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मंगलवार, 31 जनवरी 2012

Master aur Margarita-18.1



मास्टर और मार्गारीटा 18.1

अभागे मेहमान

ठीक उसी समय जब मेहनती रोकड़िया टैक्सी में बैठकर लिखने वाले सूट से टकराने वाला था, कीएव से मॉस्को आने वाली रेल के आरामदेह, स्लीपर कोच नम्बर 9 से अन्य यात्रियों के साथ हाथ में एक छोटी-सी फाइबर की सूटकेस लिए मॉस्को स्टेशन पर एक शरीफ़ मुसाफिर उतरा. यह मुसाफिर कोई और नहीं स्वर्गवासी बेर्लिओज़ का मामा, कीएव की भूतपूर्व इंस्टिट्यूट रोड़ पर रहने वाला अर्थशास्त्री संयोजक, मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच पोप्लाव्स्की था. मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच के मॉस्को आगमन का कारण वह टेलिग्राम था जो उसे परसों शाम को मिला था और जिसमें लिखा था:
 मुझे अभी-अभी ट्रामगाड़ी ने कुचल दिया है पत्रियार्शी तालाब के पास. अंतिम संस्कार शुक्रवार को तीन बजे दोपहर आ जाओ बेर्लिओज़.
मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच कीएव के बुद्धिमान लोगों में गिना जाता था, और वह वाक़ई था भी. मगर अत्यंत बुद्धिमान व्यक्ति भी इस टेलिग्राम को पढ़कर बौखला ही उठेगा. यदि कोई व्यक्ति स्वयँ तार भेजता है कि उसे ट्रामगाड़ी ने कुचल दिया है, इसका मतलब यह हुआ कि वह जीवित है. मगर फिर अंतिम संस्कार क्यों? या फिर उसकी हालत इतनी खराब है कि उसे अपनी मृत्यु की पूर्वसूचना मिल चुकी है? यह सम्भव है, मगर यह समय निर्धारण बड़ा अजीब है: उसे कैसे मालूम कि उसका अंतिम संस्कार शुक्रवार को दिन में तीन बजे किया जाएगा? बड़ा अजीब टेलिग्राम है!
मगर बुद्धिमान आदमी इसीलिए बुद्धिमान कहे जाते हैं कि वे उलझी हुई परिस्थिति को भी सुलझा लेते हैं. बिल्कुल आसान है. गलती हो गई है और मतलब बदल गया है. यह शब्द मुझे बेर्लिओज़ के बदले, किसी दूसरे टेलिग्राम से यहाँ आ गया है, जो इबारत के अंत में बेर्लिओज़ बन गया है. इस तरह पढ़ने से टेलिग्राम का सन्देश साफ हो जाता था, मगर वह दर्दनाक था.
जब बीबी को हैरत में डालने वाले दुःख की तीव्रता कुछ कम हुई तो मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच फौरन मॉस्को जाने की तैयारी करने लगा.
मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच का एक भेद खोलना ही पड़ेगा. इस बारे में कोई शक नहीं कि उसे अपनी बीवी के इस भतीजे के असमय मरने पर बहुत अफ़सोस हुआ था. मगर एक व्यावहारिक व्यक्ति होने के कारण वह समझ रहा था कि अंतिम संस्कार में उसकी उपस्थिति अनिवार्य नहीं है. मगर फिर भी मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच शीघ्र ही मॉस्को पहुँचना चाहता था. कारण क्या था? कारण फ्लैट! मॉस्को में फ्लैट? यह बड़ी महत्वपूर्ण बात थी. न जाने क्यों मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच को कीएव पसन्द नहीं था, और मॉस्को जाकर रहने के विचार ने पिछले कुछ समय से उसे इस बुरी तरह कुरेदना शुरू कर दिया था कि उसकी रातों की नींद उड़ गई थी. अब उसे बसंत में द्नेप्र की बाढ़ उल्हासित नहीं करती थी, जब निचले टापुओं को डुबोते हुए वह क्षितिज से मिल जाती थी. अब उसे सामन्त व्लादीमिर के स्मारक के निकट से आरम्भ होने वाला सुन्दर प्राकृतिक दृश्य आनन्द नहीं देता था. व्लादीमिर पहाड़ के ईंटों वाले रास्ते पर बसंत ऋतु में नाचते सूरज के धब्बे देखकर अब वह खुश नहीं होता था. वह इस सबसे उकता गया था, वह मॉस्को जाना चाहता था.
उसने अख़बारों में इश्तेहार दिए इंस्टिट्यूट रोड पर स्थित अपने फ्लैट से मॉस्को के किसी छोटे फ्लैट को बदलने के लिए, मगर कोई नतीजा नहीं निकला. कोई भी इच्छुक नहीं था ऐसे प्रस्ताव के लिए और यदि भूला-भटका कोई मिल भी जाता, तो उसकी माँग बड़ी ऊलजलूल होती थी.
इस टेलिग्राम से मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच हक्का-बक्का रह गया. यह वह घड़ी थी, जिसे खोना अक्षम्य होता. व्यावहारिक आदमी जानते हैं कि ऐसे मौके बार-बार नहीं आते.
संक्षेप में, बिना किसी मुसीबत में पड़े मॉस्को वाले भतीजे के सादोवाया वाले फ्लैट पर कब्ज़ा किया जा सकता था. हाँ, यह मुश्किल था, बहुत मुश्किल, मगर इन मुश्किलों को किसी भी कीमत पर दूर करना ही था. अनुभवी मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच जानता था कि इस दिशा में पहला और अनिवार्य कदम था: शीघ्र ही, किसी भी तरह, मृत भतीजे के तीन कमरों में जाकर रुकना और वहाँ अपना नाम लिखवाना, चाहे थोड़े समय के लिए ही सही.
शुक्रवार की दोपहर को मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच सादोवाया की बिल्डिंग नं. 302 के उस कमरे में दाखिल हुआ जहाँ हाउसिंग कमिटी का दफ़्तर था.
उस तंग कमरे में, जिसकी दीवार पर एक पुराना चार्ट लटक रहा था, कुछ चित्रों के माध्यम से यह दिखाता हुआ कि नदी में डूबे हुओं को पुनर्जीवित कैसे किया जाता है लकड़ी की मेज़ के पीछे, उत्तेजित आँखों से इधर-उधर देखता, दाढ़ी बढ़ाए अधेड़ उम्र का एक आदमी निपट अकेला बैठा था.
 क्या मैं कमिटी के प्रमुख से मिल सकता हूँ? अर्थशास्त्री संयोजक ने अपनी सूटकेस निकट की कुर्सी पर रखकर, हैट उतारते हुए बड़ी शालीनता से पूछा.
ऐसा लगा कि इस सीधे-साधे सवाल ने उस आदमी को बहुत परेशान कर दिया. उसका चेहरा विवर्ण हो गया. उत्तेजना में कनखियों से इधर-उधर देखते हुए वह बुदबुदाया कि प्रमुख नहीं है.
 क्या वह अपने फ्लैट में है? पोप्लाव्स्की ने पूछा, मुझे ज़रूरी काम है.
बैठे हुए आदमी ने फिर बेतुका-सा जवाब दिया. मगर फिर भी यह समझ में आ रहा था कि प्रमुख अपने घर पर नहीं है.
 कब आएँगे?
इस सवाल का बैठे हुए आदमी ने कोई जवाब नहीं दिया और आँखों में पीड़ा का भाव लिए खिड़की से बाहर देखने लगा.
 ओ हो! तेज़ तर्रार पोप्लाव्स्की ने अपने आप से कहा और वह सेक्रेटरी के बारे में पूछने लगा.
मानसिक तनाव के कारण उस आदमी का चेहरा लाल हो गया. फिर उसने और मरी हुई आवाज़ में बताया कि सेक्रेटरी भी नहीं...सेक्रेटरी बीमार है...
 ओहो! पोप्लाव्स्की ने फिर अपने आप से कहा और पूछा, मगर कमिटी में कोई तो होगा?
 मैं हूँ, कमज़ोर आवाज़ में उस आदमी ने कहा.
 देखिए, ज़ोर देते हुए पोप्लाव्स्की ने कहा, मैं अपने भतीजे, मृत बेर्लिओज़ का इकलौता वारिस हूँ, जो जैसा कि आपको मालूम है, पत्रियार्शी के निकट मर गया, और नियमानुसार मुझे उसका फ्लैट जो आपकी इस बिल्डिंग में 50नं. पर है, विरासत में मिलना चाहिए...
 मुझे पता नहीं है, दोस्त, पीड़ा से उसे बीचे में ही टोकते हुए वह बोला.
 मगर, माफ कीजिए, खनखनाती आवाज़ में पोप्लाव्स्की बोला, आप हाउसिंग कमिटी के सदस्य हैं और आपका फर्ज़...
तभी कमरे में एक आदमी घुसा. उसे देखते ही टेबुल के पीछे बैठे हुए आदमी का चेहरा पीला पड़ गया.
 आप कमिटी के सदस्य पित्नाझ्का हैं? उसने आते ही पूछा.
 हाँ, मुश्किल से सुनाई दिया.
आने वाले ने बैठे हुए आदमी के कान में कुछ कहा, जिससे वह घबरा कर कुर्सी से उठा और कुछ ही क्षणों बाद उस खाली कमरे में पोप्लाव्स्की अकेला बचा था.
 ओह, क्या मुसीबत है! क्या ज़रूरी था कि वे सभी एक साथ... निराशा से पोप्लाव्स्की ने सोचा और वह सिमेंट का आँगन पार करके फ्लैट नं. 50 की ओर लपका.
जैसे ही अर्थशास्त्री संयोजक ने घण्टी बजाई, दरवाज़ा खुला और मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच अंधेरे-से प्रवेश-कक्ष में घुसा. उसे इस बात पर अचरज हुआ कि दरवाज़ा आख़िर खोला किसने? प्रवेश-कक्ष में कोई नहीं था, केवल एक भारी-भरकम बिल्ले को छोड़कर, जो कुर्सी पर बैठा था.
 मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच खाँसा. उसने पैरों से आवाज़ की तब कहीं जाकर अध्ययन-कक्ष का दरवाज़ा खुला और कोरोव्येव बाहर आया. मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच ने अपनी गरिमा बनाए रखते हुए, झुककर उसका अभिवादन किया, और बोला, मेरा नाम पोप्लाव्स्की है. मैं मामा... 

                                                             क्रमशः

Master aur Margarita-17.4



मास्टर और मार्गारीटा 17.4
बात यह थी कि शहर की इस मनोरंजन शाखा के प्रमुख को, जिसने सब कुछ गुड़-गोबर कर दिया था (लड़की के शब्दों में), शौक चर्राया अलग-अलग मनोरंजन कार्यक्रम सम्बन्धी गुट बनाने का.
 प्रशासन की आँखों में धूल झोंकी! लड़की दहाड़ी.
इस साल के दौरान उसने लेरमेन्तोव का अध्ययन करने के लिए, शतरंज, तलवार, पिंग-पांग और घुड़सवारी सीखने के लिए गुट बनाए. गर्मियों के आते-आते नौकाचलन और पर्वतारोहण के लिए भी गुट बनाने की धमकी दे दी. 
 और आज, दोपहर की छुट्टी के समय वह अन्दर आया, और अपने साथ किसी घामड़ को हाथ पकड़कर लाया, लड़की बताती रही, न जाने वह कहाँ से आया था चौख़ाने की पतलून पहने, टूटा चश्मा लगाए, और...थोबड़ा ऐसा जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता!
और इस आगंतुक का, लड़की के अनुसार, सभी भोजन कर रहे कर्मचारियों से यह कहकर परिचय कराया गया कि वह कोरस आयोजन करने की कला का विशेषज्ञ है.
संभावित पर्वतारोहियों के चेहरे उदास हो गए, मगर प्रमुख ने तत्क्षण सभी को दिलासा दिया. इस दौरान वह विशेषज्ञ मज़ाक करता रहा, फ़िकरे कसता रहा और कसम खाकर विश्वास दिलाता रहा कि समूहगान में समय काफ़ी कम लगता है और उसके फ़ायदे अनगिनत हैं.
लड़की के अनुसार पहले उछले फानोव और कोसार्चुक, इस दफ़्तर के सबसे बड़े चमचे, यह कहकर कि वे पहले नाम लिखवा रहे हैं. अब बाकी लोग समझ गए कि इस ग्रुप को रोकना मुश्किल है, लिहाज़ा सभी ने अपने-अपने नाम लिखवा दिए. यह तय किया गया कि गाने की प्रैक्टिस दोपहर के भोजन की छुट्टी के समय की जाएगी, क्योंकि बाकी का सारा समय लेरमेन्तोव और तलवारों को समर्पित था. प्रमुख ने यह दिखाने के लिए कि उसे भी स्वर ज्ञान है, गाना शुरू किया और आगे सब कुछ मानो सपने में हुआ. चौखाने वाला समूहगान विशेषज्ञ दहाड़ा:
 सा-रे-ग-म! गाने से बचने के लिए अलमारियों के पीछे छिपे लोगों को खींच-खींचकर बाहर निकाला. कोसार्चुक से उसने कहा कि उसकी सुर की समझ बड़ी गहरी है; दाँत दिखाते हुए सबको बूढ़े संगीतज्ञ का आदर करने के लिए कहा, फिर उँगलियों पर ट्यूनिंग फोर्क से खट्-खट् करते हुए वायलिन वादक से सुन्दर सागर बजाने के लिए कहा.
वायलिन झंकार कर उठा. सभी बाजे बजने लगे...खूबसूरती से. चौख़ाने वाला सचमुच अपनी कला में माहिर था. पहला पद पूरा हुआ. तब वह विशेषज्ञ एक मिनट के लिए क्षमा माँगकर जो गया...तो गायब हो गया. सबने सोचा कि वह सचमुच एक मिनट बाद वापस आएगा. मगर वह दस मिनट बाद भी वापस नहीं लौटा. सब खुश हो गए, यह सोचकर कि वह भाग गया.
और अचानक सबने दूसरा पद भी गाना शुरू कर दिया. कोसार्चुक सबका नेतृत्व कर रहा था, जिसको ज़रा भी स्वर ज्ञान नहीं था मगर जिसकी आवाज़ बड़ी ऊँची थी. सब गाते रहे. विशेषज्ञ का पता नहीं था! सब अपनी-अपनी जगह चले गए, मगर कोई भी बैठ नहीं सका, क्योंकि सभी अपनी इच्छा के विपरीत गाते ही रहे. रुकना हो ही नहीं पा रहा था! तीन मिनट चुप रहते, फिर गाने लगते! चुप रहते गाने लगते! तब समझ गए कि गड़बड़ हो गई है. दफ़्तर का प्रमुख शर्म के मारे मुँह छिपाकर अपने कमरे में छिप गया.
लड़की की कहानी रुक गई. दवा का उस पर कोई असर नहीं हुआ था.
क़रीब पन्द्रह मिनट बाद वगान्स्कोव्स्की चौक में तीन ट्रक आए, उनमें प्रमुख समेत दफ़्तर के सभी कर्मचारियों को भर दिया गया.
जैसे ही पहला ट्रक चलने को तैयार हुआ, और वह दफ़्तर के द्वार से निकलकर चौक में आया, सभी कर्मचारियों ने जो एक दूसरे के कन्धे पर हाथ रखे खड़े थे, अपने-अपने मुँह फाड़े और पूरा चौक उस लोकप्रिय गीत से गूँज उठा. दूसरे ट्रक ने इसका साथ दिया और फिर तीसरे ने भी. उसी तरह चलते रहे. रास्ते से गुज़रने वालों ने इस काफ़िले पर सिर्फ उड़ती हुई नज़र डाली और वे चलते रहे. उन्होंने सोचा कि शायद ये कोई पिकनिक पार्टी है जो शहर से बाहर जा रही है. वास्तव में वे शहर से बाहर ही जा रहे थे मगर पिकनिक पर नहीं, बल्कि प्रोफेसर स्त्राविन्स्की के मनोरुग्णालय में.
आधे घण्टे बाद पूरी तरह मतिहीन रोकड़िया मनोरंजन दफ़्तर की वित्तीय शाखा में पहुँचा, इस उम्मीद से कि वह सरकारी रकम से छुट्टी पा जाएगा.
पिछले अनुभव से कुछ सीखकर काफी सतर्कता बरतते हुए उसने सावधानी से उस लम्बे हॉल में झाँका, जहाँ सुनहरे अक्षर जड़े धुँधले शीशों के पीछे कर्मचारी बैठे थे. यहाँ रोकड़िए को किसी उत्तेजना या गड़बड़ के लक्षण नहीं दिखाई दिए. एक अनुशासित ऑफिस जैसा ही वातावरण था.
वासिली स्तेपानोविच ने उस खिड़की में सिर घुसाया जिस पर लिखा था धनराशि जमा करें, और वहाँ बैठे अपरिचित कर्मचारी का अभिवादन करके उससे पैसे जमा करने वाला फॉर्म माँगा.
 आपको क्यों चाहिए? खिड़की वाले कर्मचारी ने पूछा.
रोकड़िया परेशान हो गया.
 मुझे रकम जमा करनी है. मैं वेराइटी से आया हूँ.
 एक मिनट, कर्मचारी ने जवाब दिया और फौरन जाली से खिड़की में बना छेद बन्द कर दिया.
 आश्चर्य है! रोकड़िए ने सोचा. उसका आश्चर्य-चकित होना स्वाभाविक ही था. ज़िन्दगी में पहली बार उसका ऐसी परिस्थिति से सामना हुआ था. सबको मालूम है कि पैसे प्राप्त करना कितना मुश्किल है : हज़ार मुसीबतें आ सकती हैं.
आखिरकार जाली खुल गई. और रोकड़िया फिर खिड़की से मुखातिब हुआ.
 क्या आपके पास बहुत पैसा है? कर्मचारी ने पूछा.
 इक्कीस हज़ार सात सौ ग्यारह रूबल.
 ओहो! कर्मचारी ने न जाने क्यों व्यंग्यपूर्वक कहा और रोकड़िए की ओर हरा फॉर्म बढ़ा दिया.
रोकड़िया इस फॉर्म से भली-भाँति परिचित था. उसने शीघ्र ही उसे भर दिया और बैग में रखे पैकेट की डोरी खोलने लगा. जब उसने पैकेट खोल दिया तो उसकी आँखों के सामने पूरा कमरा घूमने लगा, उसकी तबियत ख़राब हो गई. वह दर्द से बड़बड़ाने लगा.
उसकी आँखों के सामने विदेशी नोट फड़फड़ाने लगे, इनमें थे: कैनेडियन डॉलर्स, ब्रिटिश पौंड, हॉलैण्ड के गुल्देन, लात्विया के लाट, एस्तोनिया के क्रोन...
 यह वही है, वेराइटी के शैतानों में से एक गूँगे हो गए रोकड़िए के सिर पर भारी-भरकम आवाज़ गरजी. और वासिली स्तेपानोविच को उसी क्षण गिरफ़्तार कर लिया गया.
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सोमवार, 30 जनवरी 2012

Master aur Margarita-17.3



मास्टर और मार्गारीटा 17.3 
 नहीं, मैं नहीं देख सकती यह सब! कहकर रोती हुई अन्ना रिचार्दोव्ना सचिव के कमरे में भागी, उसके पीछे ही बन्दूक की गोली की तरह भागा रोकड़िया.
 ज़रा सोचिए, मैं बैठी हूँ, परेशान अन्ना रिचार्दोव्ना रोकड़िए को बाँह पकड़कर सुनाने लगी, और कमरे में घुसा बिल्ला काला, हट्टा-कट्टा, मानो बिल्ला नहीं हिप्पोपोटेमस हो. मैंने उसे शुक् शुक्! कहा. वह बाहर भाग गया, फिर कमरे में घुसा बिल्ले जैसे मुँह वाला एक मोटा आदमी और बोला, तो, मैडम, आप मेहमानों से शुक् शुक्! कहती हैं? वह बेशरम सीधा प्रोखोर पेत्रोविच के कमरे में घुसने लगा. मैं चिल्ला रही थी: क्या पागल हो गए हो? और वह दुष्ट सीधा कमरे में घुसकर प्रोखोर पेत्रोविच के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया. और वह...सहृदय आदमी है, मगर जल्दी घबरा जाता है, भड़क उठा! मैं बहस नहीं करूँगी. भेड़िए की तरह काम करने वाला, कुछ जल्दी परेशान होने वाला, भड़क उठा: आप ऐसे कैसे बिना सूचना दिए अन्दर घुस आए? और वह ढीठ आदमी बेशर्मी से मुस्कुराते हुए कुर्सी पर जम गया और बोला, मैं आपसे काम के बारे में बात करने आया हूँ. प्रोखोर पेत्रोविच ने गुस्से से कहा, मैं व्यस्त हूँ! और सोचो वह बोला, आप ज़रा भी व्यस्त नहीं हैं... हाँ? प्रोखोर पेत्रोविच आपे से बाहर हो गया और चीखा, ये क्या मुसीबत है? इसे यहाँ से ले जाओ, काश मुझे शैतान उठा लेता! और वह, सोचिए, मुस्कुराकर बोला, शैतान उठा ले? यह तो हो सकता है! और झन् से हुआ, मैं चीख भी न सकी, देखती क्या हूँ: वह नहीं है...वह...बिल्ले से चेहरे वाला...और यह...सूट यहाँ बैठा है...हें...हें...हें!!! अन्ना रिचार्दोव्ना के होठ, दाँत सब गड्ड्मड्ड हो गए और वह भें S S S  करके रोने लगी.
सिसकियों पर काबू पाते हुए उसने साँस ली, मगर कुछ और ही समझ में न आने वाली बात कहने लगी.
 और लिख रहा है, लिख रहा है, लिखे जा रहा है! पागल हो जाऊँगी! टेलीफोन पर बात कर रहा है! सूट! सब भाग गए, खरगोशों की तरह!
रोकड़िया सकते में खड़ा हुआ था. मगर किस्मत उसे बचा ले गई, सेक्रेटरी के ऑफिस में खामोश, कामकाजी भाव से पुलिस घुसी...दो पुलिस वाले. उन्हें देखकर सेक्रेटरी और ज़ोर से रो पड़ी. वह रोती जा रही थी और प्रमुख के ऑफिस की ओर इशारा करती जा रही थी.
 रोते नहीं हैं, महोदया, रोइए मत, शांति से पहला पुलिस वाला बोला. रोकड़िया समझ गया कि उसकी यहाँ कोई ज़रूरत नहीं है और वह उस कमरे से बाहर खिसक लिया, एक ही मिनट बाद वह खुली हवा में साँस ले रहा था. उसके दिमाग में सनसनाहट हो रही थी. इस सनसनाहट में गेट कीपर की बिल्ले के बारे में बताई गई कहानियाँ उभर रही थीं, जिसने कल के शो में हिस्सा लिया था. ओ...हो...हो! कहीं वह हमारा वाला बिल्ला तो नहीं था?
जब कमिटी के ऑफिस में कुछ बात नहीं बनी तो, शरीफ-दिल वासिली स्तेपानोविच ने उसकी शाखा में जाने का इरादा किया जो वगान्स्कोव्स्की चौराहे पर स्थित थी. अपने आपको कुछ संयत करने के इरादे से उसने यह दूरी पैदल ही तय की.
शहर की यह मनोरंजन कमिटी की शाखा एक पुराने महल में थी, जो अपने शानदार स्तम्भों के लिए मशहूर था.
मगर आज आगंतुक स्तम्भों से नहीं मगर उनके नीचे हो रही गड़बड़ के कारण हैरान हो रहे थे.
कुछ आगंतुक एक महिला को घेरकर खड़े थे, जो एक टेबुल पर कुछ मनोरंजक साहित्य रखकर उसे बेच रही थी और बेतहाशा रो रही थी.इस समय यह महिला किसी को कुछ भी नहीं दिखा रही थी और आगंतुकों के प्रश्नों के उत्तर में केवल हाथ झटक रही थी; और इसी समय ऊपर से, नीचे से, किनारे से, सभी विभागों से लगभग बीस टेलिफोन बज रहे थे.
कुछ देर रोकर, महिला एकदम सिहर उठी, और उन्मादपूर्वक चीखी, फिर वही! और वह थरथराती आवाज़ में तारसप्तक में गाने लगी:
सुन्दर सागर पवित्र बायकाल...

सीढियों से नीचे उतरता पत्रवाहक न जाने किसको मुक्के दिखाता हुआ इस महिला के साथ मोटी, बुझी-बुझी आवाज़ में गा उठा:
सुन्दर जहाज़ मछलियों की गठरी!...
इन दो आवाज़ों में और आवाज़ें भी मिलती गईं, धीरे-धीरे इस समूहगान ने पूरी इमारत को भर दिया. पास ही के कमरा नं. 6 में जहाँ हिसाब-किताब की जाँच का विभाग था, किसी की भारी, भर्राई आवाज़ अलग-थलग सुनाई पड़ रही थी. टेलिफोन की घंटियाँ मानो इस कोरस को पार्श्व संगीत प्रदान कर रही थीं.
हेय बार्गज़िन...लहरों से खेलो!...
पत्रवाहक सीढ़ियों पर दहाड़ा.
लड़की के चेहरे पर आँसू बह चले, उसने दाँत भींचने की कोशिश की मगर उसका मुँह अपने आप खुल गया, और वह सबसे ऊँचे सुर में गाने लगी.

काश, नौजवान होता आसपास!
ख़ामोश आगंतुकों को इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि अलग-अलग स्थानों पर बिखरे होने के बावजूद सभी कर्मचारी इस प्रकार गा रहे थे, मानो एक समूह में खड़े हों और वे सभी किसी अदृश्य निर्देशक की ओर देखते हुए गा रहे थे मानो उसके इशारों का पालन कर रहे हों. वगान्स्कोव्स्की चौराहे से गुज़रने वाले उस भवन के प्रवेश-द्वार के पास ठिठकते और वहाँ के प्रसन्न और उल्लासमय वातावरण पर ताज्जुब करते आगे बढ़ जाते.
जैसे ही पहला पद समाप्त हुआ, गायन अचानक रुक गया, मानो निर्देशक की डण्डी ने उन्हें अचानक रोक दिया हो.पत्रवाहक बड़बड़ाया और न जाने कहाँ छिप गया. तभी प्रवेश-द्वार खुला और उसमें से गर्मियों का कोट पहने, जिसके नीचे से सफ़ेद कमीज़ के किनारे झाँक रहे थे, एक व्यक्ति प्रकट हुआ, उसके साथ-साथ आ गया पुलिस का सिपाही.
 कुछ कीजिए, डॉक्टर, विनती करती हूँ... लड़की उन्मादपूर्वक चिल्लाई.
इस मनोरंजन दफ़्तर की शाखा का सचिव दौड़कर सीढ़ियों पर आया और ज़ाहिर था, कि वह अपमान और शर्म से लाल होकर रिरियाते हुए बोला, देख रहे हैं न डॉक्टर, शायद यह सामूहिक सम्मोहन की घटना है...इसलिए, ज़रूरी है... वह अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि उसके शब्दों ने उसे धोखा दे दिया और वह अचानक गा उठा:
शील्का और नेरचिंस्क...

बेवकूफ़! लड़की चिल्लाई तो सही, मगर यह न समझा पाई कि वह किस पर बरस रही है, और आगे कुछ कहने के स्थान पर वह भी एक ऊँची तान लेकर शील्का और नेरचिन्स्क की प्रशंसा में गाने लगी.
 अपने आप पर काबू रखो! गाना बन्द करो! डॉक्टर सेक्रेटरी की ओर मुख़ातिब हुआ.
ज़ाहिर था कि सेक्रेटरी स्वयँ भी यह गाना रोकने के लिए कोई भी कीमत देने को तैयार था, मगर गाना रोकने के स्थान पर वह खुद भी ज़ोर-ज़ोर से गाता रहा और यह समूहगान उस चौराहे पर आने-जाने वालों को बता रहा था कि खण्डहरों में उस पर किसी जंगली जानवर ने हमला नहीं किया और गोली शिकारियों को छू नहीं पाई!
जैसे ही यह पद समाप्त हुआ डॉक्टर ने लड़की के मुँह में दवा की कुछ बूँदें डालीं और फिर वह भागा सेक्रेटरी एवम् अन्य कर्मचारियों को दवा पिलाने.
 माफ़ करना, मैडम, वासिली स्तेपानोविच अचानक लड़की से पूछ बैठा, आपके पास काला बिल्ला तो नहीं आया?
 कैसा बिल्ला? कहाँ का बिल्ला? गुस्से में लड़की चीखी, गधा बैठा है हमारे ऑफिस में, गधा! और उसने आगे पुश्ती जोड़ी, सुनता है तो सुने! मैं सब कुछ बता दूँगी. और उसने वास्तव में सब कुछ बता दिया.
                                                                                                           क्रमशः

Master aur Margarita-17.2


मास्टर और मार्गारीटा 17.2
इसी चक्कर में दोपहर हो गई, जब टिकट खिड़की खुलने वाली थी. मगर अब उसका सवाल ही नहीं उठता था. वेराइटी के प्रवेश द्वारों पर फौरन एक विशाल नोटिस लगा दिया गया : आज का शो रद्द कर दिया गया है. बाहर खड़ी लाइन में असंतोष की लहर दौड़ गई, मगर कुछ देर बहस करने के बाद वह कतार टूटने लगी. करीब एक घण्टे बाद सादोवाया पर उसका नामो-निशान नहीं बचा. अन्वेषण दल भी किसी अन्य स्थान पर अपनी खोज जारी रखने के लिए चला गया. पहरेदारों के अलावा बाकी सभी कर्मचारियों की छुट्टी कर दी गई. वेराइटी का द्वार बन्द कर दिया गया.
 रोकड़िए वासिली स्तेपानोविच को फ़ौरन दो काम करने थे. पहला यह कि मनोरंजन कमिटी में जाकर कल के शो के बारे में रिपोर्ट करे; और दूसरा, कल के शो से प्राप्त 21,711 रूबल की धनराशि उसके रोकड़ विभाग में जमा कर दे.
सलीकापसन्द और आज्ञाकारी वासिली स्तेपानोविच ने अख़बारी कागज़ में नोटों के बण्डल लपेटे, उस पर एक डोरी बाँधी, उसे बैग में रखा और हिदायतों को ध्यान में रखते हुए बस या ट्राम के स्टॉप के बदले टैक्सी के अड्डे पर गया.
जैसे ही वहाँ खड़ी तीन टैक्सियों के चालकों ने हाथ में फूली हुई बैग लिए टैक्सी स्टैण्ड की ओर लपककर आते मुसाफ़िर को देखा, तीनों के तीनों न जाने क्यों उसकी ओर गुस्से से देखते हुए अपनी गाड़ियों के साथ वहाँ से रफ़ूचक्कर हो गए.
रोकड़िया उनकी इस हरकत से हक्का-बक्का रह गया. वह बुत की भाँति खड़ा रहा यह सोचते हुए कि इस सबका मतलब क्या हो सकता है!
तीन मिनट बाद एक खाली टैक्सी आती दिखाई दी, चालक ने मुसाफिर को देखते ही मुँह बनाया.
 टैक्सी खाली है? आश्चर्य से खखारते हुए वासिली स्तेपानोविच ने पूछा.
 पहले पैसे दिखाओ, गुस्से में ड्राइवर ने उसकी ओर नज़र उठाए बगैर कहा.
और भी अधिक चकित होकर रोकड़िए ने वह कीमती बैग बगल में दबाकर दस रूबल का एक नोट निकालकर चालक को दिखाया.
 नहीं जाऊँगा! उसने टका-सा जवाब दिया.
 माफ कीजिए... रोकड़िए ने कहना चाहा, मगर चालक ने उसे बीच में टोकते हुए पूछा, तीन रूबल के नोट हैं?
रोकड़िया सकते में आ गया. उसने दो-तीन रूबल के नोट निकालकर ड्राइवर को दिखाए.
 बैठिए, वह चिल्लाया और उसने मीटर इतनी ज़ोर से घुमाया कि वह टूटते-टूटते बचा, चलें!
 क्या चिल्लर नहीं है? रोकड़िए ने नर्मी से पूछा.
 पूरी जेब भरी है चिल्लर से! चालक दहाड़ा और सामने के नन्हे-से आईने में उसकी खून बरसाती आँखें दिखाई दीं, ये तीसरा हादसा हुआ आज मेरे साथ. औरों के साथ भी ऐसा ही हुआ. किसी एक सूअर के बच्चे ने दस का नोट दिया और मैंने उसे चिल्लर थमाई साढ़े चार रूबल...उतर गया, बदमाश! पाँच मिनट बाद देखता क्या हूँ कि दस के नोट के बदले है, नरज़ान की बोतल का लेबल! ड्राइवर ने कुछ न छापने योग्य शब्द कहे. दूसरी बार हुआ ज़ुब्रास्का के बाद. दस का नोट! तीन रूबल की चिल्लर वापस की. चला गया! मैंने अपने बटुए में हाथ डाला, वहाँ एक बरैया ने मेरी उँगली में काट लिया! और दस का नोट नहीं है! ओ...ह! चालक ने फिर कुछ न छापने योग्य गालियाँ दीं, कल इस वेराइटी में (असभ्य शब्द) किसी एक गिरगिट के बच्चे ने दस के नोटों का करिश्मा दिखाया था (असभ्य गाली).
रोकड़िए को मानो साँप सूँग़्ह गया. उसने कुछ अचकचाकर ऐसा ज़ाहिर किया मानो वेराइटी शब्द पहली बार सुन रहा हो, और सोचने लगा :तो यह बात है, भुगतो...
अपने गंतव्य तक पहुँचकर, टैक्सी ड्राइवर को सही-सलामत पैसे देकर रोकड़िया उस बिल्डिंग में घुसा और गलियारे से होते हुए कमिटी के प्रमुख के ऑफिस की ओर चल पड़ा और उसे फ़ौरन आभास हुआ कि वह गलत वक़्त पर आया है. मनोरंजन कमिटी के दफ़्तर में भगदड़ मची हुई थी. रोकड़िए के पास से भागती हुए एक पत्रवाहक लड़की गुज़री, जिसके सिर का रूमाल खुल चुका था और आँखें फटी-फटी थीं.
 नहीं, नहीं, नहीं, मेरे प्यारों! वह चिल्लाई, न जाने किसकी ओर मुख़ातिब होकर, कोट और पैण्ट तो वहीं हैं, मगर कोट के अन्दर कोई नहीं है!
वह भागती हुई किसी दरवाज़े के पीछे छिप गई और उसके पीछे कप-प्लेटें टूटने की आवाज़ें आने लगीं. सचिव के कमरे से रोकड़िए का परिचित, कमिटी के पहले सेक्टर का प्रमुख बेतहाशा भागता हुआ बाहर आया, मगर वह इतना बदहवास था कि अपने रोकड़िए दोस्त को भी न पहचान पाया, और वह भी कहीं छिप गया.
इस सबसे घबराकर रोकड़िया सचिव के कमरे तक पहुँचा, जो कमिटी के दफ़्तर के प्रमुख का एक तरह से प्रवेश-कक्ष ही था, यहाँ आकर मानो उस पर बिजली गिर पड़ी.
कमरे के बन्द दरवाज़े के पीछे से गरजती हुई आवाज़ सुनाई दे रही थी, जो निःसंदेह ही कमिटी के प्रमुख की यानी प्रोखोर पेत्रोविच की ही थी. क्या किसी पर बरस रहे हैं? परेशान रोकड़िए ने सोचा, मगर कमरे में झाँकने पर उसने दूसरा ही नज़ारा देखा: चमड़े की कुर्सी की पीठ पर सिर टिकाए, बेतहाशा कराहते हुए, हाथ में गीला रूमाल पकड़े कमरे के मध्य तक टाँगें फैलाए प्रोखोर पेत्रोविच की सचिव सुन्दरी अन्ना रिचार्दोव्ना पड़ी थी.
अन्ना रिचार्दोव्ना की पूरी ठुड्डी पर लिपस्टिक पुती हुई थी, और गुलाबी कोमल गालों पर पलकों से मसकारा की काली धाराएँ बह रही थीं.
किसी को अन्दर घुसते देख अन्ना रिचार्दोव्ना उछल पड़ी, वह रोकड़िए का कोट पकड़कर उससे लिपट गई और चीख़ने लगी, हे भगवान! कम से कम एक तो बहादुर निकला! सब भाग गए, सबने विश्वासघात किया! चलो, चलो, उसके पास चलें! मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि क्या करना चाहिए! और रोते-रोते उसने रोकड़िए को कमरे के अन्दर घसीटा.
कमरे में घुसते ही रोकड़िए के हाथ से बैग छूटकर ज़मीन पर गिर पड़ा और उसके विचार उलट-पुलट हो गए. अब यह तो बताना ही पड़ेगा कि ऐसा क्यों हुआ.

लिखने की भव्य मेज़ के पीछे, जिस पर एक विशाल दवात रखी थी, खाली सूट बैठा था और बिना स्याही में डुबोए, यानी सूखी कलम से कागज़ पर कुछ लिख रहा था. सूट के साथ टाई भी थी, कोट की जेब से बॉलपेन झाँक रहा था, मगर कॉलर के ऊपर न तो गर्दन थी, न ही सिर; उसी तरह आस्तीनों से कलाइयाँ भी नहीं दिखाई दे रही थीं. सूट काम में डूबा था और उसका चारों ओर मची भगदड़ की ओर ज़रा भी ध्यान नहीं था. किसी के आने की आहट सुनकर कोट ने कुर्सी में कुछ हलचल की और कॉलर के ऊपर प्रोखोर पेत्रोविच की जानी-पहचानी आवाज़ गूँजी, क्या बात है? दरवाज़े पर लिखा है न, कि मैं अभी किसी से नहीं मिल सकता!
ख़ूबसूरत सेक्रेटरी ने एके सिसकी ली और हाथ मलते हुए चिल्लाई, देख रहे हैं? वह नहीं है! नहीं है! उसे वापस लाइए, वापस लाइए!
अब दरवाज़े से कोई झाँका, चीखा और छूमंतर हो गया. रोकड़िए ने महसूस किया कि उसकी टाँगें काँप रही हैं और वह कुर्सी के किनारे पर बैठ गया, मगर वह अपनी बैग उठाना नहीं भूला. अन्ना रिचार्दोव्ना रोकड़िए के चारों ओर उछल-कूद मचा रही थी. वह उसका कोट पकड़कर चीखी, मैं उसे हमेशा मना करती थी, जब वह शैतान की कसम खाता था! बन गया अब खुद ही शैतान! अब वह मेज़ की ओर भागी और सुरीली मीठी आवाज़ में, जो रोने से कुछ भारी हो गई थी, पूछने लगी, प्रोशा! तुम कहाँ हो?
 कौन प्रोशा? सूट ने कुर्सी में और भी धँसते हुए ज़ोर से पूछा.
 नहीं पहचानता! मुझे नहीं पहचानता! आप समझ रहे हैं? सेक्रेटरी रो पड़ी.
 कृपया ऑफिस में मत रोइए! सूट अब चिढ़ गया था. उसने आस्तीनों से कोरे कागज़ों का गट्ठा अपनी ओर खींच लिया, जिससे उन पर निर्णय लिख सके.
                                             क्रमशः

रविवार, 29 जनवरी 2012

Master aur Margarita-17.1


मास्टर और मार्गारीटा 17.1
परेशानी भरा दिन

शुक्रवार की सुबह, यानी उस आफत के मारे शो के दूसरे दिन, वेराइटी थियेटर के सभी उपस्थित कर्मचारी रोकड़िया वासिली स्तेपानोविच लास्तोच्किन, दो एकाउण्टेण्ट, तीन टाइपिस्ट लड़कियाँ, दोनों टिकट बाँटने वाली, चपरासी, परदा खोलने वाले और झाड़ू लगाने वाले यानी, वे सभी जो उपस्थित थे अपनी सीट के बदले सादोवाया रास्ते की ओर खुलने वाली खिड़कियों की देहलीज़ पर बैठ कर देख रहे थे कि वेराइटी की दीवार के उस ओर क्या हो रहा है. वेराइटी की दीवार के नीचे हज़ारों लोगों की दो कतारों वाली लम्बी लाइन खड़ी थी, जिसका दूसरा सिरा दूर कहीं कुद्रिन्स्काया चौक पर ख़त्म हो रहा था. दोनों कतारों के अगले हिस्से में मॉस्को के थियेटर जगत की कम से कम 20-25 जानी-मानी हस्तियाँ थीं.
ये लम्बी लाइनें काफ़ी उत्तेजित मालूम होती थीं; आने-जाने वाले लोगों का ध्यान वहाँ हो रही बातचीत की ओर बरबस खिंच जाता था. वे सभी कल के उस काले जादू वाले अप्रतिम शो के बारे में गर्मागर्म बहस कर रहे थे. इन्हीं कहानियों से रोकड़िया वासिली स्तेपानोविच भी परेशान हो उठा था. वह कल थियेटर मे नहीं था. गेट कीपर भगवान जाने क्या कह रहे थे...और यह भी कि शो के बाद कुछ भद्र महिलाएँ अभद्र अवस्था में रास्ते पर भाग रही थीं...और भी इसी तरह का कुछ-कुछ. लजीला और ख़ामोश वासिली स्तेपानोविच इन सब कथाओं को सुनते हुए बस पलकें झपका रहा था. वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या करना चाहिए, मगर कुछ न कुछ तो करना ही था न, क्योंकि इस समय वेराइटी के उपस्थित कर्मचारियों में वही एक वरिष्ठ अधिकारी था.
दस बजते-बजते टिकट लेने वालों की लाइन इतनी लम्बी हो गई कि उसकी ख़बर पुलिस को भी हो गई; ग़ज़ब की फुर्ती से फ़ौरन पैदल एवम् घुड़सवार दस्ते वहाँ भेज दिए गए जिन्होंने इस कतार में कुछ अनुशासन बनाए रखा. मगर लगभग एक किलोमीटर लम्बा यह नाग अपने आप में कम दिलचस्प नहीं था, जिसने सादोवाया पर लोगों को हैरत में डाल दिया था.
यह तो थी वेराइटी के बाहर की बात, मगर अन्दर भी वातावरण कोई खुशगवार नहीं था. सुबह से ही लिखादेयेव, रीम्स्की, कैश ऑफ़िस, टिकट खिड़की और वारेनूखा के कमरों में टेलिफोन की घंटियाँ बजने लगीं. आरम्भ में तो वासिली स्तेपानोविच और टिकट-विक्रेता लड़की और गेट कीपरों ने टेलिफोन पर पूछे जा रहे सवालों के जवाब दिए, मगर कुछ ही देर बाद उन्होंने उस ओर ध्यान देना ही बन्द कर दिया; क्योंकि उनके पास उन सवालों के कोई जवाब ही नहीं थे कि लिखादेयेव, वारेनूखा और रीम्स्की कहाँ हैं. पहले उन्होंने कह दिया कि लिखादेयेव अपने फ्लैट में है, मगर जवाब आया कि वे फ्लैट पर फोन कर चुके हैं, जहाँ उन्हें यह बताया गया है कि लिखादेयेव वेराइटी में है.
एक परेशान महिला ने फोन पर माँग की कि उसे रीम्स्की का पता बताया जाए, जब उसे सलाह दी गई कि वह रीम्स्की की बीवी को फोन कर ले तो टॆलिफोन का चोंगा सिसकियाँ लेते हुए बोला कि वही रीम्स्की की पत्नी है और उसके पति का कहीं पता नहीं है. एक भगदड़-सी मच गई. झाड़ू लगाने वाली ने सबको बता दिया कि जब वह वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे में सफ़ाई करने गई तो देखा कि दरवाज़ा पूरा खुला है, सभी लाइटें जल रही हैं, बाग की तरफ खुलने वाली खिड़की का शीशा टूटा हुआ है, कुर्सी ज़मीन पर पड़ी है और कमरे में कोई नहीं है.
दस बजने के कुछ बाद मैडम रीम्स्काया तीर की तरह वेराइटी में घुसी. वह रो रही थी और हाथ मल रही थी. वासिली स्तेपानोविच पूरी तरह बौखला गया, वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या सलाह दे.
साढ़े दस बजे पुलिस आई. पहला ही तर्कसंगत सवाल उसने यह किया, ये क्या हो रहा है नागरिकों? बात क्या है?
बौखलाए हुए, पीले पड़ गए वासिली स्तेपानोविच को आगे करके सब पीछे हट गए. सब कुछ साफ-साफ बताना ही पड़ा और स्वीकार करना पड़ा कि वेराइटी के सभी प्रशासनिक अधिकारी डाइरेक्टर, वित्तीय डाइरेक्टर और व्यवस्थापक न जाने कहाँ गुम हो गए हैं; और कल के कार्यक्रम के बाद सूत्रधार को पागलखाने भेज दिया गया है यानी कल का कार्यक्रम बड़ा लफ़ड़े वाला साबित हुआ.
सुबकती हुई मैडम रीम्स्काया को किसी तरह जितना सम्भव था, समझा-बुझाकर घर भेज दिया गया और काफ़ी दिलचस्पी से झाड़ू लगाने वाली से पूछा गया कि उसने वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे को किस हालत में देखा था. सभी कर्मचारियों को अपनी-अपनी जगह पर जाकर काम करने के लिए कह दिया गया. कुछ ही देर में तेज़ कान वाले, मज़बूत, सिगरेट की राख के रंग के, तेज़ दृष्टि वाले कुत्ते के साथ खोजी दस्ता आ गया. वेराइटी के कर्मचारियों के बीच कानाफूसी होने लगी कि यह कुत्ता और कोई नहीं बल्कि सुप्रसिद्ध जासूसी कुत्ता तुज़्बुबेन है. वास्तव में वह वही था. उसकी हरकतों से सभी हैरान रह गए. जैसे ही तुज़्बुबेन वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे में घुसा उसने अपने पीले नुकीले दाँत दिखाकर गुर्राना शुरू कर दिया, फिर वह पेट के बल लेट गया और आँखों में पीड़ा तथा वहशीपन का भाव लिए टूटी हुई खिड़की की ओर रेंग गया. अपने भय पर काबू पाते हुए वह खिड़की की देहलीज़ पर कूद गया और अपना नुकीला सिर ऊपर करके गुस्से और वहशत से चीख़ने लगा. वह खिड़की से हटना नहीं चाह रहा था, गुर्राता जा रहा था, काँप रहा था और नीचे छलाँग लगाने को तैयार था.
कुत्ते को कमरे से बाहर लाकर गलियारे में छोड़ दिया गया, जहाँ से वह प्रवेश द्वार से बाहर निकलकर सड़क पर आ गया और अपने साथ दौड़ रहे पुलिस वालों को टैक्सी-स्टैण्ड तक ले आया. यहाँ आकर उसकी खोज के निशान खो गए. इसके बाद तुज़्बुबेन को वापस ले जाया गया.
खोजी दल वारेनूखा के कमरे में बैठ गया. यहीं वेराइटी के उन सभी कर्मचारियों को बारी-बारी से बुलाया गया जो कल के शो में उपस्थित थे. अन्वेषण दल को हर कदम पर अप्रत्याशित कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था. खोज का सिलसिला रह-रहकर टूट जाता था.
 इश्तेहार थे?
  इश्तेहार थे. मगर रात ही रात में उन पर नये इश्तेहार चिपका दिए गए थे और अब चाहे कुछ भी कर लो एक भी इश्तेहार उपलब्ध नहीं था.
 यह जादूगर आया कहाँ से था?
  मगर उसे जानता कौन था!
 उसके साथ कोई अनुबन्ध किया गया?
 किया ही होगा, परेशान वासिली स्तेपानोविच ने जवाब दिया.
 अगर किया गया तो वह रोकड़िया विभाग से ही तो गया होगा न?
 जाना ही चाहिए था, और अधिक व्यथित होते हुए वासिली स्तेपानोविच ने कहा.
 तो फिर वह है कहाँ?
 नहीं है, रोकड़िए ने हाथ हिलाकर और अधिक पीला पड़ते हुए जवाब दिया. और सचमुच, उस अनुबन्ध का कहीं नामो-निशान नहीं था; न तो रोकड़ विभाग में, न ही वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे में, न तो लिखादेयेव के पास और न ही वारेनूखा की मेज़ पर.
इस जादूगर का नाम क्या था? वासिली स्तेपानोविच को मालूम नहीं, वह कल के शो में आया ही नहीं था. गेट कीपर नहीं जानते, टिकट विक्रेता ने दिमाग़ पर ज़ोर दिया, सोचने लगी, सोचने लगी और अंत में बोली, वो...शायद, वोलान्द.
 हो सकता है वोलान्द न हो! हो सकता है, वोलान्द न होकर फोलान्द हो? शायद फोलान्द हो.
पूछने पर पता चला कि विदेशी यात्रियों के ब्यूरो में किसी ऐसे जादूगर के बारे में सुना ही नहीं गया, जिसका नाम वोलान्द या फिर फोलान्द हो.
डाक लाने, ले जाने वाले कार्पोव ने बताया कि शायद यह जादूगर लिखादेयेव के फ्लैट में रुका था. उसी समय सब लोग वहाँ पहुँचे. वहाँ कोई जादूगर नहीं था. लिखादेयेव ख़ुद भी मौजूद नहीं था. नौकरानी ग्रून्या भी नहीं थी; और वह ग़ायब कहाँ हो गई इस बारे में भी कोई कुछ बता न सका. हाउसिंग सोसाइटी के प्रेसिडेण्ट निकानोर इवानोविच नहीं थे, प्रोलेझ्नेव भी नहीं थे.
कुछ अजीब-सी बात हो गई था: सभी उच्च प्रशासनिक अधिकारी गायब थे; कल एक विचित्र-सा, लफ़ड़े वाला शो हुआ था, और किसने, किसके कहने से उसका आयोजन किया था पता नहीं.
                                           क्रमशः

Master aur Margarita-16.4


मास्टर और मार्गारीटा 16.4
क्रिसोबोय ने वध-स्तम्भों के निकट पड़े हुए चीथड़ों की ओर कनखियों से देखा, जो कुछ देर पहले तक अपराधियों की पोशाक थे और जिन्हें लेने से जल्लादों ने इनकार कर दिया था. क्रिसोबोय ने दो जल्लादों को बुलाकर आज्ञा दी, मेरे पीछे आओ!       
निकट के वध-स्तम्भ से भर्राहट भरा ऊल-जुलूल-सा गाना सुनाई दे रहा था. उस पर लटकाया गया गेस्तास मक्खियों और सूरज के कारण मृत्युदण्ड के तीन ही घण्टे बाद पागल हो गया था. अब वह अंगूरों के बारे में गा रहा था. मगर पगड़ी से ढँके अपने सिर को वह कभी-कभी धीरे से हिला देता था, तब अलसाई हुई मक्खियाँ उसके चेहरे से उड़ जातीं और वापस उड़कर वहीं बैठ जाती थीं.
दूसरे वध-स्तम्भ पर दिसमास अन्य दोनों की अपेक्षा अधिक तड़प रहा था, क्योंकि उसने अपने होश नहीं खोए थे. वह अपना सिर बार-बार हिला रहा था, कभी दाहिने तो कभी बाएँ, जिससे कन्धों पर कानों से चोट कर सके.
इन दोनों से अधिक सुखी था येशू. पहले ही घण्टे में बेहोशी उसे घेरने लगी, वह सिर लटकाकर अपनी सुध खो बैठा. मक्खियों ने उसके चेहरे को पूरी तरह ढँक लिया. अब उसका चेहरा काले सरसराते पदार्थ से ढँका प्रतीत होता था. पेट पर, बगल में, सीने पर मोटी-मोटी जोंकें बैठी थीं जो उसके नंगे, पीले बदन को चूस रही थीं.
टोप पहने व्यक्ति की आज्ञा का पालन करते हुए एक जल्लाद ने भाला उठाया और दूसरा वध-स्तम्भ के पास बाल्टी और स्पंज लाया. पहले वधिक ने भाला उठाकर येशू के दोनों हाथों में चुभोया, जो सलीब के दोनों सिरों पर रस्सियों से बाँधे गए थे. दुबला-पतला शरीर जिसकी पसलियाँ दिखाई पड़ रही थीं कुछ सिहरा. जल्लाद ने भाले की नोक पेट पर घुमाई. तब येशू ने सिर उठाया, मक्खियाँ भिनभिनाकर उड़ गईं. लटके हुए येशू का मक्खियाँ काटने से सूजा हुआ चेहरा दिखाई दिया; तैरती हुई आँखों वाला यह चेहरा पहचाना नहीं जा रहा था.
पलकें खोलकर हा-नोस्त्री ने नीचे देखा. उसकी स्वच्छ आँखें धुँधली पड़ गई थीं. हा-नोस्त्री, जल्लाद ने कहा.
हा-नोस्त्री ने सूजे हुए होठों से कुछ हरकत करते हुए डाकुओं जैसी भर्राई हुई आवाज़ में पूछा, क्या चाहिए? मेरे पास क्यों आए हो?
 पियो! जल्लाद ने कहा और पानी में डूबा हुआ एक स्पंज का टुकड़ा भाले की नोक पर सवार होकर येशू के होठों के निकट पहुँचा. उसकी आँखों में कुछ चमक दिखाई दी, वह अत्यन्त अधीरता से उस पानी को चूसने लगा. पास के वध-स्तम्भ से दिसमास की आवाज़ सुनाई दी:
 यह अन्याय है! मैं भी वैसा ही डाकू हूँ, जैसा यह है.
दिसमास ने सीधा होने की कोशिश की मगर वह हिल न सका. उसके हाथों को तीन स्थानों पर रस्सी के वलयों ने सलीब से जकड़ रखा था. उसने पेट तान लिया, नाखूनों से सलीब को पकड़ लिया और क्रोध से येशू के वध-स्तम्भ की ओर अपना सिर घुमा लिया.
धूल के अन्धड़ और बादल ने उस जगह को ढाँक लिया, गहन अँधेरा छा गया. जब धूल उड़ गई तब अंगरक्षक चिल्लाया, दूसरे स्तम्भ पर, ख़ामोश रहो!
दिसमास चुप हो गया. येशू जल में डूबे स्पंज से दूर होकर प्रयत्नपूर्वक मीठी और विश्वासपूर्ण आवाज़ में बोलने की कोशिश करने लगा, मगर आवाज़ भर्राई हुई ही निकली. उसने जल्लाद से कहा, उसे भी पानी पिलाओ.
अँधेरा बढ़ता जा रहा था. बादलों ने आधे आकाश को ढँक लिया था. येरूशलम की ओर बढ़ते सफ़ेद उबलते बादल काली नम अग्निशलाकाओं से सुसज्जित घनघोर घटा का नेतृत्व कर रहे थे. पहाड़ी के ठीक ऊपर बिजली कड़की. जल्लाद ने भाले की नोक से गीला स्पंज हटा लिया.
 महामहिम की महानता के गुण गाओ! उसने घोषणा की और धीरे से भाला येशू के सीने में चुभो दिया. वह काँपा और फुसफुसाया, महामहिम...
उसके पेट पर रक्त की धारा बह चली. निचला जबड़ा काँपा और उसका सिर झूल गया.
बिजली की दूसरी कड़क के साथ जल्लाद ने दिसमास को पानी पिलाया और वही शब्द कहे,
महामहिम के गुण गाओ! और उसे भी मार डाला.
मतिहीन हुआ गेस्तास, जैसे ही उसने जल्लाद को अपने निकट देखा, घबराकर चिल्लाया, मगर जैसे ही उसके होठों को नमी ने स्पर्श किया उसने कराह कर पानी चूसना शुरू कर दिया. कुछ ही क्षणों बाद उसका शरीर भी लटक गया, जितना रस्सियों के रहते लटक सकता था.
टोप वाला आदमी जल्लाद और अंगरक्षक के पीछे-पीछे चल रहा था और उसके पीछे था मन्दिर के सुरक्षा दल का नायक. पहले स्तम्भ के पास रुककर टोप वाले आदमी ने गौर से येशू के लहूलुहान शरीर को देखकर उसकी एड़ियों को अपने सफ़ेद हाथों से छुआ और अपने साथियों से बोला, मर गया.
यही क्रिया अन्य दो वध-स्तम्भों के पास भी हुई.
इसके बाद ट्रिब्यून ने अंगरक्षक को इशारा किया और वे मन्दिर सुरक्षा-दल के नायक और टोप वाले आदमी के साथ पहाड़ी से नीचे उतरने लगे. अँधेरा छा गया, आसमान में बिजलियाँ कड़कने लगीं. इस गड़गड़ाहट में अंगरक्षक की चीख : घेरा तोड़ दो! डूब गई. प्रसन्न सिपाही अपने टोप पहनते हुए पहाड़ी से नीचे भागे. अँधेरे ने येरूशलम को ढँक लिया.
अचानक तेज़ बारिश होने लगी जिसने अंगरक्षक को आधे रास्ते में दबोच लिया. बारिश इतनी तेज़ थी कि नीचे भागते हुए सिपाहियों को दबोचने के लिए पहाड़ पर से पानी के उफ़नते हुए रेले दौड़ने लगे. सिपाही गीली मिट्टी पर फिसलने लगे, गिरने लगे. वे मुख्य मार्ग पर पहुँचने की कोशिश कर रहे थे, जहाँ उफ़नते पानी में तार-तार भीगा हुआ घुड़सवार दस्ता येरूशलम जा रहा था. कुछ मिनटों के पश्चात् तूफ़ान, पानी और अग्नि के तांडव के बीच पहाड़ी पर केवल एक आदमी बचा था. वह बेकार में ही चुराए हुए चाकू को संभालते, फिसलन भरे स्थानों से बचते, हर सम्भव सहारे को तलाशते, कभी-कभी घुटनों के बल रेंगते वध-स्तम्भों की ओर बढ़ा. कभी वह पूरी तरह अँधेरे में डूब जाता था, तो कभी बिजली की चकाचौंध उसे आलोकित कर जाती थी.
वध-स्तम्भों के निकट पहुँच कर उसने अपने लथपथ कोट को उतार फेंका, केवल एक कमीज़ में वह येशू के पैरों से लिपट गया. उसने सभी रस्सियाँ काट दीं, नीचे वाले क्रॉस पर चढ़ा, येशू के शरीर का आलिंगन करते हुए उसके दोनों हाथ मुक्त कर दिए. गीला, नंगा येशू का बदन लेवी को साथ लिए भूमि पर गिर पड़ा. लेवी उसे अपने कंधों पर उठाना चाह रहा था तभी किसी ख़याल ने उसे रोक दिया. उसने वहीं पानी में डूबी धरती पर उस शरीर को छोड़ दिया और लड़खड़ाते, फिसलते पैरों से अन्य दो वध-स्तम्भों की ओर बढ़ा. उसने उनकी भी रस्सियाँ काट दीं और दो और मृत शरीर ज़मीन पर गिर पड़े.
कुछ और क्षणों के बाद पहाड़ की चोटी पर बचे थे केवल वे ही दो म्रत शरीर और तीन खाली वध-स्तम्भ. पानी के थपेड़े इन शरीरों को उलट-पलट रहे थे.
इस समय पहाड़ी पर न तो लेवी था और न ही येशू का शरीर.
   
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