी ने आँखें ऊपर उठाईं, कुछ देर सोचकर बोला, वह अपने एक रिश्तेदार की दुकान पर काम करता है, जहाँ सूद पर पैसे दिए जाते हैं.
 ओह, अच्छा, अच्छा, अच्छा, अच्छा! अब न्यायाधीश चुप हो गया, उसने नज़रें घुमाकर देखा कि बाल्कनी में कोई है तो नहीं, तत्पश्चात् हौले से बोला, अब सुनिए खास बात...मुझे आज खबर मिली है कि उसे आज रात को मार डाला जाएगा.
अब मेहमान ने न केवल अपनी खास नज़र न्यायाधीश पर डाली, बल्कि कुछ देर तक उसे वैसे ही देखता रहा और फिर बोला, आपने न्यायाधीश, दिल खोलकर मेरी तारीफ कर दी. मेरे ख़याल से मैं उसके योग्य नहीं हूँ, मेरे पास ऐसी कोई खबर नहीं है.
 आपको तो सर्वोच्च पुरस्कार मिलना चाहिए, न्यायाधीश ने जवाब दिया, मगर ऐसी सूचना अवश्य मिली है.
 क्या मैं पूछने का साहस कर सकता हूँ कि यह खबर आपको किससे मिली?
 अभी आज यह बताने के लिए मुझे मजबूर न कीजिए, खास तौर से तब, जब वह अकस्मात् मिली है और उसकी अभी पुष्टि नहीं हुई है. मगर मुझे सभी सम्भावनाओं पर नज़र रखनी है. यही मेरा कर्त्तव्य है और मैं भविष्य में घटने वाली घटनाओं के पूर्वाभास को अनदेखा नहीं कर सकता, क्योंकि उसने आज तक मुझे कभी धोखा नहीं दिया है. सूचना यह मिली है, कि हा-नोस्त्री के गुप्त मित्रों में से एक, इस सूदखोर की कृतघ्नता से क्रोधित होकर, उसे आज रात को ख़त्म कर देने के बारे में अपने साथियों के साथ योजना बना रहा है, और वह इस बेईमानी के पुरस्कार स्वरूप मिली धनराशि को धर्मगुरू के सामने इस मज़मून के साथ फेंकने वाला है: पाप के पैसे वापस लौटा रहा हूँ!
इसके बाद गुप्तचर सेवाओं के प्रमुख ने महाबली पर एक भी बार अपनी विशेष नज़र नहीं डाली और आँखें सिकोड़े उसकी बात सुनता रहा. पिलात कहता रहा, सोचिए, क्या धर्मगुरू को उत्सव की रात में ऐसी भेंट पाकर प्रसन्नता होगी?
मुस्कुराते हुए मेहमान ने जवाब दिया, न केवल अप्रसन्नता होगी, बल्कि मेरे ख़याल में तो इसके फलस्वरूप एक बड़ा विवाद उठ खड़ा होगा.
 मैं खुद भी ऐसा ही सोचता हूँ. इसीलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि इस ओर ध्यान दीजिए, मतलब किरियाफ के जूडा की सुरक्षा का प्रबन्ध कीजिए.
 महाबली की आज्ञा का पालन होगा, अफ्रानी ने कहा, मगर मैं महाबली को सांत्वना देना चाहूँगा: इन दुष्टों का षड्यंत्र सफल होना मुश्किल है! कहते-कहते मेहमान पीछे मुड़ गया और बोलता रहा, सिर्फ सोचिए, एक आदमी का पीछा करना, उसे मार डालना, यह मालूम करना कि उसे कितना धन मिला है, यह धन कैफ को वापस भेजने का दुःसाहस करना, और यह सब एक रात में? आज?
 हाँ, खास बात यही है कि वह आज ही मार डाला जाएगा, ज़िद्दीपन से पिलात ने दुहराया, मुझे पूर्वाभास हुआ है, मैं आपसे कह रहा हूँ! कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि उसने मुझे धोखा दिया हो, अब न्यायाधीश के चेहरे पर सिहरन दौड़ गई, और उसने फौरन अपने हाथ मले.
 सुन रहा हूँ, मेहमान ने नम्रता से कहा, वह उठकर सीधी खड़ा हो गया और अचानक गम्भीरता से पूछने लगा, तो मार डालेंगे, महाबली?
 हाँ, पिलात ने जवाब दिया और मुझे केवल आपकी आश्चर्यजनक कार्यदक्षता पर भरोसा है.
मेहमान ने कोट के नीचे अपना भारी पट्टा ठीक किया और बोला, मैं सम्मानित हुआ, आपके स्वास्थ्य और खुशी की कामना करता हूँ.
 ओह, हाँ, पिलात धीरे से चहका, मैं तो बिल्कुल भूल ही गया! मुझे आपको कुछ लौटाना है!...
मेहमान परेशान हो गया.
 नहीं, न्यायाधीश आपको मुझे कुछ नहीं देना है.
 ऐसे कैसे नहीं देना है! जब मैं येरूशलम में आया, याद कीजिए, भिखारियों की भीड़...मैं उन्हें पैसे देना चाहता था, मगर मेरे पास नहीं थे, तब मैंने आपसे लिए थे.
 ओह, न्यायाधीश, आप कहाँ की फालतू बात ले बैठे!
 फालतू बातों को भी याद रखना ही पड़ता है.
पिलात मुड़ा, उसने अपने पीछे की कुर्सी पर पड़ा अपना कोट उठाया, उसमें से चमड़े का बैग निकाला और उसे मेहमान की ओर बढ़ा दिया. वह झुका, और उसे लेकर अपने कोट के अन्दर छिपा लिया.
 मुझे दफनाने के विवरण का इंतज़ार रहेगा, साथ ही किरियाफ के जूडा के मामले के बारे में भी मुझे आज ही रात को बताओ. सुन रहे हो, अफ्रानी, आज ही. पहरेदार को मुझे जगाने की आज्ञा दे दी जाएगी...जैसे ही आप आएँगे. मुझे आपका इंतज़ार रहेगा.
 मैं सम्मानित हुआ! गुप्तचर सेवाओं के प्रमुख ने कहा और वह मुड़कर बाल्कनी से चला गया. गीली रेत पर उसके जूतों की चरमराने की आवाज़ आती रही; फिर संगमरमरी सिंहों के बीचे के फर्श पर उनकी खट्-खट् सुनाई दी; फिर उसके पैर, धड़ और अंत में टोप भी आँखों से ओझल हो गए. अब जाकर न्यायाधीश ने देखा कि सूर्य कब का डूब चुका है और अँधेरा छा रहा है.

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Master aur Margarita-25.2


मास्टर और मार्गारीटा 25.2
आगंतुक ने दूसरे जाम से भी इनकार नहीं किया. चटखारे ले-लेकर कुछ मछलियाँ खाईं, उबली सब्ज़ियाँ चखीं और माँस का एक टुकड़ा भी खाया.
तृप्त होने के बाद उसने शराब की प्रशंसा की, बेहतरीन चीज़ है, न्यायाधीश, मगर यह फालेर्नो तो नहीं?
  त्सेकूबा तीस साल पुरानी, बड़े प्यार से न्यायाधीश बोला.
मेहमान ने सीने पर हाथ रखते हुए कुछ और खाने से इनकार कर दिया और कहा कि वह भरपेट खा चुका है. तब पिलात ने अपना जाम भरा. मेहमान ने भी वैसा ही किया. दोनों ने अपने-अपने जाम से थोड़ी-सी शराब माँस वाले पकवान में डाली.
न्यायाधीश ने जाम उठाते हुए कहा, हमारे लिए, तुम्हारे लिए, रोम के पिता, सर्वाधिक प्रिय और सर्वोत्तम व्यक्ति, कैसर के लिए!
इसके बाद उन्होंने जाम खाली किया. अफ्रीकी सेवकों ने फलों और सुराहियों को छोड़कर बाकी सभी सामग्री मेज़ पर से हटा ली. न्यायाधीश ने उसी तरह इशारे से सेवकों को हटा दिया. स्तम्भों वाली बाल्कनी में अपने मेहमान के साथ वह अकेला रह गया.
 तो, पिलात ने धीरे से कहा, शहर के वातावरण के बारे में क्या कहते हो?
उसने अपनी दृष्टि अनचाहे ही उधर की, जहाँ उद्यान के पीछे, नीचे, ऊँची स्तम्भों वाली इमारतें और समतल छतें सूर्य की अंतिम किरणों में जल रही थीं.
 मैं समझता हूँ, न्यायाधीश, मेहमान ने जवाब दिया, कि येरूशलम का वातावरण अब संतोषजनक है.
 तो क्या यह समझा जाए कि अब किसी तरह की गड़बड़ की कोई आशंका नहीं है?
 समझ सकते हैं, न्यायाधीश की ओर प्यार से देखते हुए मेहमान ने उत्तर दिया, केवल एक ही के बल पर कैसर महान की शक्ति के बल पर.
 हाँ, ईश्वर उन्हें लम्बी आयु दे, पिलात ने फौरन आगे कहा, और दे समग्र शांति. वह कुछ देर चुप रहकर आगे बोला, तो क्या आप समझते हैं कि सेनाओं को हटा लिया जाए?
 मैं समझता हूँ कि विद्युत गति से प्रहार करने वाली टुकड़ी हटाई जा सकती है, मेहमान ने जवाब देकर आगे कहा, बिदा लेने से पहले यदि वह शहर में एक बार परेड कर ले तो अच्छा होगा.
 बहुत अच्छा खयाल है, न्यायाधीश ने सहमत होते हुए कहा, परसों मैं उसे छोड़ दूँगा और स्वयँ भी चला जाऊँगा, और मैं बारहों भगवान और फरिश्तों की कसम खाकर कहता हूँ कि यह आज ही कर सकने के लिए मैं बहुत कुछ दे देता.
 क्या न्यायाधीश को येरूशलम पसन्द नहीं है? मेहमान ने सहृदयतापूर्वक पूछ लिया.
 मेहेरबान, मुस्कुराते हुए न्यायाधीश चहका, समूची धरती पर इससे अधिक बेकार शहर और कोई नहीं है. मैं मौसम की तो बात ही नहीं कर रहा! हर बार, जब यहाँ आता हूँ, मैं बीमार पड़ जाता हूँ. यह तो आधी व्यथा है. मगर उनके ये उत्सव जादूगर, सम्मोहक, मांत्रिक, तांत्रिक, मूर्तिपूजक...पागल हैं, पागल! उस एक मसीहा को ही लो, जिसका वह इस वर्ष इन्तज़ार करते रहे! हर क्षण ऐसा लगता रहता है कि किसी अप्रिय खूनखराबे को देखना पड़ेगा. हर समय सेनाएँ घुमाते रहो, आँसुओं का विवरण और शिकायतें पढ़ते रहो, जिनमें से आधी तो तुम्हारे खुद के खिलाफ हैं! मानिए, यह सब बहुत उकताहटभरा है. ओह, अगर मैं सम्राट की सेवा में न होता तो...
 हाँ, यहाँ के उत्सवों का समय कठिन होता है, मेहमान ने सहमति जताई.
 मैं पूरे दिल से चाहता हूँ कि वे जल्दी से समाप्त हो जाएँ, पिलात ने जोश से कहा, मुझे केसारिया जाने का मौका तो मिलेगा. विश्वास कीजिए, यह भुतहा निर्माण हिरोद का... न्यायाधीश ने हाथ हिलाते हुए स्तम्भों की ओर इशारा किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वह प्रासाद के बारे में कह रहा है, मुझे पूरी तरह पागल बना देता है. मैं यहाँ रात नहीं बिता सकता. पूरी दुनिया में इससे अजीब स्थापत्य कला का नमूना कहीं और नहीं मिलेगा. खैर, चलिए, काम के बातें करें. सबसे पहले, यह दुष्ट वारव्वान आपको परेशान नहीं करता?
मेहमान ने अपनी दृष्टि न्यायाधीश के गाल पर डाली, मगर वह माथे पर बल डाले उकताहट भरी नज़रों से कहीं दूर देख रहा था, शहर के उस हिस्से की ओर, जो उसके पैरों तले था और शाम के धुँधलके में धीरे-धीरे बुझता जा रहा था. मेहमान की नज़र भी बुझ गई, उसकी पलकें झुक गईं.
 कह सकते हैं कि वार अब ख़तरनाक नहीं रहा, मेमने की तरह हो गया है, मेहमान ने कहना शुरू किया तो उसके गोल चेहरे पर सिलवटें पड़ गईं, उसके लिए अब विद्रोह करना आसान नहीं है.
 क्या वह काफी मशहूर है? पिलात ने हँसते हुए पूछ लिया.
 न्यायाधीश हमेशा की तरह, इस सवाल को काफी बारीकी से समझ रहे हैं!
 मगर, फिर भी, सावधानी के तौर पर हमें... न्यायाधीश ने चिंता के स्वर में अपनी पतली, लम्बी, काले पत्थर की अँगूठी वाली उँगली ऊपर उठाते हुए कहा.
 ओह, न्यायाधीश, विश्वास रखिए. जब तक मैं जूडिया में हूँ, वार मुझे विदित हुए बिना एक कदम भी नहीं उठा सकता, मेरे जासूस उसके पीछे लगे हैं.
 अब मुझे सुकून मिला वैसे भी जब आप यहाँ रहते हैं, तो मैं हमेशा ही निश्चिंत रहता हूँ.
 आप बहुत दयालु हैं, न्यायाधीश!
 और अब, कृपया मुझे मृत्युदण्ड के बारे में बताइए, न्यायाधीश ने कहा.   
 आप कोई खास बात जानना चाहते हैं?
 कहीं भीड़ द्वारा अप्रसन्नता, गुस्सा प्रदर्शित करने के कोई लक्षण तो नज़र नहीं आए? खास बात यही है.
 ज़रा भी नहीं, मेहमान ने उत्तर दिया.
 बहुत अच्छा. आपने स्वयँ यकीन कर लिया था कि मृत्यु हो चुकी है?
 न्यायाधीश इस बारे में निश्चिंत रहें.
 और बताइए...सूली पर चढ़ाए जाने से पहले उन्हें पानी पिलाया गया था?
मेहमान ने आँखें बन्द करते हुए कहा, हाँ, मगर उसने पीने से इनकार कर दिया.
 किसने?
पिलात ने पूछा.
 क्षमा कीजिए, महाबली! मेहमान चहका, क्या मैंने उसका नाम नहीं लिया? हा-नोस्त्री!
 बेवकूफ! पिलात ने न जाने क्यों मुँह बनाते हुए कहा. उसकी दाहिनी आँख फड़कने लगी, सूरज की आग में झुलस कर मरना! जो कानूनन तुम्हें दिया जाता है, उससे इनकार क्यों? उसने कैसे इनकार किया?
 उसने कहा, मेहमान ने फिर आँखें बन्द करते हुए कहा, कि वह धन्यवाद देता है और इस बात के लिए दोष नहीं देता कि उसका जीवन छीन लिया जा रहा है.
 किसे? पिलात ने खोखले स्वर में पूछा.
 महाबली, यह उसने नहीं बताया.
 क्या उसने सैनिकों की उपस्थिति में कुछ सीख देने की कोशिश की?
 नहीं, महाबली, इस बार वह बात नहीं कर रहा था. सिर्फ एक बात जो उसने कही, वह यह कि इन्सान के पापों में से सबसे भयानक पाप वह भीरुता को समझता है.
 यह क्योंकर कहा? मेहमान ने अचानक फटी-फटी आवाज़ सुनी.
 यह समझना मुश्किल था. वैसे भी, हमेशा की तरह, वह बड़ा विचित्र व्यवहार कर रहा था.
 विचित्र क्यों?
 वह पूरे समय किसी न किसी की आँखों में देखते हुए मुस्कुरा रहा था, अनमनी मुस्कुराहट...
 और कुछ नहीं? भर्राई आवाज़ ने पूछा.
 और कुछ नहीं.
न्यायाधीश ने जाम में शराब डालकर जाम टकराया. उसे पूरा पी जाने के बाद उसने कहा, अब सुनो काम की बात: हालाँकि, कम से कम इस समय, हम उसके अनुयायियों, शिष्यों को ढूँढ़ नहीं सकते, मगर यह कहना भी मुश्किल है कि वे हैं ही नहीं!
मेहमान सिर झुकाकर गौर से सुनता रहा.
 किन्हीं आकस्मिक आश्चर्यों से बचने के लिए, न्यायाधीश ने आगे कहा, मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ, कि बिना शोर मचाए पृथ्वी के सीने से उन तीनों मृतकों के शरीर गुप्त रूप से हटाकर उन्हें चुपचाप दफना दिया जाए, जिससे उनके बारे में न कोई बात हो, न उनका कोई नामोनिशान बचे.
 जैसी आज्ञा महाबली, मेहमान ने कहा और वह उठते हुए बोला, इस काम से जुड़ी ज़िम्मेदारी और ज़टिलताओं को देखते हुए, मुझे फौरन जाने की इजाज़त दें.
 नहीं, कुछ देर और बैठिए, पिलात ने इशारे से अपने मेहमान को रोकते हुए कहा, मुझे और दो बातें पूछनी हैं. पहली गुप्तचर प्रमुख के रूप में इस कठिन काम में आपकी सेवाओं और सहयोग की प्रशंसा करते हुए, जो आपने जूडिया के न्यायाधीश को अर्पण कीं, मुझे रोम में आपकी सिफारिश करने में प्रसन्नता होगी.
                                                       क्रमशः

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

Master aur Margarita-25.1


मास्टर और मार्गारीटा 25.1

न्यायाधीश ने किरियाफ के जूडा की रक्षा की कैसी कोशिश की

भूमध्य सागर से मँडराते अँधेरे ने न्यायाधीश की घृणा के पात्र उस शहर को दबोच लिया. मन्दिर को भयानक अन्तोनियो बुर्ज से जोड़ने वाले लटकते पुल ओझल हो गए, आकाश से एक अनंत चीर ने आकर घुड़सवारी के मैदान के ऊपर स्थित पंखों वाले देवताओं को, तोपों के लिए बने छेदों सहित हसमन के प्रासाद को, बाज़ारों, कारवाँ, सरायों, गलियों और तालाबों को ढाँक दिया. महान शहर येरूशलम खो गया, मानो उसका कभी अस्तित्व ही न रहा हो. सब कुछ निगल गया अँधेरा, जो येरूशलम और उसकी सीमाओं पर स्थित सभी जीवित प्राणियों को भयभीत कर रहा था. बसंत ऋतु के इस निशान माह के चौदहवें दिन के अंतिम प्रहर में सागर की ओर से एक विचित्र बादल उठा और सब कुछ जलमग्न कर गया.
वह अपने निर्मम प्रहार से गंजे पहाड़ को पस्त कर चुका था, जहाँ जल्लाद फाँसी चढ़ाए गए कैदियों के शरीर में शीघ्रता से भाले की नोक घुसेड़ रहे थे; वह येरूशलम के मन्दिर को सराबोर कर चुका था; धुआँधार बरस कर निचले शहर को लबालब भर चुका था. वह खिड़कियों से अन्दर घुस रहा था, टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से लोगों को घरों में धकेल रहा था. वह अपनी नमी देने में कृपणता दिखाकर केवल प्रकाश ही दे रहा था. जैसे ही यह काला धुआँधार राक्षस आग बरसाता, उस घनघोर अँधेरे में मन्दिर का शिखर चमचमा उठता. मगर वह एक पल में ही फिर बुझ जाता, और मन्दिर अन्तहीन अँधेरे में खो जाता. कई बार वह उससे उबरता और फिर बार-बार डूब जाता. हर बार यह डूबना एक विनाशकारी कड़कड़ाहट साथ लाता.
कुछ अन्य प्रकाश शलाकाएँ, मन्दिर की सामने वाली पश्चिमी पहाड़ी पर स्थित हिरोद के प्रासाद को इस अनन्त अँधेरे से बुलातीं, और उसकी भयानक, नेत्रहीन स्वर्णिम प्रतिमाएँ, आकाश की ओर हाथ पसारे उड़ने लगतीं. मगर आकाश-ज्योति तुरंत लुप्त हो जाती, और सौदामिनी अपने चाबुक से उन प्रतिमाओं को वापस अन्धकार में खदेड़ देती. मूसलाधार बारिश की अकस्मात् झड़ी लग गई थी, और तब यह तूफ़ान बवण्डर में परिवर्तित हो गया. उस जगह, जहाँ दोपहर को, उद्यान में संगमरमरी बेंच के निकट न्यायाधीश और धर्म-गुरू ने वार्तालाप किया था, तोप से छूटे गोले जैसी भीषण आवाज़ के साथ सरू की शाख गिरी. पनीली धूल और ओलों के साथ स्तम्भों के नीचे बाल्कनी में टूटे हुए गुलाब, मैग्नोलिया के पत्ते, नन्ही-नन्ही टहनियाँ और बालू के कण उड़ने लगे. बवण्डर उद्यान को ज़मींदोज़ कर रहा था.
इस समय स्तम्भों के नीचे था सिर्फ एक व्यक्ति, और वह था न्यायाधीश.
अब वह कुर्सी पर बैठा नहीं था, अपितु एक नीची मेज़ के निकट पड़ी शय्या पर लेटा था. मेज़ पर खाने की चीज़ें और सुराहियों में शराब थी. दूसरी, खाली शय्या, मेज़ के दूसरी ओर पड़ी थी. न्यायाधीश के पैरों के पास रक्तवर्णी द्रव बिखरा था और पड़े थे टूटी हुई सुराही के टुकड़े. वह सेवक, जिसने तूफान से पहले मेज़ सजाकर उस पर पेय आदि रखा था, न जाने क्यों न्यायाधीश की नज़रों से घबरा गया; वह सोचने लगा कि कहीं कुछ कमी रह गई है और न्यायाधीश ने उस पर क्रोधित होकर सुराही फर्श पर पटककर तोड़ दी और बोला, चेहरे की ओर क्यों नहीं देखते, जब मुझे जाम देते हो? क्या तुमने कुछ चुराया है?
अफ्रीकी सेवक का काला मुख भूरा हो गया. उसकी आँखों में मौत जैसे भय की लहर तैर गई, वह काँप गया और दूसरी सुराही भी उसके हाथों से छूटते-छूटते बची, मगर न्यायाधीश का गुस्सा जितनी जल्दी आया था, उतनी ही जल्दी चला भी गया. अफ्रीकी सेवक झुककर सुराही के टुकड़े उठाने ही वाला था, कि न्यायाधीश ने हाथ के इशारे से उसे जाने के लिए कहा और सेवक भाग गया. इसीलिए द्रव वहीं बिखरा रह गया.
अब, बवण्डर उठने के बाद अफ्रीकी सेवक एक आले के निकट, जिसमें एक नतमस्तक नग्न स्त्री की श्वेत पाषाण प्रतिमा थी, छिपकर खड़ा हो गया ताकि बेमौके न्यायाधीश के सामने न पड़े और बुलाए जाने पर फौरन स्वामी की सेवा में उपस्थित हो सके.
इस तूफानी शाम को शय्या पर अधलेटा न्यायाधीश स्वयँ ही जाम में शराब डालकर लम्बे-लम्बे घूँट भर रहा था, बीच-बीच में वह डबल रोटी के टुकड़े मुँह में डाल लेता, मछली खाता, नींबू चूसता और फिर से शराब पीने लगता. न्यायाधीश मानो किसी की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा था.
अगर पानी का गरजता शोर न होता, प्रासाद की छत को धमकाती बिजली की कड़क न होती, बाल्कनी की सीढ़ियों पर गिरते ओलों की खड़खड़ाहट न होती तो सुना जा सकता था कि न्यायाधीश अपने आपसे बातें करते हुए बड़बड़ा रहा है. और अगर आसमानी रोशनी की अस्थायी चमक किसी स्थिर प्रकाश में परिवर्तित हो जाती तो यह भी देखा जा सकता था कि शराब एवम् अनिद्रा के कारण सूजे हुए न्यायाधीश के चेहरे पर बेसब्री है और वह लाल डबरे में पड़े हुए दो सफ़ेद गुलाबों को नहीं देख रहा है, बल्कि निरंतर अपना चेहरा उद्यान की ओर मोड़ रहा है, वह किसी की इंतज़ार कर रहा है, बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है.
कुछ समय बीता और न्यायाधीश की आँखों के सामने की बारिश की झड़ी कुछ मद्धिम हुई. यह बवण्डर कितना ही भीषण क्यों न था, वह कमज़ोर पड़ ही गया. ओले अब नहीं गिर रहे थे. बिजली की चमक और कड़क अब रुक-रुक कर आ रही थी. येरूशलम पर अब चाँदी की किनार वाली गहरी बैंगनी चादर नहीं तनी थी, अपितु साधारण भूरे काले रंग का बादल तैर रहा था. तूफान मृत सागर की ओर बढ़ गया था.
अब बारिश की आवाज़ और बहते पानी की आवाज़ अलग-अलग सुनी जा सकती थी, जो उन सीढ़ियों पर बह रहा था, जहाँ से दिन में न्यायाधीश मृत्युदण्ड सुनाने के लिए चौक पर गया था. आख़िरकार, मौन हो गए फव्वारे की आवाज़ भी सुनाई दी. उजाला हो गया. पूर्व की ओर भागी जा रही भूरी चादर में अब नीली-नीली खिड़कियाँ बन गई थीं.
धीमी पड़ गई बारिश के शोर को चीरते हुए, दूर से न्यायाधीश तक तुरहियों की और सैकड़ों घोड़ों के दौड़ने की आवाज़ पहुँची. इसे सुनकर न्यायाधीश के शरीर में हलचल हुई. उसका चेहरा खिल उठा. फौजी टुकड़ी गंजे पहाड़ से लौट रही थी. आवाज़ से प्रतीत होता था कि वह उसी चौक से गुज़र रही है, जहाँ से मृत्युदण्ड सुनाया गया था.
आख़िर में न्यायाधीश को सीढ़ियों से होकर ऊपर की बाल्कनी तक आती उन कदमों की आहट सुनाई दी, जिसकी उसे प्रतीक्षा थी. न्यायाधीश ने गर्दन घुमाई, और उसकी आँखें प्रसन्नता से चमक उठीं.
दो संगमरमरी सिंहों की आकृतियों के बीच पहले प्रकट हुआ टोपी वाला सिर, फिर एक पूरी तरह भीगा हुआ आदमी, जिसकी बरसाती भी उसके शरीर से चिपक गई थी. यह वही आदमी था, जिसने प्रासाद के अँधेरे कमरे में मृत्युदण्ड का ऐलान किए जाने से पहले न्यायाधीश से वार्तालाप किया था, और जो फाँसी के समय तिपाई पर बैठा एक टहनी से खेल रहा था.
टोपी वाला आदमी उद्यान का चौक पार करकेबाल्कनी के संगमरमरी फर्श पर आया और हाथ ऊपर उठाकर , मधुर आवाज़ में उसने लैटिन में कहा, न्यायाधीश की सेवा में स्वास्थ्य और खुशी की कामना!
 हे भगवान! पिलात चहका, तुम्हारे शरीर पर तो एक भी सूखा तार नहीं है! क्या बवण्डर था! हाँ? कृपा करके फौरन मेरे निकट आ जाओ. कपड़े बदलकर मुझे विस्तार से सब बताओ.
आगंतुक ने टोप उतारा. पूरे गीले सिर और माथे से चिपके बालों को मुक्त करते हुए उसके चिकने चेहरे पर शिष्ट मुस्कान दौड़ गई. वस्त्र बदलने से वह यह कहते हुए इनकार करने लगा कि बारिश उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती.
 मैं कुछ सुनना नहीं चाहता, पिलात ने कहा और ताली बजाकर छिपे हुए सेवक को बुलाया. उसे आगंतुक की सेवा करने और तत्पश्चात् फौरन गर्म-गर्म कुछ खाने के लिए देने को कहा. बालों को सुखाने, कपड़े बदलने  और दूसरे, सूखे जूते पहनकर स्वयँ को ठीकठाक करने के लिए न्यायाधीश के मेहमान ने काफी कम समय लिया और बाल सँवारे, सूखी चप्पलें डाले और सूखे लाल फौजी कोट में वह शीघ्र ही बाल्कनी पर उपस्थित हो गया.
इस समय तक सूरज येरूशलम में वापस लौट चुका था और भूमध्य सागर में डूबने से पहले न्यायाधीश की घृणा के पात्र इस शहर पर अपनी अंतिम किरणें बिखेरते हुए बाल्कनी की सीढ़ियों पर सोना लुटा रहा था. फव्वारा पुनर्जीवित हो गया था और अपनी पूरी सामर्थ्य से गाने लगा था. कबूतर गुटर गूँ करते हुए रेत पर फुदक रहे थे; गीली रेत पर चोंच मारते हुए कुछ ढूँढ़ रहे थे. लाल द्रव का नन्हा तालाब सुखा दिया गया था, टूटी सुराही के टुकड़े उठा लिये गए थे और मेज़ पर गर्मागर्म माँस रख दिया गया था, जिसमें से भाप निकल रही थी.
 न्यायाधीश हुकुम कीजिए, मैं तैयार हूँ, आगंतुक ने मेज़ के निकट आते हुए कहा.
 मगर आप कुछ नहीं सुनेंगे, जब तक आप बैठ नहीं जाते और शराब नहीं पी लेते, बड़े प्यार से न्यायाधीश ने जवाब दिया और दूसरी शय्या की ओर इशारा किया.
आगंतुक लेट गया, सेवक ने उसके जाम में गाढ़ी लाल शराब डाली. दूसरे सेवक ने सावधानी से पिलात के कन्धे पर झुकते हुए न्यायाधीश का जाम भर दिया. इसके पश्चात् उसने इशारे से दोनों सेवकों को वहाँ से जाने के लिए कहा. जब तक आगंतुक खाता-पीता रहा, पिलात आँखें सिकोड़े शराब की चुस्कियाँ लेते अपने मेहमान को देखता रहा. पिलात के सामने उपस्थित व्यक्ति अधेड़ उम्र का था, प्यारा-सा गोल चेहरा, खूबसूरत नाक-नक्श, और मोटी फूली नाक वाला. बालों का रंग कुछ अजीब-सा था. अब सूखते हुए वे भूरे मालूम पड़ रहे थे. आगंतुक की नागरिकता के बारे में बताना भी कठिन था. उसके चेहरे की विशेष बात थी उस पर मौजूद सहृदयता की झलक, जिसे मिटाए जा रही थीं आँखें, या यूँ कहिए कि उससे वार्तालाप कर रहे व्यक्ति की ओर देखने का तरीका. अपनी छोटी-छोटी आँख़ों को वह अक्सर विचित्र, अधखुली, फूली-फूली पलकों के नीचे छिपाए रखता था. तब इन आँखों में निष्पाप चालाकी तैर जाती थी. शायद पिलात का अतिथि मज़ाकपसन्द था. मगर कभी-कभी वह इस हँसी की चमकती लकीर को बाहर खदेड़ देता और अपनी पलकें पूरी खोलकर अपने साथी पर अचानक उलाहना भरी दृष्टि डालता, मानो उसकी नाक पर उपस्थित कोई छिपा हुआ धब्बा ढूँढ़ रहा हो. यह सिर्फ एक ही क्षण चलता. दूसरे ही क्षण पलकें फिर झुक जातीं, आधी मुँद जातीं और उनमें फिर तरने लगती सहृदयता और चालाक बुद्धिमत्ता.
                                                 क्रमशः

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

Master aur Margarita-24.6


मास्टर और मार्गारीटा 24.6  

माजरा यह था कि मास्टर और मार्गारीटा के अपने साथियों समेत निकलने के कुछ देर पहले फ्लैट नं. 48 से, जो कि जवाहिरे की बीवी के फ्लैट के ठीक नीचे था, एक सूखी-सी औरत हाथ में एक बर्तन और पर्स लिए बाहर सीढ़ियों पर आई. यह वही अन्नूश्का थी, जिसने बुधवार को, बेर्लिओज़ के दुर्भाग्य से, सूरजमुखी का तेल घुमौने दरवाज़े के पास बिखेर दिया था.
कोई नहीं जानता था, और न ही शायद कभी जान पाएगा कि मॉस्को में यह औरत करती क्या थी, और कैसे ज़िन्दा रहती थी. उसके बारे में सिर्फ इतना पता था कि उसे प्रतिदिन या तो बर्तन लिये, या पर्स लिये, या फिर दोनों साथ में लिये या तो तेल की दुकान पर, या बाज़ार में, या उस घर के प्रवेश द्वार के पास, जिसमें वह रहती थी, या सीढ़ियों पर देखा जा सकता था; मगर अक्सर वह दिखाई देती थी फ्लैट नं. 48 के रसोईघर में, जहाँ वह रहती थी. इसके अलावा यह भी सर्वविदित था, कि जहाँ भी वह मौजूद रहती या प्रकट होती थी वहाँ फौरन हंगामा खड़ा हो जाता था और यह भी कि लोगों ने उसका नाम प्लेग रख दिया था.
 प्लेग अन्नूश्का न जाने क्यों सुबह बड़ी जल्दी उठ जाया करती, और आज न जाने क्यों, मानो किसी अज्ञात शक्ति ने उसे अँधेरे-उजाले के झुरमुटे के पहले ही बारह बजे के कुछ बाद जगा दिया था. दरवाज़े में चाबी घूमी, अन्नूश्का की पहले नाक और बाद में वह समूची बाहर निकली और अपने पीछे दरवाज़ा खींचकर कहीं बाहर जाने की तैयारी करने ही लगी थी, कि ऊपरी मंज़िल का दरवाज़ा बजा, कोई लुढ़कता हुआ नीचे आया और अन्नूश्का से टकराते हुए उसे इतनी ज़ोर से एक किनारे पर धकेला कि उसका सिर दीवार से जा टकराया.
 यह सिर्फ एक कच्छे में तुम्हें शैतान कहाँ लिये जा रहा है? अपना सिर पकड़ते हुए अन्नूश्का गरजी. कच्छा पहना आदमी हाथ में सूटकेस लिए और टोपी सिर पर डाले, बन्द आँखों से खराश भरी उनींदी आवाज़ में बोला:
 बॉयलर! गंधक का तेज़ाब! सिर्फ पुताई ही कितनी महँगी पड़ी! और रोते हुए भिनभिनाया, चली जाओ! अब वह फिर ज़ोर से फेंका गया, मगर आगे नहीं, सीढ़ियों पर नीचे नहीं, अपितु पीछे ऊपर, वहाँ जहाँ अर्थशास्त्री के पैर से टूटा खिड़की वाला शीशा था, और इस खिड़की से उल्टा लटकते हुए वह तीर की तरह बाहर फेंक दिया गया. अन्नूश्का अपने सिर की चोट के बारे में बिल्कुल भूल गई, आह करते हुए वह खिड़की की तरफ लपकी. वह पेट के बल लेट गई और खिड़की से बाहर सिर निकालकर आँगन में देखने लगी, इसी अपेक्षा से कि उसे रोशनी में सड़क पर सूटकेस वाले आदमी का क्षत-विक्षत शरीर देखने को मिलेगा. मगर आँगन में और सड़क पर कुछ भी नहीं था.
बस यही मानकर सन्तोष कर लेना पड़ा कि वह विचित्र, उनींदा प्राणी पंछी की तरह, बिना कोई निशान छोड़े घर से उड़ गया. अन्नूश्का ने सलीब का चिह्न बनाते हुए सोचा, हाँ, सचमुच ही फ्लैट का नंबर पचास है! लोग फालतू में ही नहीं कहते! अजीब है यह फ्लैट! फ्लैट है या बला!
वह इतना सोच ही पाई थी कि ऊपरी मंज़िल का दरवाज़ा फिर से खुला और दूसरी बार कोई दौड़ता हुआ नीचे आया. अन्नूश्का दीवार से चिपक गई. उसने देखा कि कोई काफी इज़्ज़तदार, दाढ़ीवाला मगर कुछ-कुछ सुअर जैसे चेहरे वाला आदमी अन्नूश्का की बगल से तीर की तरह गुज़रा, और पहले वाले ही की तरह वह खिड़की के रास्ते घर से बाहर गया, वैसे ही फर्श पर चूर-चूर हुअ बिना. अन्नूश्का भूल गई कि वह किसलिए बाहर निकली थी, और वह वैसे ही सलीब का निशान बनाते सीढ़ियों पर खड़ी ओह...ओह करती अपने आप से बातें करती रही.
 तीसरी बार निकला, बिना दाढ़ी के गोल, चिकने चेहरे वाला, कोट पहने आदमी; वह भागता हुआ आया और ठीक वैसे ही खिड़की फाँद गया.
अन्नूश्का की तारीफ़ में इतना कहना होगा, कि वह काफी जिज्ञासु थी. यह देखने के लिए कि आगे कौन से नये चमत्कार होने वाले हैं, उसने कुछ देर वहीं ठहरने का फैसला कर लिया. ऊपर का दरवाज़ा फिर खुला और इस बार एक पूरा झुण्ड सीढ़ियाँ उतरने लगा, भागकर नहीं, अपितु आम आदमियों की तरह. अन्नूश्का दौड़कर खिड़की से दूर हट गई, वह नीचे अपने फ्लैट तक उतरी, दरवाज़ा फट् से खोलकर उसके पीछे छिप गई, और दरवाज़े की दरार से उसकी उत्सुकता भरी आँख सट गई.
कोई एक बीमार-सा, अनबीमार-सा मगर अजीब, पीतवर्ण, बढ़ी हुई दाढ़ी वाला, काली टोपी और कोई गाऊन-सा पहने डगमगाते कदमों से नीचे उतर रहा था. आधे अँधेरे में अन्नूश्का ने देखा कि उसे सँभालती हुई ले जा रही थी कोई महिला, जिसने काला-सा चोगा पहना था, शायद उस महिला के पैर या तो नंगे थे, या फिर उसने पारदर्शी, विदेशी, फटे हुए जूते पहन रखे थे. छिः छिः! जूतों में क्या है! मगर औरत तो नंगी है! हाँ उस चोगे से उसने अपने तन को केवल ढाँककर ही रखा था! फ्लैट है या बला! अन्नूश्का का दिल इस खयाल से हिलोरें ले रहा था कि कल पड़ोसियों को सुनाने के लिए उसके पास काफी मसाला है.
इस विचित्र लिबास वाली औरत के पीछे थी एक पूरी निर्वस्त्र महिला, उसने हाथ में सूटकेस पकड़ रखा था, उस सूटकेस के साथ-साथ चल रहा था एक विशालकाय काला बिल्ला. अन्नूश्का आँखें फाड़े देख रही थी, उसके मुँह से सिसकारी निकलते-निकलते बची.
इस जुलूस के पीछे-पीछे था नाटे कद का विदेशी, वह लँगड़ाकर चल रहा था, उसकी एक आँख टेढ़ी थी, वह सफेद जैकेट पहने, टाई लगाए था, मगर कोट नहीं पहने था. यह पूरा झुण्ड अन्नूश्का के करीब से होकर नीचे जाने लगा. तभी खट् से कोई चीज़ फर्श पर गिर पड़ी. यह अन्दाज़ करके कि कदमों की आहट दूर होती जा रही है, अन्नूश्का साँप की तरह रेंगकर बाहर आई. बर्तन दीवार के निकट रखकर वह पेट के बल फर्श पर लेट गई और हाथों से चारों ओर टटोलने लगी. उसके हाथों में आया एक रूमाल, जिसमें कोई भारी चीज़ बँधी हुई थी. अन्नूश्का की आँखें विस्फारित होकर माथे पर चढ़ गईं, जब उसने रूमाल में बँधी हुए चीज़ को देखा! अन्नूश्का अपनी आँखों तक उस बहुमूल्य वस्तु को ले आई; अब उसकी आँखें भेड़िए की आँखों जैसी दहकने लगीं. उसके मस्तिष्क में एक तूफान साँय-साँय करने लगा, मैं कुछ नहीं जानती! मैंने कुछ नहीं देखा!... भतीजे के पास? या इसके टुकड़े कर दिए जाएँ...हीरों को तो उखाड़ कर निकाला जा सकता है...और एक-एक करके...एक पेत्रोव्का को, दूसरा स्मोलेन्स्क को...और मैं कुछ नहीं जानती, मैंने कुछ नहीं देखा!
अन्नूश्का ने उस चीज़ को शमीज़ के अन्दर सीने के पास छिपा लिया. बर्तन उठाकर रेंगते हुए वह वापस अपने फ्लैट में जाने ही वाली थी कि उसके सामने प्रकट हुआ, शैतान ही जाने वह कहाँ से आया था, वही सफेद जैकेट , बगैर कोट वाला और हौले से फुसफुसाकर बोला, रूमाल और नाल निकालो.
 कैसा रूमाल, कैसी नाल? अन्नूश्का ने बड़े बनावटी ढंग से पूछा, मैं कोई रूमाल-वुमाल नहीं जानती. नागरिक, क्या तुमने पी रखी है?
सफेद जैकेट वाले ने अपनी बस के ब्रेक जैसी मज़बूत और वैसी ही सर्द उँगलियों से बिना कुछ बोले अन्नूश्का का गला इस तरह दबाया, कि उसके सीने में हवा का जाना एकदम रुक गया. अन्नूश्का के हाथों से बर्तन छिटककर फर्श पर जा गिरा. कुछ देर तक अन्नूश्का को बिना हवा दिए जकड़कर, सफेद जैकेट वाले विदेशी ने उसकी गर्दन से उँगलियाँ हटा लीं. हवा में साँस लेकर अन्नूश्का मुस्कुराई.
 ओह, नाल, वह बोली, अभी लो! तो यह आपकी नाल है? मैंने देखा, कि रूमाल में कुछ बँधा पड़ा है...मैंने जान-बूझकर उठाया, जिससे कोई दूसरा न उठा ले, और फिर ढूँढ़ते फिरो!
रूमाल और नाल लेकर विदेशी उसका झुक-झुककर अभिवादन करने लगा. वह उसका हाथ अपने हाथों में लेकर विदेशी लहजे में बार-बार उसे धन्यवाद देने लगा.
 मैं आपका तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ! मुझे यह नाल किसी की यादगार होने के कारण बहुत प्रिय है. इसे सँभालकर रखने के लिए मुझे आपको दो सौ रूबल देने की आज्ञा दें. और उसने फौरन अपनी जेब से पैसे निकालकर अन्नूश्का को थमा दिए.
वह बेसुध होकर मुस्कुराने लगी और चिल्लाकर कहने लगी, ओह, मैं दिल से आपका शुक्रिया अदा करती हूँ! धन्यवाद! धन्यवाद!
वह निडर विदेशी एक ही छलाँग में पूरी सीढ़ी फाँद गया, मगर ओझल होने से पहले वह नीचे से साफ-साफ चिल्लाया, तुम, बूढ़ी चुडैल, अगर आइन्दा पराई चीज़ को हाथ भी लगाओ तो उसे पुलिस में दे देना! अपने सीने से छिपाकर मत रखना!
 इस सब शोरगुल और गड़बड़ से सुन्न होकर अन्नूश्का कुछ देर तक यंत्रवत् चिल्लाती ही रही, धन्यवाद! धन्यवाद! धन्यवाद! मगर विदेशी कब का गायब हो चुका था.
आँगन में अब कार तैयार थी. मार्गारीटा को वोलान्द की भेंट वापस देकर अज़ाज़ेलो उससे बिदा लेने लगा. उसने पूछा कि उसे बैठने में कोई तकलीफ तो नहीं हो रही. हैला ने मार्गारीटा का प्रदीर्घ चुम्बन लिया. बिल्ला उसके हाथ के निकट लोट गया. बिदा देने वालों ने हाथ हिलाकर कोने में बेजान-से, निश्चल-से लुढ़के मास्टर से विदा ली, चालक कौए की ओर देखकर हाथ हिलाया और फौरन हवा में पिघल गए. उन्होंने सीढ़ियों पर चढ़कर जाने का कष्ट उठाना मुनासिब नहीं समझा. कौए ने बत्तियाँ जलाईं और मुर्दे की तरह सोए पड़े आदमी की बगल से होकर गाड़ी प्रवेश द्वार से बाहर निकाली. और बड़ी काली कार की बत्तियाँ चहल-पहल और शोरगुल वाले सादोवाया की बत्तियों में मिल गईं.
एक घण्टे बाद अर्बात की एक गली के तहखाने में स्थित उस छोटे-से मकान के अगले कमरे में, जहाँ सब कुछ ठीक वैसा ही था, जैसा पिछले साल की जाड़े की उस भयानक रात के पहले हुआ करता था, मखमली टेबुल क्लॉथ से ढँकी मेज़ पर शेड वाला लैम्प जल रहा था, पास में ही फूलदानी लिली के फूलों से सजी हुई थी, मार्गारीटा खामोशी से बैठी खुशी और झेली गई तकलीफों के दुःख के मारे रो रही थी. आग में झुलसी पाँडुलिपि उसके सामने पड़ी थी, साथ ही साबुत पांडुलिपियों एक ऊँचा गट्ठा भी पास में पड़ा था. बाजू वाले सोफे पर अस्पताल के गाउन में ही लिपटा मास्टर गहरी नींद में सो रहा था. उसकी साँसें भी बेआवाज़ थीं.
जी भरकर रो लेने के बाद मार्गारीटा ने साबुत पांडुलिपि उठाई. उसने वह जगह ढूँढ़ ली जिसे वह क्रेमलिन की दीवार के पास, अज़ाज़ेलो से मुलाक़ात होने के पहले पढ़ रही थी. मार्गारीटा को नींद नहीं आ रही थी. उसने पांडुलिपि को इतने प्यार से सहलाया मानो अपनी प्रिय बिल्ली को सहला रही हो. उसे हाथों में लेकर उलट-पुलटकर देखने लगी, कभी वह प्रथम पृष्ट को देखती, तो कभी अंतिम पृष्ट को. अचानक उसे एक ख़ौफ़नाक खयाल ने दबोच लिया, कि यह सब केवल जादू है, कि अभी पांडुलिपियाँ गायब हो जाएँगी, कि वह आँख खुलते ही अपने आपको अपने शयनकक्ष में पाएगी और उसे अँगीठी सुलगाने के लिए उठना पड़ेगा. मगर यह उसके कष्टों की, लम्बी यातनामय परेशानियों की प्रतिध्वनि मात्र थी. कुछ भी गायब नहीं हुआ, महाशक्तिमान वोलान्द सचमुच सर्वशक्तिमान था, और मार्गारीटा कितनी ही देर, शायद सुबह होने तक, पांडुलिपि के पन्नों को सहलाती रही, जी भरकर देखती रही, चूमती रही, और बार-बार पढ़ती रही:
भूमध्य सागर से मँडराते अँधेरे ने न्यायाधीश की घृणा के पात्र उस शहर को दबोच लिया...हाँ, अँधेरा...

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